जोधपुर की यात्रा-3
जोधपुर की यात्रा-1
जोधपुर की यात्रा-2
अब अनवर बोला- मैडम, मुझसे नहीं रुका जाता ! अब बस मुझे अपनी चूत के दर्शन करने दो !
मैंने खड़े होते हुए कहा- तुम्हें किसने रोका है ? दिखा अपना बल ! तुमने ही तो कहा था कि देखते हैं कौन नाजुक है और कौन कठोर !
और मैं रेत के टीले पर लेट गई। रेत काफी बारीक़ होता है इसलिए उस पर गद्दे जैसा एहसास हो रहा था। लेटते वक़्त मैंने अपनी टांगें चौड़ा दी तो दोनों मेरी चूत चोदने के लिए लड़ने लगे।
तब मैंने मंगत से कहा- पहले अनवर को करने दो ! उसका लिंग तुमसे कमजोर है ! अगर तुम पहले कर लोगे तो मेरा योनि-द्वार चौड़ा हो जायेगा और फिर अनवर को मजा नहीं आएगा।
यह सुनकर मंगत छोटे बच्चे की तरह मेरी बात मान गया और मेरी चूचियों की पहले की तरह चुसाई करने लगा, उन्हें भींचने लगा और मैंने भी उसका लिंग हाथ में ले लिया और उसे सहलाने लगी।
अनवर ने अपना मुँह मेरी योनि पर से हटाया और अपना लिंग मेरी योनि पर रख कर धक्का लगा दिया।
क्योंकि योनि चाटने की वजह से गीली हो गई थी इसलिए लिंग आसानी से अंदर चला गया और अनवर ने चोदना शुरू कर दिया। उसने धक्के तेज कर रखे थे और मेरे जिस्म को मसल रहा था। उसके हर धक्के का जवाब मैं भी दे रही थी। उसकी गजब की फुर्ती देख मुझे आश्चर्य हो रहा था। इतनी जोर से चोदने के बाद भी वो बीस मिनट बाद झड़ा और पूछने लगा- सोनिया, मैं गया ! बोलो क्या करूँ? मैंने कहा- बाहर निकाल कर झाड़ना !
उसने वैसा ही किया। उसके हटते ही तुरंत मंगत ने अपनी जगह ले ली।उधर अनवर नीचे मेरे बराबर में आकर लेट गया। मुझे देख कर खुश होकर बोला- मजा आ गया ! और तुम्हें?
मैंने कहा- मुझे भी ! पहली बार लगातार अपनी चूत में इतनी देर तक लण्ड से चुदाई करवाई है, और पहली बार लगातार चुदाई में दो बार झड़ी हूँ !
उधर मंगत ने मेरी योनि चाटनी छोड़ लण्ड को मेरी योनि पर टिका दिया।
मैंने मंगत से कहा- ज़रा धीरे डालना ! पहली बार इतना बड़ा लण्ड अपनी योनि में लूंगी ! थोड़ा रहम करना मंगत जी !
वो बोला- मैडम, आप घबरायें नहीं ! आप जैसे नाजुक फूल को कुचलूंगा नहीं बल्कि प्यार से सहलाऊंगा !
यह कहते हुए उसने अपने लिंग पर दबाव देना शुरू कर दिया और धीरे धीरे उसका लिंग मेरी योनि में घुसने लगा।
मेरा डर बिलकुल सही था, उसका तगड़ा लण्ड मेरी योनि को चीर रहा था, बस थोड़ा साथ मेरी भीगी हुई योनि दे रही थी। पर मैंने मुँह से आह तक नहीं निकाली और अपनी योनि को मजबूत बनाते हुए मंगत के लिंग को निगलने लगी।
दो मिनट के अन्दर ही उसका पूरा लिंग मेरी योनि में था।
मेरे माथे पर पसीना देख अनवर बोला- देखा, आ गया न पसीना !मैंने कहा- यह तो गरम रेत की वजह से है ! तुम दोनों के लण्ड की वजह से नहीं ! चाहो तो तुम भी संग में आ जाओ !
यह कह कर मैं थोड़ा अपनी बड़े बोल पर पछताने लगी।
तो अनवर ने कहा- तो ठीक ! लो मेरा लौड़ा चूसो ! उसके बाद देखते हैं कि तुम हमारे लण्ड का लोहा कब तक न मानोगी !
यह कहकर उसने अपना लिंग मेरे मुँह में डाल दिया।
मरती क्या न करती ! मैंने भी उसके अहम् को चुनौती देते हुए उसका लिंग चूसना शुरू कर दिया। उधर मंगत ने अपने शब्दों के अनुसार मेरी नाजुक योनि को धीरे-2 अपने विशाल लिंग से सहलाना शुरू कर दिया और थोड़ी देर बाद मेरा दर्द कम होने के बाद मैंने उससे खुद कहा- मंगत जी, अपनी स्पीड बढ़ायें ! बस इतनी ही जान है क्या तुम्हारे लण्ड में?
यह सुनकर मंगत जी ने जो तूफानी चुदाई चालू की मेरी ! वो रात मुझे जन्नत लगने लगी !
जब मंगत जी का लिंग बाहर आता और अंदर जाता, बस उस ही तरह मेरी सांस भी ऊपर नीचे होती जिससे मेरी चूचियाँ, जो चाँद की रोशनी में मादक शराब की बोतलें लग रही थी, चमक रही थी जो मंगत के मुँह से गीली हो रही थी। उधर अनवर ने मेरे मुँह में से अपना लिंग निकाल हवा में लहरा दिया जिस पर चाँद की रोशनी पड़ रही थी और उसका लिंग पहले से कही ज्यादा मोटा और लम्बा लग रहा था।
मंगत जी को भी चुदाई करते हुए आधा घंटा हो गया था पर वो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे। तभी मंगत जी मेरे ऊपर से हटे और अनवर बोला- मैडम, अब आप दोहरी चुदाई के लिए तैयार हो जायें।
जिसे सुनकर मैं ख़ुशी से पागल हो उठी। नीचे मंगत जी लेट गए और मैं उनके ऊपर बैठ गई और उनका लिंग अपनी योनि में एक ही झटके में सटक गई। पीछे से अनवर ने मेरे योनि-रस से मेरी गांड को गीला किया। मुझे कोई डर नहीं था कि वो मेरी गांड मारेगा क्योंकि मेरे पति मेरी चूत कम गांड ज्यादा मारते हैं।
तो मैंने भी जोश में आ कर कह दिया- क्या हुआ अनवर ? गांड में ऊँगली नहीं लण्ड डालो !
यह सुनकर अनवर हैरान हो गया और बोला- सोनिया, तुम्हें डर नहीं लगता कि मैं तुम्हारी गांड मारूंगा ?
तो मैंने कहा- बात करना बंद करो और काम चालू करो !
उसे क्या पता था कि मैं एक नंबर की गंड-मरी हूँ ! और उसने यह सुनते ही अपना लिंग मेरी भरी हुई गांड में डाल दिया। मैंने बिना ऊफ किये ही उसका पूरा लिंग अपनी गांड में ठूंस लिया। यह देख अनवर मुझसे कहने लगा- वाह, क्या औरत है तू ? मैंने आज तक ऐसी हिम्मत वाली औरत नहीं देखी जो बिना ऊफ तक किये लण्ड पूरा अपनी गांड में ले जाए !
उधर मंगत नीचे से धक्के मार रहा था, इधर अनवर ने भी अपने धक्के बढ़ा दिए। मेरी दोहरी चुदाई हो रही थी, जीवन में पहली बार दो लिंग एक साथ लेकर में स्वर्ग की अनुभूति कर रही थी। दोनों के लिंग एक साथ अंदर जाते और एक साथ बाहर आते ये अहसास मेरी योनि और गुदा दोनों को अच्छा घर्षण और गर्मी दे रहा था और उस सुनसान जगह में सिर्फ हम तीनों की सिसकारियाँ गूंज रही थी।
धीरे धीरे दोनों ने अपने अपने धक्के तेज कर दिए जिस वजह से मेरी योनि लगातार रज की बारिश करने लगी और साथ साथ वो दोनों भी अपना लिंग रस मेरे ऊपर बरसाने लगे।
थोड़ी देर रेत पर पड़े रहने के बाद मैंने अपने कपड़े पहने और जाकर जीप में बैठ गई और वो दोनों मुझे धन्यवाद भरी आँखों से देखते हुए जीप में बैठ गए।
घड़ी में देखा तो नौ बज रहे थे। तब मुझे याद आया कि घर पर मेरा बेटा अकेला है। उन दोनों की चुदाई में इतना मस्त थी कि सब कुछ भूल गई।
खैर बात करते-2 कब नींद आई और कब मैं जयपुर पहुंची, पता ही नहीं चला।
समाप्त
1392
What did you think of this story??
Comments