सुपर स्टार-1
(Super star-1)
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‘चारों तरफ हज़ारों कैमरों की जगमगाती चमक, जहाँ तक नज़रें जाए बस पागल होती बेकाबू सी भीड़ और उस भीड़ को काबू करने में लगे हुए कितने ही पुलिस वाले.. कानों में गूंजता हुआ बस आपका ही नाम.. हर चौराहे पर आपकी बड़ी-बड़ी तस्वीरें.. हर खबर की सुर्ख़ियों में बस आपका ही ज़िक्र..’
‘यूँ तो हर मोड़ पर बहुत सी जिंदगियाँ साँसें लेती दिखाई देंगी.. पर उन जिंदगियों में जान नहीं होती..
जीते तो सब हैं.. इस दुनिया में,
पर यहाँ हर किसी की..
खुद की पहचान नहीं होती..।’
कुछ ऐसी ही पहचान बनाने की चाहत आज एक छोटे शहर के लड़के को मुंबई ले आई थी.. जेब में गिनती के कुछ रूपए और अपनी किस्मत मुट्ठी में लेकर आज एक 23 साल का लड़का मुंबई पहुँच चुका था.. नाम था उसका ‘नक्श’
हाँ दोस्तो, मैं नक्श.. आज मेरा दिल बड़े जोर से धड़क रहा था.. घर से पहली बार इतनी दूर जो आ गया था।
आँखें रुआंसी हुई जा रही थीं।
अब तक हर मुश्किलों में अपनी माँ के हाथ थामने की आदत थी।
आज तो मैं अकेला सा पड़ गया था, पता नहीं.. क्या करूँगा.. इतने बड़े शहर में..? कैसी होगी मेरी माँ..? अब तक पापा ने मुझे ढूंढने को एफआईआर भी करवा ही दिया होगा।
मैं तीन महीने पहले झारखण्ड के कोडरमा शहर में चार कमरों के मकान में रहता था.. मेरा एक खुशहाल मध्यम वर्गीय परिवार था।
मम्मी.. पापा.. मैं और मेरी एक बहन.. कितने खुश थे हम सब..
जिंदगी की छोटी-छोटी खुशियों को मज़े से जीना.. वो पापा का मम्मी को चिढ़ाते हुए ‘जुम्मा.. चुम्मा दे दे..’ वाले गाने पर डांस करना.. बहन के ब्वॉय-फ्रेंड को धमकी देना और खुद पड़ोस में आई नई-नई लड़की को देखने के लिए गर्मियों की धूप में उसका इंतज़ार करना।
कितनी अच्छी बीत रही थी मेरी जिंदगी.. पर कहते हैं न, ‘जिंदगी में अगर खूबसूरत सुबह होती है.. तो वहीं काली अँधेरी रात भी होती है।’
जिसने इस रात में हौसला बनाए रखा उसकी नईया पार और जिसने हौसला खो दिया.. वो इन्हीं अँधेरी राहों में खो सा जाता है।
आज 17 फ़रवरी की सुबह.. मेरा जन्म दिन था.. मम्मी की आवाज़ से मेरी आँखें खुलीं.. मेरे सामने घर के सभी सदस्य थे।
‘हैप्पी बर्थडे टू यू…’
इस आवाज़ के साथ सबने मेरे गाल खींचने शुरू कर दिए। अपने बर्थडे की यही बात मुझे पसंद नहीं आती थी। आखिर में मम्मी ने नहा कर मंदिर जाने का निर्देश दिया और फिर सब बाहर हॉल में चले गए।
मैंने एक लम्बी सी जम्हाई ली.. और अपने सेल फ़ोन को चैक करने लगा।
तृषा (मेरी पडोसी और मेरी गर्ल-फ्रेंड) का व्हाट्स ऐप पर मैसेज था- ‘हैप्पी बर्थडे माय लव.. मंदिर जाओ तो मैसेज कर देना… मिस यू सो मच!’
ऐसा नहीं है कि मुझे दूसरों ने शुभ कामनाएँ नहीं भेजी थीं.. पर कसम से इस एक मैसेज ने मेरा दिन बना दिया।
मैंने तृषा को जवाब भेज दिया, ‘अभी एक घंटे में मंदिर के लिए निकलूंगा’ और मैं फ्रेश होने चला गया।
ये मेरा 23 वाँ जन्म-दिन था.. छह फीट की लम्बाई.. हल्का सांवला पर साफ़ रंग.. हल्की भूरी आँखें और जिम में बनाई हुई बॉडी..।
जब मैं अपने फेवरेट गहरे काले रंग के कपड़े पहन कर आईने के सामने खड़ा हुआ.. तभी तृषा मेरे कमरे में दाखिल हुई, ‘ ओह जनाब.. कहाँ आग लगाने का इरादा है..?’
मैंने तृषा के फ्रॉक सूट में ऊँगली फंसा कर उसे अपनी ओर खींचा और बड़े प्यार से उसके कान में कहा- जान हम अपने अन्दर प्यार का समंदर समेटे हैं.. हमने आग लगाना नहीं.. बुझाना सीखा है।
तभी मम्मी की आवाज़ आई- कौन है बेटा..?
मैंने जवाब दिया- तृषा आई है माँ.. वो बर्तन लौटाने और मुफ्त में मिठाई खाने।
मेरा इतना कहना ही था कि तभी पास पड़े मेरे बिस्तर के तकियों की बरसात मुझ पर शुरू हो गई।
खैर.. मैं घर में था.. सो बाहर भाग कर बच गया।
मम्मी- क्या हुआ..? फ्रिज से मिठाई लाओ और खिलाओ तृषा को..
मैंने कहा- अरे माँ अभी पूजा तो कर लूँ, फिर भूखों को खिलाऊँगा.. नहीं तो पुण्य कैसे मिलेगा।
तृषा की गुस्से वाली आँखों ने मुझे एहसास करा दिया कि बेटा.. अब चुप हो जा.. वर्ना ये जन्मदिन को मरण दिन बनने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा।
मैं घर से निकला और मंदिर में पूजा करके अपने सारे करीबियों को मिठाइयाँ बांटी और सबसे आखिर में तृषा के घर पहुँचा।
दोपहर के 12 बज रहे थे, हमेशा की तरह तृषा के पापा ऑफिस जा चुके थे और उसकी मम्मी सारे काम निबटा कर सीरियल देख रही थीं।
घर का दरवाजा तृषा ने ही खोला.. मैं एक शरीफ बच्चे की तरह तृषा पर ध्यान न देते हुए सीधा आंटी की ओर मिठाईयों का डब्बा लेकर चला गया।
मैं- आंटी जी ये मिठाई.. आज मेरा जन्मदिन है।
आंटी- ओह.. वैरी गुड बेटा जी.. हैप्पी बर्थ-डे..
मैं- आंटी आज ग्रेजुएशन का रिजल्ट आने वाला है मेरा.. सो मैं कंप्यूटर पर देख लेता हूँ।
आंटी- ठीक है बेटा.. तृषा.. जाओ ज़रा कंप्यूटर ऑन कर देना।
आंटी फिर से अपने सीरियल देखने लग गईं और मैं और तृषा उसके कमरे की ओर बढ़ चले।
तृषा ने कंप्यूटर ऑन किया और मुझे कुर्सी पर बैठने को बोली।
मैंने तृषा के हाथ को पकड़ा और एक झटके से उसे अपनी ओर खींच लिया। तृषा अब मेरी बांहों में थी।
तृषा- छोड़ो मुझे.. मम्मी आ जाएँगी।
मैं- जान.. आप कुछ भूल तो नहीं रही..
(अपने होंठों पे चूमने सा भाव लाते हुए मैंने तृषा को देखा) मेरा बर्थडे गिफ्ट..?
तृषा ने अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए।
मेरे हाथ अब तृषा की पीठ पर फिसल रहे थे। मैं तो जैसे जन्नत की सैर कर रहा था। मैंने उसे चूमते हए उसके सूट के पीछे लगी चैन को खोलने लगा।
एक हाथ से चैन खोलते हुए.. मेरा दूसरा हाथ उसकी गोलाईयों को नापने लगा।
तृषा की सिस्कारियाँ अब तेज़ होने लगी थीं।
तभी तृषा मुझे खुद से दूर करती हुई अलग हुई और उसने कहा- जान.. अभी मम्मी घर पर हैं.. थोड़ा सब्र करो।
मैं- वहीं तो नहीं होता जान.. खैर अभी रिजल्ट पर ध्यान देता हूँ.. कभी तो अकेली मिलोगी.. तभी सारी कसर निकाल लूँगा।
मेरे अन्दर इस रिजल्ट को लेकर एक घबराहट सी भी थी। मैंने विज्ञान का विषय चुना था.. मैं इसके बाद एमबीए करने जाने वाला था।
दिल्ली में मेरे एक दोस्त ने मेरे लिए सब कुछ सैट किया हुआ था.. सो मैं इस बार किसी भी तरह बस पास होने की उम्मीद कर रहा था.. नहीं तो मेरा पूरा साल बर्बाद हो जाता।
तृषा ने रिजल्ट वाली वेबसाइट खोली और उसने रिजल्ट वाले लिंक पर क्लिक किया। मेरी धड़कन तो जैसे अब जैसे आसमान छू रही थीं।
तृषा ने मेरे एक हाथ को अपने हाथ लिया और अपने सर को मेरे सीने से लगा दिया। तभी रिजल्ट दिखना शुरू हुआ.. पूरे कॉलेज की लिस्ट एक ही पीडीएफ फाइल में थी।
मैंने अपना रोल नंबर ढूँढना शुरू किया।
एक बार.. दो बार.. पूरे बारह बार मैंने उस लिस्ट को मिलाया.. पर मेरा नाम कहीं भी नहीं था.. मैं पागल सा होता जा रहा था। मेरी ऐसी हालत देख तृषा ने मुझे बिस्तर पर बिठा दिया और खुद रिजल्ट देखने लग गई।
थोड़ी देर में उसे मेरा रोल नंबर मिला, पर वो एक पेपर में फेल हुए लड़कों की लिस्ट में था।
रसायन शास्त्र (केमिस्ट्री) में मैं फेल हो गया था।
मैं तो अब तक सदमे में ही था.. अब मैं घर में किसी को क्या जवाब दूँगा.. अपने रिजल्ट के बारे में क्या बताऊँगा सबको..?
मैं तो दिल्ली जाने की लगभग सारी तैयारी कर चुका था।
वैसे ये इतनी बड़ी भी नहीं थी। पास और फेल तो जीवन के ही दो पहलू हैं। आज जो मैं फेल हुआ हूँ.. तो कल फिर से मुझे मौका मिलेगा ही.. तब मैं इसे ठीक कर दूँगा।
हाँ.. पर एक बात तो पक्की थी कि मैं इस साल दिल्ली तो नहीं जा सकता था। क्यूंकि वैसे ही इन्होंने तीन साल के कोर्स को चार साल में पूरा किया था।
अब फिर से एग्जाम लेने में कितना वक़्त लगेगा.. मैं भी नहीं जानता था।
मेरे दिमाग में ये सब ख्याल आ ही रहे थे कि तृषा ने मेरे हाथों को अपने हाथ में ले लिया।
मैं अभी भी बिस्तर पर ही बैठा था। तृषा मेरे बगल में बैठ गई.. हालांकि मैं अब काफी सामान्य हो चुका था.. पर फिर भी मैं अब मज़े लेने मूड में था।
मैं बस ये देखना चाहता था कि आखिर वो मेरी परेशानी में मुझे कैसे संभालती है।
तृषा मेरे सर को अपनी गोद में रख मेरे बालों को सहलाने लगी और साथ-साथ समझाने भी लगी।
तृषा- निशु (वो मुझे प्यार से यही बुलाती थी) तुम उदास मत हो.. कम से कम आज के दिन तो नहीं.. मैं भी पागल ही थी कि तुम्हें रिजल्ट दिखाने लग गई.. जब तुम्हारा नाम नहीं मिला था.. तो मुझे भी छोड़ देना था। देखो.. आज का पूरा दिन खराब कर दिया मैंने..
वैसे तो सच में.. मुझे उसकी सूरत देख हंसी आ रही थी।
मैं उदास सी शकल बनाते हुए बोला- जानू.. इसमें तुम्हारी क्या गलती.. मैंने पेपर सही से नहीं लिखा तो मैं फेल हुआ.. वैसे मैं तो हूँ ही इसी लायक.. सबको परेशान करता हूँ.. तो भला मेरे साथ अच्छा कैसे हो सकता है। देखो तुम्हारा दिल भी तो दुखाता हूँ न..!
तृषा- नहीं बाबू.. मैं क्यूँ परेशान होने लगी तुमसे.. वो तो बस तुम्हें चिढ़ाने को गुस्सा होने का नाटक करती हूँ.. पर जब तुम उदास होते हो तो मेरी जान निकलने लगती है।
ये कहते हुए उसने मेरे सर को चूम लिया।
अब उसकी हालत देख मुझे बुरा लगने लगने लगा। तभी मैंने तृषा के हाथ को.. जो मेरे बाल सहला रहे थे.. पकड़ कर उससे कहा- जानू एक बात कहूँ..?
तृषा- हाँ कहो..
मैं- वो अपने 42 को 32 के शेप में लाओ न.. तुम्हारी प्यारी सी सूरत देख नहीं पा रहा हूँ।
वो मेरे कान मरोड़ते हुए कहने लगी- कमीने.. मैं भैंस दिखती हूँ तुम्हें.. जो मेरे 42 के होंगे.. खैर.. इन सब बातों में मैं तुम्हें तुम्हारा गिफ्ट देना ही भूल गई।
कहानी पर आप सभी के विचार आमंत्रित हैं।
कहानी जारी है।
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