टास्क गेम: न्यूड साइकलिंग

(Nude Girls Fun Story)

न्यूड गर्ल फन स्टोरी दो लड़कियों की है जिन्हें सेक्स से भरपूर कारनामे करने का शौक है. वे अपनी सहेली की शादी में गाँव में गयी तो उन्होंने क्या किया?

यह कहानी सुनें.
भाग 1

भाग 2

दोस्तो, मैं रीटा फिर एक बार आपके सामने प्रस्तुत हूं मेरी एक और कहानी लेकर!

जैसा कि आप सभी ने मेरी पिछली कहानी
टास्क गेम: मर्द के सैलून में नंगी लड़की
में पढ़ा कि कैसे सीमा ने मर्द के सैलून में जाकर टास्क पूरा किया उसके बाद हम वापस अपने गांव चली गयी।

लेकिन लखनऊ में किये हुए कारनामे से अभी दिल नहीं भरा था हम और भी ऐसे कारनामे को अंजाम देना चाहती थी।

हमने क्या कारनामा किया, पढ़ें इस न्यूड गर्ल फन स्टोरी में!

तब खबर आई कि मीनल, हमारी कॉलेज की सहेली, जो एक छोटे से गांव में रहती थी उसकी शादी थी. मीनल ने मुझे और सीमा दोनों को शादी में बुलाया था।

हम दोनों को एक दूसरे को देखे एक ज़माना सा हो गया था.

हालांकि फ़ोन पर बातें हुआ करती थी लेकिन मिलना कभी नहीं हुआ था उस कॉलेज वाले कांड के बाद से।

मीनल की शादी का कार्ड और उसकी डेट देख मैंने सीमा को फ़ोन कर बताया कि कुछ खुराफ़ाती करने को मन मचल रहा है और उससे मिलना भी चाहती हूँ.
जिस पर सीमा का भी ठीक वैसा ही हाल था जैसा मेरा था।

मीनल की शादी की तारीख से दो दिन पहले हमने मीनल के गांव जाने का प्रोग्राम बनाया और ठीक दो दिन पहले मीनल के गांव पहुंच गई।

सीमा को देखकर बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगा कि वो ज़रा सी भी बदली हो, जैसा उसे पिछली बार देखा था ठीक वैसी ही थी।

“तू बिल्कुल भी नहीं बदली!” सीमा से गले लगते हुए मैने कहा।
“तू भी तो वैसी की वैसी ही है, ठरकी!” उसने ताना मरते हुए कहा.
जिस पर हम दोनों हंस पड़ी।

उस रात जब बाहर बरामदे में खटिया पर सोई सोई सी मैं सुस्ता रही थी तब सीमा में मुझसे आकर पूछा- कोई प्लान बनाया है कि हम क्या करेंगी?

“इस बेकार से गांव में शाम 7 बजे के बाद दूर दूर तक कोई दिखता नहीं है। मेरा तो दिमाग ही काम करना बंद हो गया है।” खटिया पर पड़े पतले से कंबल को मैंने अपने पर ढकते हुए कहा।
सर्दियों का मौसम था और मच्छर भी बहुत परेशान कर रहे थे।

“यह कोई मेरी बात का जवाब नहीं हुआ।” सीमा ने कहा।

“अरे! इतनी भी जल्दी क्या है? अभी दो दिन हैं, सोचती हूँ कुछ!” मैंने थोड़ा सा इतराते हुए कहा।
“दो दिन नहीं, काल का एक ही दिन है। मीनल के जाने के बाद भी क्या तू इधर ही रूकेगी?” सीमा ने अपना पक्ष रखा।

“दो दिन ही है, कल का और उसके बाद का, सीमा की शादी के बाद ही तू क्या तुरंत ही निकल जायेगी? रात को तो यहां रुकना ही रुकना है।” मैंने भी अपनी बात रखते हुए कहा।

“और वैसे भी तू मत सोच, सोचने का काम मेरा है।” सीमा भले ही बातें करने में नज़ाकत में मुझसे बेहतर हो सकती थी लेकिन इस तरह के खुराफ़ाती विचार सिर्फ मुझे ही आते थे और इसी कारण आज हम दोनों फिरसे एक साथ थी।

अगली सुबह 6 बजे मैं उठी.
फिर सीमा को भी उठाया जो मेरे बगल की खटिया पर ही सोई हुई थी।

सुबह सुबह हमने नहाकर नाश्ता किया.
फिर कुछ देर मीनल के साथ इधर उधर की बातें करी फिर उसकी सुहागरात के बारे में बातें कर उसकी मज़ाक करी क्योंकि वह हमारे जैसी नहीं थी और उसे भी हमारी करतूत के बारे में पता नहीं था।

कुछ ही देर में मीनल का भाई का भाई आया जो गांव में कुछ काम से जा रहा था।

“अरे! मयंक सुन तो!” मीनल ने उसे जाने के बाद बुलाते हुए आवाज़ लगाई जिस पर जी दीदी कहता हुआ वह वापस आया।
“ये हैं मेरी सहेलियां रीटा और सीमा, जा जाकर उन्हें हमारे गन्ने के खेत और बाजार घुमा कर ला, इधर पड़ी पड़ी ये दोनों बोर हो रही हैं।”

मीनल की बात भी ठीक थी.
कुछ देर और ज़्यादा हम उधर रहती तो शायद उधर ही मैं और सीमा कुछ करने लग जाती।
और तो और इसमें मीनल का भी फायदा था जितनी देर कम हम उसके वहां रुकती, उसकी खिंचाई भी उतनी कम होती।

“अच्छा मयंक, यह बताओ तुम्हारी कोई गर्लफ्रैंड है कि नहीं?” रास्ते में चलते चलते सीमा ने मयंक से पूछा।
“अरे दीदी, इस छोटे से गांव में शहर जैसी बात कहा?” मयंक में जवाब दिया।

“मुझे गर्लफ्रैंड बनाओगे?” मैं बीच में ही बोल पड़ी।
“अरे दीदी, आप तो मेरी बहन जैसी हो. आपको मैं कैसे गर्लफ्रैंड बना सकता हूँ?” जब मयंक ने मुझे बहन बोला तो मेरे दिल के अरमान धरे के धरे रह गए ऐसा लगा कि किसी ने मुझको गाली दी। लेकिन में कर भी क्या सकती थी … मैं चुप रही।

“अच्छा, चलो गर्लफ्रैंड न सही दोस्त ही बना लो!” फिर एक बार सीमा ने बात को संभालते हुए अपना हाथ मयंक की और बढ़ाया जो मयंक में थोड़ी सी शर्म के साथ पकड़ा।
जिस पर हमने यह अनुमान लगा लिया कि एक लड़की का हाथ पकड़ना जो उसकी बहन भी नहीं है, वो मयंक के लिए पहली बार था।

“अच्छा बताओ, तुम्हारे गांव में दूर दूर तक पानी की बोतल नहीं मिलती तो यह सायकिल, गाड़ी वगैरह खराब होती है तो किसको दिखाते हो?” उत्सुकतावश मैंने पूछा।
“यहीं पर थोड़े दूर एक गैराज वाला है जो हर चीज़ ठीक करता है!” थोड़े ही दूर आगे चलने पर उसने हमें वो गैराज भी दिखाया।

गैराज गांव से थोड़े दूर था, जिधर 3 बाइक और 2-4 साइकिल पड़ी थी।

गैराज वाला बिना शर्ट पहने हुए हमारी ओर पीठ किये हुए काम कर रहा था, उसकी धूमिल सी पैन्ट नीचे होने के कारण उसकी गांड की दरार भी दिख रही थी.

मैंने आंखों ही आंखों में सीमा को इशारा किया जिस पर वो मंद मंद मुस्कुरायी.
सीमा की मुस्कुराहट को देख शायद मयंक भी हमारी नज़रों की भाषा समझ चुका था लेकिन हम में से कोई भी कुछ नहीं बोला।

“तुम्हें और कितना आगे जाना है।” पैर दुखने का बहाना बनाते हुए मैंने मयंक से पूछा।
“अभी थोड़ा और चलना है।” उसने बताया.

“अब मैं और नहीं चल सकती।” मैं झूठ मूठ का नाटक करती हुई बोली।
“एक काम करो मयंक, तुम आगे जाओ, हम यहां से ही घर की ओर चलते हैं।” सीमा मेरी बात समझ गयी कि मेरे दिमाग में कोई न कोई खुराफ़ाती विचार आ चुका था और अब मुझसे वो विचार साझा करना चाहता था।

“तो क्या विचार आया है मैडम को?” सीमा ने मुझसे पूछा।

“मैं सोच रही थी कि उस गैराज वाले से साइकिल लेते हैं भाड़े पर और यहां दूर दूर तक तो कोई रहता नहीं … हम रात को न्यूड साइकलिंग करेंगी।” मैंने अपना सुझाव रखा।

मेरे सुझाव पर सीमा थोड़ी देर सोचने लगी।

“अच्छा है! लेकिन इन सर्दियों में नंगे सायकिल चलाना …?”

“अरे तुझे करना है या नहीं करना है? ठंड तो लगती रहेगी. लेकिन एक बार सोच ले … ऐसा सुनसान गांव और सुनसान जंगली रास्ता जहां पर दूर दूर तक दिन में भी कोई दिखता नहीं तो रात में कहाँ दिखेगा।” इससे पहले की सीमा अपनी बात पूरी करती मैंने उसे मनाने की कोशिश करते हुए कहा।

“अच्छा ठीक है, कैसे करेंगे? कब करेंगे?” सीमा ने हामी भरते हुए पूछा।

“मीनल की शादी के बाद रात को सब थक हार कर सो चुके होंगे, हम भी उनके साथ सोने का नाटक करेंगी. रात के 12 बजे हम जाएंगी और न्यूड साइकलिंग करेंगी। और अभी आज की भी रात है तो आज रास्ते का मुआयना भी कर लेंगी।”

“भैया जी सुनो!” घर वापिस जाते हुए हम उस गैराज वाले के पास रुकी।

“भैयाजी, आपके यहाँ पर साइकिल भाड़े पर मिलती है क्या?” सीमा ने पूछा।

“नहीं मैडम!” बिना ही हमारी ओर मुड़े उसने जवाब दिया.
अब भी उसकी गांड की दरार हमें दिख रही थी।

“सुनिए भैया, हमें सायकिल की सख्त जरूरत है, हमें काम के सिलसिले में गांव से बाहर जाना है और हम आपको डिपॉजिट भी दे सकते हैं यदि आपको सायकिल वापिस न मिलने की कोई चिंता है तो!” सीमा ने फिर एक बार अपना सतर्क दिमाग का उपयोग करते हुए कहा।

“डिपॉजिट की बात सुन वो गैराज वाला खड़ा हुआ और हमारी ओर मुड़ा.
उसके नीचे के बाल उसकी नीची पहनी हुई पैन्ट के कारण साफ तौर से दिखाई दे रहे थे.
उसने काफी दिनों से शेविंग नहीं की होगी यह अमूमन अंदाज़ा लगाया जा सकता था।

“गांव से बाहर जाना है तो गाड़ी अच्छी रहेगी।” जब उसने जाना कि हम उसके लंड पर उगी हुई उसकी झांटों को देख रहे थे तो उसने अपनी पैन्ट ऊपर चढ़ाते हुए हमें सुझाव देते हुए कहा।

“भैया, हमें गाड़ी नहीं आती इसीलिए सायकिल मांग रही हैं।” सीमा ने उसके पसीने भरे, काले हाथ पकड़ लिए और कहा।

अपने हाथों पर एक गोरी चिट्टी कोमल लड़की के हाथ पाकर वो पिघल गया और उसने सायकिल भाड़े पर देने की हां कर दी।

3000₹ डिपॉजिट पर हमने दो दिन के लिये सायकिल भाड़े रखने का करार कर लिया और उसे कहा कि हम अगले दिन उसके वहां से साइकिल ले जाएंगी।

जब रात पड़ी तो मेरे दिमाग में एक और खतरनाक आईडिया आया.
मैंने सीमा को बताया कि हम मयंक को भी इसमें शामिल करते हैं। आखिर अकेले अकेले यह करने में क्या मज़ा … और वैसे भी हम तो एक दूसरी को नंगी देखती ही थी, मज़ा तो तब आता जब कोई और हमें नंगा देखता वो भी ऐसे!

सीमा को मेरी बात सही तो लगी लेकिन उसका कहना था कि मीनल की विदाई के बाद उसका भाई भी तो दुःखी होगा और ऐसे वक्त में उसको हमारी योजना का हिस्सा बनना उचित नहीं होगा।

उसकी बात में भी दम था लेकिन अगर वो हमारी करतूत का हिस्सा बनता तो और भी मज़ा आता।
हमने सोचा कि एक बार उससे बात करके देख लेती हैं.

लेकिन कशमकश यह थी कि यदि वो राज़ी हो जाता हमारा साथ देने के लिये तो कोई बात ही नहीं थी, लेकिन यदि वो मना कर देता तो हमारा सारा खेल बिगड़ सकता था।

एक वक्त तक सोच विचार करने के बाद हमने सोचा कि उसको अपनी योजना बताती हैं. यदि वो हां कहता है तो ही हम यह टास्क करेंगे वरना और कोई नई युक्ति लगाएंगी।

रात को जब सब सो गए, तब हमने जगह का मुआयना करना था.
जिस तरह तय किया था वैसे ही निकली, दबे पांव हम निकली और किसी को अंदाज़ा भी नहीं हुआ कि हम उधर नहीं थी।

थोड़ी दूर एक नहर के पास रास्ता बिल्कुल सुनसान था और अच्छा भी था, जहां पर आसानी से साइकिल चलाई जा सके।
वो रास्ता किसी और गांव तक ले जाता था शायद!
2-3 किलोमीटर नहर के किनारे चलने के बाद भी हमें कोई उस रास्ते पर नहीं दिखा।

हमने मन बना लिया कि हम उसी रास्ते पर न्यूड साइकलिंग करेंगी।

लेकिन रात में नहर के कारण वहां की हवा और भी ठंडी थी।
कपड़े पहने हुए भी हमें ठंड लग रही थी तो बिना कपड़ों के तो हमारा क्या हाल होना था यह सोच कर ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते थे।

अगली सुबह जब मीनल की शादी की तैयारियां जोरों से चल रही थी तब हमने मौका देखकर मीनल के भाई मयंक से हमारी न्यूड साइकलिंग के विषय पर बात करी।

हमारी बातें सुन वो तो मानो सकपका सा गया।
“आप तो मेरी दीदी की दोस्त हो, मैं भला आप लोगों के साथ ऐसे टास्क में कैसे शामिल हो सकता हूँ और मैं तो यह कहता हूं कि ऐसा जोखिम भला लेना ही क्यों चाहिए?” मयंक बोला।

“हमें ऐसा करने से खुशी मिलती है, और हमें वो सब करना चाहिए जिससे हमें खुशी मिले।” सीमा ने मयंक का हाथ थाम कर कहा।

“खैर हम यह तुम पर छोड़ते हैं लेकिन यदि तुम ना कहोगे तो हम भी यह नहीं करने वाली।” सीमा ने अपनी बात ज़ोर रखते हुए कही।

“और एक बात … यह बात सिर्फ तुम्हारे और हमारे बीच में ही रहनी चाहिए। और ज़रा सोच विचार करके जवाब देना, हो सकता है ऐसा मौका फिर दोबारा न मिले। कोई जल्दबाज़ी नहीं है।” सीमा ने फिर से मयंक का हाथ सहलाकर कहा।

“और अगर तुम इस बात के लिये राज़ी हो तो आज दो पहर हमारे खाने में दो मिठाइयाँ आकर दे जाना, हम समझ जायेंगी। और तुम साथ देते हो तो ही हम आज रात 12 बजे के बाद यह टास्क करने निकलेंगे।”

जब दोपहर का वक़्त हुआ जब सारे बाराती खाने में मस्त थे तब हम दोनों का दिल जोर से धड़क रहा था.
हमारा ध्यान खाने पर नहीं था सिर्फ दिमाग में एक ही सवाल बार बार आ रहा था कि क्या मयंक राज़ी होगा?

जब मीनल की विदाई हो गयी तब भी मयंक नहीं आया.
हम समझ गयी कि मयंक वो सब नहीं करना चाहता.

मन मार के हम अपना सारा सामान पैक करने में लग गयी.
अगली सुबह हमें जल्दी निकलना था.

और दुख इस बात का था कि इतने वक़्त बाद मिलना भी हुआ तो हम दोनों टास्क नहीं कर पाई।

मेरा आखिरी ड्रेस पैक करने को बाकी था शाम के करीब पांच बज चुके थे तभी मयंक हाथ में दो बर्फियां लेकर हमारे पास आया।

“वो क्या है कि शादी के काम में कुछ देरी हो गयी थी, और ऊपर से मिठाई भी बिल्कुल खाली हो चुकी थी, तो बाहर जा कर लेनी पड़ी।”

मयंक की यह बात सुन हम दोनों बिल्कुल ही हंस पड़ी।
हमें नहीं मालूम था कि मयंक इतना भोला था।

“तो तुम तैयार हो मयंक है ना!” मयंक के गाल पर चिमटी काटते हुए सीमा ने पूछा।

“आज तो मयंक की लॉटरी निकली है, एक साथ दो-दो लड़कियां नंगी देखेगा मयंक!” मयंक का मज़ाक उड़ाते हुए मैं बोल पड़ी।

“इससे पहले कभी किसी लड़की को नंगी देखा है?” मयंक की खिंचाई चालू रखते हुए मैंने पूछा।
“नहीं दीदी …”

“दीदी बोलता है हमें? और अपनी दीदियों को ही नंगी देखेगा? दीदी मत बोल मयंक, किसी को पता चला कि मयंक अपनी दीदियों को नंगा होते भी देखता है तो बहनचोद बुलायेगा तुझे!” सीमा ने मयंक की बात बीच में ही काटते हुए कहा।

“ठीक है, आप ही बतायें क्या बुलाऊं आपको फिर मैं?” मयंक ने सवाल किया।

“नाम से बुलाओ सीमा और रीटा!” मैंने जवाब देते हुए कहा।
“ठीक है.” मयंक ने सिर्फ इतना ही कहा।

“अच्छा एक काम करो मयंक … उस गैराज वाले के पास जाकर सायकिल लेकर आओ. फिर बाकी बातें रात को खाना खाने के बाद करेंगे। और आज रात हमारे नज़दीक ही सोना, 12 बजे हम यहां से निकलेंगे।” सीमा ने सारी बातें बताकर मयंक को साइकिल लेने भेज दिया।

रात का खाना सर्दियों की वजह से जल्दी हो गया करीब 8 बजे तक खाना खत्म कर 9 बजे तक तो सब सोने लगे।
लेकिन हमें इंतज़ार था सब के सोने का, कोई कोई रिश्तेदार अभी भी जग रहा था.

रात के 11 होते होते सभी सो चुके थे, सिवाये मीनल के ताऊ के … वो सोने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

12 बजे निकलने के बजाय निकलते-निकलते एक बज गया.
अब सब सो चुके थे लेकिन हमारी आंखों से नींद कोसों दूर थी।

रात को हम 1 बजे निकले।
मयंक तो सो भी चुका था सीमा ने उसको जगाया।

“क्या ऐसा करना ज़रूरी है?” मयंक को अब भी घबराहट हो रही थी।

सिर्फ मयंक को ही नहीं हम दोनो को भी घबराहट हो रही थी, हमें पता था कि जहां हमें नंगी होकर सायकिल चलानी है उधर कोई नहीं देखेगा. लेकिन फिर भी एक डर था जो मन पर हावी हुए जा रहा था और वह डर यही था कि, कही कोई हमें ऐसे देख न ले।

कुछ ही पल में हम नहर के पास थे।

“तो हम आ गए अपनी मंज़िल पर!” सीमा ने जोर की सांस लेते हुए कहा।

मैंने इधर-उधर नज़र दौड़ाई हम तीन के अलावा वहाँ कोई नहीं था।
ठंड कल के मुकाबले आज कुछ ज़्यादा ही थी।

“मयंक चलो आओ! हमारे कपड़े उतारो।” सीमा ने मयंक को कहा।

अब भी मयंक असहज महसूस कर रहा था।

सीमा ने मायके के दोनों हाथ पकड़ कर अपनी कमर पर रखवाये।

धीरे-धीरे मयंक ने सीमा की कुर्ती को उठाना शुरू किया.
कुछ ही पल में सीमा मयंक के सामने ब्रा और सलवार में थी.

धीरे धीरे मयंक ने सीमा की सलवार भी उतार दी.
अब सीमा सिर्फ ब्रा और पैन्टी में थी.

कुछ ही पल में सीमा के पीछे जा कर मयंक ने उसकी ब्रा का हुक भी खोल दिया।
सीमा ने धीरे धीरे ब्रा की स्ट्रिप को अपने कंधों से सरकाया और ब्रा निकाल फेंकी। सीमा ने पीछे से ही मयंक के दोनों हाथ पकड़कर अपने स्तनों पर रखवाये।

मयंक की दिल की धड़कन सीमा के स्तन पकड़ते ही और भी तेज हो गयी. उसके लिए यह पहला सुखद अनुभव था कि उसने एक लड़की के स्तनों को पकड़ा था और वो भी बिल्कुल नंगी।
जब मयंक के हाथ सीमा के स्तनों पर थे तो सीमा ने अपने हाथों से ही अपनी पैन्टी निकाल दी।

अब सीमा मयंक की बांहों में बिल्कुल नंगी थी और मयंक का लंड सीमा अपनी नंगी गांड की दरार में महसूस कर सकती थी।

यह सारी घटना में अपने कैमरे में ठीक पिछली बार की तरह रिकॉर्ड कर रही थी।

ठंडी हवा ज़ोर से चल रही थी.
सीमा के अंग-अंग के रोमटे खड़े हो चुके थे वो अपने स्तनों पर फिर से एक आदमी के सख्त हाथ पाकर मदहोश हो चली थी।
उसके मुंह से सिसकारियां भी निकल रही थी लेकिन हम वो सब करने के लिए वहां नहीं थे।

मैंने सीमा की निंद्रा भंग की और उसे सायकिल का हैंडल थमाया.

सीमा सायकिल पर अपनी गांड टिकाकर सही तरीके से बैठी और धीरे-धीरे सायकिल के पैडल लगाने लगी।
अब मैंने कैमरा मयंक के हाथों में थमा दिया और मैं सीमा के पीछे केरियर पर बैठ गयी।

कभी में उसके निप्पल पर चिमटी काटती तो कभी उसकी चूत पर सहलाती!
उसे दर्द और प्यार का अनुभव एक साथ मिल रहा था, वो धीरे-धीरे कराहती भी थी।

और यह सारी घटना कैमरे में कैद हो रही थी।
मयंक हमारे पीछे पीछे भाग सा रहा था.

15 मिनट सायकिल चलाने के बाद ठंडी हवा के कारण सीमा को जोर से सुसु आयी तो उसने सायकिल रोक दी।

“क्यों क्या हुआ? सायकिल क्यो रोक दी?” पीछे बैठे हुए सीमा के स्तनों पर चिमटी काटते हुए मैंने पूछा।

“अरे मुझे जोर से सुसु आयी है।” मेरी चिमटी काटने के वजह से वो और ज़्यादा खुद को रोक नहीं पायी।

मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी चूत को दबाने की कोशिश की ताकि कोई फव्वारे की तरह उसकी पेशाब उड़े!
उस ठंडी हवा में उसका गर्म-गर्म पेशाब हाथों पर गिरा तो बहुत ही अच्छा लगा।

आज मयंक ने एक नंगी लड़की को मूतते हुए भी देख लिया।
सीमा पिशाब कर शांत हो चुकी थी और उसने अपने टास्क को बखूबी अंजाम भी दिया था।

अब मेरी बारी थी, मैंने सायकिल को फिर से घर की तरफ वाले रास्ते की ओर मोड़ा और मयंक को अपनी ओर बुलाया।

मयंक ने जैसे सीमा के कपड़े उतारे ठीक वैसे ही मेरे भी कपड़े उतारे।
जबकि सीमा ने कैमरे में रिकॉर्डिंग करना चालू रखा।

नंगी होने के बाद मैं ड्राइवर सीट पर आई और सीमा मेरे पीछे बैठी बिल्कुल नंगी ही!

मेरे द्वारा की गई हर एक करतूत का अब सूद समेत वो मजा ले रही थी.
कभी मेरे बूब्स पर, कभी मेरी गांड पर, कभी मेरी चूत पर वो ज़ोर से मारती जिससे मेरे मुंह से आवाज़ निकल जाती।

कुछ दूर तक चलने के बाद हम दोनों ने यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे का गाना भी जय-वीरू की स्टाइल में गाया।
हम जो भी करते मयंक सब रिकॉर्ड करता।

कुछ देर के बाद जहां से हमने शुरू किया था उसी जगह पर हम आ पहुंचे।
सीमा के मुकाबले मुझे ज़्यादा ठंड लग रही थी लेकिन हम मन ही मन खुश भी हो रहे थे कि फिर एक बार हमने जो ठानी थी वो हमने कर के भी दिखाया।

और एक अच्छी बात यह भी थी कि उस सुनसान से रास्ते पर इंसान तो ठीक एक जानवर भी नहीं मिला।
हम तीन ही थे उधर उस पल को मदहोशी से जिये जा रहे थे।

मैं और सीमा सायकिल से नीचे उतरी. मुझे भी जोर की पेशाब लगी थी.
मैं खुद को रोक न सकी और खड़ी खड़ी ही मूतने लगी.

मयंक ने कैमरा मेरी पिशाब उड़ेलती चूत पर सेट किया जिस में से गर्म-गर्म मूत का फव्वारा निकल रहा था।
सीमा ने मेरे मूत को मुट्ठी में ले मुझ पर उड़ाया जिस पर मैंने भी मेरा मूत हाथ में लेकर उस पर फेंका.

फिर हमने थोड़ा मूत मयंक के ऊपर भी फेंका।

मेरे मूतने के बाद सीमा अपने घुटनों के बल बैठी और मेरी चूत चाट-चाटकर साफ कर दी।
फिर मैंने उसे उठाया और हम दोनों लेस्बियन की भांति किस करने लगी।

कुछ देर बाद हम एक दूसरे से अलग हुई।

अब तक जो भी हुआ कैमरा सब क़ैद कर रहा था।

“क्या तुम चाहते हो कि हम तुम्हारा लंड चूसें?” सीमा और मैंने मयंक के बिल्कुल नज़दीक जा कर पूछा।

मयंक भी उत्साहित हो चुका था उत्साह के चलते वो सिर्फ हां के बदले में अपना सर हिला सका।

हमने एक दूसरी की ओर देखा और मुस्कुराई और घुटने के बल बैठने लगी जैसे कोई पोर्न फिल्म में कोई मॉडल नीचे बैठती है।

हमने धीरे धीरे मयंक की पैन्ट खोल दी।
उसका मोटा फूला हुआ लंड हमारी नज़रों के सामने था।

मैंने धीरे धीरे उसका सुपारा मुंह में लेकर उस पर अपनी जीभ फेरना शुरू किया।
ऐसा लगता था मानो वो सातवें आसमान पर था।

हम दोनों में स्पर्धा हो चली थी, कभी मैं उसका लंड चूसती तो कभी सीमा उसका लंड चूसती।

अपने लंड पर किसी लड़की के होंठ पाकर वो खुद को ज़्यादा देर तक रोक नहीं सका और सीमा के मुंह पर अपने वीर्य की बौछार कर दी.

सीमा के मुंह पर लगे मयंक के वीर्य को मैंने चाट-चाट कर साफ कर लिया.
फिर अपने मुंह से उसके मुंह में मयंक का सारा माल दिया।

कुछ मिनट तक हम दोनों मयंक का वीर्य अपने थूक के साथ एक दूसरी के मुंह में डालती रही और फिर थोड़ा मैं तो थोड़ा सीमा उसका वीर्य पी गयी।

हम दोनों खड़ी हुई और मयंक को बारी बारी लिप किस करके थैंक यू बोला.

तब हमने उसके हाथ से फ़ोन ले लिया जिसमें उसके पास हमने सब रिकॉर्ड करवाया था।

मयंक ने नीचे पड़ी हुई सायकिल को उठाया और साथ ही हमने उसे हमारे कपड़े भी उठाने को कहा।

फिर घर के गलियारे तक हम दोनों उसके साथ उसके साथ घटे हुए हसीन हादसे की बातें करती-करती नंगी चली।

जब घर थोड़ी ही दूर था, तब हम दोनों ने कपड़े पहने और घर पहुंच के अपनी अपनी खटिया पर सब सो गये।

हम घर पहुंचे तो चार बजे का वक़्त हो चला था।
3 घंटे कैसे गुज़र गए, कुछ पता ही नहीं चला।

अगली सुबह हम दोनों उठी, मयंक हमें गांव के बाहर तक छोड़ने आया जहां पर बस रुकती थी।

दिन में भी वहां एक्का-दुक्का आदमी दिखे।

“अब फिर कब मिलना होगा?” मयंक हमसे बेहद ही खुश था.

हमने मयंक का नम्बर लिया और उस सुनसान रास्ते पर बड़ी बड़ी मयंक को लिप किस किया।

थोड़ी ही देर में हमारी बस आयी और हम मयंक को उधर छोड़ एक सुनहरी याद को फिर से संजोये हुए आगे निकल पड़ी।

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