शायरा मेरा प्यार- 12

(Shayra Mera Pyar- Part 12)

This story is part of a series:

दोस्तो, मैं महेश एक बार फिर से शायरा के प्यार की सेक्स कहानी का अगला भाग लेकर हाजिर हूँ.

अब तक आपने जाना था कि मैं और शायरा खाने की टेबल पर बैठे थे.

अब आगे:

मैं- पता है पनीर की हर सब्जी मेरी फेवरेट है.
वो- मैंने बनाया तो अब पनीर तुम्हारा फेवरेट बन गया?

मैं- कसम से झूठ नहीं बोल रहा, चाहो तो मेरी भाभी से फोन करके पूछ लेना.
वो- नहीं रहने दो.

मैंने रोटी का टुकड़ा तोड़कर पनीर के साथ एक निवाला मुँह में ले लिया और आंखें बंद करके उसे खाने लगा.

शायरा तो अब मुझे देखती ही रह गयी. सच में ही खाना बहुत टेस्टी था.

इसलिए पहला निवाला खाते ही मैंने शायरा के एक हाथ को पकड़ कर उसे चूम लिया और शायरा बस देखती रह गयी.

मैं- आज तो तुमने मेरी भाभी को भी फेल कर दिया.
वो- बस … बस … और ज़्यादा तारीफ करोगे, तो मेरा पेट भर जाएगा.

मैं- सच में तुम्हारे हाथों में जादू है.
वो- तुम्हें मेरा खाना सच में पसंद आता है … या मुझे खुश करने के लिए ऐसा बोलते हो?

मैं- मेरी मां की कसम, अब तक खाया हुआ बेस्ट खाना है ये!
शायरा मेरे तारीफ करने से खुश हो गयी.

मैं- कसम से सच कह रहा हूँ अगर तुम्हारी शादी ना हुई होती … तो मैं तुमसे शादी कर लेता और रोज तुम्हारे खाने की तारीफ करता और रोज मुझे टेस्टी खाना खाने को मिलता.
वो- कुछ भी भी बोलते रहते हो.

मैं- नहीं सच में … तुम खुद खा कर देख लो, रूको मैं ही खिलाता हूँ.

ये कहते हुए मैंने एक निवाला शायरा की तरफ बढ़ा दिया. शायरा मुझे बस देखती रह गयी और चुपचाप मेरे हाथ से वो निवाला खा लिया.

मेरे हाथों से खाना खाते ही शायरा की आंखों में आंसू भर आए थे.
शायरा ने अपने आंसू छुपाने की भी कोशिश की मगर फिर भी मैंने देख लिया था इसलिए.

मैं- सॉरी, अगर मैंने कुछ गलत कह दिया तो … मेरी वजह से तुम्हारी आंख में आसू आ गए.

वो- ये आंसू तुम्हारी वजह से नहीं, मुझे मेरी किस्मत पर आए हैं.
मैं- क्यों क्या हुआ?

वो- एक तुम हो जो मेरी, मेरे खाने की तारीफ करते करते नहीं थकते और एक मेरा हज़्बेंड हैं जिन्होंने कभी ये भी नहीं कहा कि खाना अच्छा बना है, बस भुक्कड़ की तरह ख़ा लेते हैं और ये भी नहीं पूछते कि मैंने खाना खाया कि नहीं.
मैं- शायद तुम्हारी किस्मत में यही लिखा हो!

वो- पता नहीं क्यों मेरी किस्मत ऐसी है!
मैं- तुम्हारा हज़्बेंड यहां नहीं है … तो भूल जाओ कि तुम शादीशुदा हो और अपनी लाइफ को एंजाय करो.

वो- क्या मतलब!
मैं- मतलब तुम ये चुपचाप व गुमसुम सा रहना बंद करो और अपनी लाईफ को एन्जाय करो.

वो- और वो कैसे?
मैं- देखो, पिछले दो दिन में तुम हर पल हंसती आ रही हो कि नहीं?

वो- हां ये तो है, मैं तो हंसना भूल ही गयी थी … मगर जब से तुमसे दोस्ती की है … तो फिर से हंसना सीख गयी.

मैं- दोस्त होते ही हैं हंसाने के लिए … और तुम ना, हंसते हुए और भी खूबसूरत लगती हो.
वो- पर क्या फ़ायदा ऐसी खूबसूरती का, जिसके लिए है, वो तो बहुत दूर जाकर बैठा है.

मैं- ऐसा मत कहो, खूबसूरती को ऐसे बर्बाद मत करो.
वो- तो क्या करूं?

मैं- मैं हूँ ना!
वो- क्या?

शायरा ने चौंकते हुए मेरी तरफ देखा.
मैं- म्म्.मेरा मतलब है, मुझसे दोस्ती की है … तो मेरे साथ जीना शुरू करो, देखो मैं तुम्हें कभी रोने नहीं दूँगा.
वो- थैंक्स.

मैं- अब एक प्यारी सी स्माइल दो. वैसे चाहो तो कातिल स्माइल भी दे सकती हो या फिर सेक्सी स्माइल भी दे सकती हो या फिर झूठी स्माइल भी कर सकती हो.
शायरा मेरी बात से फिर से‌ हंसने लगी.

वो- बस बस … वरना हंस हंस कर मेरा पेट दुख जाएगा.
मैं- अभी से … अभी तो स्माइल के और टाइप बताना बाकी हैं.

वो- तुम क्या एक दिन में हंसा कर जाना चाहते हो!
मैं- सच कहूँ, तो जब तुमसे झगड़ा हुआ था … तो सोच रहा था कि जल्दी से जल्दी यहां से कमरा चेंज कर लूंगा, पर जब से तुमसे दोस्ती हुई है तो सोच रहा हूँ कि यहां से कभी‌ जाऊं ही ना.

वो- मेरे लिए!
मैं- नहीं, दोस्त के लिए.
वो- थैंक्स.

मैं- वैसे तुम्हारी शादी अरेंज मैरेज थी?
वो- हां.

मैं- तुम इतनी खूबसूरत हो तो कोई अच्छा लड़का नहीं मिला!
वो- मेरे मम्मी पापा ने बिना पूछे शादी तय कर दी, पैसे देख कर ये शादी हुई थी.

मैं- जाने दो, अब मैं आ गया हूँ ना. तुम्हारा हज़्बेंड तुम्हें पैसे देगा और मैं तुम्हें खुशी दूँगा.
वो- इसका ग़लत मतलब तो नहीं है ना?

मैं- नहीं, अगर हमें ग़लती करनी हो तो एक दूसरे से सहमति से करेंगे.
वो- मतलब ग़लती करना चाहते हो!

मैं- तुम हां कहो तो.
वो- नहीं.

मैं- तो बात ख़त्म, चलो खाना खाते हैं, तुम्हारी और तारीफ करनी है.
वो- फिर नहीं खाऊंगी मैं खाना, तुम्हारी तारीफ से मेरा पेट भर जाता है.

मैं- वैसे पता है ऐसी तारीफ हमेशा लड़की को पटाने के लिए करते हैं.
वो- पता है.

मैं- तुम्हें बुरा नहीं लगता या डाउट नहीं होता मुझ पर?
वो- ये तो पता है कि तू बहुत कमीना है, पर लगता नहीं तुम मेरे साथ भी ऐसा कुछ करोगे.

मैं- क्यों?
वो- बस तुम्हें देख कर लगता नहीं है.

मैं- ऐसा है क्या?
वो- हां, अभी तक‌ तो यही लग रहा है.

खाना खाने के बाद भी हम दोनों ऐसे ही कुछ देर तक बातें करते रहे.

फिर मैं उठकर खड़ा हो गया और जोर से डकार मारते हुए बोला- आह ओम्म्म् म्म्म् … आज तो मजा आ गया, बस अब जाकर सो जाता हूँ और कल सुबह ही उठूंगा.
वो- क्यों रात को खाना नहीं खाना?

मैं- नहीं.
वो- क्यों?

मैं- अब इतना टेस्टी लंच करने के बाद रात को होटल का खाना खा कर मुँह का टेस्ट क्यों खराब करना और …

मैं बात पूरी करता, तब तक शायरा बीच में ही बोल पड़ी- बस … बस … अब और तारीफ नहीं करना.
मैं- तारीफ नहीं, सच कह रहा हूँ. खाना इतना टेस्टी था कि मैंने तो इतना ठूंस ठूंस कर खा लिया कि शाम तक उठना भी मुश्किल होगा. पर हां. अगर तुम अपने यहां डिनर बनाओगी, तो मना नहीं करूंगा.

मैंने अब हंसते हुए इस अदा के साथ कहा कि शायरा भी हंसने लगी.

वो- अच्छा. पहले ब्रकेफास्ट, फिर लंच और अब डिनर भी मैं ही बना‌ कर खिलाऊं. तुम्हें नहीं लगता कि ये दोस्ती कुछ ज्यादा ही महंगी होती जा रही है?
मैं- नहीं करवाना तो मना कर दो, मुझे भूख होगी तो होटल से खा लूंगा.
मैंने थोड़ा रूखेपन से कहा.

वो- ठीक है … ठीक है. अब ज्यादा भाव मत दिखा भुक्कड़ … जब खाना बनेगा तो बुला लूंगी.
मैं- बुलाने की जरूरत नहीं, वो तो टाइम पर मैं खुद ही आ जाऊंगा.

वो- हां टाइम पर तुम रोज आ ही जाते हो, भुक्कड़ कहीं के.
मैं- भुक्कड़?
वो- हां भुक्कड़.

मैं- भुक्कड़ तो हूँ मगर बस प्यार का!
वो- मतलब?

मैं- मतलब ये कि कहां तो ये प्यार से बना तुम्हारे हाथों को टेस्टी खाना बिल्कुल मेरी भाभी के जैसा … और कहां वो मूंछों वाली भाभी के रूखे सूखे हाथों से बना खाना.

वो- अब ये मूंछों वाली भाभी कौन आ गयी?
मैं- अरे … घर में खाना‌ कौन बनाता है? कोई औरत ही बनाती है ना, मगर होटल में जेन्टस बनाता है. मेरे घर में मेरी भाभी खाना बनाती है … इसलिए होटल वाला मेरे लिए तो भाभी ही हुआ ना, मगर उसकी मूंछ होती है न … इसलिए वो मूंछों वाली भाभी हो गयी.

मेरी ये बात सुनकर शायरा बहुत जोर से खिलखिलाकर हंस पड़ी और हंसते हुए ही कहने लगी- सच में तू पूरा पागल है.
शायरा को हंसता हुआ छोड़कर मैं अब ऊपर अपने कमरे में आ गया.

मैंने तो मजाक में ही शायरा से डिनर के लिए कहा था.

सच में शायरा ने खाना बहुत टेस्टी बनाया था इसलिए मैंने कुछ ज्यादा ही खा लिया था.

मेरी उस रात खाने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी मगर रात को नौ बजे के करीब शायरा मुझे डिनर के लिए भी बुलाने आ गयी.

पहले ब्रेकफास्ट, फिर लंच और अब डिनर, सच में मेरी तो निकल ही पड़ी थी. अब मुझे क्यों ऐतराज होता. मैं भी उसके‌ घर डिनर के लिए चला गया.

डिनर में इतना कुछ ज्यादा खास नहीं था. दिन में खाना काफी हैवी हो गया था इसलिए डिनर में शायरा ने बस दाल चावल ही थे … मगर फिर भी मैंने शायरा के खाने की तारीफ करनी शुरू कर दी.

मैं- लगता है तुम्हारे हाथों में कोई जादू है, तुम‌ चाहे कुछ भी बनाओ … एकदम टेस्टी बनता है.
वो- मिल गया ना खाना … बस अब ज्यादा बना मत और चुपचाप खाना‌ खा ले.

मैं- अब इसमें क्या बना‌ दिया! जो बात है … वो ही तो कह रहा हूँ.
वो- तू अब चुपचाप खाना भी खाएगा या ऐसे बकता रहेगा!

मैं- अच्छा तो ये बातें छोड़ो … ये बताओ कल तो साथ में बैंक चलोगी?
वो- देखती हूँ.

मैं- क्यों, अभी भी सुनामी रुकी नहीं क्या?
मैंने सीधा सीधा ही उसके पीरियड के लिए कहा, जिससे शायरा एक बार तो थोड़ा झेंप सी गयी.
फिर शर्म से उसके चेहरे पर हल्की‌ मुस्कान सी आ गयी.

वो- ओय … त्.त.तू मानेगा नहीं.
शायरा बस हकला कर रह गयी मगर मैं कहां चुप होने वाला था.

मैं- अब तो मैंने पैड भी ला दिए फिर क्या दिक्कत है?
वो- ठीक है चलूंगी.

शायरा को पीछा छुड़ाने के लिए अब हामी ही भरनी ही पड़ी.

वो- तुम‌ सब से ऐसे ही बात करते हो?
मैं- हां … दोस्तों से तो ऐसे करता हूँ … क्यों?

मैंने ऐसे शांत तरीके से कहा, जैसे मैंने कुछ गलत कहा ही नहीं था.

वो- हां … वो तो मैंने तुम्हें उस दिन एसटीडी में बात करते हुए ही देख लिया था, पर लड़का लड़की में कुछ तो फर्क‌ कर लिया कर.
मैं- दोस्त दोस्त होते हैं, इसमें लड़का‌ लड़की‌ कहां से आ गए … ये कल भी कहा था.

वो- तुम ना … बस तुम से तो बात करना ही बेकार है.
मैं- अब इसमें क्या गलत कह दिया? दोस्तों के साथ तो ऐसे ही बात करते हैं.

वो- जैसा कमीना तू है ना, वैसे ही तेरे सारे दोस्त होंगे … और लगता तू मुझे भी वैसा ही बना कर छोड़ेगा.
मैं- हां … वो तो है … पर तुम्हें मेरे जैसा बनने में अभी टाईम लगेगा.

मैंने हंसते हुए कहा, जिससे शायरा भी हंसने लगी.

वो- हांआआआ …
उसने मुँह सा बना के मुझे चिड़ाते हुए कहा और हम दोनों फिर से हंसने लगे.

वो- मेरे बारे में तो बहुत पूछ लिया. अब कुछ अपने बारे में भी तो बताओ.
शायरा ने बात को बदलने के लिए कहा.

मैं- मेरे घर में माता पिता है, भैया भाभी है और एक छोटा और प्यारा सा भतीजा है जो अभी साल भर का ही हुआ है.
वो- एक बार में ही सब कुछ बता दिया.

मैं- और क्या मेरे बारे में जानकर क्या टाइम वेस्ट करना.

वो- और गर्लफ्रेंड … गर्लफ्रेंड नहीं है कोई!
मैं- अम्म्.. पहले रही है, पर अभी तो कोई नहीं.

वो- पहले रही है मतलब … अब कहां गयी?
मैं- सबने छोड़ दिया.

वो- और तुम्हारी वो टीचर, वो तो है.
मैं- वो मेरी गर्लफ्रेंड नहीं है.

वो- तो फिर क्या है?
मैं- बताया तो था, वो मेरी भाभी की कजिन है.

वो- तो फिर है तो गर्लफ्रेंड ही ना!
मैं- नहीं … गर्लफ्रेंड तो वो होती है … जिससे शादी करनी हो.

वो- तो उससे शादी भी कर लेते. तुम‌ तो बता रहे हो‌ कि‌ उसे शादी के पहले से ही जानते‌ हो!
मैं- हां, पर एक तो मैं अभी‌ तक‌ पढ़ाई कर रहा हूँ … और दूसरा वो मुझसे काफी‌ बड़ी है.

वो- तो क्या हुआ? जब उसके साथ इतना‌ कुछ हो गया था, तो शादी भी कर लेते.
मैं- भैया मुझे जान से मार देंगे.

वो- अगर मैं डाइवोर्स लूं और कहूँ कि तुमसे शादी करना चाहती हूँ … तो क्या कहोगे?

शायरा की आंखों में देखने से ही पता चल रहा था कि उसने ये शादी वाली बात दिल से पूछी थी, पर उसका जवाब जैसा उसे चाहिये था … मैंने उसके उलट दिया.

मैं- उम्म्म् … देखो सच बोलूंगा … शादी तो मेरी भाभी की पसंद से और भैया मर्जी से ही करूंगा. वैसे भी हमारे घर में सब कुछ भैया की मर्जी से ही होता है.
वो- तुम मेरी इतनी तारीफ करते हो फिर भी … या फिर बस मुझे पटाने के लिए ही तारीफ करते हो?

मैं- तारीफ … तारीफ तो तुम हो ही ऐसी कि तुम्हें देखते ही अपने आप मुँह से निकल गई.
वो- मतलब मैं सेफ हूँ, तुमसे मुझे कोई ख़तरा नहीं है!

मैं- तो इसलिए पूछा? मुझे लगा तुम्हारे दिल में भी मेरे लिए कुछ कुछ होने लगा है?
वो- देख रही थी कि तुम क्या कहते हो, पर तुमने जो जवाब दिया … वो बहुत कम लोग ही जवाब देते हैं. नहीं तो लड़की पटाने के लिए लोग बस हां में हां मिला देते हैं.

मैं- सच बोलना सही रहता है.
वो‌- मतलब तो मैं तो सेफ हूँ न!

मैं- नहीं.
वो- तो?

शायरा ने तुरन्त मेरी तरफ देखा.
मैं- मैंने शादी के लिए मना किया है, पटाने के लिए नहीं.

शायरा फिर से हंसने लगी.

वो- अच्छा … पर बच्चू तेरी दाल यहां नहीं गलेगी.
मैं- मेरी दाल तो कबकी गल गयी.

वो- मतलब?
शायरा ने फिर से मेरी तरफ हैरानी से देखा.

मैं- अरे … मैं तो मेरी इस दाल की बात कर रहा हूँ.

मैंने टेबल पर रखी दाल के बर्तन की तरफ इशारा करते हुए कहा और उसमें से अपनी प्लेट में दाल डालने लगा, जिससे शायरा फिर से हंसने लगी.

ऐसे ही हंसी मजाक करते करते हमने खाना खत्म‌ किया और मैं वापस ऊपर अपने‌ कमरे में आ गया.

फिर अगले दिन सुबह तैयार होकर मैंने शायरा के घर का दरवाजा खटखटा दिया.

शायरा भी बैंक जाने के लिए तैयार ही थी. मगर उसने आज जींस और टी-शर्ट पहनी थी, जिसमें वो इतनी अधिक खूबसूरत, सेक्सी और हॉट लग रही थी कि मैं तो बस उसे देखता ही रह गया.

वो- मुँह बंद करो … वरना मक्खी चली जाएगी.
मैं- सच कहूं … तुम ना दिन व दिन इतनी खूबसूरत होती जा रही हो कि मुँह खुलना वाजिब है.

शायरा मेरे तारीफ करने से शर्मा गयी गयी थी … इसलिए मेरी बात को वो बीच में ही काटते हुए बोली- अब अगर फिर से तारीफ की … तो मैं नहीं जाऊंगी तेरे साथ.
मैं- नहीं जाना तो मत जाओ, मैं अकेले चला जाऊंगा. एक तो ड्राइवर के जैसे मैडम को ऑफिस तक लेकर आना जाना करो, फिर ऊपर से नखरे भी सहो!

मेरी बात सुनकर शायरा हंसने लगी- ड्राइवर हो ना … तो फिर ड्राइवर के जैसे ही रहो.
मैं- ठीक है … ठीक है … नहीं कुछ कहता बस … पर अब नाश्ता तो करवा दो!
वो- हां तो ऐसे बोल ना कि नाश्ता चाहिये.

हम दोनों ने साथ में बैठकर नाश्ता किया, फिर साथ में स्कूटी से उसके बैंक आ गए. मैंने पहले की तरह ही शायरा को बैंक छोड़ा, फिर स्कूटी लेकर अपने कॉलेज आ गया.

शायरा के साथ मेरी प्रेम गाथा अब गहरे रंग में रंगती जा रही थी. इस सेक्स कहानी को आगे और भी कामुक रंग में लिखूंगा. आपके मेल के इंतजार में आपका महेश.
[email protected]

कहानी जारी है.

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