मस्तराम कहानी: नंगी आरज़ू-7
(Mastram Kahani: Nangi Aarzoo- Part 7)
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मैंने धक्कों की गति बढ़ा दी … वह भी बेसाख्ता जोर-जोर से आहें भरने लगी और मुझे भी चरम की अनुभूति होने लगी।
फिर आखिरकार उसका और मेरा पानी एकसाथ छूट पड़ा … और उसी पल में उसकी टांगें फैला कर, उनके बीच में जगह बनाते मैं उस पर लद गया और उसे जोर से भींच लिया। उसने भी उसी सख्ती से मुझे जकड़ लिया।
थोड़ी देर तक उसी अवस्था में एक दूसरे को जकड़े हम पड़े रहे और फिर अलग हो कर हांफने लगे।
अब आगे:
“एक बात बताओ … क्या गांड मराने से भी लड़की झड़ जाती है?”
“इसका कोई निश्चित फार्मूला नहीं। जब जैसे औरत अपना चरम पा ले … बिना लंड के भी झड़ सकती है और लंड से चूत चुदा के भी हो सकता है कि न झड़े। खैर … अब सो जाओ, थकन काफी हो गयी है। कल बात करते हैं।”
“ओके!”
फिर हम सो गये. जिस हालत में हम थे, उसमें न खुद को साफ़ करने की इच्छा मुझे हुई और न उसे। हाँ रात में किसी वक़्त में पेशाब करने के लिये वह उठी तो उसने खुद को सही कर लिया और मैं उठा तो मैंने खुद को सही कर लिया।
सुबह हम जल्दी ही उठ गये और जो भी सफाई करनी थी वह करके मैं ही बाहर से जाकर नाश्ता ले आया और हम नाश्ता करके एक आखिरी राउंड सहवास के लिये तैयार हो गये।
हालाँकि अब इतनी न इच्छा ही थी और न ही शरीर में एनर्जी महसूस हो रही थी लेकिन मन में यह डर था कि पता नहीं यह नियामत फिर मिले न मिले। वैसे भी इंसान का सोचा सब कहाँ फलीभूत होता है।
इस बार हमने एक सीधा सिंपल सहवास किया और ज्यादा न उछल कूद मचाई और न ही शोर शराबा किया बल्कि बड़ी ख़ामोशी से निपटा लिया।
इसके बाद वह तैयार हो गयी और मैं उसे चारबाग ले आया जहाँ सुबह वाली मेमू मिल गयी और मैंने उसे कानपुर के लिये सवार करा दिया।
इसके बाद हम व्हाट्सअप पर प्राइवेट चैट भी करने लगे और मैं बाकायदा उसके लिये प्रेमी जैसा हो गया, जिससे वह हर किस्म की बात कर सकती थी।
इस बीच मैं उसके लिये नौकरी ढूंढता रहा था और वह भी खाला खालू को इस बात के लिये तैयार करती रही थी कि अगर इस बार यह नौकरी न मिली तो वे लोग उसे लखनऊ ट्राई करने देंगे। फिर हुआ वही जो उसने पहले से सोच रखा था … उसने जिस नौकरी के लिये इंटरव्यू दिया था, वह मिल तो गयी थी लेकिन अब उसे वह करनी नहीं थी।
उसने घरवालों को यही कहा कि वह नौकरी उसे नहीं मिली थी और अब उसने मुझे कह दिया है कि मैं उसके लिये कोई नौकरी देखूं। घरवाले तो इन्कार इकरार की हालत में थे नहीं और एक हफ्ते बाद ही मेरी कोशिशों से उसके लिये हजरतगंज में एक अच्छी नौकरी का प्रबंध हो ही गया।
अब उसने उस नौकरी के लिये जिद पकड़ ली तो खाला खालू ने मुझसे बात की और मैंने उन्हें समझाया कि उसे यह नौकरी करने दीजिये। या फिर पॉसिबल हो तो उसकी जल्द से जल्द शादी कर दीजिये क्योंकि आप लोग समझ नहीं पा रहे कि लड़की घर बैठे-बैठे फ्रस्टेट हो रही है, जो उसकी सेहत के लिये ठीक नहीं। बाहर रहेगी, नौकरी करेगी, लोगों से घुले मिलेगी तो कम से कम उसमें जिंदगी के लिये चाहत पैदा होगी जो उसमे मर रही है और यहाँ की फ़िक्र मत करिये। यहाँ मैं उसके गार्जियन की भूमिका निभाऊंगा और न सिर्फ उसके रहने की जगह पर नजर रखूँगा और उसके काम की जगह पर भी मेरी नज़र रहेगी।
जैसी कि उम्मीद थी, वे लोग मेरे भरोसा दिलाने पर इस बात के लिये राज़ी हो गये और इस ख़ुशी में उसने रात को बड़े अश्लील अश्लील मैसेज कर के पूरा फोन सेक्स ही कर डाला।
अब यहाँ उसके रहने के लिये मैंने पास के ही मोहल्ले में एक घर का चुनाव किया जहाँ एक बुज़ुर्ग दंपत्ति रहते थे, जिनके बेटे यूएस में रहते थे और उन्होंने अपने बड़े से घर को पीजी बना दिया था लड़कियों के लिये, जहाँ बारह लड़कियां रह सकती थीं। खाने पीने का भी वहीं इंतजाम था।
हालाँकि मैंने उन आंटी को एक महीने का किराया दे दिया लेकिन उनसे यही कहा कि मेरी बहन एक महीने बाद यहां रहना शुरू करेगी। वजह न उन्होंने पूछी और न मैंने उन्हें बताई।
अब इस एक महीने के लिये उसका ऐसा जुगाड़ बनाना था कि वह न सिर्फ जी भर के जी ले, बल्कि उसे हर तरह की सुविधा भी हासिल हो और इसके लिये मैंने पहले ही तैयारी कर रखी थी।
मेरा एक कलीग था रोहित, जो इंदिरा नगर में एक फ्लैट में एक पार्टनर के साथ शेयरिंग पे रहता था। कलीग था तो उससे दोस्ती होनी ही थी और चूँकि दोनों रसिक मिजाज थे तो जल्दी ही हममें जमने भी खूब लगी थी।
उसके फ्लैट पे भी जब तब जमघट लगती थी तो उसके पार्टनर शिवम से भी दोस्ती हो गयी थी, हालाँकि उससे फिर भी कोई ऐसी खास प्रगाढ़ता नहीं थी।
दोनों को विपदा की तरह मैंने स्टोरी सुनाई थी कि कजिन की नौकरी लखनऊ लग गयी थी लेकिन फौरी तौर पर रहने का इंतजाम नहीं हो पाया था। ठिकाना हो गया था लेकिन वहां महीने भर बाद ही एंट्री होनी थी। तब तक उसका गुजारा कहां हो।
चूँकि मैं तो एक घर में रहता था तो वहां तो मुश्किल था … वे लोग यूँ किसी लड़की का रहने की अनुमति ना देते, भले वह मेरी कजिन सिस्टर ही क्यों न हो … लेकिन चूँकि फ्लैट में रहना अपेक्षाकृत आसान होता है क्योंकि न यहां किसी से कोई पूछ होती है और न ही कोई एक दूसरे की खबर रखता है तो यहां चल सकता है अगर वह चाहें तो … भले इसके लिये एक महीने के किराये की शेयरिंग कर लें।
आस पड़ोस में कोई पूछता या जिक्र करता भी है तो मेरी बहन बता देना कि उसकी नौकरी यहां लग गयी है लेकिन रहने का तत्काल जुगाड़ नहीं हो पाया है तो कुछ दिन यहीं रहेगी। दिखावे के लिये बीच-बीच में मैं भी यहीं रुक जाऊँगा।
जाहिर है कि दोनों चक्कर में पड़ गये। अकेले रहते थे, आजाद जिंदगी गुजारते थे … गाली गलौज में बात करना आम आदत थी, रोज रात को दारूबाजी और हफ्ते में एक दिन लड़की लाना उनका शगल था। किसी पराये का साथ रहने लग जाना और वह भी जिसके साथ ‘बहन’ शब्द जुड़ा हो … एकदम से उस पर पाबंदी लग जाना भला कैसे पसंद आ जाता।
लेकिन फिर दोस्ती भी थी … मदद करने से पीछे हटना तो और ज्यादा मुश्किल काम था। बड़े सोचे विचारे … पक्का किये कि उन्हें यह कुर्बानी एक महीने से ज्यादा नहीं देनी थी … बड़े मुर्दा दिल से ‘हां’ बोले। मैंने यह यकीन उन्हें दिला दिया था कि उसके रहने का इंतजाम हो चुका है और मैं एडवांस किराया भी दे चुका हूँ … बस इसी महीने की दिक्कत है।
जैसे-तैसे बात बनी तो मैंने आरजू को आने के लिये कह दिया। इस बीच मैंने उसे ठीक से समझा दिया था कि उसे कैसे और क्या करना है … क्या बोलना है।
फिर वह कानपुर को अलविदा कर के लखनऊ आ गयी।
छुट्टी का दिन था … सुबह मैंने उसे चारबाग से पिक किया और सीधा इंदिरा नगर ले आया।
दोनों उसे देख के उतने ही खुश हुए जितने सामान्य तौर पर हो सकते थे। जाहिर है कि उनकी नजर में वह बहन थी, न कि कोई माल … और दूसरे वह ऐसी कोई सैक्सी काया भी नहीं थी कि देखते ही किसी के मन में रूचि पैदा कर दे। बल्कि ऐसी दुबली पतली थी कि देखने वाले के मन में करुणा ही पैदा कर देती थी।
बहरहाल, आरजू नहा धो कर फ्रेश हुई और फिर हम साथ ही बाहर निकले। वहीं एक रेस्टोरेंट में नाश्ता किया और घूमने निकल खड़े हुए जो पहले से तय था।
लोहिया पार्क, अंबेडकर पार्क और जनेश्वर पार्क घूमते दिन गुजर गया तो शाम के बाद सहारागंज चले आये। थोड़ी शॉपिंग वगैरह की … वहीं ऊपर चायनीज खाया और करीब दस बजे वापस घर आ गये।
आज मुझे भी यहीं रुकना था तो मैंने शिवम की लोअर और टीशर्ट पहन ली, उन लोगों ने भी कपड़े चेंज कर लिये और हम टीवी वाले बैडरूम में आ गये। आरजू ने अभी कपड़े नहीं चेंज किये थे।
“भाई बता रहे थे कि तुम लोग मुझे यहां रखने के लिये बड़ी मुश्किल से तैयार हुए।”
“अरे नहीं … ऐसी बात नहीं।” दोनों ही सकपका गये।
“नहीं … मुझे बुरा नहीं लगा। सबकी अपनी अकेली जिंदगी में कई आदतें होती हैं, एकदम से उन पर पाबंदी लग जाना इंसान को अखरता तो है ही।”
दोनों कमीने मुझे घूरने लगे।
“मुझे क्यों घूर रहे हो बे … तुम्हारी हमदर्दी में ही बताई ताकि वह एडजस्ट कर सके।”
“क्या एडजस्ट?” शिवम ने उलझनपूर्ण नेत्रों से मुझे देखा।
“तुम लोग जो भी करते थे, कर सकते हो … किसी को मेरे लिये कुछ बदलने की जरूरत नहीं। मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से किसी को थोड़ी सी भी तकलीफ उठानी पड़े।”
अब दोनों और असमंजस से मुझे देखने लगे कि मैंने क्या-क्या बताया है।
“आजकल सब चलता है यार … सिगरेट पीनी है सामने पियो, इधर-उधर छुप के पीने की जरूरत नहीं। सम्मान फिर भी बना रहेगा।”
दोनों के चेहरों पर एकदम से राहत के भाव आये और उन्होंने अहसान भरी नजरों से मुझे देखा।
“जल्दी निकाल यार … कब से तलब लग रही है।” रोहित ने शिवम की पीठ पर हाथ मारते हुए कहा।
रोहित ने बेड की दराज से सिगरेट की डिब्बी और लाईटर निकाला। दोनों ने बड़ी बेताबी से एक-एक सिगरेट दबोच कर सुलगाई और ऐसे राहत भरे अंदाज में कश लेने लगे जैसे बड़ी मुद्दत के बाद कोई नियामत चीज पाई हो और उनकी हालत देख कर आरजू हंस पड़ी, जबकि मैं मुस्करा कर रह गया।
“अरे यार … मुझसे डरो मत। इतनी संस्कारी नहीं हूं।” आरजू ने हंसते हुए कहा था।
और दोनों सर हिला कर रह गये।
“मे आई …” आरजू ने रोहित की सिगरेट की ओर संकेत करते हुए पूछा और वह हैरानी से मुझे देखने लगा।
“अबे दे दे … आजकल लड़कियां मौका मिलने पे पी लेती हैं। मुझे क्यों देख रहा है?” मैंने घुड़की देते हुए कहा।
उसने सिगरेट दे दी। आरजू ने एक कश लेकर धुआं मस्ती में उसके चेहरे पर ही छोड़ दिया और दूसरा कश ले कर कश शिवम के चेहरे पर … दोनों आश्चर्य से उसे देखते रहे और उसने सिगरेट वापस रोहित को थमा दी।
“मुझे सिगरेट की महक बड़ी अच्छी लगती है … वैसे तुम लोगों ने जो बोतलें किचन के कबाड़ वाले केबिन में छुपाई हैं … वे भी देखी मैंने। कहो तो ले आऊं … मेरी वजह से तुम्हारे शौक क्यों मरें। भाई ने बताया था कि रोज रात को पीने की आदत है तुम लोगों को!”
दोनों ने आंखें फैला कर पहले अविश्वास भरे अंदाज में उसे देखा फिर दोनों हाथ उठा कर मेरे कदमों में लोट गये।
“धन्य हो गुरू … ऐसी मस्त बहन सबको मिले।” दोनों आगे पीछे एक ही बात बोले।
आरजू उठ कर बाहर निकल गयी और अगले दो चक्करों में उसने चखने के साथ पीने का सामान वहीं पंहुचा दिया लेकिन गिलास चार देख कर दोनों भौंचक्के रह गये।
क्रमशः
मेरी मस्तराम कहानी के बारे में अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करायें। मेरी मेल आईडी है …
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