सुपर स्टार-4
(Super star-4)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left सुपर स्टार-3
-
keyboard_arrow_right सुपर स्टार-5
-
View all stories in series
तृषा मेरी इस हालत को समझ गई.. उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे पूरे जिस्म पर अपने होंठों की छाप छोड़ने लग गई। वो मुझे चूमते हुए मेरे लिंग के पास पहुँची और उसने मेरे लिंग को अपने मुँह में भर लिया।
मेरे लण्ड को चूसते हुए उसके नाख़ून मेरे जिस्म को खरोंच रहे थे।
आखिरकार मेरे अन्दर भी शैतान जाग उठा। मैंने उसी अवस्था में उसे बिस्तर पर पटका और अपने लिंग को उसके गले तक पहुँचाने लगा।
फिर उसे घोड़ी वाले आसन में उसके पिछले छेद में अपनी तीन ऊँगलियाँ अन्दर तक घुसा दीं और उसकी योनि को अपने लिंग से भर दिया।
अब मैं उसे बिस्तर के किनारे तक ले आया था। अपने लिंग और उँगलियों को उसी जगह पर रख अपने पैर के अंगूठे को उसके मुँह में दे दिया।
इसी अवस्था में थोड़ी देर में मेरी भावनाओं का ज्वार शांत हुआ और मैं निढाल होकर उसके साथ बिस्तर पर गिर पड़ा।
जब एक तूफ़ान शांत हुआ.. तो मेरे अन्दर जो भावनाओं का तूफ़ान था.. वो सामने आ गया।
मेरी आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
अब तक मैंने उसे कस कर पकड़ा हुआ था.. मानो कोई उसे मुझसे जबरदस्ती दूर ले जा रहा हो। मैं अब तक इसी उम्मीद में था कि शायद वो मेरी हो जाए।
तृषा ने मेरे माथे को चूमते हुए कहा- आज मेरे पास ही रह जाओ न.. मैं अपना हर लम्हा तुम्हारी बांहों में जीना चाहती हूँ।
मैंने उसे रोकते हुए कहा- अधूरी बातों से दिलासा देने की ज़रूरत नहीं है। कहो कि शादी तक मैं तुम्हारी बांहों में रहना चाहती हूँ और शादी के बाद..
यह कहते-कहते मैं रुक गया.. मेरा गला भर आया था.. अब कुछ भी कहने की हिम्मत बची भी नहीं थी।
मैं- अब मुझे जाना होगा।
तृषा- अभी ना जाओ छोड़ के.. कि दिल अभी भरा नहीं..
उसकी बातें मुझे गुस्सा दिला रही थीं।
मैंने उसके बाल पकड़ अपने पास खींचा- जान लेने का कोई नया अंदाज़ है क्या यह?
तृषा- इस्स्स्स.. जनाब आपका ये गुस्सा.. आपकी जान जाए या न जाए.. पर इतना तो पक्का है.. आपके ये गुस्सा होने का अंदाज़ हमारी जान जरुर ले लेगा।
यह कहते हुए फिर से उसने मेरे होंठों को चूम लिया।
मुझे गुस्सा आ रहा था और उसे ये सब मज़ाक लग रहा था। मैंने उससे कहा- मुझे अब घुटन सी हो रही है, प्लीज मुझे थोड़ी देर अकेला छोड़ दो। मैं अभी यहाँ नहीं रह सकता।
तृषा- ठीक है तो फिर कल मिलने का वादा करो।
मैं- ठीक है..
तृषा मेरा हाथ अपने सर पर रखते हुए- ऐसे नहीं मेरी कसम खा कर कहो.. तुम्हें हर रोज़ मुझसे मिलोगे।
मैं- जिससे शादी हो रही है.. उससे मिल न.. मुझे क्यों तकलीफ दे रही हो। जो करना है.. करो उसके साथ.. मेरी जान छोड़ दो अब.. बस..
तृषा- मुझसे प्यार करने की सज़ा ही समझ लो.. या फिर यही कह दो कि तुमने कभी भी मुझसे प्यार किया ही नहीं.. मैं कुछ नहीं कहूँगी।
मैं अब उसे कुछ भी नहीं कह सका।
‘ठीक है जैसा तुम कहो!’
तृषा- ऐसे नहीं.. मेरी कसम खा कर कहो कि तुम मुझसे हर रोज़ मिलोगे.. भले ही मुझे डांटो.. मारो या मेरी जान ले लो.. लेकिन मुझसे हर रोज मिलोगे।
‘हाँ मैं कसम खाता हूँ.. अब तो जाने दो।’
तृषा ने मुस्काते हुए कहा- ह्म्म्म.. अब ठीक है.. अभी बंदोबस्त करती हूँ आपको बॉर्डर पार करवाने का..
वो बाहर गई.. उसके घर का माहौल अब सामान्य हो चुका था, उसने छत की चाभी उठाई और छत पर चली गई।
थोड़ी देर में वो वापिस कमरे में आई और मुझे पीछे-पीछे चलने का इशारा किया।
शायद उसके मम्मी-पापा अपने कमरे में थे। मैं अब छत पे आ चुका था। मैं दीवार पार करने जैसे ही आगे बढ़ा.. तृषा मुझसे लिपट गई, थोड़ी देर रुक के वो मुस्कुरा के मुझसे अलग हो गई। पता नहीं आज उसकी आँखें मुझसे बहुत सी बातें कहना चाह रही थीं.. पर इस सैलाब को अपने अन्दर ही समेटे रह गई।
मैं अब अपने कमरे में था। बस एक ही बात जो मुझे खाए जा रही थी कि उसने ऐसा फैसला क्यूँ लिया और जब किसी और के साथ जिन्दगी बिताने का फैसला ले लिया है.. तो अब मुझे ऐसे क्यूँ जता रही है.. मानो मैं अब भी उसके लिए सब कुछ हूँ। मैं तो ये सब सोच-सोच कर पागल सा हुआ जा रहा था।
एक बार तो मन किया कि सब छोड़-छाड़ कर भाग जाऊँ कहीं.. कैसे देख पाऊँगा उसे मैं.. किसी और की होते हुए.. जिसे मैं हमेशा के लिए अपना मान चुका था।
पर अपने दिल को दिलासा भी दिया.. आखिर जब उसने ही इन सब रिश्तों का मज़ाक बनाया हुआ है.. जब उसे ही कोई फर्क नहीं पड़ता तो मैं क्यूँ नींद खराब करूँ।
उसके वादे के मुताबिक़ मुझे हर रोज़ उसे मिलना था, सो मैं छत पर ठीक शाम के 8 बजे आ जाता था। हमेशा यही कोशिश करता कि उससे मेरी नज़रें ना मिलें.. हमेशा एक दूरी सी बना कर रखता था.. पर तृषा को समझना अब भी मेरी समझ से परे था।
जब-जब मैं उससे दूर जाता.. वो मुझसे जबरदस्ती आ कर लिपट जाती।
ना जाने कितना कुछ ही कहा था मैंने उसे.. पर मेरी हर बात का जैसे उसे कोई असर ही ना होता हो।
ऐसे ही कुछ 15 दिन बीत गए।
आज रविवार था और शाम के 6 बजे थे.. तभी मेरे घर के दरवाज़े की घंटी बजी।
मम्मी- जाओ बेटा.. देखो तो कौन आया है..?
मैं- ठीक है माँ।
मैंने दरवाज़ा खोला.. सामने तृषा के मम्मी-पापा थे।
आंटी- बेटा जी.. मम्मी-पापा हैं घर पर?
आज उनकी आवाज़ में अपनापन कम और तंज़ कसने वाला अंदाज़ ज्यादा था।
मैं- हाँ अन्दर आईए न..
मैंने मम्मी को आवाज लगाई- मम्मी.. तृषा के मम्मी-पापा आए हैं।
मम्मी- अरे आईए.. आप तो आजकल इधर का रस्ता ही भूल गए हैं।
उन्होंने उन दोनों हॉल में बिठाया और मेरी बहन को चाय- नाश्ते का कह कर मेरे मम्मी-पापा उनके साथ बैठ गए।
मैं अब अपने कमरे में आ चुका था.. पर मेरा ध्यान तो अब भी उन्हीं की बातों में लगा हुआ था।
अंकल ने मेरे पापा से कहा- और बताएँ क्या हाल हैं आपके..? कैसा चल रहा है काम-धाम?
पापा ने हंसते हुए कहा- सब ठीक है.. वहाँ ऑफिस में.. हमारी सुबह से शाम सरकार की नौकरी में गुजरती है और शाम से फिर अगली सुबह तक बीवी की सेवा में गुज़र जाती है। आप कहें कैसे आना हुआ आज?
आंटी (तृषा की मम्मी)- जी.. एक खुशखबरी देनी थी.. हमने हमारी बेटी की शादी तय कर दी है और लड़का भी तृषा को बहुत पसंद है।
इस बार आंटी आवाज़ थोड़ा ऊँचा करती हुई बोलीं ताकि मेरे कान तक उनकी ये बात पहुँच जाए।
मैं तो जैसे सुन्न हो गया था। मैंने लाख रोकना चाहा.. पर मेरी आँखों में आंसुओं का सैलाब सा उमड़ आया हो।
मम्मी- ये तो बहुत ही अच्छी बात है.. पर अब तो बस मिठाई से काम नहीं चलने वाला है भाई साहब..
मेरी मम्मी तृषा के पापा को ‘भाई-साहब’ कह कर ही बुलाती थीं।
‘अब तो हमें अच्छी सी पार्टी चाहिए।’
आंटी- अरे इसके लिए भी कहना होगा क्या.. अगले रविवार को हम सब कहीं बाहर चलते हैं।
पापा- अगले रविवार तक हमसे इंतज़ार नहीं होने वाला है.. आज हम सब हैं हीं.. तो घर पर ही पार्टी मना लेते हैं।
फिर उन्होंने मुझे आवाज़ दी। मैं तो समझ ही गया था कि पापा की पार्टी का मतलब क्या लाना है।
मैं- आता हूँ।
फिर पापा ने पैसे दिए और मैं चला गया वाइन लाने।
मैं बाइक स्टार्ट करके बाहर मुख्य सड़क तक पहुँचा। सड़क पर ढेरों गाड़ियों का शोर था.. पर मुझे तो जैसे कुछ शोर सुनाई दे ही नहीं रहा था.. बस कानों में तृषा की एक ही बात गूंज रही थी- ‘मैं तुम्हारी थी.. तुम्हारी हूँ और तुम्हारी ही रहूँगी।’
मैं बेहद बेपरवाह सा सड़क पर आगे बढ़ा जा रहा था। गाड़ियों की चमकती हेडलाइट में भी मुझे तृषा ही नज़र आ रही थी। एक बार तो मैं अपनी गाड़ी सामने वाली ट्रक के एकदम सामने ही ले आया.. पर वो बगल से गुज़र गया।
शायद ड्राईवर मुझे गालियाँ देते आगे बढ़ गया था।
मैं तो जैसे अब तक सपने में ही था। ऐसा लग रहा था.. मानो उस दूर होती लाइट के साथ मेरा प्यार भी मुझसे दूर होता जा रहा था।
फिर मैंने खुद को संभाला और वाइन लेकर वापिस आया। इस बार मैं एक छोटी बोतल ज्यादा ले आया था.. कभी पी तो नहीं थी.. पर इतना सुना था कि इसे पीने के बाद दर्द कम हो जाता है।
रास्ते में किसी गाड़ी में एक गाना बज रहा था, ‘मेरी किस्मत में तू नहीं शायद.. क्यों तेरा इंतज़ार करता हूँ। मैं तुझे कल भी प्यार करता था.. मैं तुम्हें अब भी प्यार करता हूँ।’
सच कहते हैं लोग.. जब दिल दर्द से भरा हो तो ऐसा लगता है.. मानो सारे दर्द भरे गीत आपके लिए ही लिखे गए हों।
अब मैं अपने घर के दरवाज़े तक पहुँच चुका था। तभी घर के अन्दर से एक हंसी की आवाज़ सुनाई दी.. मैं वहीं रुक गया.. तृषा मेरे घर में आई हुई थी।
आखिर वो इतनी खुश कैसे हो सकती है। मेरा दिल अब तक उसे बेवफा मानने को तैयार नहीं था। मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हुआ, मैंने वो छोटी वोदका की बोतल खोली और उसे ऐसे ही पी गया। जितनी तेज़ जलन मेरे गले में हुई उससे कई ज्यादा ठंडक मेरे सीने को मिली।
मेरी साँसें बहुत तेज़ हो चुकी थीं। दिल की धड़कनें इतनी तेज़ हो गई थीं.. मानो दिल का दौरा न पड़ जाए मुझे.स
थोड़ी देर के लिए मैं वहीं ज़मीन पर बैठ गया। फिर मैंने अपने आपको संभाला और अपने घर में दाखिल हुआ। सबसे पहला चेहरा तृषा का ही मेरे सामने था। हॉल में मेरे मम्मी-पापा के बीच बैठी बहुत खुश नज़र आ रही थी।
मम्मी- बेटा तृषा को बधाई दो.. इसकी शादी तय हो गई है।
कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं।
कहानी जारी है।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments