गदराई लड़की के जवान बदन का चोदन- 1

(Vasna Aur Pyar Ki Kahani)

वासना और प्यार की इस कहानी में मुख्य पात्र बहुत काले रंग का है. उसमें प्रतिभा तो है पर वह अपने रंग रूप के कारण हीन भावना से ग्रस्त है. उसके ऑफिस में एक लड़की ने जॉइन किया.

मैं राहुल श्रीवास्तव काफी सालों से यहाँ का एक पाठक हूँ और 2016 से मैं यहाँ कहानी भी लिख रहा हूँ.
लगभग हर कहानी में आप को मेरे कमैंट्स मिल जायेंगे.

ज्यादातर जो कहानियां मैंने लिखी, वे मेरे खुद के अनुभव थे.
कुछएक मैंने अपने फैन, यहाँ के पाठकों की भी कहानियां लिखी.

मेरी पिछली कहानी थी
यौन तृप्ति के लिए गैर मर्द की चाहत

यह नयी प्रस्तुत कहानी मेरी नहीं है, हरी प्रसाद नाम के पाठक ने मुझे ईमेल में सारा वृतांत भेजा जिसे मैं आपको कहानी के रूप में भेज रहा हूँ.
थोड़ा बहुत मिर्च मसाला, वासना का तड़का मैंने डाला है जिससे सपाट अनुभव एक कामुक और उतेज़क कथा बन सके.

इस वासना और प्यार की कहानी की सत्यता की कोई गारंटी मैं नहीं देता.

कहानी का नायक हरी प्रसाद है जो देहरादून उत्तराखंड से है.
वह 5 फीट 11 इंच लम्बा और मस्कुलर बॉडी वाला है.
पर उसका रंग हद से ज्यादा काला है जिसके कारण उसके मन में हीन भावना भर सी गई!

आगे की कहानी हरी की जुबानी:

मैं ‘हरी’ राहुल श्रीवास्तव जी का शुक्रगुजार हूँ।
मैंने राहुल जी की कई कहानी पढ़ी, उनके हज़ारों कमेंट्स देखे तो मुझे लगा कि इनसे मेरी जिंदगी की घटना को शेयर की जाए और दुनिया को बताया जाए।

मुझे बचपन से ही मेरे रंग के कारण अपमान झेलना पड़ा, खास तौर से लड़कियों और महिलाओ से!

रंग तक तो ठीक था बचपन में चेचक के कारण मेरे चेहरे पे उसके निशान रह गए।
तो कुल मिला के मैं एक कुरूप सा नौजवान हूँ।

उम्र अब मेरी 29 साल है।

कहते हैं न … जब इंसान में कोई दोष ईश्वर देता है तो उसमें गुण कुछ अच्छे भी देता है।

वैसा ही मेरे साथ भी हुआ।
मेरा दिमाग बहुत तेज है, कद काठी भी बिल्कुल अलग है.
साथ ही मेरे लण्ड का साइज और मोटाई ठीक ठाक ही है.
मेरे सारे दोस्तों में सबसे बढ़िया लण्ड है.

मेरी क़ाबलियत से मुझे एक बहुत ही अच्छी कंपनी में जॉब मिल गया, मैं बड़े शहर आ गया.
मुंबई हर किसी का ख्वाब!

कुछ ही दिनों में मैं अपनी क़ाबलियत से सफलता के रास्ते बढ़ गया.

एक बात जरूर हुई कि लोग अब मुझे मेरे हुनर से जानते थे ना कि मेरे रंग रूप से!
फिर भी लड़कियों का अकाल मेरी लाइफ में बना रहा.

कुछ ही समय में मुझे ब्रांच मैनेजर के तौर पर लखनऊ भेज दिया गया.

यहाँ मुझे नया ऑफिस का सेटअप और स्टाफ को रिक्रूट करना था.

कंपनी की लीज़ पर मुझे गोमती नगर में एक बड़ी कोठी मिल गई.
नीचे दो बड़े हाल और एक रूम था और ऊपर 4 BHK का फ्लैट था.

मकान मालिक विदेश में था तो किसी बात का झंझट नहीं था.
मेरे लिए सूटेबल था ऊपर रहना नीचे ऑफिस … बिल्कुल परफेक्ट!

शुरुआती कुछ दिन तो मेरे ऑफिस के लिए जगह और स्टाफ ढूंढने में निकल गए.
पर रात मेरी मुझे बेचैन करती थी.
इस मंच की कहानिया मेरी साथी थी रातों की!

ऑफिस के लिए एक लड़का आलोक और एक लड़की नीति को मैंने सलेक्ट कर लिया.
मैंने आलोक सेल्स और नीति को बैक और ऑफिस के सारे काम सौम्प दिए.

आलोक करीब 25 साल का ऊर्जा से भरपूर इंसान था.
करीब 2 महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी.

नीति करीब 23 साल की फ्रेश मैनेजमेंट ग्रेजुएट थी.
देखा जाये तो नीति को उसकी खूबसूरती के कारण ही जॉब मिला था.

नीति 5 फीट 6 इंच की लम्बी सुडौल, लम्बे पैर, पतली कमर, सुर्ख गुलाबी चेहरा, सुर्ख लाल होंठ, लम्बे बाल, और काली बड़ी से आंखें, हाँ जितनी तबीयत से भगवान ने उसको खूबसूरती दी थी उतनी ही कंजूसी से मैंने उसको उसकी सैलरी दी थी.

मैंने पहले ही बताया कि ईश्वर ने मुझे एक शार्प और शातिर दिमाग दिया है.
तो नीति को देखते ही मेरे मन उसको चोदने का विचार सा आया तो उसको जॉब दे दी थी.

मेरे मन में लड़कियों के प्रति इतनी कुंठा थी क्योंकि सबसे ज्यादा मुझे अपमान उन्हीं लड़कियों से झेलना पड़ा था. चाहे वह स्कूल हो या फिर कॉलेज … या फिर आस पड़ोस … करीब करीब हर लड़की से मुझे अपमान झेलना पड़ा जिसने मुझे मनोरोगी सा बना दिया.

पर मैंने हार नहीं मानी, न ही कोई गलत कदम उठाया.
मैंने सारा ध्यान अपनी पढ़ाई और अपने को काबिल बनाने में लगा दिया.

पैसा, रौब, अच्छी नौकरी, कार, बंगला और इन सबसे ज्यादा मेरे पास एक अच्छा दिल भी था.
साथ में दिल में कुंठा भी थी.

सब कुछ मुझे हासिल था, फिर भी कोई लड़की मुझे शादी के लायक नहीं समझती थी कि इसको जीवन साथी बनाए.
और और तो और पर जो लड़कियां जिस्म और शक्ल सूरत से साधारण होती, वह भी मुझको रिजेक्ट कर देती थी.

सेक्स की आग से परेशान एक बार कालगर्ल को भी बुलाया.
पर उसके चेहरे को देख कर ऐसा लगा कि वह भी मेरे साथ सेक्स नहीं करना चाहती.
तो मैंने उसे भी उसके पैसे दे कर दफा कर दिया.

अब तक आप समझ ही गए होंगे मेरे दिल और दिमाग की स्थिति!

नीति का पूरा बायो डाटा मैंने देखा था.
उसकी फोटो देख कर उसको इंटरव्यू के लिए बुलाया था.

चूंकि उसे कोई वर्क एक्सपीरियंस नहीं था तो उससे उसके परिवार और उसके बैकग्राउंड के ज्यादा सवाल पूछे मैंने!
उसके भविष्य के प्लान सम्बन्धी सवाल पूछे.

चूंकि यह बड़ी कंपनी थी और किसी भी एम्प्लॉई का भविष्य यहाँ सुरक्षित था तो वह कम सैलरी में भी तैयार हो गई.

नीति एक लोअर मिडल क्लास की लड़की थी.
रंगरूप देने में भगवान ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

वह महत्त्वाकांक्षी थी, पैसे से कमजोर थी.
बैंक लोन से पढ़ाई की थी उसने!
उसके पिता थे नहीं!
वह और उसकी माता जी सदर लखनऊ में पुश्तैनी मकान में रहते थे.

माता जी एक मोन्टिसेरी स्कूल में टीचर थी.
आमदनी भी कोई खास नहीं थी.

चूंकि नीति लखनऊ नहीं छोड़ना चाहती थी तो उसने मेरा ऑफर स्वीकार कर लिया.

सबसे बड़ी बात की उसका कोई भी कभी भी बॉयफ्रेंड नहीं था.
इस बारे में भी मैंने उससे इंटरव्यू में ही पूछ लिया था क्योंकि उसको जॉब का कोई एक्सपीरियंस नहीं था तो पढ़ाई के अलावा ऐसे ही उल्टे सीधे सवाल पूछे थे.

मेरा पहला प्लान पूरा हो चुका था, अब मुझे अपने दूसरे प्लान की तरफ बढ़ना था.
आलोक का काम क्लाइंट ढूँढना, उनसे बिज़नेस लाना था और नीति का काम पूरा ऑफिस संभालना!

साथ ही आये हुए रिज्यूम में से सही प्रतिभागी का चुनाव कर उसको कॉल करना, लोगों के फ़ोन कॉल का जवाब, बैंक, बिल पास करना सैलरी बनाना सब कुछ उसी के जिम्मे था.
नीति ने यह काम बखूबी निभाया.

एक बात मुझे अच्छी लगी कि वह आँखों में आंख डाल कर बात करती थी.
यह उसका अपने काम के प्रति कॉन्फिडेंस था.
उसके चेहरे को देख कर कभी नहीं लगा कि उसको मेरा चेहरे मेरी कुरूपता की वजह से कोई दिक्कत है.

ऐसे ही करीब तीन महीने बीत गए.

उसकी सादगी काम के प्रति जूनून ने मेरा पूरा प्लान नंबर दो चौपट कर दिया था.
मेरे साफ दिल ने उसे धोखे से, उसकी असहमति से या फिर बहला फुसला के, चोदने का ख्याल छोड़ सा दिया था.

इस बीच मैं और नीति आपस में काफी घुलमिल गए.
कुछ और लोगों को भी हमने सलेक्ट किया.
पर वे सब फील्ड वर्क के लिए थे.

मैंने कभी नहीं चाहा कि कोई तीसरा इंसान ऑफिस में हो … जबकि जरूरत थी.

नीति और मैं अपनी पर्सनल बातें भी आपस में शेयर करने लगे.

मैं, आलोक, उसकी वाइफ नताशा और नीति अक्सर डिनर पिक्चर साथ जाते थे.
मेरी हीन भावना ने कभी मुझे इतना कॉन्फिडेंस ही नहीं दिया कि नीति के साथ अकेले कहीं जाऊं.

एक दो बार नीति के घर भी हम सब गए.
उसकी माँ के विचार भी पहली मुलाकात कुछ अच्छे नहीं लगे.
पर बेटी का बॉस था तो वह कुछ बोल नहीं पाई.

नताशा के चेहरे से कभी नहीं लगा कि मेरे रंगरूप से उसको कोई दिक्कत है.
उलटे वह मेरी क़ाबलियत की तारीफ ही करती थी.

आलोक शादीशुदा था पर वह भी नीति के साथ फ़्लर्ट करने से बाज़ नहीं आता था.
नीति कई बार इस बारे में मुझे बोल चुकी थी.

पर मैंने उसको बोला कि उसकी प्रॉब्लम है वह खुद हैंडल करे, मेरे से बहुत ज्यादा मदद की उम्मीद न करे.
साथ ही साथ अकेले में अलोक को भी चेतावनी दी उसके नीति के प्रति व्यव्हार के लिए!
यह बात नीति को नहीं मालूम थी.

मैं कई बार आलोक के भी घर गया.
उसकी पत्नी नताशा एक मिलनसार हसमुख और जिन्दा दिल लड़की थी जिसमें आप कोई ऐब नहीं ढूंढ सकते थे.

मुझे कभी यह नहीं लगा कि नीति के दिल में मेरे लिए कुछ है.
मेरा दिल दिमाग नीति को निवस्त्र देखने के लिए तड़प रहा था, उसकी याद में न जाने कितने ही बार मुट्ठ मार चुका था.
पर गाड़ी आगे बढ़ नहीं रही थी और पहल की हिम्मत नहीं थी।

ऐसे में उसने एक दिन बताया कि वह अपना लोन नहीं चुका पा रही है और ब्याज की वजह से वह टेंशन में है.
मैंने उसको बोला कि कंपनी से लोन तो मिल नहीं सकता क्योंकि वह अभी कन्फर्म नहीं हुई थी. हां वह चाहे तो मेरे से उधार ले सकती है और धीरे धीरे मेरे को वापिस कर दे.
ऐसा इसलिए बोला क्योंकि मैं उसके आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचना चाहता था।

पहली बार तो उसने मना कर दिया.
पर कोई एक महीने बाद उसने मेरा ऑफर मान लिया.

मैंने उसके बैंक के मैनेजर से बात की और उससे कुछ छूट के बाद उसका पूरा लोन एक झटके में में क्लियर कर दिया.

मेरी इस बात से नीति के चेहरे में पहली बार अपने प्रति सम्मान के अलावा प्यार देखा.
इस बात से उसकी माँ का नजरिया मेरे प्रति बदल गया.

इसके कुछ दिन बाद नीति का जन्मदिन था तो उसने मुझे और आलोक के परिवार को डिनर के लिए अपने घर बुलाया.

देखा जाए तो नीति, आलोक और मैं तीनों एक परिवार की तरह से हो गए थे.

पहली बार उसकी माँ के चेहरे में अपने प्रति इज़्ज़त और सम्मान देखा और नीति के चेहरे में अपने लिए मुस्कराहट और प्यार देखा.
इतने सालों से अपमान भरे चेहरे देखने के बाद मुझे चेहरा पढ़ना बखूबी आ गया था.

उस दिन गहरी नीली और आसमानी रंग के कॉम्बिनेशन में उसने साड़ी पहनी थी जिसको उसने अपनी नाभि के नीचे से बंधा था. उल्टा पल्लू लिया था जिसमें उसकी चूचियां छिप कम, दिख ज्यादा रही थी.

पतली कमर गहरी नाभि गोरा पेट देख कर मेरे लण्ड में भी हरकत होने लगी.
मेरी आँखों में वासना की एक भूख जग गयी जिसको आलोक की पत्नी नताशा और नीति ने शायद देख लिया था.
पर दोनों ने कुछ शो नहीं किया.

फिर केक कटा और स्वादिष्ट खाना खाकर हम सब वहां से विदा हो गए.

अगले दिन मैंने उसे ऑफिस में कंपनी की तरफ से एक महंगी घड़ी, जिसकी कीमत उसकी तीन महीने की सैलरी के बराबर थी, और अपनी तरफ से ब्लैक वन पीस ड्रेस गिफ्ट करी.

मैं नीति को इम्प्रेस करने की कोई भी कसर नहीं छोड़ रहा था और कभी यह भी नहीं शो होने देता कि मैं उसको प्यार करता हूँ.
पर लड़कियां समझदार होती हैं और उनके पास एक सिक्सथ सेन्स होता है जिससे वे किसी भी मर्द के दिल, दिमाग और उसकी सोच को पढ़ लेती हैं.

पसंद तो नीति भी मुझे करने लगी थी पर मेरा रंग उसके बढ़ते कदम रोक देता था.

इस बीच में भी मैं कई बार नीति की पैसे से भावनात्मक रूप से मदद कर चुका था.
पर साथ ही साथ आलोक और नताशा की भी हेल्प करता था जिससे नीति को ऐसा न लगे कि मेरे मन में उसके लिए प्यार है या कोई इसे विशेष अनुकम्पा समझे.

करीब एक साल बीत गया और इस एक साल में मैं नीति को इतना समझाने में कामयाब हो गया कि रंग रूप ही सब कुछ नहीं होता, मर्द को दिल का अच्छा होना चाहिए.

नताशा और नीति में अच्छी दोस्ती थी, शायद उसने (नताशा) ही मेरे लगाव की बात को महसूस करके नीति को यह बता दिया कि मैं उसको पसंद करता हूँ.
पर मेरा आचरण दोनों के प्रति बहुत ही संयमित और आदर भरा था.

एक साल पूरा होने की ख़ुशी में मैंने नीति को परमानेंट करके उसकी सैलरी उतनी कर दी जिसकी वह हक़दार थी.
कुछ टाइम और बीत गया पर कोई रास्ता नीति के दिल में उतरने नहीं दिख रहा था.
समय बीत रहा था; मेरी वासना और प्यार की बेचैनी बढ़ रही थी.

यह कहानी लम्बी है और 5 भागों की है.
हर भाग पर आप अपने विचार मुझे भेजते रहें.

वासना और प्यार की कहानी का यह भाग आपको कैसा लगा?
धन्यवाद.
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वासना और प्यार की कहानी का अगला भाग: गदराई लड़की के जवान बदन का चोदन- 2

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