बाली उमरिया में लगा प्रेम रोग- 1
(Papa Mom Sex Stories)
पापा मॅाम सेक्स स्टोरीज में एक लड़का जवान हुआ तो उसे भी सेक्स्स का ज्ञान हुआ. मम्मी पापा के कमरे से आती कामुक आवाजों ने उसे कमरे में झांक कर देखने को मजबूर कर दिया.
प्रकृति तो हर लड़की को कमनीयता और कोमलता से सजाती संवारती है। उसकी चंचल चितवन में अनगिनत काम-बाणों का भंडार भरती है, जिन्हें चला कर वह अपनी इच्छानुसार किसी एक को या अनेक लड़कों को मुग्ध करती है।
यदि प्रकृति किसी लड़की पर अधिक प्रेम बरसाए तो उसके अंगों को इतना मांसल, सुडौल और कोमल बनाती है कि देखने वालों के दिल की धड़कनें बढ़ने लगती हैं।
वह जब चलती है तो उसकी लचकती हुई कमर और ऊपर, नीचे, उठते, गिरते, गदराये नितम्ब, लड़कों के दिमाग को वासना से और उनके सोए हुए लंड को जगा के इतना तनाव से भर देते हैं कि उन्हें बाथरूम की दीवारों पर चित्रकारी करने के बाद ही शांति मिलती है।
किंतु प्रकृति की यह तलवार दुधारी होती है, वह लड़की को यदि इतना आकर्षक बनाती है कि वह किसी भी जवान होते या जवान हो चुके लड़कों पर सम्मोहन बाण चला सकती है तो उसे भी लड़कों का, उसको चोरी छुपे या एकटक देखना सुहाने लगता है।
उसके मन में भी मीठी-मीठी गुदगुदी होने लगती है और किसी भी लड़के से जब नयन मिलते हैं तो उसका घूरना बिल्कुल बुरा नहीं लगता बल्कि कभी-कभी तो वह नकली क्रोध प्रकट करती है जबकि उसकी कुंआरी चूत पानी छोड़कर यह संकेत देती है कि इसे किसी सख्त लौड़े की आवश्यकता है जो इसे कूट पीट कर इसका कचूमर बना सके।
अपने कौमार्य को गंवाकर कली से फूल बनकर, लड़की से औरत बनकर भले ही उसे क्षणिक पछतावा होता हो लेकिन उसका सौंदर्य और भी अधिक निखर जाता है।
किसी भी लड़के के साथ चुदाई में वह जो आनन्द प्राप्त करती है, उस आनन्द की स्मृति उसे फिर हमेशा के लिए बेचैन करती रहती है।
कुछ समय बाद पछतावे के स्थान पर पूरे शरीर और मस्तिष्क में वासना नाचने लगती है और पहली चुदाई का अनुभव ले चुकी उसकी चूत फिर से उसी या किसी नए कड़क लंड की कामना करने लगती है।
एक विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या सभी लड़कों और लड़कियों के जीवन में वासना के खेल एक समान रूप से खेले जाते हैं?
इस प्रश्न का जवाब है नहीं!
वासना के हावी होने के लिए सबसे आवश्यक होता है ‘एकांत’
लड़का या लड़की उम्र के किसी भी वर्ग में हों, जब भी उनको पूर्ण एकांत मिलता है तब उनकी वासना दिमाग में चढ़कर उनको कुछ ना कुछ शरारत करने के लिए प्रेरित करती है।
यह एकांत वाला फार्मूला अधिकांश मर्दों एवं औरतों के जीवन में विवाह के बाद में भी लागू होता है, बाद में उसे अवसर कह सकते हैं।
हर मर्द और औरत के दिमाग में कुछ ना कुछ खिचड़ी पकती रहती है, हर शौकीन मर्द और कामुक औरत के दिमाग में बहुत सी दमित इच्छाएं अपना डेरा डाले बैठी रहती हैं।
तो जब उन्हें उनका मन वांछित एकांत प्राप्त होता है तब उनकी दमित इच्छाओं को पंख लग जाते हैं और वे अपनी उन इच्छाओं को पूरा करने में पूरे प्राण प्रण से जुट जाते हैं।
उनको लगता है कि प्रकृति ने उन्हें यह अवसर इसीलिए दिया है कि वे अपनी गुप्त इच्छाओं को पूरा करके जीवन से अतिरिक्त आनन्द प्राप्त करें.
लेकिन यही प्रवृत्ति आगे चलकर उनके जीवन में अत्यधिक तनाव का कारण बनती है।
मैं हमेशा इस बात की पक्षधर रही हूं कि जीवन का आनन्द पति-पत्नी या प्रेमी प्रेमिका आपसी सहमति से लें।
यदि वे सहमति से सब कुछ करेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि जीवन के आनन्द की कोई सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती।
बाध्यता केवल इतनी है कि आप स्वार्थी ना बनें, केवल अपने सुख, अपनी लालसा, अपनी वासना के बारे में न सोचें बल्कि अपने साथी की इच्छाओं, लालसाओं और वासना का भी पूरा सम्मान करें।
इस कहानी के प्रमुख पात्र बंटू ने अभी 18 वर्ष पूर्ण किए थे, उसका औसत कद और शरीर का गठन सामान्य था लेकिन चेहरा खूबसूरत होने के कारण चित्ताकर्षक लगता था।
दो तीन वर्ष पूर्व से ही उसके मम्मी पापा, उसको अपने कमरे में सुलाने का जोखिम नहीं ले सकते थे इसलिए उसे पास के कमरे में सुलाने लग गए थे।
कई बार किसी स्वप्न या किसी आवाज के कारण बंटू की नींद उचट जाती.
जब भी उसकी नींद उचटती, तब बंटू यह महसूस करता कि उसके लंड में तनाव है जिसको दबाने और सहलाने में मजा आता है।
आज भी मम्मी पापा के कमरे से आ रही कामुक आवाजों और सिसकारियों के कारण बंटू की फिर से नींद खुल गई।
उसने देखा कि उसके औजार में आज फिर से तनाव भरा हुआ था।
उसे इतना तो समझ में आ रहा था कि रोज ऐसा होता है. उसे यह भी याद आया कि कई बार रात में उसे अपना अंडरवियर कुछ गीला गीला सा लगने के कारण उसकी नींद खुल गई थी।
उसने सोचा शायद रात में उसका सू सू निकल गया होगा.
कभी कभी नहाते समय उसने अपने अंडरवियर को देखा तो उस पर अलग-अलग तरह के नक्शे बने दिखाई देते थे।
उस स्थान पर अंडरवियर उसे कुछ हल्का खुरदुरा महसूस होता था.
किंतु ऐसा क्यों होता है?
और इसके अलावा भी उसकी अनेक जिज्ञासाएं थीं जिनके बारे में वह किसी सैक्स गुरु से जानकारी लेना चाहता था।
वह हाथों से पकड़ के, दबा के अपने हथियार को सामान्य करने की कोशिश करता … पर असफल रहता।
उसे सैक्स के बारे में कुछ स्पष्ट जानकारी नहीं थी, उस पर उन आवाजों का दो तरह का प्रभाव पड़ रहा था।
प्रकृति तो अपने नियमानुसार वासना जगा ही रही थी लेकिन सैक्स को खराब बताने वाले समाज में व्याप्त पाखंड के कारण उसके मम्मी पापा की शारीरिक सुख की प्रक्रिया में, उत्तेजनापूर्ण आवाजों के कारण उसका मन मस्तिष्क विषाद से भर रहा था।
उसके बाद जैसा कि हमेशा होता है, वासना किसी भी अन्य विचार पर भारी पड़ने लगती।
उसने जब भी अपने लंड को सहला कर देखा तो तनाव तो कम नहीं हुआ लेकिन सहलाने से उसको एक सुखद अनुभूति अवश्य हुई।
कुछ समय पूर्व उसने लौड़े के ऊपर से चमड़ी को खोलने की कोशिश की.
कुछ देर के प्रयासों के बाद और दर्द के साथ चमड़ी सुपारे पर से हटकर ऊपर की ओर सिमट गई।
तब उसने देखा कि उसके लौड़े के अग्र भाग वाला सुपारा एकदम लाल सुर्ख हो रहा था और एक विशेष चमक उसमें दिखाई दे रही थी.
फिर उसने हाथों से स्किन को एक दो बार ऊपर नीचे किया तो उसे बहुत अधिक मजा आने लगा।
उसके दिमाग में जागी हुई वासना ने उसको प्रेरित किया कि वह इस प्रक्रिया को जारी रखे।
वह नित्य अपने लौड़े से खेलता रहा … उसका मजा उत्तरोत्तर बढ़ने लगा।
फिर एक दिन जब उसने तेजी से मुट्ठ मारना शुरू किया तो कुछ ही देर में उसका शरीर कंपन करने लगा और पूरा शरीर तनाव से भर गया.
उसके लौड़े में एकदम तेज सरसराहट सी हुई और गाढ़ा, सफेद, चमकदार वीर्य झटकों के साथ में आंगन में जगह-जगह बिखरने लगा।
उसने पहली बार इस अद्भुत आनन्द का अनुभव किया था.
जब लौड़े की नसें फड़क फड़क के वीर्य से रिक्त हो गईं तो वह एक ग्लानि भाव से भर गया।
उसे ऐसा लगा जैसे उस ने कोई अपराध किया हो।
कुछ समय बाद उसका ये अपराधबोध क्षीण होते हुए समाप्त हो गया।
धीरे धीरे उसकी अपने लौड़े को अवसर मिलते ही सहलाने, मसलने की प्रवृति बढ़ने लगी।
कुछ तो कच्ची उम्र में वैसे ही लंड जल्दी जल्दी तन्नाता है, उस पर जब लंड कड़क हो जाता है तो उसका बेचैनी भरा आनन्द, बंटू को विवश करने लगा कि वह रात को जबरन जाग कर मम्मी पापा की चुदाई के समय की आवाजें सुने।
प्रतिदिन की सिसकारियों में कभी कभी अस्पष्ट शब्द भी उस के कान में पड़ने लगे।
‘धीरे-धीरे चूसो न’, ‘अब जोर से रगड़ो’, ‘निप्पल मसलो’, ‘मुंह में लो न’, ‘हो गये न ढेर?’, ‘तुम्हारा भेनचोद रोज़ का यही रोना है’. ‘एक तो तुम्हारा लन्ड पहले ही बच्चे के जैसा छोटा, उस पर चुदाई का भी दम नहीं’, ‘बस मुंह में देने में मजा आता है’, ‘आज नहीं … बोला न आज नहीं!’, ‘तुमको रोज गांड मारनी है तो चुदवाने किसी और के पास जाऊं क्या??’, ‘तुम कहो तो यहां भी ढूंढ लूं किसी और मर्द को?’ ‘वैसे भी चुदाई तो तुमसे ठीक से होती नहीं’, ‘अरे यार कोशिश तो पूरी करता हूं.’
ऐसे बहुत से शब्द बंटू के कान में उतरकर उसके कानों के किनारों को तपाने लगे।
जब उसने यह शब्द सुने ‘एक तो पहले ही तुम्हारा लंड बच्चों जैसा छोटा’ तो वह अपने लंड के बारे में सोचने लगा कि क्या यह वास्तव में छोटा है?
उसने स्केल लेकर अपने खड़े लंड को नापा, करीब करीब साढ़े पांच इंच था तो उसने स्केल को और थोड़ा सा दबाकर यह मान लिया कि यह पूरे साढ़े 5 इंच का है।
पापा मॅाम सेक्स स्टोरीज से सैक्स के बारे में उसकी जिज्ञासा बढ़ने लग गई.
लेकिन कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।
उसके स्वभाव में कुछ चिड़चिड़ाहट सी होने लगी।
पहले और अब के मम्मी के स्पर्श में अंतर लगने लगा।
अब मम्मी को देख कर उसके मन में कामुक विचार उठने लगे.
मम्मी के मम्मों और चूतड़ों की हलचल पर उसकी नजरें ठहरने लगीं.
किंतु नैतिकता के दबाव में वह मम्मी पर से ध्यान हटा देता।
उसने कुछ हमउम्र और एक वर्ष बड़े दोस्त मोंटी से जानकारी लेने की कोशिश भी की.
वह खुल कर तो कुछ पूछ नहीं पाया मगर मोंटी से एक दो सस्ती अश्लील किताबें हाथ लगीं, जिनमें चुदाई के आसनों का, आदमी-औरत के बीच ओरल की मस्ती, गांड मारने, मरवाने का उत्तेजक वर्णन था।
बंटू को आश्चर्य तो तब हुआ जब उसे यह मालूम पड़ा कि उसके पापा उसकी मम्मी की गांड भी मारते हैं।
इसके पहले वह यही समझता था कि गांड मारना और मरवाना केवल लड़कों के बीच में होता है।
इन किताबों को पढ़ते-पढ़ते एक दो बार तो बंटू इतना उत्तेजित हुआ कि बिना हाथ लगाए उस के लंड से वीर्य अपने आप छलकने लग गया।
वीर्य छलकने के बाद हर बार उसका मन ग्लानि से भर जाता।
लेकिन वासना की लहर एक बार उठने लगे तो फिर वह किसी भी अनुभूति पर हावी हो जाती है।
कुछ समय बाद बंटू फिर से लौड़े को अपने हाथों के हवाले कर के चरमसुख हासिल करता।
इन्हीं किताबों में जवां मर्द के लंबे, मोटे लंड के अतिरंजित वर्णन से उसे अपना लंड छोटा और पतला लगता।
इस कारण बंटू और निराशा से भर जाता।
बंटू रात में चुदाई की आवाजें सुनता और सुबह मम्मी पापा को देखता तो उसे अपने पापा से तो जैसे चिढ़ सी होने लगी.
और मम्मी को देख के उसे लगता कि सुबह तो कैसी भोली भाली देवी जैसी लगती है और रात को लंड के लिए साली कैसी तड़पती है?
विशेषकर मम्मी के बोले ये शब्द कि ‘तो चुदवाने किसी और के पास जाऊं क्या??’, ‘तुम कहो तो यहां भी ढूंढ लूं किसी और मर्द को?’
उसके विचारों में स्थायी हो चुके थे।
वह ‘यहां भी’ का मतलब समझ नहीं पा रहा था।
उसने बहुत अनुमान लगाने की कोशिश की पर वह किसी ठोस निर्णय पर नहीं पहुंच पाया।
उसे विश्वास नहीं होता था कि सुबह इतनी पवित्र दिखने वाली उसकी मां और रात को इतनी कामुक, अतृप्त, अच्छी चुदाई के लिए तड़पने वाली औरत एक ही है।
इतना तो निश्चित हुआ कि मम्मी को लेकर उस के मन में विद्यमान आदर भाव में कुछ कमी आ गई थी।
उसकी अपनी मां के बारे में सोच बदलने लगी. उसकी मां अब केवल मां नहीं रही, बल्कि वह एक ऐसी कामुक औरत बन गई जिसकी चुदाई के समय की बातें, सिसकारियां और आवाजें वह कई बार सुन चुका था।
इस कारण वह अपनी मां के साथ काम-कल्पनाएं भी करने लगा।
अब उसकी मां यदि उसे छूती तो उसके तन बदन में सनसनी सी होने लगती.
और जब कभी वह अपनी मां को स्पर्श करता तो उसके मस्तिष्क में उस समय मां नहीं, एक गदरायी हुई जवान औरत रहती थी, जिसको छूकर वह एक और बार मुठ मारने की तैयारी करता था।
उसके मन में यह विचार भी आने लगा कि यदि मां को पापा के लंड और उन की चुदाई से संतुष्टि नहीं मिलती तो क्या वह भी किसी नए लंड से चुदवाने के बारे में गंभीरता से सोचती होगी या उस दिन ऐसे ही आवेश में मुंह से निकल गया था?
कुछ दिनों से उसकी एक और आदत हो गई कि वह जब भी किसी जवान औरत को देखता तो यही सोचता कि यह भी रात में अपने पति का लन्ड चूत में, मुंह में, गांड में लेती होगी?
यह कैसे अपने पति को बोबे चुसवाती होगी, चूत चटवाती होगी? क्या यह भी मुंह से सिसकारियां निकालती होगी?
क्या यह भी चुदाई में अतृप्त रहने पर, अपने पति को भला बुरा कहती होगी?
यह भी क्या पराये मर्दों के साथ चुदाई का मजा लेती होगी?
या कम से कम नए लंड लेने के बारे में सोचती तो होगी?
लेकिन लगती तो सब कैसी भोलीभाली हैं जैसे इन्हें चूत लंड के बारे में कुछ पता ही नहीं हो।
धीरे-धीरे वह मां के साथ-साथ अब अड़ोस पड़ोस की आंटियों, अपने दोस्तों की मम्मियों के बारे में भी कामकल्पनाएं करते हुए मुट्ठ मारने लगा।
इस खेल में उसे इतना मजा आने लगा कि कभी-कभी तो वह अपनी कल्पनाशीलता पर गर्व की अनुभूति करता कि उसने ख्यालों ही ख्यालों में कितने ही दोस्तों की मम्मियों को, अड़ोस पड़ोस की आंटियों को, यहां तक कि कई फिल्मी हीरोइनों को चोद डाला था।
बंटू की वासना और उसकी औरत के जिस्म की जिज्ञासा दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी।
उसे उसके जैसे ही कामसुख प्रेमी मोंटी से कामुक किताबों के साथ-साथ न्यूड एल्बम भी हाथ लगे.
तब से तो उसकी दुनिया ही बदल गई।
उसने देखा कि एक औरत दो, तीन, चार या पांच- पांच मर्दों के साथ एंजॉय कर रही है.
यह देख कर उसकी किसी न किसी औरत के साथ चुदाई करने की इच्छा बढ़ने लगी।
उसकी पढ़ी हुई कहानियों में तो हर लड़की या औरत को ऐसा बताते हैं जैसे उन को नए नए लौड़ों से चुदवाने के अलावा न कोई काम है, न और कोई शौक!
कोई भी देवर, पड़ोसी या किसी रिश्तेदार का लड़का या कोई राह चलता मर्द, उनके संपर्क में आया और वे झट से चुदवाने के लिए नंगी हो जाती हैं.
लेकिन वास्तव मैं तो उसे ऐसी कोई लड़की या औरत दिखाई नहीं देती थी.
फिर मन में एक डर भी था.
जब से उसने अपनी मम्मी के मुंह से यह सुना था कि ‘एक तो तुम्हारा लन्ड पहले ही बच्चे के जैसा छोटा, उस पर चुदाई का भी दम नहीं’
उसको लगता कि वह तो अभी 18 वर्ष का ही हुआ ही है, उसका लंड तो शायद अभी और बढ़ेगा, लंबाई में भी और मोटाई में भी। अभी उसके लंड से चुदवाने वाली औरत को क्या वास्तव में वह मजा दे पायेगा भी या नहीं?
उसने सोचा कि किसी दोस्त की मम्मी या आंटी को चोदने के पहले किसी कम उम्र की लड़की को चोदा जाये तो कैसा रहेगा?
वह प्रतिदिन एक नई कहानी बुनता और उसके सच होने की संभावना पर विचार करता।
उसमें जब कोई कमी समझ में आती तो उसे ठीक करता.
लेकिन बंटू प्रतिदिन एक बार और कई बार तो दो-दो, तीन-तीन बार मुठ मार मार के परेशान हो चुका था।
उसे अब चाहे जिसकी, चाहे जैसी चूत मिले, चुदाई के मज़े लेना थे।
जिस तरह शक्करखोरे को शक्कर मिल जाती है उसी तरह प्रकृति हर उन लड़के, लड़की, औरत या मर्द की वासना पूर्ति के लिए अवसर प्रदान करने की व्यवस्था भी करती है, जिनकी वासना उन के मस्तिष्क में चढ़ कर नृत्य करती हो।
अंतर केवल इतना है कि कोई तो मिले हुए अवसर का, नए साथी के साथ, नया स्वाद यानि सम्भोग सुख प्राप्त कर पूरा पूरा उपभोग कर लेता है और किसी की, जब स्वर्णिम अवसर सामने होता है तो गांड फट जाती है।
ऐसा भी नहीं है कि अवसर केवल एक बार मिलता है.
कई शौकीन औरतों एवं मर्दों की कहानियां ऐसे अवसरों से भरी हुई हैं जब उन्हें बिना किसी प्रयास के अचानक या थोड़ी बहुत कामचेष्टाओं के परिणाम स्वरूप, किसी नये साथी के तन बदन से खेलने का आनन्द मिला।
बंटू भी ऐसे ही किसी अवसर की खोज में था जब वह अपनी लौड़े को पहली बार किसी चूत का स्वाद दिला सके।
सबसे पहले उसे ध्यान आया अपने मामा की लड़की प्रमिला यानि पम्मी का!
वह उसकी हमउम्र थी.
उसने सोचा कि वह तो अब चुदाई के खेल के बारे में बहुत कुछ जानता है लेकिन पम्मी तो शायद बिल्कुल कोरी होगी उसको बहलाना, फुसलाना और पटाना बहुत आसान होगा।
प्रिय पाठकों, मुझे विश्वास है कि कहानी का आरंभ आपको अच्छा लगा होगा।
पापा मॅाम सेक्स स्टोरीज पर अपनी प्रतिक्रिया भेजिए, हमेशा की तरह मैं जवाब अवश्य दूंगी।
मेरी आईडी है
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पापा मॅाम सेक्स स्टोरीज से आगे की कहानी: बाली उमरिया में लगा प्रेम रोग- 2
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