नि:संतान पड़ोसन को दी अनहद ख़ुशी- 1
(Oral Sex Ki Chahat Mein)
मेरी पत्नी मुझे ओरल सेक्स यानि मुख मैथुन का सुख नहीं देती थी तो मैं इसके लिए तड़पता रहता था, बीवी से आग्रह करता था कि वह मेरे लंड को मुँह में डाल कर पूरे मजे लेकर चूसे.
दोस्तो, हर मर्द की कोई न कोई फैंटेसी जरूर होती है.
किसी को स्त्री के खूबसूरत स्तन अच्छे लगते हैं, तो किसी को उभरे हुए चूतड़, किसी को घुमावदार गोल नाभि पसंद आती है तो किसी को मोटी मोटी जांघें पसंद आती हैं. किसी को सुडौल गर्दन पसंद आती है, तो किसी को पतली कमर.
बहुत कम ही मर्द होते हैं, जिन्हें गोरे रंग और खूबसूरत चेहरे पर कामुक कल्पनाएं आती हैं.
मैं उन मर्दों में हूं, जिन्हें मोटी मोटी जांघें और उन जांघों के बीच झांटों से झांकती हुई उभरी हुई चूत … और बड़े बड़े महलों की गुंबदों को चिढ़ाते हुए उभरे हुए चूतड़ अधिक पसंद आते हैं.
मेरी एक फैंटेसी और है.
वो यह कि कोई औरत मेरे लंड को मुँह में डाल कर पूरे मजे लेकर चूसे.
मैं मेरी पत्नी अनिमा के साथ सेक्स के कई प्रयोग करता हूं जिसमें अनिमा मेरा भरपूर साथ देती है.
मगर मेरे लंड को मुँह में लेते ही उसे मितली आने लगती है.
मेरी जिद पर कई बार वह ऐसा करती तो है … लेकिन बेमन से, खुशी से नहीं.
हालांकि मुझे इस बात से कभी कोई शिकायत नहीं हुई, मगर दिल में ये इच्छा तो अधूरी ही पड़ी हुई थी.
फिर एक दिन मेरी ओरल सेक्स की चाहत … फैंटेसी सच हो गई.
वह अनिमा नहीं … कोई और थी, जिसने मेरी कल्पनाओं को साकार किया था.
वह कई महीनों से मुझे चोरी छिपे देख रही थी जिसे मैं बेवकूफ समझ ही नहीं रहा था.
मगर जब पहली बार उसे अपना जलवा दिखाने का मौका मिला उसने मेरे होश उड़ा दिए.
उस दिन उसने सबसे पहले बड़े आदर से अपने दोनों हाथों से मेरे पैर छुए, अपने माथे पर लगाकर मुझे नमन किया और मुझे थैंक्यू कहा.
उसने फिर से मेरे दोनों पैर बारी बारी से चूमे और फिर से मुझे थैंक्यू कहा.
अब उसने मेरे दोनों घुटने चूमे और फिर से मुझे थैंक्यू कहा.
फिर उसने मेरी दोनों जांघें चूमी और फिर से थैंक्यू कहा.
यह सब उसने मेरे लोअर के ऊपर से ही किया था.
मेरी संवेदनशीलता बढ़ती जा रही थी.
अबकी बार उसने कपड़े के ऊपर से ही मेरे लंड को चूमा तो मेरा लंड मारे उत्तेजना के फुंफकारने लगा.
पर इस बार उसने थैंक्यू बोलने की बजाय कुछ और ही कहा.
उसने कहा- कोई लड़की पूरे मन से आपके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसे, यही आपकी इच्छा है, है ना?
मैं चौंका कि इसे यह बात कैसे पता? मैं तो एकाएक सदमे में आ गया.
मैंने उससे पूछा- तुम मेरी फैंटेसी कैसे जानती हो?
तो उसने जवाब दिए बिना मुझ पर अगला बम फिर से गिराया और कहा- और अनिमा दीदी आपके लंड को पूरे मन से चूसकर कभी भी आपको यह सुख नहीं दे सकी हैं, है ना?
उसके इस वार से मैं पूरी तरह खत्म हो गया था.
उसके बाद उसने मुझसे कोई बात नहीं की. बस मेरे लोअर की गांठ खोली, एक साथ लोअर और अंडरवियर नीचे खिसकाया और मेरे फनफनाते लंड के सुपाड़े पर चढ़े चमड़े की चादर को अपने नाजुक अंगुलियों से पीछे खिसकाकर अपनी जीभ को मेरे सुपाड़े के छोटे मुख पर चलाना शुरू कर दिया.
मेरा सारा विरोध खत्म हो चुका था.
मैं जान चुका था कि उस दिन कमरे के दरवाजे की छेद से अन्दर झांकने वाली नजर ‘वनिता’ की ही थी.
उसने उस कमरे के अन्दर मेरी और अनिमा की बातें दरवाजे के बाहर छुप कर सुन ली थीं.
मेरे सुपारे के चारों ओर अपनी जीभ को घुमाते हुए अपने दोनों हाथों को धीरे से सरकाकर उसने मेरे चूतड़ पकड़ लिए और वहीं गोल गोल घुमाकर सहलाना शुरू कर दिया.
मुझे एक साथ लंड और चूतड़ दोनों ही जगह उसकी छुअन का अहसास हो रहा था.
मैं मदहोश होने लगा था कि तभी मुझे होश आया कि मैंने मेन गेट तो बंद किया ही नहीं है.
मैंने उसे अलग करना चाहा तो उसने इशारे से पूछा- क्या हुआ?
तब मैंने कहा- दरवाजा खुला है, पापा अन्दर आ गए तो क्या होगा!
‘मैंने अंकल को फोन करके सब्जी लाने को कह दिया है और यहां आने से पहले मेन गेट भी बंद कर दिया है.’
इतना कहकर वापस से वह अपने काम में लग गई.
मैं समझ गया कि यह पूरी तरह तैयार होकर आई है.
यह मेरी पहली सेक्स कहानी है जो मैंने बड़ी ही शालीनता से लिखने की कोशिश की है.
यह ऐसी शराब की तरह है जिसमें बहुत धीमे धीमे खुमारी चढ़ती है.
लेकिन एक बार मन में उतर गई तो जाने का नाम नहीं लेती.
मेरा नाम चाहत है.
‘अनहद’ मेरे नाम के साथ कैसे जुड़ा, यह इसी की कहानी है.
मैं अभी 35 साल का हूं और शादीशुदा हूं. शरीर पतला है मगर मजबूत है. क्योंकि मैं योग ट्रेनर हूं इसलिए मैं फिट रहता हूं.
योग चूंकि शरीर के साथ साथ मन पर नियंत्रण रखना भी सिखाता है, इसलिए मैं सेक्स में भी परफेक्ट हूं … और क्योंकि मैंने अपनी पत्नी ‘अनिमा’ को भी योग करवा-करवा कर फिट रखा है, इसलिए हम दोनों हमेशा सेक्स की फिराक में पूरी तत्परता से लगे रहते हैं.
योग के साथ साथ फिल्में देखना, मेरा पहला शौक है … उसमें भी रोमांटिक फिल्में.
इसलिए हम दोनों एक दूसरे के साथ जो भी वक्त बिताते हैं, वह पूरे प्यार से बिताते हैं.
इसी रोमांस को बनाए रखने के लिए हम कभी किचन में सेक्स करते हैं, तो कभी बाथरूम में.
इसी वजह से शादी के दस सालों के बाद भी हमारे प्यार में कोई कमी नहीं आई है और इस बात को न केवल हम दोनों नोटिस करते हैं बल्कि दूसरे लोग भी नोटिस करते हैं.
पर यह सेक्स कहानी मेरी और मेरी पत्नी अनिमा के बीच होने वाले सेक्स की नहीं है, बल्कि मुझे मन ही मन चाहने वाली ऐसी लड़की की है जिसका मुझे पता ही नहीं था.
मैं एक छोटे से शहर इंदौर में रहता हूं, जहां मैं अपने मां बाप, पत्नी तथा दो बच्चों के साथ रहता हूं.
मेरी फैमिली का सरनेम ‘लाल’ है. क्योंकि मेरे दादा जी का नाम राम लाल था.
वे इंदौर के जाने माने व्यापारी थे इसलिए उन पर यह नाम सूट भी करता था.
उनके तीन बेटे हुए, अमन लाल, चमन लाल और रमन लाल.
अमन लाल मेरे बड़े पापा हैं, जिन्होंने दादा जी के जाने के बाद उनका व्यापार संभाल लिया था और उनके सरनेम में आज भी ‘लाल’ लगा हुआ है.
उनके बाद मेरे पापा चमन लाल हुए, जिनका फैमिली बिजनेस में जरा भी मन नहीं लगता था.
उन्हें साहित्य से लगाव था, इसलिए वे हिंदी के कवि भी थे और टीचर भी.
वे अपने नाम से ‘लाल’ तो नहीं हटा सकते थे लेकिन उन्होंने कसम खाई थी कि जब उनके बच्चे होंगे, तब वे अपने बच्चों के नाम साहित्यिक ही रखेंगे.
हद तो तब हो गई जब उनकी शादी मेरी मां से हुई, जिनका नाम चमेली था.
मेरे पापा चमनलाल थे, मां चमेली थीं तो बच्चों के नाम भी ‘च’ अक्षर पर ही रखे गए.
मेरी बड़ी बहन का नाम ‘चहक’ और मेरा नाम ‘चाहत’ रखा गया.
उन दिनों इंदौर में एक मशहूर शायर हुए ‘राहत इंदौरी’.
मेरे पापा उनके बहुत बड़े प्रशंसक थे इसलिए वे मुझे प्यार से ‘चाहत इंदौरी’ बुलाने लगे.
हालांकि स्कूल में मेरा नाम ‘चाहत आनन्द’ लिखवाया गया.
‘अनहद’ नाम तो बाद में उपजे हुए सिचुएशन की देन है.
मेरे छोटे चाचा रमनलाल सरकारी अफसर थे इसलिए उन्होंने अपने लिए भोपाल में ही एक फ्लैट खरीद लिया था और वहीं सैटल हो गए थे.
हमारा पुराना घर ज्यादा बड़ा नहीं था. उसमें मेरे बड़े पापा अमनलाल अपने परिवार के साथ रहते थे.
इसलिए मेरे पापा ने पास की पुश्तैनी जमीन पर दो माले का एक छोटा सा घर बनवाया और रिटायरमेंट के बाद हम सब वहीं रहने लगे.
हमारे घर में नीचे चार कमरे हैं. पहले तल्ले पर एक कमरा, किचन और बाथरूम है, जिसमें एक जवान कपल किराये से रहता है.
उस किरायेदार का नाम सागर है, जिसकी उम्र 28 साल है और वह पास के ही एक मिल में बीस हजार महीने की नौकरी करता है.
उसकी बीवी वनिता 26 साल की एक बहुत की सुडौल वक्षों वाली आकर्षक स्त्री है जो हमेशा घर पर ही रहती है.
वनिता एक लोअर मिडल क्लास परिवार से आती है जहां उसकी शादी बहुत कम उम्र में ही कर दी गई थी.
लेकिन शादी के छह साल बीतने के बाद भी उनके बच्चे नहीं हुए.
वे दोनों पहले इंदौर के पास ही एक कस्बे में रहते थे.
मगर इलाज के लिए बार बार इंदौर आना उनके लिए महंगा सौदा था इसलिए सागर ने इंदौर में ही काम ढूंढ लिया और वे दोनों यहीं मेरे घर पर किराए पर रहने लगे.
काम के अलावा सागर पूरा दिन मोबाइल पर रील्स देखने में लगा रहता था मगर वनिता को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था.
साहित्य में उसकी रुचि शुरुआत से नहीं थी.
उनके घर में टीवी नहीं थी और कोई बच्चा न होने की वजह से काटने के लिए वनिता के पास समय ही समय था.
इसी वजह से जब मैं काम से बाहर रहता था, तब वह मेरे कमरे में आकर अनिमा के साथ टीवी देख लेती थी.
मगर मेरे घर लौटते ही वह वापस अपने कमरे में चली जाती थी.
इसलिए कई बार वह मेरे पापा की लाइब्रेरी में से अपने पसंद की किताबें निकालती और अपने कमरे में ले जाकर पढ़ती रहती थी.
यहीं से उसे किताबें पढ़ने का शौक लगा.
पढ़ना लिखना मेरे लिए एक बोरियत भरा काम था, इसलिए मेरी उससे ज्यादा कभी बातचीत नहीं होती थी.
लेकिन जब भी वह मुझसे बात करती, तब वह मुझे भैया कहकर ठीक वैसे ही बुलाती थी … जैसे कोई स्त्री अपने जेठ जी को बुलाती है.
मुझे इस बात से कभी कोई ऐतराज नहीं होता था क्योंकि मैं तो हमेशा ही अपनी पत्नी और प्रेयसी अनिमा के साथ रोमांस करने में खोया रहता था.
आप सोच सकते हैं कि जब लिखना मुझे पसंद नहीं था तो मैंने इस कहानी को लिखने की शुरुआत कैसे की होगी.
दरअसल मुझे ‘चाहत आनन्द’ से ‘चाहत अनहद’ बनाने के बाद बहुत रिक्वेस्ट करके यह कहानी लिखवाई गई है.
यह मेरी लिखी हुई पहली कहानी है इसलिए मेरी लेखन शैली अगर उतनी अच्छी न लगे, तो आप सब मुझे माफ कर देना.
मैं और अनिमा यह जानते थे कि घर में सब लोग हमें नोटिस करते हैं मगर हम इतना जरूर सुनिश्चित करते थे कि कोई हमें सेक्स करते हुए देख न सके.
पति पत्नी का आपस में प्यार करना परिवार वालों के लिए सामान्य बात होती है.
मगर ऐसी लड़की के लिए यह बहुत ही खास रुचि रखने वाली बात है जिसे रोमांटिक किताबें अच्छी लगती हों मगर अपने पति से रोमांस नहीं मिलता हो.
ऐसा ही वनिता के साथ भी हुआ.
वह चोरी चुपके कब हम दोनों पर नजर रखने लगी, इसका हमें पता ही नहीं चला.
उभरे हुए चूतड़ मुझे कामोत्तेजना के चरम पर ले जाते हैं इसलिए मैंने ऐसी लड़की को अपनी पत्नी बनाया है … जिसका रंग तो सांवला है, मगर पतली कमर होने के बावजूद भी उभरे हुए उसकी चूतड़ मुझे हमेशा ही काम वासना भरे निमंत्रण देते रहते थे.
इसलिए अनिमा जब खाना पका रही होती थी तो मैं पीछे से उसकी साड़ी ऊपर करके उसकी चूतड़ सहला सहला कर उसे गर्म कर देता और उसके एक पैर को किचन के स्लैब पर चढ़ा कर पीछे से अपने लिंग को उसकी चूत में तब तक सहलाता रहता … जब तक उत्तेजना के मारे वह मुझसे लंड को पूरा अन्दर तक डालने की मिन्नतें न करने लगती.
उसके मुलायम योनिमुख को चीरते हुए जब मेरा लंड मखमली और चिपचिपे रास्ते से होकर अन्दर घुसता तो वह सिसकारी भरती हुई उसका पूरा मजा लेती थी.
हम दोनों तब तक चुदाई करते, जब तक दोनों पसीने से लथ-पथ न हो जाएं.
फिर जब वह स्खलित होकर मुस्कुराती, हम दोनों तभी अलग होते.
मैंने योग ट्रेनर का प्रोफेशन भी इसलिए चुना क्योंकि तंग कपड़ों में चौड़ी कमर वाली औरतों के उभरे हुए चूतड़ मुझे काफ़ी अपील करते हैं.
आदमी को वही काम चुनना चाहिए, जिसमें उसे मजा आए और मुझे इस काम में सचमुच बहुत मजा आता है.
घर के पीछे थोड़ी सी जमीन खाली है जिसमें मां ने छोटा सा बगीचा बनाया है.
घर में धूप भी यहीं पर आती है. इसलिए हमारे कपड़े तो अन्दर वाशिंग मशीन में ही धुलते हैं मगर उन्हें सुखाने के लिए हमें घर के पीछे जाना होता है.
छुट्टी के दिन जब अनिमा सारे कपड़े धोती है तब मुझे वजनी भीगे हुए कपड़े का टब लेकर उसके साथ पीछे जाना होता है.
यहीं एक छोटा सा कमरा है, जिसमें कपड़े फैलाने के बाद हम छुप कर सेक्स कर लेते हैं.
घर का यह हिस्सा नीचे से तो नहीं दिखता है, मगर ऊपर कमरे की खिड़की से साफ दिखता है. जिसमें से हमें सेक्स करते हुए तो कोई नहीं देख सकता है मगर साथ घुसते और बाहर निकलते अगर कोई देख ले … तो उसके लिए यह समझना मुश्किल नहीं है कि हम अन्दर क्या कर रहे थे.
आप इस बात से पहले ही वाकिफ हैं कि मेरी एक और फैंटेसी है कि कोई औरत मेरे लंड को मुँह में डाल कर पूरे मजे लेकर चूसे!
यह भी आपको बता चुका हूँ कि मैं अनिमा के साथ सेक्स के कई प्रयोग करता हूं, जिसमें अनिमा मेरा साथ भरपूर देती है मगर मेरे लंड को मुँह में लेते ही उसे मितली आने लगती है.
मेरी जिद पर कई बार वह ऐसा करती तो है लेकिन खुशी से नहीं.
हालांकि मुझे इस बात से कभी कोई शिकायत नहीं हुई मगर दिल में ये अधूरी ख्वाहिशें तो ही पड़ी हुई थी.
ऐसे में एक दिन मैं और अनिमा धूप में कपड़े फैलाकर पुराने कमरे में चले गए.
मैंने उसे दीवार से सटा दिया और उसके मुलायम होंठों को चूमने लगा.
मेरा एक हाथ उसकी नाइटी को उठा कर उसकी चूतड़ों पर चला गया और उसे सहलाने लगा.
उसकी चूतड़ों को जब मैंने अपनी ओर खींचा, तो मेरा लंड उसकी चूत में टकराया.
अनिमा ने पैंटी नहीं पहनी थी. वह मेरे चुभलाते होठों से जल्दी ही उत्तेजित हो गई.
उसने मुझसे कहा- जल्दी से अन्दर डालो. मुझसे अब रहा नहीं जा रहा है.
पर आज मैं उसके मुँह मे स्खलित होना चाहता था.
मैंने उससे लंड चूसने को कहा.
उसने ना कहा तो मैंने भी उसे प्लीज प्लीज कह कर मना लिया.
एक बार तो उसने गुस्साई नजरों से मुझे देखा पर आंखों ही आंखों में मिन्नतें करने पर वह पिघल गई.
वह नीचे झुकी और पैंट से मेरे लंड को बाहर कर चूसने लगी.
मारे उत्तेजना के मेरे लिंग से वीर्य से पहले निकलने वाला कामरस यानि प्री-कम बहने लगा.
उसकी तीखी गंध ने अनिमा को बैचेन करना शुरू कर दिया.
कुछ देर तो उसने सहन करके मेरा लंड चूसना जारी रखा मगर मेरे वीर्य निकलने से पहले ही उसे उल्टी आने लगी.
उसने अपना मुँह लंड से हटा कर दूसरी ओर कर लिया.
मैं स्खलित होने ही वाला था तो मैंने उसके सर को पकड़कर अपनी ओर जोर से खींचा मगर उसका जोर अधिक था.
मैं अधूरे में फंस गया था इसलिए मैंने अपने हाथों से ही हस्तमैथुन कर वीर्य निकालना शुरू कर दिया.
थोड़ी देर में ही मेरे लंड ने जोर की पिचकारी मारी.
अनिमा सामने से हट गई.
पिचकारी छूट कर सीधे दरवाजे पर गिरी.
तभी मैंने देखा कि सामने दरवाजे में से एक कील को निकाला गया था, जिससे एक छेद बन गया था.
उसी छेद में से कोई आंख झांक कर हमें देख रही है.
मैं सन्न रह गया.
दोस्तो, मुझे उम्मीद है कि आपको मेरी ओरल सेक्स की चाहत की सेक्स कहानी पढ़ने में मजा आ रहा होगा.
दरवाजे के छेद से कौन देख रहा था और उसके साथ मैंने क्या किया, इस सबका खुलासा आगे के भागों में होगा. आपके विचारों का स्वागत है.
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ओरल सेक्स की चाहत की कहानी का अगला भाग: नि:संतान पड़ोसन को दी अनहद ख़ुशी- 2
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