जोधपुर की यात्रा-2

जोधपुर की यात्रा-1

तो अनवर ने मुझसे कहा- वो तो ठीक है, लेकिन आपको जाना कहाँ है?

तो मैंने कहा- जहाँ पहले तुम गए थे !

यह सुनकर वो हंस दिया और मुझे गाड़ी के पीछे ना ले जाकर गाड़ी के आगे ले गया जैसा कि मैं भी चाहती थी। ताकि ये दोनों मुझे नग्न अवस्था में देख सकें !

मैंने अनवर से कहा- आप पीछे मुँह करके खड़े हो जाये !

हालाँकि मुझे पता था कि ऐसा नामुमकिन है। मैंने अपनी साड़ी ऊपर की और कच्छी नीचे करके बैठ गई।

मैंने अपना मुँह गाड़ी के विपरीत कर रखा था जिससे जाहिर है मेरी गांड उन दोनों को जरूर दिख रही होगी। बिना मूते ही मैं उठ गई क्योंकि मुझे मूत आ ही नहीं रहा था। वो तो सिर्फ उन्हें रिझाने का बहाना था।

मैं और अनवर गाड़ी में आ कर बैठ गए। अनवर और मंगतराम जो कि मेरी गांड के दर्शन कर चुके थे, मुझे देख रहे थे और मुस्कुरा रहे थे तो उन्हें देख कर मैं भी मुस्कुरा दी।

थोड़ी दूर चलते ही अनवर बोला- मैडम, एक बात कहूं तो आप बुरा तो नहीं मानोगी?

मैंने कहा- कहो क्या कहना है, मैं बुरा नहीं मानूंगी !

वो बोला- मैडम, आप बहुत सुंदर और नाजुक हैं !

मैं यह सुनकर अपने आप पर गर्व करने लगी और आग में घी डालते हुए मैंने कहा- मैं सुंदर हूँ, यह बात तो ठीक है, लेकिन नाजुक हूँ, यह तुम कैसे कह सकते हो ?

तो मंगतराम भी बोला- हाँ, अनवर जी ! आप ठीक कहते हैं कि सोनिया जी सुंदर भी हैं और नाजुक भी !

मैंने कहा- आप दोनों कैसे कह सकते हैं?

अब मैं मन में खुश हो रही थी क्योंकि अब मेरी चुदाई अब ज्यादा दूर नहीं थी।

तभी अनवर बोला- मैडम, बहुत सारी औरतों को मैंने अपने नीचे निकाला है, माफ कीजियेगा !

कह कर वो चुप हो गया और थोड़ी देर बाद बोला- मैंने अभी थोड़ी देर पहले ही आपको देखा है, आपकी नाजुक मेरा मतलब आपका शरीर बहुत नाजुक दिखता है !

तब मैंने मंगतराम से पूछा- और आप कैसे कह सकते हैं यह बात ?

तो मंगत बोला- मैंने आप जैसी खूबसूरत औरत आज तक नहीं देखी अगर ………….

कह कर वो चुप हो गया लेकिन मैं उसका इरादा जानती थी कि वो क्या कहना चाहता है।

तभी मैंने भी कहा- मैं भी अंदाजा लगा सकती हूँ कि तुम दोनों भी नाजुक हो !

यह मैंने उन्हें भड़काने के लिए कहा था ताकि वो मुझ पर हैवान की तरह टूट पड़ें और बिल्कुल वैसा ही हुआ।

अनवर ने गाड़ी सड़क से एक तरफ़ लगा दी और मुझसे बोला- मैडम, आप बाहर आएँ !

और मुझे रेत के टीले और झाड़ियों के पास मेरा हाथ पकड़ कर ले गया। मेरा दिल ख़ुशी के मारे जोर से धड़कने लगा जिससे मेरी चूचियाँ ऊपर नीचे होने लगी, जिसे मंगतराम देख रहा था और देखते ही समझ गया कि मेरे मन में क्या चल रहा है।

वो भी एक नंबर का चोदू था। अब मंगत भी गाड़ी से बाहर आ गया और अनवर भी मेरे पीछे-2 आ गया। अनवर ने कहा- मैडम, अभी आप को पता लग जाएगा कि कौन कितना नाजुक है !

और यह कहकर उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया। मैं दिखाने के लिए नाटक करने लगी- छोड़ो मुझे ! प्लीज़ मुझे छोड़ो !

तभी मंगतराम ने भी मुझे पीछे से जकड़ लिया। मैं उसके खड़े हुए लिंग को अपनी गांड पर महसूस कर रही थी और उधर अनवर का लिंग भी मेरी योनि पर दस्तक दे रहा था जिससे मेरी योनि ने भी पानी छोड़ना चालू कर दिया।

दोनों ने मुझ पर चुम्बन की बरसात करनी चालू कर दी। मैंने भी बिना झिझक अनवर के लिंग को अपने हाथ में लिया और दूसरे हाथ से मंगतराम का लिंग अपने हाथ में लिया और कपड़ों के ऊपर से ही दोनों के लिंग एक साथ दबाने लगी। दोनों के लिंग बलिष्ठ थे लेकिन मंगत का लिंग ज्यादा तगड़ा था। तभी मंगत ने पीछे से मेरी साड़ी उठाई और मेरी पेंटी नीचे करके मेरी योनि में ऊँगली डाल दी। मंगत की ऊँगली भी एक तीन इंच के लंड से कम न थी, जिसे अपनी योनि में लेते ही में उछल पड़ी।

तो मंगत बोला- अभी से ही उछल गई? यह तो सिर्फ मेरी ऊँगली है, अभी तो मेरा लंड बाकी है !

यह कहकर उसने अपनी धोती साइड में करके अपना लिंग मेरे हाथ में दे दिया उसका लिंग देख कर मेरी मन की मुराद पूरी हो गई उसका लिंग कम से कम आठ इंच का तो था ही और तीन इंच मोटा होगा।

मैं मंगत के लिंग को हाथ में लेकर सहलाने लगी। उधर अनवर मेरी चोली उतार चुका था और बड़ी मस्ती के साथ मेरी चूचियाँ चूस रहा था। मंगत भी मेरी एक चूची पर टूट पड़ा। दोनों मेरी चूची को एक साथ मुँह में खींचते और चूस लेते। मेरी चूची की चुसाई मुझे सातवें आसमान पर ले जा रही थी। दोनों चूचियाँ बड़ी बेदर्दी के साथ चूसी जा रही थी। मेरे पति ने भी कभी ऐसे मेरी चूचियों को नहीं चूसा था और पहली बार मेरी दोनों चूची एक साथ चूसी जा रही थी। मेरी तमन्ना आज पूरी हो रही थी। मैं जब से जवान हुई थी, यही चाहती थी कि एक साथ मुझे दो मर्द यौन सुख दें।

अब अनवर ने मेरी चूची छोड़ दी। मेरी चूची एकदम लाल हो चुकी थी। अनवर ने मेरी साड़ी खोलना चालू कर दिया।

तभी मंगत मेरी चूची छोड़ कर बोला- अनवर भाई, पेटीकोट तो मैं ही उतारूंगा !

और मंगत ने मेरे पेटीकोट का नाडा खींच दिया। मेरा पेटीकोट तुरंत मेरे पैरों में जा गिरा और मेरी मांसल जांघें दोनों की नजरों के सामने थी, जिसे देखने के बाद वो दोनों बेकाबू हो कर मेरी जांघों में भूखे कुत्ते की तरह चाटने और काटने लगे। उनके दांतों के स्पर्श से मेरे शरीर में सिरहन सी दौड़ गई और मैं मंगत का सिर अपनी योनि पर दबाने लगी।

यह देख मंगत ने मुझसे कहा- सोनिया जी, अपनी पेंटी आप ही उतार दीजिये !

मैंने अपनी सहमति जताते हुए अपनी पैंटी एक ही झटके में नीचे कर दी। मेरी शेव की हुई योनि देख और गुदाज़ गांड को देख दोनों ललचाई आँखों से मुझे देखने लगे और दोनों अपने-2 कपड़े उतारने लगे। अनवर ने अन्डरवीयर पहना था लेकिन मंगत तो धोती उतारते ही नंगा हो गया और उसे देख कर ऐसा लगा जैसे कोई हैवान खड़ा हो। वो गठीला था पर उसका दानव आकार का लिंग उससे भी ज्यादा गठीला था, जिसे देख कर ना चाहते हुए भी मैंने अपने मुँह में ले लिया।

उधर अनवर भी अपना लिंग मेरे मुँह के पास लेकर खड़ा हो गया, मानो कह रहा हो- मेरा लिंग भी चूसो !

पर क्योंकि मैं पहली बार चूस रही थी तो थोड़ा अजीब सा लग रहा था। मंगत का लिंग एक चौथाई ही मेरे मुँह में आ रहा था। काफी देर होने के बाद अनवर बोला- साली रंडी ! उसका ही लंड पसंद आ रहा है क्या ? मेरा लण्ड कौन चूसेगा भोसड़ी की !

उसकी गाली सुनकर मैंने उसकी तरफ गुस्से से देखा और अपने कपड़े उठा कर गाड़ी की तरफ चल दी।

अनवर समझ गया कि उसका गाली देना मुझे अच्छा नहीं लगा, माफ़ी मांगने लगा और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मनाने लगा।

मैं हंसने लगी और बोली- दुबारा गाली मत देना वरना .….

ठीक है ! नहीं दूंगा ! अब तो मेरा लंड चूस लो !

मैंने उसका लिंग अपने मुँह लिया, उसका लिंग बहुत गरम हो रहा था, मेरी जीभ के स्पर्श से उसके मुँह से सिसकारी निकल गई और बोला- क्या चूसती हो तुम ! कसम से मन करता है कि तेरे मुँह में ही झाड़ दूं ! मुँह में इतना मजा है तो चूत में तो क्या कहने !

उधर मंगत नीचे लेटा हुआ मेरी योनि चाट रहा था। उसे पता था कि औरत को कैसे गरम किया जाता है। वो अपने दांतों से मेरे योनि के दाने को भी काट रहा था, जीभ अंदर-बाहर करके मेरे योनि-द्वार को छेड़ रहा था। उसकी गरम जीभ मुझे और मेरी योनि को और गरम कर रही थी।

अब अनवर बोला- मैडम, मुझसे नहीं रुका जाता ! अब बस मुझे अपनी चूत के दर्शन करने दो !

मैंने खड़े होते हुए कहा- तुम्हें किसने रोका है ? दिखा अपना बल ! तुमने ही तो कहा था कि देखते हैं कौन नाजुक है और कौन कठोर !

और मैं रेत के टीले पर लेट गई। रेत काफी बारीक़ होता है इसलिए उस पर गद्दे जैसा एहसास हो रहा था। लेटते वक़्त मैंने अपनी टांगें चौड़ा दी तो दोनों मेरी चूत चोदने के लिए लड़ने लगे।

तब मैंने मंगत से कहा- पहले अनवर को करने दो ! उसका लिंग तुमसे कमजोर है ! अगर तुम पहले कर लोगे तो मेरा योनि-द्वार चौड़ा हो जायेगा और फिर अनवर को मजा नहीं आएगा।

यह सुनकर मंगत छोटे बच्चे की तरह मेरी बात मान गया और मेरी चूचियों की पहले की तरह चुसाई करने लगा, उन्हें भींचने लगा और मैंने भी उसका लिंग हाथ में ले लिया और उसे सहलाने लगी।

अगले भाग में समाप्त !

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जोधपुर की यात्रा-3

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