बढ़ती उम्र में नयी तरंग- 4
(Biwi Badal Kar Chudai)
बीवी बदल कर चुदाई करने से मेरे नीरस जीवन में एक नयी बहार आ गयी. बिलकुल ऐसा ही मेरी पत्नी को भी लगा, उसका जीवन दोबारा से खिल उठा.
मित्रो, आपने मेरी कहानी के तृतीय भाग
बीवियों की अदला-बदली का प्रथम प्रयास
में पढ़ा कि
कैसे मैं अपनी पत्नी के साथ होटल में था, हामरे साथ एक अन्य कपल था जिनके साथ हम बीवी बदल कर चुदाई कर रहे थे.
अब आगे बीवी बदल कर चुदाई करने की कहानी:
शशि ने भी अपनी फैली टांगों को बन्द करके अब विवेक को कमर से पूरा जकड़ लिया।
मुझे शशि को यूं विवेक की बांहों में खुश देखना बहुत अच्छा लग रहा था।
आज पहली बार शशि मुझे इतनी कामुक लगी।
अब काजल भी शशि से अलग हो गई तो विवेक पूरी तरह शशि के ऊपर आ गया।
उसने शशि के कड़े चूचुक को अपने होठों से चूसना शुरू कर दिया।
विवेक के झटके धीरे धीरे तेज होने लगे।
आहह हहह … ऊफ्फ … की आवाज के साथ शशि भी अपने अन्दर के आनन्द का अनुभव हमें करा रही थी।
पसीने से तरबतर हो चुकी शशि किसी खूबसूरत महारानी से कम नहीं लग रही थी।
विवेक उस महारानी के गुलाम की तरह उसकी सेवा में लगा था।
उसे तो आज मेरी महारानी को संतुष्ट करना था।
एक नया अनुभव मिलने वाला था मेरी जानेमन को!
अचानक विवेक के आघात में तेजी आ गई।
और बस कुछ ही प्रहार उसके बाद विवेक निढाल सी शशि के ऊपर गिरा।
शशि तो जैसे स्वर्ग का आनन्द ले रही थी।
ऐसा नहीं है कि मैंने पहले कभी शशि को ऐसी अवस्था में नहीं देखा … पर आज शशि मुझे बहुत ही प्यारी लग रही थी।
शशि की खूबसूरती में जो निखार मैं अब देखने लगा था वो पहले कभी महसूस नहीं किया.
और ऐसा नहीं था कि ये सिर्फ मेरा भ्रम था।
अक्सर मिलने वाले सभी लोग इस बात को कहते तो शशि की खूबसूरती की तारीफ सुनकर मैं भी तो गदगद हो जाता।
हां … एक बात जरूर है शशि को आज से पहले मैंने इतना कामातुर कभी नहीं देखा था और उसके लिये मैं विवेक और काजल का शुक्रगुजार भी था।
वो शशि जो कुछ महीने पहले तक मुझे बोझ और बेकार लगने लगी थी, अब मुझे मेरे जीवन में किसी वरदान से कम नहीं लग रही थी और मैं भी तो उसकी खुशी का पूरा ध्यान रख रहा था।
कुछ ही पलों के बाद शशि की चेतना लौटने लगी।
उसने आंखें खोली।
मैं ही तो खड़ा था उसके सामने … उसकी निगाह सीधी मुझसे मिली।
शर्म और सुख का मिलाजुला असर मुझे उसकी नजरों में दिखाई देने लगा।
उसने भी निगाह मिलाकर मुस्कुराते हुए नजरे झुका लीं।
विवेक भी शशि के ऊपर से उठकर बराबर में पड़ी चादर से अपने और शशि के कामांगों से रिसने वाले रस को साफ करने लगा।
कमरे में चारों तरफ देखकर शशि ने मुझसे बहुत ही मीठी आवाज में पूछा- काजल कहां है?
“अरे हां … काजल कहां है? सोचते हुए मैंने भी निगाह दौड़ाई.
तभी सफेद रंग के तौलिये में लिपटी काजल बाथरूम के दरवाजे पर दिखाई दी।
वो हम सब को देखकर मुस्कुरा रही थी।
उसके पूरे बदन पर पानी की बूंदें उसकी सुन्दरता में चार चांद लगा रही थी।
काजल बोली- अब तुम सब इतने व्यस्त थे तो मैं क्या करती … मुझे बहुत गर्मी लग रही थी तो मैं नहाने चली गई।
“अरे गर्मी निकालने को तो हम हैं ना जानेमन, नहाने से क्या होगा?” मैंने रोमांटिक अंदाज में कहा।
“हुह … तुम तो बहुत निष्ठुर हो, तुम्हारा सारा ध्यान सिर्फ अपनी शशि पर ही था … मेरी तरफ देखा होता तो मुझे गर्मी निकालने को नहाना क्यों पड़ता?” स्त्रीयोचित प्राकृतिक नखरा दिखाते हुए जैसे काजल ने मुझे ताना मारा।
तब तक शशि भी उठकर बाथरूम में जाने लगी; उसको जोर की पेशाब लगी थी।
बाथरूम के दरवाजे पर काजल के बराबर से निकलते ही शशि ने काजल का तौलिया खींचा, संगमरमर जैसे बदन की पानी की बूंदों से सराबोर नग्न काजल को मेरी तरफ ढेलती हुई बोली- जाओ अब तो गर्मी वहीं दूर होगी तुम्हारी!
औेर खुद बाथरूम में घुस गई।
मैंने भी तेजी दिखाते हुए अपनी तरफ आती गिरती हुई काजल को अपनी बलिष्ठ बांहों में थाम लिया।
मैंने पहली बार गौर से देखा, काजल के बूब्ज बहुत ही बड़े और खूबसूरत थे।
हालांकि काजल का रंग बहुत ज्यादा गोरा नहीं था पर वो बहुत ही कामुक प्रतीत हो रही थी।
उसके भूरे रंग के एरोला के बीच लगभग 1 इंच बड़े चूचुक की घुंडियां पूरी तरह से तनी हुई थी।
मैंने काजल को पकड़ते ही अपनी जीभ से उस घुंडियों को एक एक करके चूसना शुरू कर दिया।
काजल शायद इस हमले के लिये तैयार नहीं थी- सीईईई ईईईई … धीईईई … रेरेरे … करो … पर … करते रहो।
उसने अटकते अटकते कहा।
काजल का पूरा शरीर थरथराने लगा।
मेरे हाथ काजल की कमर और बहुत ही गुदाज नितम्बों को सहलाने लगे।
काजल भी बहुत ही कातिल अंदाज में मेरा साथ देने लगी।
तभी मेरी एक उंगली फिसलकर उसके नितम्बों के बीच की दरार में लहराने लगी।
मैंने भी शैतानी करते हुए अपनी उंगली को काजल के पीछे के रास्ते में सरका दिया।
“आह हहह …” चीखती हुई काजल दूर बिस्तर पर जा गिरी।
वह मेरी तरफ देखकर बोली- तुम बहुत बदमाश हो।
तब तक शशि भी बाथरूम से फ्रैश होकर बाहर निकल आई और काजल के जवाब में बोली- मैं तो 12 साल से इनकी बदमाशियां देख रही हूं. पर पहले मुझे इनकी बदमाशियां बहुत बुरी लगती थी, गुस्सा आता था, अब बहुत ही अच्छी लगने लगी हैं।
पर काजल कहां हार मानने वाली थी; उसने पलंग पर बैठे-बैठे ही मेरे बरमूडा को पकड़ कर मुझे अपनी तरफ खींचते हुए कहा- अभी करती हूं इस बदमाश का इलाज!
!पास आते ही उसने अपने एक हाथ से मेरे बरमूडा के ऊपर से ही मेरे कड़े लिंग को अपनी मुट्ठी में दबाकर मेरी तरफ घूरा जैसे मुझसे पूछ रही हो ‘कर दूं क्या आज तुम्हारा इलाज?’
मैंने भी नजरों-नजरों में ही काजल को इसकी इजाजत भी दे दी।
काजल ने एक झटके से मेरा बरमूडा नीचे कर दिया।
मेरा उत्तेजित लिंग रबड़ की भांति बाहर निकला और सीधा काजल के होठों से टकराया।
आज शाम से जितना मैंने काजल को जाना था, मैं समझ चुका था कि ये काजल की सबसे प्रिय लॉलीपॉप है।
भला मैं ऐसा स्वर्णिम अवसर कैसे गंवा देता।
मैंने भी काजल का पूरा साथ दिया।
पर मैं भी तो काफी समय से खुद पर काबू रखे था। मेरे तो जैसे रोंगटे खड़े हो गये।
मेरे लिये और ज्यादा खुद पर नियंत्रण मुश्किल होने लगा तो मैंने खुद ही अपने लिंग को काजल के मुंह से बाहर खींच लिया।
इससे पहले कि काजल दोबारा मुझ पर हमला करती, मैंने उसको उठाकर सीधा लिटा दिया और अपनी टांगें फैलाकर उसके ऊपर बैठ गया।
काजल बिल्कुल कामायिनी लग रही थी।
मैंने काजल के दोनों हाथों को अपने हाथों से दबोचा ओर उसके तपते हुए अंगारे जैसे होठों पर अपने होंठ रख दिये।
काजल को इस अवस्था में देखकर बराबर में ही लेटे विवेक को भी जोश आने लगा।
उसने वहीं से थोड़ा सरक कर जगह बनाई और काजल के मोटे मोटे खरबूजों को दबाने लगा।
अब काजल पूरी तरह से हमारे हाथों में छटपटा रही थी, मुझे उसका इस तरह झटपटाना और ज्यादा अधिक उत्तेजित कर रहा था।
मैंने काजल का ऊपरी हिस्से विवेक के हवाले करते हुए नीचे का रूख किया और उसकी दोनों टागों के बीच आकर काजल की भगोष्ठों को को अपनी जीभ से सहलाना शुरू कर दिया।
मैं चाहता था कि काजल उत्तेजना में पागल हो जाये।
इसीलिये अपनी एक उंगली भी उसकी योनि में सरकाकर अन्दर बांहर करने लगा।
काजल कामोत्तेजना के सागर में गोते लगाती हुई अपने नितम्बों को ऊपर-नीचे करके बिस्तर पर पटकने लगी।
मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा स्खलन कुछ ही दूर है।
अत: कुछ देर काजल का रस पीने के बाद मैं नीचे उतर गया और काजल को भी पलंग से नीचे खींच लिया।
मेरे नीचे आते ही पीछे से शशि भी मुझसे लिपट गई।
मैं काजल को छोड़कर तुरन्त शशि की तरफ मुड़ा तो शशि ने मुझे दोबारा काजल की तरफ ही घुमा दिया और बोली- कुछ उस बेचारी का भी ख्याल करो; कब से तड़प रही है।
शशि की इजाजत मिलते ही मैंने काजल को अपनी तरफ पीठ करके पलंग की तरफ घुमा दिया।
शायद काजल समझ चुकी थी कि मैं क्या चाहता हूं. इसलिये वो खुद ही आगे की तरफ पलंग पर झुक गई।
अब काजल के मोटे मोटे खरबूजे जैसे चिकने नितम्ब बिल्कुल मेरे सामने थे और वह सिर्फ अपनी दोनों टांगों पर आगे की तरफ झुकी मुद्रा में मेरा इंतजार कर रही थी।
मैंने भी समय न गंवाते हुए अपने लिंग को पकड़कर पीछे से काजल की काली घनी गुफा में ठेलने का प्रयास किया।
पर ज्यादा चिकनाहट की वजह से वो अन्दर न जाकर नीचे सरक गया।
तभी शशि मेरी मदद करने को आगे आई।
वो काजल के बराबर में नीचे बैठ गई और मेरा लिंग पकड़कर काजल की योनिमुख पर लगा दिया।
मैंने एक जोर का झटका मारा तो मेरा शेर एक ही बार में पूरा का पूरा शिकारी के बिल में सीधा अन्दर तक घुसता चला गया।
“आई ईईईई ईईईई … तुम सच में बहुत बदमाश हो!” काजल चिल्लाई।
मैंने कुछ पल रूक कर काजल को आराम देना जरूरी समझा.
पर वो बोली- करो ना … अब क्या सोचने लगे?
बस मैं तो जैसे इसी इंतजार में था।
मैंने पिछले 4 घंटे का पूरा जोश एक साथ काजल पर चला दिया।
काजल भी भूखी शेरनी की तरह मेरा शिकार करने को तैयार होकर अपने नितम्ब आगे पीछे हिलाकर मेरा साथ थप … थप … थप … की थाप के साथ तबला बजाने लगी।
शशि ने नीचे बैठकर काजल के दोनों उरोजों को मसलना शुरू कर दिया।
अब तो काजल कामसुख के चरम पर थी; कुछ ही झटकों के बाद काजल तो निहाल हो गई। जिस अवस्था में खड़ी थी उसी अवस्था में बिस्तर पर जा पड़ी।
मेरा शेर बेचारा ऐसे खड़ा था जैसे शिकार दिखाई देने का बाद हाथ से निकल गया हो।
पर बिस्तर पर लेटते ही काजल ने पलटी ली और तुरन्त मेरी तरफ फिर से अपनी टांगें फैला दी।
मैंने भी एक झटके में उसकी दोनों टांगों को पकड़ा अपनी तरफ खींचा ही था कि काजल ने खुद ही देर न करते हुए मेरे प्रत्यंचा पर चढे तीर को फिर से शिकार का रास्ता दिखाया।
इस बार मेरे धक्के पहले ले अधिक शक्तिशाली थे।
‘आह … आह … आह … उफ्फ्फ … उफ्फ्फ … आह …’ की कामुक सीत्कार के साथ काजल भी हर धक्के में मेरा सहयोग कर रही थी।
कुछ ही क्षण में मेरा सारा जोश काजल के अन्दर ठण्डा हो गया, मेरा स्खलन इतना जोरदार था कि कामरस काजल की योनि के बाहर तक बहता हुआ टपक रहा था।
मैं भी सांड की तरह डकारता हुआ काजल के बराबर में जा गिरा।
शशि भी मेरे बराबर में आकर बैठ गई।
उसने बराबर में पड़े तौलिये से मेरे शेर से चूहा हो चुके यौनांग को साफ किया।
हम चारों ने बीवी बदल कर चुदाई में लगातार बहुत मेहनत की थी, इतने थक चुके थे कि अब हिलना भी वश में नहीं था।
शशि मेरे बराबर में आकर मुझसे लिपटकर लेटती हुई बोली- बात सिर्फ सैक्स की नहीं है पर आपने मुझे जीना सिखा दिया. वरना मैं तो वही रसोई को अपनी जिन्दगी समझकर खुश थी। मेरे माता-पिता ने मुझे पैदा अवश्य किया पर जीना तो आपने ही सिखाया। कुछ दिनों पहले तक मैं हमेशा परिवार के लिये ही जीती थी। आपने ही मुझे सिखाया कि खुद के लिये भी जीना होता है। आप ही हैं जिन्होंने मुझे बताया कि मेरी भी कोई खुशी है, मेरी भी कोई पहचान है, मेरा भी कोई अस्तित्व है। अब जीवन में उत्साह भी है उमंग भी! पिछले कुछ दिनों में आपने कम से कम मुझे जिन्दगी का मतलब समझाया, मैं सच में आपको पाकर धन्य हो गई हूं।
हालांकि मैं शशि की बात का जवाब देना चाहता था पर उस समय थकान इतनी थी कि मैंने चुपचाप शशि के बदन को अपनी बदन से चिपकाया और उसकी बाहों में सो गया।
विवेक और काजल भी तो उसी अवस्था में पता नहीं कब सो गये।
अभी हमारे पास एक और दिन शेष था।
पर उस दिन क्या हुआ वो फिर कभी बताऊंगा।
अभी के लिये इतना ही!
आपको मेरे जीवन की ये बीवी बदल कर चुदाई की घटना कैसी लगी।
मुझे जरूर लिखियेगा; आपके विचार ही मेरा उत्साहवर्धन करेंगे।
किसी भी प्रकार के विचार आप मुझे [email protected] पर मेल करें।
राजीव खन्ना
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