मेरा गुप्त जीवन- 186

(Mera Gupt Jeewan- part 186 Bombay Vali Train Me Adla Badli)

यश देव 2016-08-23 Comments

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बम्बई वाली ट्रेन में अदला बदली

मौसी की बेटी के साथ शादी की बात सुन कर मौसी नकली गुस्से में आग बबूला होने का ड्रामा करने लगी और हम दोनों के पीछे नग्न ही भागने लगी।
यह दृश्य मैं जीवन में कभी नहीं भूलूंगा।

मौसी और किरण तकरीबन एक हफ्ता लखनऊ में रहे और इस समय में हम सबने खूब आनन्द लिया एक दूसरे के साथ!
मौसी और किरण रोज़ चुदने के लिए तैयार रहती थी और मैं और कम्मो मिल कर उनकी बहुत सेवा करते रहे हर लिहाज़ से!
किरण तो इतनी खुश थी हमारे साथ कि वो लखनऊ से जाना ही नहीं चाहती थी।

वो दोनों बड़ी मजबूरी में गई लखनऊ छोड़ कर क्योंकि मौसा जी का फ़ोन बार बार आ रहा था कि उनकी तबीयत कुछ ठीक नहीं चल रही थी और उनको बड़े ज़ोर का बुखार चढ़ रहा था कुछ दिनों से तो उन्होंने मौसी जी को जल्दी ही बुलाया था।

मैंने उनके वापस जाने के लिए टैक्सी का इंतज़ाम कर दिया था और वो 4 घंटे में अपने गांव पहुँच भी गई थी।

उन दोनों के जाने के बाद कोठी में एक अजीब सूनापन सा छा गया था और हम सब मौसी और किरण की कमी को महसूस भी कर रहे थे लेकिन बसंती और कम्मो भरसक कोशिश करके मुझको उनकी कमी रात को नहीं महसूस होने देते थे।

बसंती की भाभी इंदु भी कभी कभी रात भर के लिए आ जाती थी और मुझसे अपने को हरा करवा कर लौट जाती थी।
मैं भी कोशिश कर के कॉलेज की पढ़ाई और खेल कूद में काफी उत्साह से शामिल होने लगा था।

दशहरे की छुटियाँ आ रही थी, मैं और कम्मो गांव जाने का प्रोग्राम बना रहे थे।

एक दिन मम्मी जी का फ़ोन आया, बोली- सोमू बेटा, यहाँ हम सब ठीक हैं लेकिन वो बम्बई वाले फ़िल्मी डायरेक्टर का फ़ोन बार बार आ रहा कि हम तुमको वहाँ फिल्मों में काम करने के लिए भेज दें। एक दो खत भी आये हैं लेकिन तुम्हारे पापा ने साफ़ कह दिया है कि तुम फिल्मों में स्थाई रूप से काम नहीं कर सकते। हाँ अगर थोड़े दिनों की बात है तो तुम को वहाँ भेज सकते हैं। डायरेक्टर साहिब कह रहे है कि तुम 10-15 दिनों के लिए ही आ जाओ, फिर देख लेंगे कैसे करेंगे।

मैं बोला- पापा ठीक कह रहे हैं, मैं पढ़ाई छोड़ कर नहीं जा सकता। हाँ अभी दशहरे की छुट्टियां आने वाली हैं, उन दिनों मैं बम्बई जा सकता हूँ। आप पापा से पूछ लेना और डायरेक्टर का लेटर भी मुझको भेज देना फिर जैसा आप फैसला करेंगे उसके हिसाब से काम कर लेंगे।

अगले दिन ही मुंशी जी लेटर ले कर आ गये।

लेटर पढ़ा तो डायरेक्टर साहिब ने रहने और खाने की पूरी ज़िम्मेदारी लेने के लिए आश्वासन दिया और साथ में अच्छी खासी रकम भी देने का वायदा किया।
मैंने झट डायरेक्टर साहिब को फ़ोन लगाया और अपने आने की रज़ामंदी सिर्फ 15 दिनों के लिए दे दी और यह भी उनसे कहा कि मेरे साथ मेरी रिश्ते की भाभी भी आयेगी जिनके रहने का इंतज़ाम भी उनको करना पड़ेगा।

डायरेक्टर साहिब ने झट पूछ लिया- क्या वो रिश्तेदार कम्मो तो नहीं?
मैंने भी हाँ में जवाब दे दिया।

तब डायरेक्टर साहिब बोले- कम्मो आ जाए तो बहुत अच्छा होगा और तुम दोनों बेफिक्र रहो, सब इंतज़ाम हो जाएंगे। आप दोनों कल ही रेल की फर्स्ट क्लास की टिकटें लेकर बम्बई मेल से चल पड़ो, आप लोगों को दादर स्टेशन पर रिसीव कर लिया जायेगा। चलने से पहले फ़ोन ज़रूर कर देना।

जब मैंने यह खबर कम्मो को बताई तो वो बहुत खुश हुई और मैंने स्टेशन पर फ़ोन कर के अपनी दोनों की सीटें बुक करवा दी।
अगली रात को गाड़ी जाने वाली थी, कम्मो तैयारियों में लग गई।

उस रात मैंने बसंती और उसकी भाभी इंदु को जम कर चोदा।

इंदु एक अच्छी चुदक्कड़ औरत थी और हर बार चुदाई का पूरा आनन्द लेती थी, हर बार वो बड़े ही प्रेम से अपनी पूरी श्रद्धा से मेरी मुरीद बन कर चुदवाती थी जैसे वो सच में ही मेरी पत्नी हो!

उस रात दोनों ही तीन चार बार छूटने के बाद मेरे से बिदकने लगी और इंदु ने तो यहाँ तक कह दिया- छोटे मालिक, आपके जाने के बाद हम दोनों को आपकी और आपके इस कड़क हथियार की बहुत याद आयेगी। आपने तो मेरी आदत इतनी खराब कर दी है कि मेरा पति जब भी मुझ को चोदता है तो महसूस ही नहीं होता है। एक दो बार जब वो जल्दी से अपना पानी छूटा कर दूसरी तरफ मुंह कर के सो जाता है तो मैं उसकी गांड को गुस्से में दो तीन लातें मार देती हूँ।

हम सब खूब हंसे लेकिन बसंती यह सुन कर खुश नहीं हुई थी क्योंकि यह उसके भाई की इज़्ज़त का सवाल था।
तब इंदु ने उसको हर रात मुंह से तृप्ति देने का वायदा किया तब जा कर वो थोड़ी मुस्कराई।

अगली रात हम दोनों टाइम पर स्टेशन पहुँच गए। गाड़ी लगी हुई थी, हम दोनों अपने कूपे में एक साइड की दो सीटों पर अपने बिस्तर बिछा कर बैठ कर बातें करने लगे।
तब कम्मो ने बताया कि यह पहली बार वो रेल गाड़ी में सफर कर रही थी और वो बहुत ही उत्साहित हो रही थी।

गाड़ी छूटने से कुछ देर पहले ही एक युवा जोड़ा हमारे केबिन में आ गए और हमारे सामने वाली सीटों पर अपने सामान को रख दिया।
मैंने और कम्मो ने ध्यान से देखा तो वो दोनों नए ब्याहे पति पत्नी लग रहे थे।

मैंने अपना परिचय देवर भाभी के रूप में दिया। मैंने नोट किया कि नए दम्पति का पुरुष बार बार कम्मो को छिपी नज़रों से देख रहा था और उसकी पत्नी भी यदाकदा मुझको घूर रही थी।

गाड़ी के चलने के थोड़ी देर बाद ही टी टी आकर हमारी टिकटें जांच गया और उसके बाद हमने केबिन का दरवाज़ा अच्छी तरह से बन्द कर लिया और अपनी सीटों पर बिस्तर इत्यादि बिछा लिए और आराम से बैठ गए।
मैं कम्मो के साथ उसकी नीचे की सीट पर ही बैठा था और उधर दोनों भी नीचे की सीट पर ही विराजमान थे।

बातों का सिलसिला चल रहा था, तब उस लड़के ने बताया कि उसका नाम मनोज है और उसकी वाइफ का नाम शशि है और वो दोनों बम्बई फिल्मों की शूटिंग देखने के लिए जा रहे हैं और अपने चाचा के घर में रहेंगे।

इस बीच शशि एक दो बार अपनी साड़ी को ऊपर नीचे कर चुकी थी जिसमें मुझको उसकी चूत के दर्शन अक्सर हो जाते थे।
मुझको लगता था कि वो जानबूझ कर ऐसा मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कर रही है।

मैंने कम्मो को आँखों ही आँखों में इशारा किया तो वो शशि के इस साड़ी प्रदर्शन को समझ गई और स्वयं भी मनोज को आकर्षित करने के लिए वैसे ही अपनी सिल्क की साड़ी को ऊपर नीचे करने लगी।

मैं और उधर मनोज बड़ी अधीरता से दोनों औरतों का साड़ी का ऊपर नीचे होने का इंतज़ार करने लगे।

थोड़ी देर बाद मैंने कम्मो से कहा कि वो चाहे तो अपनी नाइटी पहन ले क्योंकि गाड़ी तो बम्बई परसों सुबह को पहुंचेगी।
कम्मो और शशि अपनी नाइटी निकाल कर बाथरूम की तरफ जाने लगी थी लेकिन मैंने उनको रोक दिया और वहीं साड़ी बदलने के लिए कहा और हम दोनों मर्द बाहर ट्रेन के गलियारे में आकर खड़े हो गए।

मनोज ने बातों बातों में बताया कि उनकी शादी को 3 साल हो गए हैं लेकिन बच्चा नहीं हो पा रहा उनके इसलिए वो कुछ परेशान हैं।

तब मैंने मनोज को बताया- मेरी भाभी बड़ी ही अच्छा ट्रेंड नर्स है और अगर शशि उससे अपना चेकअप कराये तो हो सकता है वो कुछ मदद कर सके।

यह सुन कर मनोज बड़ा ही खुश हुआ और बोला- क्या आपकी भाभी आज ही चेकअप कर सकती है शशि का… ट्रेन में ही?
मैं बोला- मैं अभी भाभी से पूछता हूँ, शायद वो आज ही शशि का चेकअप कर लेगी और बता देगी क्या खराबी है उसमें और उसका क्या इलाज है।

मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि शशि केबिन का दरवाज़ा खोल कर बाहर आ गई और मैं केबिन के अंदर चला गया।
थोड़ी देर बाद वो दोनों भी अंदर आये और शशि ने कम्मो को इशारे से बाहर बुला लिया।

वो कुछ देर बातें करते रहे और फिर हम दोनों को फिर केबिन के बाहर कर दिया और उन दोनों ने अंदर से फिर दरवाज़ा बन्द कर लिया।
करीब 10 मिनट बाद दरवाज़ा खुला और हम दोनों को भी अंदर बुला लिया गया।

दोनों औरतें एक तरफ सीट बैठ गई और हम दोनों मर्द एक तरफ सीट पर बैठ गए।

अब कम्मो ने बोलना शुरू किया- मैंने शशि जी का चेकअप किया है, उनमें मुझको कोई खराबी नज़र नहीं आई। हाँ उनके पति के शुक्राणुओं का चेकअप अगर करें तो पता चलेगा कि उनमें शशि जी को गर्भवती करने की क्षमता है या नहीं। शशि जी बता रही थी कि उन्होंने ने मनोज जी का चेकअप भी करवाया था तो उनके शुकाणु कमज़ोर पाये गये थे। मेरा मानना है कि या तो मनोज जी का इलाज किया जाए या फिर वो किसी अन्य पुरुष से गर्भाधान करवा सकते है अपनी पत्नी का!

यह सुन कर वहाँ सब गम्भीर हो गए।
फिर मनोज ही बोले- मुझको इस मामले में और कोई उपाय नज़र नहीं आ रहा है सिवाए गर्भाधान के! लेकिन प्रश्न यह भी है यह गर्भाधान किससे करवाया जाए?

अब शशि थोड़ा शर्माते हुए बोली- कम्मो जी ने इस का भी उपाय बता दिया है। उनका कहना है उनके देवर सोमेश्वर जी मदद कर सकते हैं यदि मनोज और मैं सहमत हों! क्यों जी, क्या मर्ज़ी है तुम्हारी?

मनोज थोड़ा हैरान होते हुए बोला- सोमेश्वर जी? ये तो अभी काफी छोटी उम्र के हैं न? अभी तो कॉलेज में पढ़ रहे हैं। फिर यह कैसे गर्भाधान कर सकते हैं?

शशि बोली- मैंने कम्मो जी से भी यही प्रश्न किया था तो उनका उत्तर है कि सोमेश्वर जी के शुक्राणु बड़े तीव्र गामी और शक्तिशाली हैं और अभी तक कई स्त्रियों को अपना वीर्य दान कर चुके हैं और सब स्त्रियां स्वस्थ बच्चों को जन्म दे चुकी हैं।

मनोज यह सुन कर उछल पड़ा- अरे वाह, अगर ऐसा हो सकता है तो मैं तैयार हूँ इस काम के लिए… क्यों शशि, तुम्हारी क्या मर्ज़ी है?
शशि मुझ को कनखियों से देखते हुए बोली- अगर आप को कोई ऐतराज़ नहीं तो भला मुझको क्या ऐतराज़ हो सकता है।

कम्मो खुश होते हुए बोली- क्यों सोमू जी, आपकी क्या मर्ज़ी है?
मैं शशि को अब खुल कर देखते हुए बोला- आप सबकी अगर यही इच्छा है तो भला मुझको क्या आपति हो सकती है। लेकिन इस सारे प्रोग्राम का सञ्चालन मैं स्वयं करूंगा। मंज़ूर है क्या?

मनोज और शशि बोले- मंज़ूर है!
और कम्मो ने भी हाँ में सर हिला दिया।

मैंने सबकी तरफ देखा- यह काम कला का खेल सिर्फ मेरे और शशि भाभी के बीच ही नहीं होगा बल्कि मनोज और कम्मो भाभी के साथ भी होगा! बोलो मंज़ूर है या फिर कुछ भी नहीं होगा?

मनोज अपनी ख़ुशी छुपाते हुए बोला- मंज़ूर है भाई, अगर कम्मो जी को ऐतराज़ नहीं हो तो!
कम्मो भी मुस्कराते हुए बोली- भला क्या ऐतराज़ हो सकता है मुझको? चलो तय रहा सब कुछ।

अब मैं बोला- यह गाड़ी परसों सुबह पहुँचेगी बम्बई… हमारे पास 2 रातें और एक दिन इस केबिन में गुजारने के लिए हैं। हम तसल्ली से अपना काम करते हुए चलते हैं, किसी किस्म की कोई जल्दी नहीं होगी किसी भी काम में!

तभी कम्मो ने उठ कर थैले से एक बड़ी थरमस निकाल ली और कहा- तो फिर हो जाए एक एक जाम गर्म चाय का!
और यह कह कर उन्होंने सबको कपों में थोड़ी थोड़ी चाय डाल कर दे दी।

कम्मो के हाथ से बनी अदरक वाली चाय पीने के बाद सब बैठ गए और तभी मैंने बैठने का सिस्टम निर्धारित कर दिया।
एक सीट पर मैं और शशि और दूसरी पर कम्मो और मनोज!

मैंने आगे बढ़ कर शशि भाभी को अपने गले लगा लिया और उनके लाल लबों पर एक कामुक चुम्बन दे दिया।
शशि भाभी को ध्यान से देखा मैंने, तो उनको काफी सुंदर और सुडौल शरीर पाया।

लेकिन वो अभी भी मेरे से झिझक रही थी तो उसकी झिझक को पहले ख़त्म करना ज़रूरी था।
मैंने कहा- यह ज़रूरी है कि जो काम हम करने जा रहे हैं उसके लिए मूड बनाया जाए… सबसे पहले हम एक दूसरे के कपड़े उतारते हैं जिससे हमारी झिझक भी काफी कम हो जाएगी।

यह कह कर मैंने उठ कर केबिन की लोहे वाली खिड़की बन्द कर दी ताकि किसी भी स्टेशन पर हम को कोई बाहर से ना देख सके।

अब मैंने शशि भाभी को खड़ा किया और उसके कपड़े उतारने लगा लेकिन वो झट बोली- हम दोनों ने तो सिर्फ नाइटी पहनी है, कपड़े तो आप दोनों ने खूब पहने हैं, तो पहले वो उतारे जाएंगे।

यह कह कर शशि भाभी ने पहली मेरी शर्ट को उतार दिया और फिर बनियान और फिर पैंट की बारी आई।

लेकिन वो मेरे टाइट अंडरवियर पर रुक गई और अपने पति को देखने लगी और जब उसने आँख के इशारे से इजाज़त दे दी तभी शशि भाभी बैठ गई मेरे सामने और मेरे अंडर वियर को नीचे खींचने लगी जो मेरे खड़े लन्ड के कारण बहुत ही टाइट हो रहा था।

तभी मेरी और कम्मो की नज़रें मिली और वो हल्के से मुस्करा दी।

जब भाभी ने ज़ोर लगा कर अंडरवियर को उतारा तो मेरा बेरहम लन्ड उछल कर भाभी के मुंह पर जा लगा और भाभी घबरा के नीचे फर्श पर बैठ गई।

यह देख कर भाभी और मनोज हतप्रभ रह गये थे और विस्फारित नेत्रों से मुझ को देख रहे थे।

उधर कम्मो ने भी मनोज का अंडरवियर उतार दिया था और उस में से अधखड़ा 5-6 इंच वाला छोटा लन्ड निकला जिसको देख कर कम्मो ने कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं जताई और उसको अपने हाथ में लेकर हल्के हल्के मसलने लगी और वो भी झट अपनी 6 इंची लंबाई में आ गया।

लेकिन शशि भाभी और मनोज की नज़र तो मेरे सर्पीले लन्ड पर ही टिकी थी।

सबसे पहले शशि भाभी ने डरते डरते मेरे लन्ड को हाथ में लिया और उसको धीरे धीरे सहलाने लगी।
मनोज भैया भी मेरे लन्ड को गौर से देखने लगे कि कहीं यह नकली तो नहीं।

शशि भाभी उसकी तनावट जांचने के लिए लन्ड को ऊपर नीचे करके छोड़ने लगी और लन्ड लाल उछल कर फिर मेरे पेट से आ चिपकते थे।
मैंने यह खेल बन्द करते हुए कहा- चलो अब लड़कियों की बारी है अपने कपड़े उतरवाने की!

शशि भाभी झट से मेरे सामने आकर खड़ी हो गई, मैंने उनकी नाइटी को नीचे से पकड़ लिया और उधर मनोज भैया ने भी कम्मो की नाइटी को नीचे से पकड़ लिया।
मेरे एक दो तीन कहने पर हम दोनों ने उनकी नाइटी को एकदम से उनके सरों के ऊपर लाकर पूरा उतार दिया।

दोनों ही हमारे सामने मादरजात नंगी खड़ी थी और उसी तरह मैं और मनोज भी उनके सामने अल्फ नंगे खड़े थे।

अब मैंने आर्मी परेड की तरह ज़ोर से चिल्ला कर आर्डर किया- अब दोनों लन्ड जवान सलामी के लिए रेडी !!! चूत रानियों को सलामी दे!!

मेरा लन्ड जो वाकयी में ही पहले नीचे मुंह किये था, अब एकदम अकड़ कर खड़ा हो गया और मेरे पेट से चिपक गया।
मनोज भैया का लन्ड भी अब पूरा अकड़ा हुआ खड़ा था।

मैं फिर ज़ोर से आर्डर की आवाज़ में बोला- जवान… चूत महारानी पर हमला कर!

अब मैंने आगे बढ़ कर शशि भाभी को अपनी बाहों में ले लिया और उनके लबों पर ताबड़ तोड़ चुम्बन देने लगा और भाभी भी जवाबन चुम्मियां देने लगी।

कहानी जारी रहेगी।
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