सुपर स्टार-9
(Super star-9)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left सुपर स्टार-8
-
keyboard_arrow_right सुपर स्टार-10
-
View all stories in series
अभी मैं सोच ही रहा था कि एक और बारात गुजरने लगी। उसी में से एक उम्र में मुझसे थोड़ा बड़ा लड़का मेरे पास आया।
‘भाई यहाँ दारू की दुकान है क्या आसपास?’
मैं- नहीं भाई…
अपनी आधी बची बोतल आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा- यही ले लो।
वो साथ में ही बैठ गया। बोतल लेने के साथ ही पूछा- पानी और चखना कहाँ है?
मैंने इशारे में ही कहा- नहीं है।
उसने पूछा- क्यूँ भाई आशिक हो क्या?
मैंने कहा- नहीं.. दीवाना हूँ।
वो हंसने लग गया। हाथ बढ़ाते हुए बोला- हैलो मैं रवि..
मैंने भी उससे हाथ मिलाया।
‘मैं नक्श।’
रवि- चलो मेरे साथ.. ये बारात भी दीवानों की ही है।
वैसे भी मैं क्या करता, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं तृषा की शादी होता देख सकता। मैं रवि के साथ ही चल पड़ा।
बारात पास की ही थी। रवि और उसके दोस्तों के साथ थोड़ी देर के लिए ही सही.. पर मैं भूल गया था कि आज तृषा की शादी है। बारात पहुँचने पर वहाँ भी शराब और कबाब का दौर चला।
अब नशा हावी हो चला था मुझ पर… सो थोड़ी देर के लिए नींद सी आ गई।
मैं वहीं बारात की गाड़ी में सो गया। तकरीबन पांच बजे मेरी नींद खुली, ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे गहरी नींद से जगाया हो।
मैं गाड़ी से बाहर निकला.. आस-पास कोई भी नहीं था। अपने चेहरे को धोया फिर अपना मोबाइल देखा। मैंने उसे रात को स्विच ऑफ कर दिया था।
अब उसे ऑन किया और अपने कदम घर की ओर बढ़ा दिए। तभी मोबाइल की घंटी बजी.. तृषा का मैसेज व्हाट्स ऐप पर आया था।
मैंने उसे देखा तो दो ऑडियो मैसेज थे।
पहला मैसेज-
‘आई लव यू जान.. मेरा यह आखिरी मैसेज तुम्हारे लिए.. मुझे माफ़ कर देना निशु, मैंने इन तीन महीनों में तुम्हें बहुत दुःख दिए.. पर सच कहूँ तो तुमसे ज्यादा मैं जली हूँ इस आग में.. जब-जब तुम्हारी आँखों में आंसू आए.. तो ऐसा लगा कि किसी ने मेरे दिल के टुकड़े कर दिए हों। जब भी तुमने मुझे बेवफा की नज़रों से देखा.. तो मुझे खुद पर घिन सी आने लगी। जब पहली बार माँ को हमारे बारे में पता चला.. तो लगा कि ये तुरंत का रिएक्शन है.. अगर मैं शांत होकर- सब को समझाऊँगी तो सब मान जायेंगे। मैंने शादी की आखिरी रात तक अपने मम्मी-पापा को समझाने की कोशिश की.. पर कोई अपनी जिद के झुकने को तैयार ना हुआ। मैंने हर तरीका अपना लिया.. पर मैं तुम्हारी ना हो सकी। उन्होंने कहा था कि मैंने अगर तुम्हें अपनाया.. तो वो मौत को गले लगा लेंगे। जानू.. जिन्होंने मुझे जिंदगी दी.. उनकी मौत कारण मैं बनूँ.. ये कैसे हो सकता था। इसलिए मैंने एक फैसला किया। अगर मैं तुम्हारी ना हो सकी तो मैं किसी और की भी नहीं होऊँगी। ये ज़हर की शीशी मैं पीने जा रही हूँ। आई लव यू फॉर एवर..
मुझमें अब इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं दूसरा मैसेज देख पाता। मेरी साँसें जैसे रुकने को हो आई थीं। मेरा दम घुटने लगा था। ये मैसेज रात बारह बजे का था। मैंने बहुत हिम्मत जुटा कर दूसरा मैसेज देखा।
दूसरा मैसेज-
जानू.. मेरा दम घुट रहा है.. पर एक बात मैं कहना चाहती हूँ.. तुम कभी खुद को अकेला मत समझना। मैं हमेशा तुम्हारे एकदम पास रहूँगी। जब भी मेरी याद आए तो अपनी आँखें बंद करना और अपनी बाँहें फैला लेना… मैं तुम्हारे गले लग जाऊँगी। अपना ख्याल रखना..
फिर एक हिचकी की आवाज़ आई और मैसेज ख़त्म..
मैं वहीं जमीन पर बैठ गया। मैं अब करूँ तो क्या करूँ.. जिसे अपनी दुनिया माना था मैंने.. वही मुझे इस दुनिया में अकेला छोड़ कर चली गई।
मैं बीच सड़क पर बैठा चिल्लाता जा रहा था.. पर मुझे सुनने वाला वहाँ कोई भी नहीं था..
मैंने जिसे शादी के जोड़े में देखने का सपना संजोया था.. उसे कैसे कफ़न में लिपटा देखता। जिसके साथ जीवन के हर पड़ाव को पार करने का सपना देखा था.. कैसे उसे अकेले ही उसके आखिरी पड़ाव पर जाने देता। मुझे अब उसकी हर बात याद आ रही थी। मेरे पास वक़्त था.. मैं उसे रोक सकता था.. पर रोक न पाया।
मैं उठा और पैदल ही रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़ा। मैं बस इन सब चीज़ों से दूर जाना चाहता था..
मैंने अपने मोबाइल को पास के गटर में फेंक दिया। स्टेशन पर पहुँचते ही सामने एक गाड़ी लगी थी ‘हावड़ा- मुंबई मेल।’
मैं सामने वाले डब्बे में चढ़ गया।
थोड़ी देर में ट्रेन चल गई.. पीछे छूटते स्टेशन के साथ ही हर रिश्ते-नाते.. मैं छोड़ कर आगे बढ़ा जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे तृषा मुझे प्लेटफार्म से अलविदा कह रही हो।
मैंने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ने की कोशिश की.. तभी पीछे से किसी ने मेरा कालर खींच लिया।
टीटी- मरने का इरादा है क्या..? टिकट दिखाओ..!
मैंने जेब से 2000 रूपए निकाल कर उसे दे दिए।
टीटी- कहाँ जाना है?
मैं- जहाँ ये ट्रेन जा रही है।
टीटी- ये एसी क्लास है..2000 और दो मैं सीट दे देता हूँ।
मैंने पैसे दे दिए।
उसने मुझे एक रसीद और बर्थ का नंबर लिख कर दे दिया। फिर वो दूसरी बोगी में चला गया।
मैं सामने की बेसिन में अपना चेहरा धोने लगा।
तभी मेरी नज़र शीशे पर गई.. कल रात तृषा ने जो मुझे किस किया था.. उसके लिपस्टिक के निशान अब तक मेरे चेहरे पर थे। मैंने रुमाल निकाल उसे पोंछा।
उस निशान को देख कर मुझे और भी रोना आ रहा था। मैंने उस रुमाल को जेब में डाला.. और अपने आप को थोड़ा संयमित करने की कोशिश करने लगा।
एक पेंट्री वाला वहाँ आया। मैंने उसे रोका और कहा- भाई दारू है क्या?
पेंट्री वाला- हम दारू नहीं बेचते।
मैं- हाँ हाँ.. पता है.. तू पंचामृत बेचता है।
मैंने जेब से एक हज़ार का नोट निकाला और उसकी जेब में डालते हुए कहा।
‘अब जा और मेरे लिए एक ढक्कन पंचामृत लेते आ।’
मैंने उसे अपना बर्थ नंबर बता दिया।
अब मैं अपनी केबिन में पहुँच चुका था। यहाँ पहले से तीन लोग थे। मेरी बर्थ नीचे की थी सो मैं भी वहीं बैठ गया।
वे तीनों लड़कियाँ थीं.. उन तीनों की लगभग 25 के आस-पास की उम्र होगी। मैंने अपना सर खिड़की से लगाया और अपने शहर के रास्तों को खुद से दूर होता देख रहा था।
मेरे मन में तृषा के साथ बीते हुए दिन फ्लैशबैक फिल्म की तरह चल रहे थे।
एक लड़की जो मेरे सामने बैठी थी, बगलवाली से बोली- यार ये तो जब वी मेट का केस लग रहा है।
दूसरी ने जवाब दिया- हाँ यार सच में.. कितना गुमसुम है।
तभी जो मेरे बगल में बैठी थी.. अपना हाथ मेरे तरफ बढ़ाते हुए बोली- हैलो.. मैं निशा और आप?
मेरा ध्यान अब तक बाहर ही था, मैंने कुछ नहीं कहा, मुझमें कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं थी, मैं अब तक अपने शहर को ही देख रहा था।
निशा- हाँ यार.. सच में पक्का ‘जब वी मेट’ फिल्म वाला केस ही है।
फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली- क्या हुआ है? किसी एग्जाम में फेल हो गए हो? मम्मी-पापा का डाइवोर्स हो गया है? गर्ल-फ्रेंड किसी और के साथ भाग गई है?
उसका हर एक सवाल ने मेरे दिल को चीरे जा रहा था।
मैं बेहद गुस्से में उनकी तरफ देखता हुआ बोला- वैसे सवाल किसी से नहीं पूछने चाहिए.. जिस सवाल के शब्द ही जान लेने के लिए काफी हों।
निशा- यह सफ़र हम सबके लिए नया है। पहली बार हम अपने-अपने घर से इतनी दूर अपनी पहचान बनाने के लिए निकले हैं। मैं तो बस दोस्त बनाने की कोशिश कर रही हूँ। आपको बुरा लगा हो तो आप मुझे माफ़ कर देना।
मैं- किसी के ज़ख्म कुरेद कर दोस्ती करने का अंदाज़ पहली बार देखा है।
निशा- ज़ख्म कुरेद कर.. मैं बस ये देख रही थी कि तुममे अब भी जान बाकी है या नहीं।
उसके बोलने का अंदाज़ बिल्कुल तृषा जैसा था.. या मैं हर आवाज़ में तृषा को ही ढूंढने की कोशिश करने लगा था।
मैं- क्या दिखा तुम्हें?
निशा ने मुस्कुराते हुए- ज़िंदा हो और दोस्ती कर सकते हो..
और फिर से उसने अपना हाथ बढ़ा दिया।
मैं हाथ मिलाते हुए- नक्श…
बाकी दोनों ने भी अपने हाथ बढ़ाए.. एक का नाम तृष्णा था और दूसरी का ज्योति।
तृष्णा- कहाँ जा रहे हो?
मैं- नहीं जानता।
ज्योति- किस लिए?
मैं- नहीं जानता।
तृष्णा- कहाँ रहोगे वहाँ?
मैं- नहीं जानता।
तृष्णा ज्योति से- मैंने कहा था न ! पक्का वही केस है।
फिर मेरी तरफ देखते हुए- तुम किसी बड़ी कंपनी के मालिक के बेटे हो क्या?
‘क्या?’ चिढ़ते हुए मैंने कहा।
तृष्णा- नहीं ‘जब वी मेट’ में हीरो की यही तो कहानी थी।
मैं- कभी फिल्मों की दुनिया से बाहर भी आओ। यहाँ किसी की जिंदगी स्क्रिप्ट के हिसाब से नहीं चलती।
निशा- क्या डायलॉग बोलते हो यार। हैंडसम हो और आवाज़ भी जबरदस्त है, फिल्मों में कोशिश क्यूँ नहीं करते।
मैं- मैं अपने आप से भाग रहा हूँ और ये रास्ते किस मंजिल पे मुझे ले जायेंगे मुझे नहीं पता..
निशा- मैं तो बस दरवाज़ा खटखटाने को कह रही हूँ। क्या पता तुम्हारी मंजिल भी वहीं हो.. जहाँ हम जा रहे हैं।
मुझमें अभी कुछ भी फैसला लेने की हिम्मत नहीं थी। मैं तो बस अपने दर्द से भागने की कोशिश कर रहा था।
तभी पैंट्री वाला आया और सस्ती व्हिस्की की एक बोतल और कुछ स्नैक्स दे गया।
कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं।
कहानी जारी है।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments