मेरी चढ़ती जवानी के रोचक प्रसंग- 2

(Meri Nangi Gand Ki Numaish)

मेरी नंगी गांड की नुमाइश मैंने रात को निर्जन रेलवे स्टेशन के प्लेट फार्म पर मूतने के लिए अपनी लेगिंग और पेंटी नीचे सरका कर की. मुझे मेरे छोटे भाई और रेलवे क्लर्क ने देखा.

कहानी के पहले भाग
छोटे भाई के साथ भीड़ वाले ट्रेन के डिब्बे में
में आपने पढ़ा कि मैं अपने छोटे भाई के साथ ट्रेन से मामा के घर जा रही थी. हम दोनों भाई बहन आपस में खुले हुए थे तो मेरा भी मेरे जवान जिस्म को छू कर मजा ले लिया करता था. ट्रेन में भी उसने मेरी लेगिंग उतार कर मेरी गांड की दरार में लैंड रगड़ कर अपना माल गिराया.

करीब 15 मिनट के बाद हमारा स्टेशन आ गया और हम वहां उतर गए।

अब आगे मेरी नंगी गांड की नुमाइश:

यह कहानी सुनें.

उस स्टेशन पर हम दोनों के अलावा और कोई नहीं उतरा था।

रात के 8.30 बज गए।
प्लेटफार्म पर एकदम घुप्प अँधेरा था।
कोहरे की वजह से 5-10 फुट की दूरी से ज्यादा कुछ दिख नहीं जा रहा था।

स्टेशन के नाम पर थोड़ी दूर एक कमरा दिखाई दे रहा था जो शायद ऑफिस और टिकट घर था।
वहां हल्की रोशनी हो रही थी, बाकी खुला आसमान था।
पूरे प्लेटफार्म पर लाइन से 5-6 पेड़ लगे हुए थे जिनके चारों ओर बैठने के लिए पक्का चबूतरा बना हुआ था।

इसके अलावा 3-3 लोहे की बेंच भी थी।

हम दोनों के अलावा पूरे स्टेशन पर कोई नहीं था, बस एक कुत्ता दिखाई दिया, फिर वो भी अँधेरे में कहीं गुम हो गया।

मैंने सोनू से कहा- मामा ने कहा था कि स्टेशन आने के आधे घंटे पहले बता देना, हमने तो बताया ही नहीं।

सोनू ने कहा- हमें याद ही नहीं रह रहा।
तो मैंने कमेंट करते हुए शरारत से कहा- ध्यान कहीं और था तो भूलोगे ही!
तब सोनू भी हंसते हुए बोला- तुम्हारा ध्यान कहीं और नहीं था तो तुमने फोन कर दिया होगा।

मैंने हंसते हुए कहा- अच्छा झगड़ा छोड़ो और अब फोन कर दो. और गुस्सा करें तो कह देना कि अंधेरे में पता नहीं चला और नेटवर्क भी नहीं मिल रहा था रास्ते में!

सोनू ने मामा को फोन किया.
उधर से मामा गुस्से में आ गये।

फिर उन्होने कहा- ठीक है, तब तक वहां कहीं बैठो, हम आ रहे हैं।

स्टेशन पर सोनू ने बैग उठाया और कहा- आओ ऑफिस में ही चल कर बैठते हैं, वहां तो कोई होगा ही।

फिर हम दोनों धीरे-धीरे ऑफिस की तरफ चल दिये।

वहां पहुंचे तो देखा कि ऑफिस का दरवाजा बंद था मगर कुंडी खुली हुई थी और अंदर रोशनी जल रही थी.
खुली खिड़की से हल्की रोशनी बाहर आ रही थी।

लाइट के नाम ऑफिस के बाहर एक बल्ब लटक रहा था।

कोहरे की वजह बल्ब की रोशनी दूर तक नहीं जा पा रही थी.

वहीं पास में एक बेंच बनी थी।
हमने बेंच पर अपना बैग रखा.

मगर बाहर ठंड लग रही थी तो मैंने सोनू से कहा- चल कर देखते हैं, शायद ऑफिस के अंदर कोई हो।

हम दोनों साथ आए और खिड़की से अंदर झांका तो देखा कि अंदर एक बड़ी सी मेज के पीछे एक आदमी बैठा है जिसकी उम्र करीब 55-58 साल लग रही थी।
वह कोई किताब पढ़ रहा था।

अचानक हम दोनों की निगाह मेज के नीचे चली गई तो हम दोनों ही मुस्कुरा दिए।
दरअसल उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली हुई थी और अपना लंड हाथ में लेकर किताब पढ़ रहा था।
हम समझ गए कि वो कोई अश्लील किताब थी।

यह देख कर मैं हल्का सा शर्मा गई।
मगर मेरी निगाह उसमेज के नीचे दिख रहे नज़ारे से नहीं हट रही थी।
मैंने अभी तक सिर्फ बुक में और नेट पर ही लंड देखा था मगर आज पहली बार असली लंड आंख से देख रही थी।

हालांकी ट्रेन में अभी अपने भाई के लंड का चूत के ऊपर से ही का मजा लिया था।
मगर उसके लंड को ना देखा था और ना ही अपने हाथ से टच किया था।

सोनू ने ये देख लिया कि मेरी निगाह लंड को बड़े गौर से घूर रही है।
तब उसने मेरी गांड पर हल्के हाथ से थपकी दी और धीरे से बोला- क्या देख रही हो दीदी?

मैं एकदम से शर्मा गई और खिड़की से हटकर बेंच के पास आ गई।
सोनू भी मेरे पास आ गया और हम एक-दूसरे को देख कर हल्का सा मुस्कुरा दिये।

अब हमारे बीच की झिझक करीब-करीब खत्म हो चुकी थी इसलिए अब हम आराम से एक दूसरे से बात कर रहे हैं।
सोनू ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा- दीदी यहां बैठेंगे तो हमारी तो कुल्फी जम जाएगी।

मैंने भी हल्का सा मुस्कुरा कर कहा- तो अंदर कैसे जायें, देख नहीं रहे थे तो वह क्या कर रहा था।

तो सोनू ने आंख मारते हुए कहा- तो क्या हुआ, हम भी चल कर देखेंगे. वैसे भी तो तुम बड़े गौर से देख रही थी।
मैं हल्का सा शर्मा गई और फिर मुंह चिढ़ाते हुए कहा- मुझे नहीं जाना है, जाओ तुम्हीं देखो।

सोनू ने कहा- अरे नाराज़ मत हो दीदी. मामा को आने में अभी आधा घण्टा लगेगा, इतनी देर में तो हम जम जाएंगे। मेरा कहना मानो, अंदर चलो।
तब मैंने कहा- ठीक है. पहले तुम आगे चल कर दरवाजा खटखटा लेना, तब अंदर घुसना।
सोनू ने कहा- ठीक है!

और हम बैग उठा कर हमारी तरफ चल दिये।

सोनू ने दरवाजा खटखटाया और फिर हल्का सा धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया।
हमने देखा कि वो आदमी हड़बड़ा गया और तुरंत पैंट ठीक कर खड़ा हो गया।

तभी सोनू और मैं अंदर घुसे और ये नाटक किया कि हमने कुछ देखा ही नहीं है।

उस आदमी की ज़िप अभी भी खुली थी।
सोनू ने कहा- अंकल, हम अभी ट्रेन से आए हैं और हमें लेने घर से लोग आ रहे हैं। बाहर ठंड थी तो सोचा कि यहां बैठ जाएं।

उस आदमी ने पहले तो गुस्से से हम दोनों को देखा फिर कुछ कहने लगा ही था कि उससे पहले मैंने कहा- प्लीज अंकल!
तो वह थोड़ा नर्म हुआ, उसने कहा- ठीक है, बैठ जाओ।

हम टेबल के सामने ही रखी कुर्सी पर बैठ गए और बैग को नीचे रख दिया।
थोड़ी देर हम सभी चुप रहे.

करीब 5 मिनट के बाद उसने पूछा- कहाँ जाना है तुम दोनों को?
सोनू ने गांव का नाम बताया।

उसने कहा कि वहां से आने में तो आधे घंटे से कम नहीं लगेगा और या उससे भी ज्यादा लग जाएगा।
तब मैंने घबराने का नाटक करते हुए कहा- तब तो हमें बहुत देर हो जाएगी।

तब उसने कहा- कोई बात नहीं, तब तक तुम दोनों यहीं बैठो।

मैंने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा- थैंक यू अंकल।

उसने पूछा- बेटा क्या नाम है तुम्हारा?
मैंने कहा- गरिमा अंकल।

मैंने देखा कि वह मुझसे बात करने में कुछ दिलचस्पी ले रहा था।

फिर मैंने जानबूझ कर बात को आगे बढ़ाया, कहा- यह मेरा छोटा भाई है सोनू!
तो उसने कहा- अच्छा तो तुम दोनों भाई-बहन हो।

इस पर सोनू ने हंसते हुए कहा- तो क्या अंकल आप हम दोनों को गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड समझ रहे हैं?
तो वह हंसने लगा और कहा- आजकल का क्या भरोसा है, लोग मौका पड़ने पर जीएफ को भी बहन बता देते हैं।

इस पर हम तीनों ही हंसने लगे.

सोनू ने पूछा- अंकल, आप क्या करते हैं यहां?
तो उसने कहा- मैं बाबू हूं.

मैंने कहा- आप रात में ड्यूटी करते हो क्या?
तो उसने कहा- हां कभी-कभी रात में ड्यूटी करता हूं।

सोनू ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा- आप अकेले बोर नहीं होते हो?
तब उसने कहा- नहीं … क्या करूं, नौकरी लेनी पड़ती है।

अचानक सोनू ने उसके सामने से वो किताब उठाते हुए कहा- ये कौन सी किताब है, देखूं तो!
इतने में अंकल हड़बड़ा गए.

मगर जब तक वो कुछ करते सोनू ने किताब उठा ली थी।
जैसे ही सोनू ने किताब खोली तो देखा कि अंदर नंगे लड़के और लड़कियों की चुदाई करते हुए फोटो थी।

सोनू ने किताब देखते हुए कहा- वाह अंकल, आप तो बड़ी अच्छी किताब पढ़ते हो।

मैंने देखा कि अंकल बुरी तरह शर्मा गए थे।
ऐसा लगा जैसे उनकी चोरी पकड़ ली गई हो।

सोनू जानबूझ कर बदमाशी कर रहा था।

इधर मैंने भी एक बार तो अंकल का लंड देखा.
अब अंकल किताब देख कर दोबारा गर्म होने लगे थे।

मैंने सोनू को हल्का सा डांटते हुए कहा- सोनू, अंकल की किताब वापस करो।
इस पर सोनू शरारत से आंख मारते हुए बोला- अंकल तो गुस्सा नहीं कर रहे, फिर तुम्हें क्यों गुस्सा आ रहा है दीदी?

फिर उसने पलट कर अंकल से कहा- अंकल, मैं थोड़ी देर देख लूं।
उन्होंने हंसते हुए कहा- अरे देख लो बेटा!

इस पर हम तीनों हंस दिये।

तभी सोनू ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा- अरे दीदी, तुम भी देख लो, मैं घर पर नहीं बताऊंगा।

यह कह कर किताब खोल कर उसने मुझे दे दी।

मैं हल्का सा शर्मा गई और सोनू को थप्पड़ मारते हुए कहा- सोनू, तुम बहुत बदतमीज होते जा रहे हो।
इस पर अंकल हंसते हुए मुझसे बोले- अरे देख लो बेटा, यही तो उमर है ये सब देखने की! और इतना अच्छा भाई कहां मिलेगा जो घर पर बताएगा भी नहीं।

अंकल अब एकदम खुलकर बात करने लगे थे।

मैंने गुस्साने का नाटक करते हुए किताब सोनू को देते हुए कहा- लो तुम देखो, मुझे नहीं देखना है।
जिस पर वो दोनों हंस दिये।

मैंने सोनू के लोअर का अगला हिस्सा उभरे हुए देख लिया था.
मैं समझ गई थी कि उसका लण्ड भी खड़ा हो रहा है।

उधर अंकल ने भी एक बार अपना हाथ नीचे ले जाकर अपने लण्ड को पैंट के उपर से एडजस्ट कर लिया।
इधर मेरी चूत भी गीली हो रही थी.

सोनू ने मुझे अपने लंड की तरफ देखते हुए देख लिया था और निगाहें मिलने पर हम दोनों मुस्कुरा दिये।

मैं एक बार फ़िर लंड देखना चाह रही थी.
मैं जान रही थी कि आज मुझे दो-दो लंड देखने का मौका है।
मगर कैसे देखूँ, ये समझ में नहीं आ रहा था।

हम लोगों को बात करते हुए 15 मिनट हो गए थे.
मैंने सोनू से कहा था कि मामा को फोन कर पूछो कि वे कब तक आएंगे क्योंकि मैं कन्फर्म करना चाहती थी कि उनको आने में कितना वक्त लगेगा।

सोनू ने फोन कर मामा से बात की।
फिर फोन रख कर मुझसे बोला- उन्हें आने में अभी आधे घंटे से ज्यादा लग जाएगा क्योंकि जिस बाइक से वे आ रहे थे, वो पंचर हो गई है। अब दूसरी बाइक लेकर आएंगे।

मुझे तो मानो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो।
मैं खुद भी यही चाह रही थी कि उन्हें आने में देर हो जाए।

उधर यह सुन कर अंकल और सोनू दोनों के चेहरे भी खिल गए।
यानि अब हम तीनों ही मजे लेना चाह रहे थे।

मगर मैंने मायूसी का नाटक करते हुए कहा- ओह, तब तो बहुत देर हो जाएगी।
इस पर अंकल बोले- कोई बात नहीं, तब तक आराम से यहां बैठो और बातें करो।

अब मेरे दिमाग में तेजी से सोच रहा था कि क्या करें.
अचानक मेरे दिमाग में एक आइडिया आया।

मैंने अंकल से पूछा- अंकल, यहां टॉयलेट किधर है, मुझे जाना है।
जबकि मुझे पता था कि वहां कोई टॉयलेट नहीं है।

अंकल बोले- बेटा, यहां तो कोई टॉयलेट नहीं है। तुम्हें बाहर कहेल में ही करना पड़ेगा।
मैंने नखरा दिखाते हुए कहा- ना बाबा ना … खुले में कैसे करूंगी।

इस पर सोनू ने कहा- क्या हुआ दीदी, बाहर अँधेरे में कर लो।
मैंने कहा- नहीं अँधेरे में कैसे अकेली जाऊँगी, मुझे डर लग रहा है।

तब अंकल ने कहा- कोई बात नहीं बेटा, हम लोग हैं ना. चलो हम तुम्हारे साथ बाहर चलते हैं।
इस पर सोनू ने कहा- क्यों नहीं, चलो हम भी साथ चल रहे हैं।

फिर हम तीनों बाहर आ गये.
बाहर एकदम गुप अँधेरा और सन्नाटा पसरा था।

मैंने कहा- आप दोनों यहीं रहियेगा, मैं आ रही हूं.

और फिर मैं बेंच की तरफ बढ़ गई क्योंकि बाहर लगे बल्ब की रोशनी बेंच जा रही थी।

जानबूझ कर मैं रोशनी में पेशाब करना चाह रही थी ताकि मैं इन्हें अपनी गांड का दिखा सकूं।

बेंच के पास पहुंच कर मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो दोनों खड़े मुझे देख रहे थे।
मैंने कहा- प्लीज़ जाइयेगा मत!
दोनों ने कहा- ठीक है।

फिर मैंने अपनी लेगिंग और पैंटी को नीचे तक खिसका दिया और कुर्ती को पीछे से पूरा कमर तक उठा दिया और जानबूझकर बैठने में थोड़ा टाइम लिया ताकि ये दोनों मेरी गोरी-गोरी गांड देख सकें।

और फिर धीरे से बैठ कर पेशाब करने लगी, साथ में मेरी नंगी गांड की नुमाइश करने लगी।
मेरे पेशाब करने में छरछराहट की आवाज भी रात के सन्नाटे में गूँज रही थी।

पेशाब करने के बाद मैं खड़ी हो गई और एक बार फिर लेगिंग ऊपर करने में थोड़ा समय लिया ताकि एक बार और सोनू और अंकल मेरी गांड देख सकें।

फिर से दोनों के पास वापस आयी।

मैंने देखा कि भाई का लंड नीचे के अंदर पूरा तरह खड़ा है।
उधर पैंट के ऊपर से साफ पता चल रहा था कि अंकल का लंड भी खड़ा है।

मैंने सोनू से कहा- तुम्हें भी पेशाब करना है तो कर लो।
इस पर सोनू ने मुस्कुराते हुए कहा- हां दीदी, तुम्हें पेशाब करती देख कर मुझे भी लग गई है।

कहकर वह भी उसी तरफ चला गया.
तब तक अंकल ने कहा- मुझे भी लगी है, मैं भी कर लेता हूं।

अंकल और सोनू पास ही खड़े होकर पेशाब करने लगे।
उन दोनों की पीठ मेरी तरफ थी।

पेशाब करने के बाद अंकल का लंड हिलाते हुए मेरी तरफ घूम गए और लंड को पैंट के अंदर करने की कोशिश करने लगे।
उनका लंड अभी पैंट के बाहर था ही और लगभग खड़ा था जिसे वे पैंट के अंदर डालने की कोशिश कर रहे थे।

मैं समझ गई थी कि वे जानबूझकर अपना लंड मुझे दिखा रहे हैं।
तो मैं भी आंखें फाड़े उनका लंड देख रही थी।

तभी सोनू भी पेशाब करके मुड़ा और उसने भी अपना लंड अंदर नहीं किया था।
मैंने देखा कि उसका लंड भी खड़ा था।
मगर सोनू का लंड अंकल के लंड जितना बड़ा नहीं था।

सोनू देख रहा था कि मैं आंखें फाड़े दोनों के लंड को देख रही हूं।

अंकल अपना लंड पैंट के अंदर डालने ही वाले थे कि सोनू ने कहा- क्या अंकल, आपका लंड कितना बड़ा है।
सोनू के मुँह से लंड शब्द सुन कर मैं हल्का मुस्कुरा दी।

उधर अंकल को तो जैसी इसी बात का इंतज़ार था, वे अपने लंड को पैंट के अंदर डालते-डालते रुक गए।
मैं समझ रही थी कि सोनू और अंकल दोनों अब खुलकर मजे लेना चाह रहे हैं।

रात के सन्नाटे में मेरी आंखों के सामने खड़े दो-दो लंड ने माहौल को सेक्सी बना दिया था।

मेरी चूत से भी पानी निकल कर मेरी पैंटी को हल्का-हल्का गीला कर रहा था इसलिए मैंने भी शर्म लाज छोड़ कर मजे लेने का मूड आ चुकी थी।

प्रिय पाठको, मेरी कहानी में आपको मजा आ रहा होगा.
आप मुझे कमेंट्स में अपने विचार बताएं.

मेरी नंगी गांड की नुमाइश की कहानी का अगला भाग: मेरी चढ़ती जवानी के रोचक प्रसंग- 3

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