सर बहुत गंदे हैं-1
(Sir Bahut Gande Hain- Part 1)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_right सर बहुत गंदे हैं-2
-
View all stories in series
आप लोगों ने मेरी पिछली कहानियों
कलयुग का कमीना बाप
और
माँ बेटी की मज़बूरी का फायदा उठाया
को बहुत पसंद किया जिसके लिए सभी का धन्यवाद।
यह कहानी मेरे पड़ोस की मेरी भाभी की है जिनकी पिछले साल शादी हुई है। वह बहुत ही सुन्दर है। मेरी उनके साथ बहुत अच्छी दोस्ती है। मैं रोज उनके साथ बातें करता हूँ। उन्हें डायरी लिखने का शौक है। उनके पति कम पढ़े लिखे हैं और दुबई में नौकरी करते हैं। एक दिन संयोग से उनकी डायरी मेरे हाथ लग गई और मैंने उनकी जीवन की एक सच्ची घटना पढ़ ली। उसे उन्हीं के शब्दों में लिख रहा हूँ।
मेरा नाम अंजलि है। मैं बिहार के एक गांव में हायरसेकेंडरी स्कूल में पढ़ती थी। तब मैं साढ़े अठारह साल की थी. हमारी बोर्ड की बारहवीं की परीक्षा शुरू हो रही थी। आज परीक्षा का पहला दिन था और इसमें इंग्लिश का पेपर था। मैं शुरू से ही इंग्लिश में बहुत कमजोर थी। परीक्षा हमारे पड़ोस के गांव के स्कूल में हो रही थी।
मैं अपनी सहेली पिंकी के साथ परीक्षा देने के लिए गई थी। पिंकी मेरी बहुत अच्छी सहेली है लेकिन पिंकी बहुत ही निडर और शरीफ लड़की है। एक बार एक लड़के तरुण ने हम दोनों को छेड़ने की कोशिश की तो पिंकी ने उसकी वह हालत बनाई कि फिर उस दिन के बाद वह कभी सामने नहीं आया।
जब मुझे याद आता है तो मैं सोचने लगती हूँ कि मैं कभी भी ऐसा नहीं कर पाऊंगी।
हमारी क्लास में संदीप और दीपाली पढ़ने में बहुत तेज थे लेकिन मैं और पिंकी हमेशा खेलकूद में लगी रहती थी इसलिए हम लोग पढ़ाई में बहुत कमजोर थीं।
सेक्स के विषय में मुझे ज्यादा तो जानकारी नहीं थी लेकिन एक बार मैंने अपनी मां को गांव के ही एक आवारा लड़के सुन्दर के साथ सेक्स करते हुए देखा था जिसमें मेरी मां उस आवारा लड़के का लंड चूस रही थी और जब लंड से कुछ सफ़ेद-सफ़ेद निकलना शुरू हुआ तो माँ उसे पी गई थी।
कुछ सहेलियों से सेक्स के विषय में थोड़ा-बहुत सुना था कि लड़के लोग लड़कियों की चूत में लंड को घुसाकर चोदते हैं जिसमें लड़कियों को बहुत दर्द होता है लेकिन बाद में लड़कियों को अच्छा लगने लगता है।
बाकी क्लास में कभी-कभी टीचर हम लोगों के शरीर पर हाथ फेर लिया करते थे। इससे ज्यादा हम लोग यही जानते थे कि सेक्स करने से पेट में बच्चा आ जाता है।
सुबह-सुबह तैयार होकर मैं और पिंकी परीक्षा देने के लिए उस गांव पहुंच चुकी थी. वहां पता चला कि परीक्षा बहुत टाइट होने वाली है। मैं मन ही मन घबराई हुई थी क्योंकि वैसे भी मुझे इंग्लिश में कुछ आता नहीं था. लेकिन मैंने कुछ पेपर चिट (नकल करने के लिए पर्ची) बनाया हुआ था जो मैं अपने कच्छी में छिपा कर ले गई थी।
एग्जाम के लिए बेल बजी और हम सीटिंग शीट देख कर अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गये. मैं एग्जाम को लेकर बहुत सहमी हुई थी. इंग्लिश का पेपर मेरे लिए टेढ़ी खीर था. 3-4 पर्चियाँ बनाकर ले गयी थी. पर भरोसा नहीं था उसमें से कुछ आएगा या नहीं.
अचानक संदीप हमारे कमरे में आया और मेरी बराबर वाली सीट पर बैठ गया. मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा. अगर ये मदद कर दे तो … मैंने सोचा और उसकी तरफ मुड़कर बोली- कैसी तैयारी है संदीप?
“ठीक है … तुम्हारी?” उसने शराफ़त से जवाब देकर पूछा.
“मेरी? … क्या बताऊं? आज तो कुछ नहीं आता … मैं तो पक्का फेल हो जाऊंगी आज के पेपर में!” मैंने बुरा सा मुँह बनाकर कहा।
“कुछ नहीं होता … रिलेक्स होकर पेपर देना … जो क्वेस्चन अच्छे आते हों उनका जवाब पहले लिखना … एक्जामीनर पर इंप्रेशन बनेगा … ऑल द बेस्ट!” उसने कहा और सीधा देखने लगा।
“सिर्फ़ ऑल द बेस्ट से काम नहीं चलेगा.” मैं अब उसका यूँ पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी।
“मतलब?” उसने अर्थपूर्ण निगाहों से मेरी तरफ देखा।
“कुछ हेल्प कर दोगे ना … प्लीज़ …” मैंने उसकी तरफ प्यार भरी मुस्कान उछालते हुए कहा।
“मुझे अपना पेपर भी तो करना है … बाद में कुछ टाइम बचा तो ज़रूर …” उसने फॉरमेलिटी सी पूरी कर दी।
“प्लीज़.. हेल्प कर देना …” मैंने बेचारगी से उसकी ओर देखते हुए याचना सी की.
इससे पहले कि वो कोई जवाब देता, कमरे में इनविजाइलेटर्स (निरीक्षक)आ गये. उनके आते ही क्लास एकदम चुप हो गयी. संदीप भी सीधा होकर बैठ गया. मैं मन मसोस कर भगवान को याद करने लगी.
पेपर हाथ में आते ही सबके चेहरे खिल गये. पर मेरे चेहरे पर तो पहले की तरह ही 12 बजे हुए थे. मैं डिफिकल्ट क्वेस्चन्स की नकल लेकर आई थी. मगर पेपर आसान आ गया. मेरे लिए तो इंग्लिश में आसान और मुश्किल सब एक जैसा ही था.
“अब तो खुश हो जाओ. पेपर बहुत ईज़ी है. है या नहीं?” मेरे कानों में धीरे से संदीप की आवाज़ सुनाई दी. मैंने कुछ बोलने के लिए उसकी ओर देखा ही था की वह फिर से बोल पड़ा.
“मेरी तरफ मत देखो. ‘सर’ की नज़रों में आ जाओगी”
मैंने अपना सिर सीधा करके झुका लिया.
“मुझे नहीं आता कुछ भी इसमें से …”
काफ़ी देर तक जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने अपनी नज़रें तिरछी करके उसको देखा. वह मस्ती से लिखने में खोया हुआ था. मैं रोनी शक्ल बनाकर कभी क्वेस्चन पेपर को कभी आन्सर शीट को देखने लगी.
पेपर शुरू हुए करीब आधा घंटा हो गया था और मैं फ्रंट पेज पर अपनी डीटेल लिखने के अलावा कुछ नहीं कर पाई थी. अचानक पीछे से एक पर्ची आकर मेरे पास गिरी. इसके साथ ही किसी लड़के की हल्की सी आवाज़ भी कानों में पड़ी- उठा लो … दस मार्क्स का है!
मैंने ‘सर’ पर एक निगाह डाली और उनकी नज़र से बचाते हुए अचानक पर्ची को उठाकर अपनी कच्छी में ठूंस लिया.
मुझे कुछ तसल्ली हुई कि आख़िर मेरा भी कोई ‘कद्रदान’ कमरे में मौजूद है. मैंने पीछे देखा मगर सभी नीचे देख रहे थे. समझ में नहीं आया कि मुझ पर ये ‘अहसान’ किसने किया है.
कुछ देर मौके का इंतज़ार करने के बाद धीरे से मैंने अपनी स्कर्ट के नीचे अपनी कच्छी में हाथ डाला और पर्ची निकाल कर आन्सर शीट में दबा ली.
पर्ची को खोल कर पढ़ते ही मेरा माथा ठनक गया. वह एक गंदा लव लेटर था। मैंने देखा कुछ अश्लील बातें उसमें लिखी हुई थी। नीचे मेरा नाम भी लिखा था. मैंने हताश होकर पर्ची को पलट कर देखा, शुक्र था कि उस गंदे लव लेटर के पीछे एक एस्से टाइप क्वेस्चन का आन्सर भी लिखा हुआ था.
ज़्यादा ध्यान न देकर मैंने फटाफट उसकी नकल उतारनी शुरू कर दी. पर उस दिन मेरी किस्मत ही खराब थी. शायद बाहर बरामदे की खिड़की में से किसी ने मुझे ऐसा करते देख लिया था. मैंने अभी आधा क्वेस्चन भी नहीं किया था कि अचानक बाहर से एक ‘सर’ आए और मेरी आन्सर शीट को उठाकर झटक दिया. पर्ची नीचे आ गिरी.
“ये क्या है?” उन्होंने गुस्से से पूछा।
करीब 35-40 साल के आसपास की उम्र होगी उनकी.
“… जी … पीछे से आई थी!” मैं सहम गयी.
“क्या मतलब है पीछे से आई थी? अभी तुम्हारी शीट से निकली है या नहीं?” उनका लहज़ा बहुत ही सख़्त था.
मैं अंदर तक काँप गई.
“जी … पर मैंने कुछ नहीं लिखा … आप चाहे तो मेरी अन्सरशीट देख लो …”
उस ‘सर’ ने मुझे घूर कर देखा और पर्ची उठाकर हाथ में ले ली. थोड़ी देर मुझे यूँ ही उपर से नीचे देखते रहने के बाद उन्होंने मेरी शीट इनविजाइलेटर (निरीक्षक) को पकड़ा दी.
“शीट वापस नहीं करनी है. मैं थोड़ी देर में आकर इसका यू.एम.सी. (नकल पकड़े जाने पर बनाया जाने वाला पेपर) बनाऊँगा”. उन्होंने कहा और पर्ची हाथ में लेकर निकल गये.
यू.एम.सी का मतलब था परीक्षा में नक़ल करते हुए पकड़े जाने पर एक से तीन साल तक के लिए बोर्ड परीक्षा से निष्काषित कर दिया जाना.
मैं बैठी-बैठी सुबकने लगी. अचानक संदीप ने कहा- रिक्वेस्ट कर लो. नहीं तो पूरा साल खराब हो जाएगा.
उसके कहने पर मैं उठकर ‘सर’ के पास जाकर खड़ी हो गयी- सर प्लीज़ … शीट दे दो. अब नही करूँगी.
“इसमें मैं क्या कर सकता हूँ भला? बोर्ड ऑब्ज़र्वर ने तुम्हारी शीट छीनी है. मैंने तो तुम्हें पर्ची उठाते देख कर भी इग्नोर कर दिया था. मगर अब तो जैसा वो कहेंगे वैसा ही करना पड़ेगा. उनसे रिक्वेस्ट करके देख लो. ऑफिस में प्रिन्सिपल मैडम के पास बैठे होंगे.” सर ने अपनी मजबूरी जता दी।
“जी ठीक है …” मैं कहकर बाहर निकली और ऑफिस के सामने पहुँच गयी.
‘वो’ वहीं बैठे प्रिन्सिपल मैडम के साथ खिलखिला रहे थे.
मुझे देखते ही उन्होंने अपना थोबड़ा चढ़ा लिया और कहा- हां … क्या है?
“जी … मेरा साल बर्बाद हो जाएगा.” मैंने सहमे हुए स्वर में कहा।
“साल? तुम एक साल की बात कर रही हो? तुम्हारे तीन साल खराब होंगे. मैं तुम्हारा यू.एम.सी. बनाने जा रहा हूँ. सारा साल पढ़ाई क्यूँ नहीं की?” उनकी आवाज़ उनके शरीर की तरह ही बहुत भारी थी.
“सर प्लीज़! कुछ भी कर लो. पर सीट दे दो” मैंने याचना की।
वे कुछ देर तक मेरी ओर देखते रहे. मुझे उनकी नज़रें सीधी मेरी चूचियों में गड़ी हुई महसूस हो रही थी. पर मैंने परवाह न की … मैं यूँ ही बेचारी नज़रों से उनके सामने खड़ी रह कर उनको नज़रों से अपनी जवानी का जाम पीते देखती रही.
वे कुछ नर्म पड़े, प्रिन्सिपल की ओर देख कर बोले- क्या करें मैडम?
प्रिन्सिपल खिलखिला कर बोली- ये तो आपको ही देखना है माथुर साहब! वैसे … लड़की का बदन भरा हुआ है … मेरा मतलब पूरी जवान लग रही है” उसने पैनी नज़रों से मुझे देखते हुए कहा और उनकी तरफ बत्तीसी निकाल दी.
“घर वाले भी लड़का वड़का देख लेंगे अगर पास हो गयी तो …”
“ठीक है … पीऊन को भेज कर शीट दिलवा दो … मैं सोचता हूँ तब तक!” उन्होंने मेरी उभरती जवानियों का लुत्फ़ लेते हुए कहा।
मुझे थोड़ी शांति मिली. अपनी आन्सर शीट लेकर मैं अपनी सीट पर जा बैठी. पर अब करने को तो कुछ था नहीं. बैठी-बैठी जितना लिखा था. उसको पढ़ने लगी.
मुश्किल से 5 मिनट भी नहीं हुए होंगे … क्लास में पीऊन आकर बोला- “उस लड़की को प्रिन्सिपल मैडम बुला रही हैं जिसको अभी शीट मिली थी.
मैं एक बार फिर मायूस सी होकर उठी और आन्सर शीट वहीं छोड़ कर ऑफिस के बाहर चली आई.
पर मुझे न तो मैडम ही दिखाई दी और न ही ‘सर’
“कहाँ हैं मैडम?” मैंने पीऊन से पूछा।
“अंदर चली जाओ. पीछे बैठे होंगे” पीऊन ने कहा।
मैंने अंदर जाकर देखा तो दोनों ऑफिस में पीछे सोफे पर साथ-साथ बैठे कुछ पढ़ रहे थे. मेरे अंदर जाते ही मैडम ने मुझे घूर कर देखा.
“आ जा … पहले तो तू मेरे पास आ …”
“जी …” मैं मेडम के पास जाकर नज़रें झुका कर खड़ी हो गयी।
“ये क्या है?” मेडम ने एक पर्ची मुझे दिखा कर टेबल पर पटक दी.
मैंने देखा तो वो वही पर्ची थी जो सर मुझसे छीन कर लाए थे. उन्होंने टेबल पर मेरे सामने उस ‘लव लेटर’ को ऊपर करके रखा हुआ था.
“जी … मुझे नहीं पता कुछ भी …” मैंने शर्मिंदा सी होकर जवाब दिया।
“अच्छा … तुझे अब कुछ भी नहीं पता … यू.एम.सी. बना दूँगा तब तो पता चल जाएगा न…?” सर ने गुस्से से कहा।
“जी … ये मेरे पास पीछे से आकर गिरी थी … मुझे नहीं पता किसने …” मैंने धीमे स्वर में हड़बड़ा कर कहा।
“क्या नाम है तेरा?” मैडम ने पूछा।
“जी … अंजलि!”
“ये देख … तेरा ही नाम लिखा है ऊपर … और तू कह रही है कि तुझे कुछ नहीं पता … ऐसे कितने यार बना लिए हैं तूने अब से पहले?” मैडम ने तैश में आकर कहा।
मुझसे कुछ बोला ही नहीं गया … मैं चुपचाप सिर झुकाए खड़ी रही।
“मैं न कहता था मैडम … आजकल लड़कियाँ उम्र से पहले ही जवान हो जाती हैं … अब देख लो … सबूत आपके सामने है!” सर ने मैडम को मुस्कराते हुए मुझे देख कर कहा। वह मेरी मजबूरी पर चटखारे ले रहे थे.
“हम्म … और बेशर्मी की भी हद होती है … जवान हो गयी तो क्या? हमारे टाइम में तो ऐसी गंदी बातों का पता ही नहीं होता था इस उम्र में … और इसको देख लो … कैसे-कैसे गंदे लेटर आते हैं इसके पास … कौन है तेरा यार? बता?”
“जी … मुझे सच में कुछ नहीं पता … भगवान की कसम …” मैंने आँखों में आँसू लाते हुए कहा।
“अब छोड़ो मैडम … जो करेगी वो भरेगी … हमारा क्या लेगी? इसकी शीट मंगवा लो … मैं यू.एम.सी. बना देता हूँ. तीन साल के लिए बैठी रहेगी घर … और ये लेटर भी तो अख़बार में देने लायक है …” सर ने कहा।
“सर प्लीज़ … ऐसा मत कीजिए..!” मैंने नज़रें उठाकर सर को देखा. मेरी आँखें डबडबा गयीं. मगर वो अभी भी मेरी कमीज़ में बिना ब्रा के ही तनी हुई मेरी चूचियों को घूर रहे थे।
“तो कैसा करूँ?” उन्होंने मुझे देख कर कहा और फिर मेडम की तरफ बत्तीसी निकाल कर हँस दिए.
“देख लीजिए सर … अब इसकी जिंदगी और इज़्ज़त आपके ही हाथ में है!” मैडम भी कुछ अजीब से तरीके से उनकी ओर देखकर मुस्कराई।
“पूछ तो रहा हूँ … क्या करूँ? ये कुछ बोलती ही नहीं …” उनकी वासना से भरी आँखें लगातार मेरे बदन में ही गड़ी हुई थी.
“सर प्लीज़ … मुझे माफ़ कर दो … आइन्दा नहीं करूँगी …” मैंने अपनी आवाज़ को धीमा ही रखा।
“इसकी तलाशी तो ले लो एक बार … क्या पता कुछ और भी छिपा रखा हो!” सर ने मैडम से कहा।
तलाशी की बात सुनते ही मेरे होश उड़ गये. जो पर्चियाँ मैं घर से बना कर लाई थी. वो अभी भी मेरी कच्छी में ही फँसी हुई थीं. मुझे अब याद आया।
“ना जी ना … मैं क्यूँ लूं …? ये आपकी ड्यूटी है … जो करना हो करिए … मुझे कोई मतलब नहीं!” मैडम ने हंसते हुए जवाब दिया।
“मैं? मैं मर्द भला इसकी तलाशी कैसे ले सकता हूँ मैडम? वैसे भी ये पूरी जवान है! मुझे तो ये हाथ भी नहीं लगाने देगी.” बोलते हुए उसकी आँखें कभी मुझे और कभी मैडम को देख रही थीं।
“ऐसी वैसी लड़की नहीं है ये, हज़ार आशिक तो जेब में रख कर चलती होगी. इसको कोई फ़र्क नही पड़ेगा मर्द के हाथों से. और मना करती है तो आपको क्या पड़ी है … बना दीजिए यू.एम.सी. सबूत तो आपके सामने रखा ही है … पर मैं तलाशी नही लूँगी सर!” मैडम ने साफ मना कर दिया।
“मैं सेंटर घूम कर आती हूँ सर … तब तक आप …”
मैडम मुस्कराकर कहते हुए अपनी बात को बीच में ही छोड़ कर उठी और बाहर चली गयी।
कहानी अगले भाग में जारी है.
[email protected]
What did you think of this story??
Comments