अगर खुदा न करे… -5
(Agar Khuda Na Kare-5)
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तीसरे दौर में तो अंजलि बेकरार हो गई। वह आतुरता में कमर उठाकर प्रकाश का सिर खींचकर अपनी योनिस्थल पर लगाने लगी। हमारी पकड़ने की कोशिश को भी उसने हाथ से झटक दिया।
निर्णय का क्षण आ गया था, लोहा गरम लाल था, अब उस पर चोट की जरूरत थी।
प्रकाश बड़ी देर से सम्हाले था। उसने हड़बड़ाते हुए पैंट उतारी और अंजलि के खुले पैरों के बीच आ गया।
उसका लिंग मुझसे बड़ा और मोटा था।
मैं उत्कंठापूर्वक देखने लगा – कैसे सुषमा उसके लिंग को चूमकर गीला कर रही है और कैसे प्रकाश उसे अंजलि की योनि-होंठों पर लगाकर उनके बीच ऊपर-नीचे फिरा रहा है।
मेरे अंदर झुरझुरी सी होने लगी, मेरी पत्नी की योनि में एक पराए मर्द का लिंग घुसने वाला था, उसके मुँह से सी-सी-सी निकल रही थी।
लिंग की नोक ऊपर से नीचे तक लंबाई में घूमती हुई अंदर की बनावट और बुनावट का जायजा ले रही थी, गीले होंठों ने खुलकर लिंग को बीच में उतरने का रास्ता दे दिया था।
कुछ ही सहलाहटों के बाद अंजलि ने अंदर लेने के लिए कमर उचकाई और प्रकाश ने लिंग को योनि के मुँह पर लगा दिया।
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असल काम की घड़ी, वर्षों प्रतीक्षा की घड़ी, मेरी पतिव्रता बीवी के व्यभिचार की घड़ी, उसकी योनि में परपुरूष के प्रवेश की घड़ी…
मैं – उसका पति – उत्साह से उसकी योनि के होंठों को फैलाकर उसके शीलभंग में मदद कर रहा था।
प्रकाश कोमलता से ही अंदर ठेल रहा था।
उसमें डूबते लिंग के साथ ही मैं आनन्द के सागर में डूबा जा रहा था। लिंग जैसे ही अदृश्य हुआ, पेड़ू से पेड़ू सटे, प्रकाश ने एक धक्के के साथ पूर्ण प्रवेश की क्रिया सम्पन्न की, मेरे सम्हलने की इंतिहा हो गई, आनन्द का लावा बह निकला, कुछ नहीं कर पाया, बस ‘अरे’ ‘अरे’ करता किसी तरह पैंट को दबोचकर उसे इधर उधर फैलने से बचाने की कोशिश करने लगा।
प्रकाश हँसा लेकिन सुषमा का रवैया अलग था, उसने सहानुभूति से मेरा माथा सहलाया, वह मेरी तरफ आई और मेरे पैंट का बकल खोलकर जिप नीचे की और कमर से चड्डी सहित खींचकर बाहर निकाल दिया।
अंजलि को भी कुछ अजीब होने का पता चल गया और उसने गरदन उठाकर ‘क्या हुआ’ पूछा। पर प्रकाश के धक्के चालू हो गए थे और कोई औरत संभोग के धक्कों के बीच कहीं और ध्यान दे भी तो कैसे।
मैं उसे प्यार से गाल थपथपाकर आश्वस्त करना चाहता था पर मैं स्वयं लज्जित था। सुषमा मुझे चादर से पोंछ रही थी। मेरा लिंग सिकुड़कर छोटा हो गया था जिसे मैं हाथों से छिपा रहा था।
सुषमा ने हाथ घुसाकर उसे हथेली में भरकर सहलाया और हंसते हुए कहा- देखना, बड़ा होकर यह बड़ा काम करेगा।
प्रकाश और अंजलि की रतिक्रीड़ा, पुरुष और स्त्री की संयोग-प्रक्रिया मेरी आँखों के आगे चल रही थी – लेकिन अब मेरा मन उचट गया था।
हालाँकि मुझे अंजलि का चुदना अच्छा लग रहा था – अंजलि की कमर उचक रही थी और प्रकाश हुमक हुमक कर धक्के लगा रहा था। वैसा ही गर्म, जोरदार और जबरदस्त मैथुन जैसा मैंने चाहा था, पर मैं अपने को इससे नहीं जोड़ पा रहा था।
वे दोनों काफी देर से गरम थे, मिनट भर में ही चरमोत्कर्ष पर पहुँच गए।
प्रकाश ने पूछा- कहाँ करूँ?
तो मैंने उसे अंदर ही झड़ जाने को कह दिया।
अंजलि पिल्स पर थी, दोनों एक-दूसरे को चिपटाकर साथ-साथ झड़ने लगे।
सुषमा मेरे अलगाव को समझ गई थी। वह तेज instinct वाली औरत थी। उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा- आइये, इन दोनों को थोड़ी देर के लिए अकेले छोड़ देते हैं और हम बाहर चलते हैं।
शुक्र है, मैंने अपने बैग में हम दोनों के लिए एक एक जोड़ी एक्स्ट्रा कपड़े रख लिए थे।
बाहर दुनिया कितनी अलग थी, फैली हुई और विविधतापूर्ण, पहली बार मुझे सेक्स का घोर बंद एकांत गलत लगा।
हम होटल के रेस्टोरेंट में चले आए। कॉफी की चुस्कियाँ लेते हुए सुषमा ने कहा- It was too much for you. First time था ना, so it is natural.
मुझे उस वक्त वह बहुत अच्छी लगी – अपने मोटापे और अंजलि की तुलना में सामान्य चेहरे-मोहरे के बावजूद। लगा कि इसके भारी वक्षों और मोटी कमर को सह जाऊंगा। उसने मुझे बधाई दी, अंजलि के चुद जाने की।
‘हाँ, यह मेरा बहुत बड़ा सपना था।’ मैंने कहा।
‘मैंने कहा था न उन्हें एक बार हमारे साथ होने दीजिए, वे खुद आगे बढ़कर सेक्स कराएँगी। पर यह सपना आपके सहयोग के बिना सच नही होता। आपको पूरा श्रेय जाता है।’
‘Thanks for being so understanding.’
रेस्तराँ के हल्का संगीत मेरे दिमाग के थके रेशों को सुकून दे रहा था। कॉफी की चुस्कियों के बीच वह मुझे देख रही थी, बिस्तर पर मैं कैसा साबित हूँगा, शायद इसका अंदाजा लगा रही थी।
‘You are a thorough gentleman.’
मैं अचकचा गया- अरे, यह आपने क्या कहा!
‘ठीक कह रही हूँ। हमने कई दम्पतियों के साथ किया है। और लोग स्वैप के लिए कमरे में साथ होते ही मुझ पर टूट पड़ने के लिए आतुर हो जाते हैं। पर आपने अंजलि जी पर ध्यान दिया। आप उन्हें बहुत चाहते हैं। यह भी पहली बार ही देखा कि कोई अपनी पत्नी को देखते देखते ही स्खलित हो जाए। इतना लगाव तो दुर्लभ है।’
मैं शरमा गया।
‘प्रकाश के साथ पत्नी को अकेले छोड़कर बाहर आने में भी आपने एतराज नहीं किया। अपनी पत्नी पर और किसी दूसरे पुरुष पर इतनी उदारता और भरोसा कम ही लोग दिखा पाते हैं।’
मैं उससे नजर मिलाए रखने की कोशिश कर रहा था, पर संकोच हावी हो जाता था। मुझे लगा मैं सचमुच बहुत gentle व्यक्ति हूँ।
‘मैं आपके साथ अकेले होना चाहती थी, इसीलिए बाहर बुला लिया। कमरे में भी मैं आपके साथ अकेले ही…’
I felt honored…
‘आपको एतराज तो नहीं होगा?’
मैंने ना कहा।
‘अंजलि जी को?’
मैंने जवाबी सवाल किया- प्रकाश को बुरा तो नहीं लगेगा? वो आपको नहीं देख पाएँगे तो?
‘उन्होंने मुझे कई बार देखा है, मेरी इच्छा उनके लिए सबसे बड़ी है।’
‘और अंजलि का कहना है कि मैं तुमको मुझे दूसरी औरत के साथ नहीं देख सकती। इतना प्यार करती हूँ तुमको।’
वह जोर से हँस पड़ी ‘सही कहा, मुझे भी ईर्ष्या होती है उस वक्त!’
‘कहाँ, आज तो आपने बढ़-चढ़कर सहयोग किया।’
‘आपकी खातिर!’
दोनों जोर से हँस पड़े।
उसने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया, मैंने चारों ओर देखा, लोग अपने में डूबे थे, मैंने टेबल के नीचे पाँव बढ़ाकर उसके पाँवों को महसूस किया, लगा कि एक बार फिर से किशोर वय की कोई घड़ी लौट आई है।
मेरा लिंग धड़क उठा।
औरत साधारण भी हो, उसका साथ होना मादकता ले ही जाता है।
कॉफी खत्म करके हम एक-दूसरे का हाथ पकड़े ही कमरे तक वापस आए।
कमरा प्रकाश ने खोला। अंजलि कपड़े पहन चुकी थी। वह सिकुड़ी हुई बैठी थी।
प्रकाश कमर से ऊपर खुला था, उसका चेहरा खुशी से चमक रहा था।
मैंने उससे हाथ मिलाया और धन्यवाद कहा।
कहानी जारी रहेगी।
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