माँ का यार, मेरा प्यार-1

(Maa Ka Yaar, Mera Pyar- Part 1)

दोस्तो, मैं आपकी सहेली ऋतु वर्मा, आज आपको अपने दूसरे सेक्स एक्सपीरिएन्स के बारे में बताती हूँ।
मेरी पहली कहानी
चुदने को बेताब मेरी प्यासी जवानी
में आपने पढ़ा के कैसे अपने बॉय फ्रेंड के सेक्स में आसफल रहने पर मुझे मेरे ही बॉयफ्रेंड के दोस्त ने सेक्स की ऑफर की. जिसे मैं ठुकरा न सकी और मेरे बॉय फ्रेंड के दोस्त ने मुझे जम कर पेला और मेरी जवानी की आग को ठंडा किया।

उसके बाद भी मैं उस से कई बार मिली, साफ शब्दों में कहा जाए तो चुदी। क्योंकि दोनों जवान थे, दोनों के आग पूरी तरह लगी हुई थी, तो हम जब भी मिलते सिर्फ सेक्स के लिए मिलते।

मगर उसके पापा आर्मी में अफसर थे, तो उनका तबादला हो गया, और वो हमारा कॉलेज छोड़ कर चला गया।

उसके बाद मेरे बॉयफ्रेंड ने मुझ पर दोबारा लाइन मारी, और उसने तो कहा भी- अब तो अभिषेक चला गया, क्यों न हम अपने प्यार को दोबारा से एक नए सिरे से शुरुआत करें?
पहले तो मैं उसे अनदेखा करती रही, मगर जब वो ज़्यादा ही सर चढ़ने लगा और मुझे मजबूर करने लगा तो मुझे दुखी हो कर उसे कहना पड़ा- यार, तुमसे होता तो कुछ है नहीं, लड़की संभालना तुम्हारे बस का नहीं है, तुम मुझे तो रहने ही दो, किसी और को पटा लो।

जब उसने देखा कि मैं उसको भाव नहीं दे रही हूँ तो उसने मेरा पीछा छोड़ दिया।

मगर कुछ दिन बाद जब मुझे फिर से अपने लिए या सच कहूँ तो अपनी वासनापूर्ति के लिए एक बॉयफ्रेंड की जरूरत पड़ी, तो मुझे बड़ी दिक्कत हुई। साला कोई मुझ पर लाइन ही नहीं मारता था, देखते सब थे, बातें भी बहुत सारे करते थे, मगर मैं जो चाहती थी, वो मुझे नहीं मिल रहा था।

इसी वजह से मैं थोड़ी चिड़चिड़ी सी हो गई। करीब करीब रोज़ रात को हाथ से करती, कभी पेन, कभी टूथब्रश, कभी हेअर ब्रुश, गाजर मूली और पता नहीं क्या क्या मैंने अपनी चूत में लिया मगर वो मज़ा नहीं आ रहा था जो मुझे चाहिए था। लंड का काम तो लंड ही कर सकता है ना!

वक्त बीतता गया, सुबह कॉलेज जाओ, शाम को ट्यूशन … रात को माँ के साथ किचन में।
साली बहुत ही बेकार लाइफ थी।

हाँ ट्यूशन से याद आया, मुझे मेरे सबजेक्ट्स की ट्यूशन पढ़ाने के लिए अरविंद सर हमारे घर आते थे। हमारे पड़ोसी थे, पापा के अच्छे दोस्त थे। हमारे उनके साथ घर जैसे रिश्ते थे। मैं भी अक्सर उनके घर जाती रहती थी, उनकी बीवी के साथ बातें करना, उनके बच्चों के साथ खेलना।
मतलब मुझे लगता ही नहीं था कि वो मेरे ट्यूशन टीचर हैं। ऐसे लगता था जैसे मैं अपने बड़े भाई से, या अपने किसी चाचा से या मामा से ही पढ़ रही हूँ।

मगर कभी कभी ऐसा भी हो जाता है, जो आपने सोचा नहीं होता! और यह अनहोनी आपकी ज़िंदगी बदल देती है।

मेरी ज़िंदगी में जो अनहोनी हुई, वो ये हुई कि मैं अपने दोस्तों के साथ मूवी देखने गई थी। मगर जब हम लोग सिनेमा पहुंचे तो देखा के वहाँ तो हाउस फुल था, उस शो के टिकेट हमें नहीं मिले। तो सब दोस्तों ने पहले रेस्तरां में बैठ कर बर्गर खाये, उसके बाद थोड़ी देर इधर उधर घूम कर अगले हफ्ते का प्रोग्राम फिक्स करके अपने अपने घर को चले गए।

मैं भी अपने घर वापिस आई।

घर में आई तो देखा कि घर में कोई नहीं है, गैस पर सब्जी चढ़ी है, मतलब मम्मी खाना बना रही थी.
मगर मैंने देखा तो घर में मम्मी कहीं नहीं दिखी। मैंने सोचा कि लगता है कोई चीज़ कम पड़ गई होगी तो मम्मी अरविंद सर के घर लेने गई होगी। तो मैं भी अरविंद सर घर चली गई।
हम दोनों के घर साथ साथ थे और आपस में जुड़े हुये थे तो एक दूसरे के घर आने जाने के लिए हम गेट का कम छोटी सी दीवार फांदने का इस्तेमाल ज़्यादा करते थे।

तो मैंने भी वो छोटी से दीवार फाँदी और अरविंद सर के घर में घुस गई। मगर घर में मुझे आंटी नहीं दिखी, अरविंद सर नहीं दिखे। सारा घर खाली!
मुझे बड़ी हैरानी हुई कि दोनों घर बिल्कुल खाली … आखिर सब के सब कहाँ गए।

ढूंढते ढूंढते मैं अरविंद सर के घर के पीछे वाले बरामदे में गई तो वहाँ तो मैंने जो मंज़र देखा, मैं तो सन्न रह गई।

पीछे वाले बरामदे में एक पुराने से पलंग के पास अरविंद सर खड़े थे, पेंट की ज़िप खोल कर अपना लंड उन्होंने बाहर निकाल रखा था … और मेरी माँ नीचे बैठी उनका लंड चूस रही थी।
“हे भगवान, ये क्या अनर्थ हो रहा है!” मैं तो जल भुन गई।
ज़्यादा इस बात से कि अरविंद सर का मस्त लंड माँ चूस रही थी।

मुझे तो इतना गुस्सा आया कि मैं तो चुपचाप वहाँ से वापिस आ गई। मैंने किसी को यह बात ज़ाहिर होने दी कि मैंने अरविंद सर और माँ के नाजायज रिश्ते का सच जान लिया है।

यह बात अलग है कि जब मेरा गुस्सा ठंडा हुआ तो मैंने बाथरूम में जा कर अरविंद सर और खुद के बारे में सोच कर हाथ से किया।

वैसे तो अरविंद सर देखने में अच्छे हैंडसम आदमी हैं, मैं उन्हें पसंद भी बहुत करती थी. हाँ कभी उनसे सेक्स के बारे में नहीं सोचा था क्योंकि मुझसे वो काफी बड़े थे। मगर माँ को क्या ज़रूरत
आ पड़ी। पापा भी तो माँ की हर ज़रूरत की पूर्ति करते ही होंगे, या फिर अरविंद सर ने माँ को पटा लिया।

पर अगर वो चाहते तो मुझे भी पटा सकते थे. कहाँ एक 24 साल जवान लड़की, और कहाँ एक 45 साल की औरत। अब क्योंकि मैंने तो अपनी माँ को कई बार कपड़े बदलते और वैसे भी नंगी देखा है, बेशक वो मुझसे भी ज़्यादा तंदरुस्त हैं, मुझसे भी ज़्यादा भरवां जिस्म है उनका, मगर लड़की और औरत में फर्क तो होता ही है। या हो सकता है कि अरविंद सर को पके हुये आम चूसने ज़्यादा पसंद हों।

खैर जो हो गया, सो हो गया! अब अगर माँ इतने आराम से बैठी अरविंद सर का लंड चूस रही थी तो साफ बात है अरविंद सर ने माँ को छोड़ा तो नहीं होगा, चुदाई तो वो कर ही चुके होंगे।

उसके बाद सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था कि एक दिन अरविंद सर ने फोन करके मुझे अपने घर बुलाया।
मैं उनके घर गई, तो वो अपने लैपटाप पे कुछ काम कर रहे थे।

मैं जाकर बड़ी बेतकल्लुफ़ी से उनके सामने बैठ गई। कुछ देर बाद उन्होंने अपने लैपटाप से नजर उठाई और मेरी तरफ देख कर बोले- अरे तुम कब आई, पता ही नहीं चला?
मैंने कहा- मैं तो कब से आई सर, आपने ध्यान नहीं दिया।
वो बोले- हाँ मुझे ध्यान देना चाहिए था, एक छोटी सी गलती कभी कभी खतरनाक हो सकती है।

मुझे कुछ कुछ समझ तो आने लगा था मगर मैंने फिर भी पूछा- क्या गलती सर?
उन्होंने अपना चश्मा उतारा और बोले- देखो ऋतु, मैं तुमसे एक ज़रूरी बात करना चाहता हूँ। मगर ये बात हम दोनों के बीच में ही रहनी चाहिए।
मैंने कहा- ठीक है सर।
उन्होंने अपना हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया और बोले- प्रोमिस।
मैंने भी हाथ मिला कर कह दिया- प्रोमिस।

वो बोले- तो एक बात बताना सच सच?
मैंने सर हिलाया।
वो बोले- ऋतु, क्या उस दिन तुम मेरे घर आई थी।

मैं समझ गई कि सर को पता चल चुका है, तो मैंने अपनी सभी तरह की भावनाओं को दबाते हुये कहा- जी सर।
उन्होंने पूछा- तो तुमने क्या कुछ देखा?
मैंने फिर हाँ में सर हिलाया।
“क्या देखा?” सर ने पूछा।

अब मैं क्या बताती कि सर मैंने अपनी माँ को आपका लंड चूसते देखा है। नहीं न … तो मैं चुप ही रही और सर झुका कर बैठ गई।

सर बोले- ऋतु, तुम अब बड़ी हो गई हो, मैं समझता हूँ कि तुम अब समझती हो तो मुझे तुम्हें सब कुछ बता देना चाहिए।

मैं चुप रही तो उन्होंने आगे कहना शुरू किया- दरअसल ये सब सिलसिला पिछले साल शुरू हुआ था, मैं नहीं जानता क्यूँ शुरू हुआ। बस उस दिन तुम्हारी माँ हमारे घर खीर देने आई थी और तुम्हारी आंटी 4-5 दिन अपने मायके गई हुई थी. तो घर में अकेला होने की वजह से मैं खुद से ही खेल रहा था कि अचानक सामने से तुम्हारी माँ आ गई। और ना जाने ये सब कैसे हुआ, मगर अगले ही पल उसका सर मेरी गोद में था और वो दीवानों की तरह मुझे खा गई। मैंने भी उसे नहीं रोका. जब हमारा जोश ठंडा हुआ तो हम वो सब कुछ कर चुके थे जो हमारे बीच नहीं होना चाहिए
था।

सर चुप हुये तो मैंने कहा- सर, मैंने तो आपसे कोई सफाई नहीं मांगी।
वो बोले- मैं तुम्हें सफाई नहीं दे रहा … मगर मैं नहीं चाहता कि तुम मुझे या अपनी माँ को गलत समझो, बस कभी कभी न चाहते हुये भी कुछ बातें हो जाया करती हैं।

मैंने कहा- मानती हूँ सर … कि कभी कभी कुछ बातें हो जाया करती हैं, मगर क्या यह ज़रूरी है कि जो गलती एक बार हो गई, उसे बार बार दोहराया जाए?
वो बोले- तुम ठीक कहती हो. मगर दिक्कत यह है कि माफ करना … मुझे ये बात कहनी पड़ रही है, मगर तुम्हारी माँ तुम्हारे पापा से खुश नहीं है। अब जब हम दोनों एक दूसरे के बहुत करीब आ चुके हैं, तो मुझे उसने बताया कि वर्मा जी तो 2-3 मिनट मुश्किल से टिक पाते हैं।

जब मैंने यह सुना तो मुझे माँ की हालत अपने जैसे लगी। कैसे मैं भी अपने बॉयफ्रेंड से असंतुष्ट रहने के बाद किसी और के नीचे लेट गई थी. तो अगर माँ ने अपनी संतुष्टि किसी गैर मर्द में ढूँढी तो क्या गलत किया।
मुझे तो लगा के माँ ने जो किया, सही किया।

मगर उस दिन के बाद मेरे और अरविंद सर के रिश्ते और भी मधुर हो गए। मैं उन्हें बिल्कुल अपने पापा की तरह ही प्यार करने लगी, उनसे ज़िद करके चीज़ें मांग लेती, अपनी माँ से भी मेरा लगाव और बढ़ गया।
शायद अरविंद सर ने माँ को बता दिया होगा कि ऋतु ने हमें देख लिया था और अब वो भी इस रिश्ते से नाराज़ नहीं है, बल्कि खुश है।

माँ भी मुझे बहुत प्यार करने लगी।

ऐसे ही चलता रहा, अरविंद सर और मैं एक दूसरे को खूब प्यार करते, मैं अक्सर बेटी की तरह उनसे चिपक जाती, उनसे बेटी की तरह ही प्यार करती, हालांकि हम दोनों ने कभी एक दूसरे को बाप या बेटी वाले नामों से बुलाया था, मैं उनको सर और वो मुझे ऋतु ही कहते।
मगर फिर भी एक गहरा और प्यारा रिश्ता हम दोनों के बीच में बन गया था।

कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग: माँ का यार, मेरा प्यार-2

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