पापा मम्मी की दूसरी सुहागरात -11

(Papa Mammi Ki Dusri Suhagraat -11)

विशेष 4084 2015-09-29 Comments

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इतना बोलकर उन्होंने नीचे से ही दो तीन धक्के लगाये, मम्मी भी पापा की छाती से चिपकी हुई धक्के लगा रही थी पर अचानक पापा के तरफ से आये झटके से वो चौंक गई।
पापा मम्मी को किस कर रहे थे और उनके बालों से खेल रहे थे। मम्मी भी अपने हाथों से पापा की पीठ को अपने कब्जे में करे हुई थी और उनके हाथ उस पर चल रहे थे।

पापा बोले- यह क्या रख दिया मेरी चेस्ट पर इतने भारी भारी?
मम्मी- क्या, कहाँ?
पापा- अरे ये दो गोले!
मम्मी पापा का इशारा समझ गई और बोली- ये रसीले आम हैं जिनका रस तुम खूब चूसते हो।
पापा- अरे थोड़ा तेज़ तो कर इस तरह तो रात भर में भी नहीं करा पाओगी मुझे डिस्चार्ज!

मम्मी बस एकदम शांत हो, आँख मूंदे पापा के सीने से चिपकी हुई थी।
पापा बोले- सुरभि यार, कर दे न 10 मिनट तेज़ी से! डिस्चार्ज करा दे न!
‘मुझे अब परेशान न करो… मैं बहुत थक गई हूँ अब!’

पापा ने अब मम्मी के कूल्हों पर हाथ फिराते हुए उन पर हाथ टिकाये और अपने हाथों की ताकत से अपने लिंग पर ऊपर नीचे करने लगे।

जैसे ही पापा ने अपने डंडे को मम्मी की सुरंग में डाला वैसे ही मम्मी के मुख से चीख निकल गई- आउच… ऐ जी रुको न! धीरे धीरे करो! दुःख रहा है जी… कैसे कर रहे हो जानवरो की तरह?
पापा बोले- अरे यार, थोड़ी तेज़ तो करने दो!
मम्मी- धीरे…! अहह… उफ़… हम्मम्मम हुम्म…! अंकित के पापा धीरे करो…

पापा अब रुक गए और तेज़ सांस लेते हुए बोले- क्यों, मज़ा नहीं आ रहा क्या?

मुझे तो बहुत मज़ा आ रहा था, उनकी बातें सुनकर बहुत मज़ा आ रहा था, मेरे हाथ इधर अपने मुन्ने को सहलाये जा रहे थे, मेरे मुन्ने ने भी अपनी कोमलता का त्याग कर अपना रौद्र रूप धारण कर लिया था। मैं एक तरफ तो मम्मी के चुदाई के खेल को देखता और देखने मात्र से उत्तेजित होकर मैं अपने मुन्ने को सहलाने लगता।
मैं तब तक झड़ना नहीं जानता था फिर भी केवल सहलाने मात्र से मुझे अभूतपूर्व हर्ष हो रहा था। शायद मैं इसलिए भी नहीं झड़ रहा था कि मैं अपने मम्मी के चुदम चुदाई के खेल को देखने में इतना मशगूल हो जाता था कि अपने मुन्ने को सहलाना ही बंद कर देता था।

मम्मी- मज़ा तो आ रहा है पर अंदर चुभ सा रहा है और जलन भी हो रही है। आज इतनी बार कर लिया है शायद इस वजह से तो जलन हो रही है।
पापा- तुम भी न सुरभि, फालतू के वहम पल लेती हो। कभी कभी तो करने देती हो, अभी रोज करो तो कुछ न हो।
मम्मी- रोज ही तो करते हो पर फिर भी कहते हो कि मैं करने नहीं देती। आज जितना करना हो कर लो, मैं नहीं रोकूँगी।
मम्मी कुछ नाराज होते हुए बोली।

पापा- अच्छा अब करने दोगी?
मम्मी- मैंने कब रोका है।
पापा ने अब एक बार फिर मम्मी के गोल गोल चूतड़ों पर हाथ टिकाया, एक बार फिर फिर मम्मी को अपने लिंग पर ऊपर नीचे करने लगे। क्योंकि पापा के हाथ मम्मी के कूल्हों पे थे और वो बहुत तेज़ी से उनको अपने हाथ के बाल पर ऊपर नीचे कर रहे थे तो ऐसा लग रहा था कि मानो मम्मी घुड़सवारी कर रही हों।
मम्मी के मुख से तेज़ आवाजें निकल रही थी- आह आह हु हु हम…

करीब 5 मिनट बाद अचानक मम्मी के मुँह से एक सिसकारी सी निकली- आह…आह…
और फिर मम्मी ने पापा को एक बार कस के चूमा और फिर वो निढाल सी पापा के सीने से चिपक गई, उनके हाथ पापा की पीठ के चारों ओर कस गए, उनका शरीर पसीने पसीने था जो यह बता रहा था कि आज उन्होंने बहुत मेहनत की है।

वो एकदम शांत थी और उनकी आँखें बंद थी फिर भी उनके चेहरे की चमक यह बताने को काफी थी कि वो चरमोत्कर्ष के बाद मिलने वाले असीम आनन्द को प्राप्त कर चुकी है अर्थात उनका अमृत रूपी प्रेम रस छूट चुका है और वो झड़ चुकी है, उनके चेहरे की हल्की मुस्कराहट ही उनकी पूर्ण तृप्ति को बयाँ कर रही थी।
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पापा अब और भी तेज़ी से मम्मी को अपने लिंग पे उछाल रहे थे, मम्मी आँखें बंद किये हुए पापा के सीने से चिपकी हुई थी।
पापा बस मम्मी के होंठों को चूसे जा रहे थे पर मम्मी की तरफ से अब कोई ज्यादा रिस्पांस नहीं मिल रहा था। शायद ऐसा इसलिए भी था क्योंकि मम्मी तो अब झड़ ही चुकी थी और उनके हिस्से की ख़ुशी उन्हें मिल चुकी थी पर फिर भी पापा की खुशी के लिए थोड़ा बहुत चूमा चाटी वगैरह अभी भी कर रही थी।

मम्मी के झड़ने के करीब 5 मिनट बाद पापा ने मम्मी को अपनी बाँहों कस लिया और एक जोरदार चूमा उनके होंठो पर ले लिया और इसी के साथ उनका भी काम तमाम हो गया।

करीब 10 मिनट तक वो दोनों वैसे ही, मम्मी ऊपर पापा नीचे, लेटे रहे फिर जब मम्मी ने उठ कर अपनी मुनिया से पापा के पप्पू को निकाला तो मैंने उनके पप्पू पर ध्यान दिया और पाया कि पापा का पप्पू उनके ही वीर्य से सराबोर था और जो थोड़ा बहुत अंदर गया भी था वो भी मम्मी की मुनिया से रिस कर पापा के मुन्ने और उसके अगल बगल उगी झट पर बूंद बूंद कर के सारा गिरा जा रहा था।

मम्मी अभी भी पापा के ऊपर ही बैठी थी, उनके ऊपर ही बैठ कर वो उसी सफ़ेद रुमाल से पापा के पप्पू और अपनी मुनिया को बारी बारी साफ़ कर रही थी।
अपने और पापा के कोमलांगों को कोमलता से साफ़ करने के बाद मम्मी ने उस रूमाल को उसी ड्रॉअर में रख दिया जिसमें उन्होंने उस कंडोम के पैकेट को रखा था।

अब मम्मी पापा के सीने की ओर एक बार और झुकी और उनको एक लंबा चुम्बन किया, चुम्बन करने के बाद वो बाथरूम गई और बाथरूम से आने के बाद पापा से बोली- अब तो खुश हो न !
पापा बोले- खुश क्या बहुत खुश हूँ।

कुछ देर धीरे धीरे बातें करते करते वो दोनों एक दूसरे से चिपक कर ऐसे ही नंगे सो गए।

जब मुझे यकीन हो गया कि आज रात अब इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा तो मैं भी उन चुदाई के दृश्यों को याद कर के सो गया।
जब मैं सुबह उठा तो दोनों की चेहरे की खुशी देखते ही बनती थी, वो दोनों आज खूब चहक रहे थे, उन्होंने मेरे सामने ही डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करते वक़्त मम्मी को आँख मारते हुए बोले- कल रात मज़ा आया था या नहीं?

पहले तो मम्मी बोली- इत्ता बड़ा बच्चा सामने बैठा है और तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है।
पापा बोले- वो क्या जाने ये सब?
पापा के इतना बोलने पर मम्मी भी बेशर्मी से ये सब शब्द बोलने लगी, वो बोली- मज़ा तो आया जी, पर कुछ कसर रह गई।
पापा तुरंत बोले- जो कोर कसर रह गई है उसे आज रात दूसरे हनीमून में पूरा करेगे।
इतना बोलकर वो दोनों हँसने लगे और फिर कुछ देर बाद पापा दुकान चले गए और मम्मी अपने काम में लग गई।

मैंने एक बार चेक किया तो मम्मी किचन में काम कर रही थी, तभी मैंने मौका देखा और झट से उनके कमरे में घुस गया।
मैंने ड्रॉअर खोला तो कंडोम का पैकेट और सफ़ेद रूमाल को उसी जगह पाया।
मैंने रूमाल को उठाया तो पाया कि उसमें बहुत सी सिलवटें पड़ी हुई हैं और एकदम टाइट सा लग रहा था जैसे किसी ने उसके चारों ओर लेई फैला कर उस पर इस्तरी कर दी हो।

मैंने उसे हाथो ने लेकर सूंघा तो उसमें अजीब सी गंध आ रही थी।
मैंने उस रूमाल को उसी ड्रॉअर में रख दिया और कंडोम के पैकेट से एक कंडोम निकाल कर अपने बगल वाले कमरे में आ गया।
मैं कंडोम को अपने हाथ में लिए हुए था और केवल उसे हाथ में लेने मात्र से मेरे शरीर में कंपकंपी सी हो रही थी, मेरा लिंग एकदम टाइट हो चुका था।

मैंने जल्दी से दरवाजा बंद किया और कंडोम का पैकेट चीर कर कंडोम निकाला और उसे अपने लिंग पर चढ़ा लिया और अब मैंने कंडोम के ऊपर से ही अपने हाथों से अपने लिंग को सहलाना शुरू किया।
इस बार मैं अपने पप्पू को सहलाये जा रहा था, बीच बीच में रुक नहीं रहा था जैसे मैं पिछली रात मम्मी पापा की चुदाई देखते वक़्त कर रहा था।

करीब 10 मिनट तक लगातार सहलाने के बाद अचानक मेरी साँस जैसे रुक गई और मेरे पप्पू ने कंडोम में ही पिचकारी छोड़ दी।
हल्के पीले रंग पहला वीर्य मेरे पप्पू से गिर रहा था जिसे मैं बहुत गौर से देख रहा था।
मेरे मुन्ने में में बार बार संकुचन हो रहा था, वो बार बार कभी फूलता तो पिचक रहा था। उस ख़ुशी को तो मैं बता ही नहीं सकता जो मुझे झटते वक़्त हुई थी।

आज तक मैंने उस आनन्द के बारे में केवल सुना था, आज मैं उसे महसूस कर रहा था।
कंडोम में जब मेरे पप्पू से वीर्य की एक एक बूँद निकल गई तब मैंने उस कंडोम को अपने पप्पू के ऊपर से हटा दिया और उसे बाथरूम में ले जाकर फ्लश कर दिया।

इस तरह से मेरे मम्मी पापा की दूसरी सुहागरात मनी और मैंने पहली बार मुठ मारने का आनन्द प्राप्त किया।

मेरी कहानी आपको कैसी लगी मुझे जरूर बतायें, मुझे ढेर सारे मेल्स करें।
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