मेरा गुप्त जीवन- 82
(Mera Gupt Jeewan-82 Baalsakhi Se mulakaat)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left मेरा गुप्त जीवन- 81
-
keyboard_arrow_right मेरा गुप्त जीवन- 83
-
View all stories in series
बालसखी से मुलाकात
आज मैंने बड़े दिनों बाद अपनी क्लास में बैठे लड़के और लड़कियों को ध्यान से देखा और परखा।
लड़कियाँ अक्सर आगे के दो बेंचों पर बैठती थी लेकिन मैं हर रोज़ आखरी बेंच पर ही बैठ पाता था.
आज जब जल्दी से मैं क्लास में घुसा तो एक लड़की जो बाहर जा रही थी वो मुझ से टकरा गई, मैंने झट उससे सॉरी कहा और अपने लास्ट बेंच पर जाकर बैठ गया।
लेकिन वो लड़की रुक कर मुझ को देख रही थी और मुझको ऐसा लगा कि वो मेरे सॉरी कहने से संतुष्ट नहीं थी, वो जल्दी से पीछे मेरे बेंच के पास आ रही थी।
मैं डर गया और चौकन्ना होकर बैठ गया।
लड़की जल्दी से मेरे पास आई, इससे पहले वो कुछ कह पाती मैंने उससे कहा- मिस, गलती मेरी थी जो आप से टकरा गया था अनजाने में, प्लीज मुझको माफ़ कर दीजिये।
वो लड़की मेरे पास आई और आते ही कहने लगी- तुम सोमू हो ना?
मैं चकरा गया और डरते हुए बोला- जी हाँ, मैं सोमू ही हूँ, क्यों कुछ ख़ास बात है क्या?
लड़की एकदम चहक उठी- अरे सोमू, मुझको नहीं पहचाना क्या?
मैं हैरान था कि मैंने इसको कब देखा है, मैंने सर हिला दिया कि मैं नहीं पहचान पाया।
तब लड़की हँसते हुए बोली- तुमको याद नहीं जब हम बहुत छोटे थे तो एक साथ खेला करते थे।
मैं बोला- सॉरी, मैंने आपको अब भी नहीं पहचाना।
लड़की बोली- अरे, वो प्रतापगढ़ वाले तुम्हारे चाचा जी हैं न, मैं उनकी बेटी हूँ।
मैं एकदम हैरान हो कर बोला- ओह्ह्ह माय गॉड, तुम पूनम हो क्या?
वो बोली- हाँ मैं पूनम ही हूँ तुम्हारी बचपन की गर्लफ्रेंड।
मैं फिर हैरान होकर बोला- लेकिन तुम आज कॉलेज मैं कैसे? पहले तो कभी देखा नहीं?
पूनम बोली- कल ही तो एडमिशन ली है इस कॉलेज में, आज पहला दिन है मेरा इस कॉलेज में और किस्मत देखो मुझको भी वही क्लास मिली जिसमें सोमू पहले से बैठा हुआ है।
मैं भी बहुत खुश होकर बोला- चलो कैंटीन चलते हैं, वहीं बातें होंगी।
पूनम बोली- नहीं सोमू, आज मेरा पहला दिन है, आज नहीं, फिर कभी सही!
मैं बोला- अच्छा यह बताओ, कहाँ ठहरी हो?
पूनम बोली- मेरे एक दूर के कजिन हैं उनके मकान में ठहरी हूँ फिलहाल!
इससे पहले मैं कुछ आगे बोल पाता, प्रोफेसर साहिब कमरे में आ गए।
लंच की छुट्टी में सीधा कैंटीन की तरफ भागा। किस्मत से पूनम वहाँ मिल गई। वो एक टेबल पर अकेली बैठ कर लंच कर रही थी।
मैं उसके पास गया, मुझको देखते ही उसका चेहरा खिल उठा, पूनम बोली- आओ लंच करो ठाकुर साहब!
मैं भी शरारत के मूड में बोला- लंच तो कर लेते ठकुराइन लेकिन मैं तो अक्सर घर में जाकर लंच करता हूँ। आओ तुमको भी घर ले चलता हूँ, लंच भी कर लेना और घर भी देख लेना।
पूनम बोली- क्या नज़दीक ही रहते हो तुम यहाँ से?
मैं बोला- हाँ पास ही है 10 मिन्ट लगते हों रिक्शा से! और सुनाओ बाकी सबका क्या हाल है, आज मम्मी को फ़ोन करता हूँ, तुम यहाँ आ गई हो पढ़ने के लिए और यह सुन कर तो वो काफी खुश होंगी।
पूनम बोली- ठीक है सोमू यार, तुम तो काफी लम्बे और तगड़े हो गए हो।
मैं बोला- ठकुराइन तुम कहाँ कम हो, तुम भी तो इतनी प्यारी और सुन्दर हो गई हो।
खाना खत्म करके हम अपनी क्लास में आ गए। पूनम मेरे ही बेंच पर बैठ गई क्यूंकि आगे के कन्या बेंच सब फुल थे।
आखिरी पीरियड खत्म होने की घंटी बजी तो मैं पूनम को यह कह कर चल पड़ा कि आज कुछ काम है सो कल मिलते हैं।
वो बोली- ठीक है ठाकुर साहब।
अगले दिन जैसे ही कॉलेज में घुसा तो पूनम के अंकल उसको छोड़ कर जा रहे थे। पूनम ने मुझको उनसे मिलवाया और वो बड़े तपाक से मिले और बोले- आप आना बेटा कभी हमारे घर में, थोड़ा दूर तो है लेकिन इतना नहीं।
मैंने ओपचारिक तौर से कह दिया- अवश्य आऊँगा।
फिर मैं और पूनम क्लास में चले गए। जाते जाते हम दोनों के हाथ और एक दूसरे को छू रहे थे और एक बार उसका हाथ मेरे लंड पर भी लगा।
पूनम देखने में काफी अच्छी लड़की लग रही थी, साड़ी और ब्लाउज में लड़कियाँ वैसे ही लड़कों से बड़ी बड़ी लगती हैं। पूनम भी मुझसे उम्र में काफी बड़ी लग रही थी।
हमारा बेंच लास्ट बेंच था क्लास में और वो भी दो सीटर था, मैं और पूनम उस पर काफी कम्फ़र्टेबल बैठे हुए थे।
दूसरी क्लास के दौरान पूनम का हाथ कई बार मेरे जांघों को टच कर रहा था और हम दोनों के घुटने भी अक्सर आपस में रगड़ खा रहे थे।
मैंने पूनम की आँखों में अपनी आँखें डाली तो वो हल्के से मुस्कराई थी और जवाब में भी मैं भी मुस्करा दिया था।
अब मैंने मौका देख कर उसकी कमर में पीछे से हाथ डाल दिया और धीरे से उसको दबा दिया।
पूनम और भी मेरे निकट आ गई लेकिन इस डर से कहीं प्रोफेसर साहिब की नज़र ना पड़ जाए, मैंने अपना हाथ हटा लिया।
लेकिन अब पूनम ने अपन दाहिना हाथ मेरे बाईं जांघ पर रख दिया और मैंने भी शरारत से उसका हाथ उठा कर अपने लंड पर रख दिया।
पहले उसने अपना हाथ ज़रा हटा लिया लेकिन फिर थोड़े टाइम बाद उसने हाथ पुनः मेरे लंड के ऊपर रख दिया।
मैंने भी अपना बायाँ हाथ बेंच के नीचे से उसकी जांघों के ऊपर रख दिया। इस तरह हम एक दूसरे के साथ खेलते रहे जब तक रिसेस नहीं हो गई।
फिर मैंने पूनम का हाथ पकड़ कर उसको उठाया और हम दोनों कैंटीन चल पड़े।
पूनम घर से खाना लाई थी जो हमने मिल कर खाया।
मेरे कुछ मित्र भी हमारे पास आये और उन सबसे मैंने पूनम को मिलवाया कि यह मेरी कजिन है।
फिर मैंने पूनम को आइसक्रीम खिलाई जो आम तौर पर गाँव में नहीं मिलती थी।
कैंटीन में ही बैठे मैंने पूनम को कहा कि वो हमारी कोठी में आकर ही रहे!
उसको यह भी बताया कि कोठी में सिर्फ मैं अकेला रहता हूँ और साथ में दो मेड्स हैं, एक कुक है और दूसरी घर की देखभाल के लिए है।
पूनम बोली- मैं तो तैयार हूँ लेकिन मम्मी पापा से पूछना पड़ेगा न!
मैं बोला- तुम्हारी हाँ है तो उनको मैं राज़ी कर लूंगा। मैं आज ही अपनी मम्मी से बात करूंगा। तुम राज़ी हो तभी तो?
पूनम बोली- ज़्यादा तंग तो नहीं करोगे तुम मुझको?
मैं बोला- आज तो तुम तंग कर रही हो मुझको? हर जगह हाथ रख देती हो?
पूनम बोली- अच्छा जी, और तुम जो मेरी कमर पे पीछे से हाथ रख रहे थे वो क्या था?
मैंने पूनम के कान में कहा- दो दोस्त जो इतने टाइम बाद मिले, थोड़ा थोड़ा प्यार था तो प्रकट तो करना ज़रूरी था ना! क्यों ठीक नहीं क्या?
पूनम बोली- मुझको तो याद नहीं कि तुम मुझको कभी प्यार व्यार करते थे भी या नहीं। हमेशा ही लड़ते झगड़ते थे तुम मुझसे!
मैं खिसयाना होकर बोला- वो बच्चों के झगड़े भी तो प्यार की निशानी थे, क्यों तुम नहीं मानती क्या?
पूनम प्यारी सी हंसी हंस दी- मानती हूँ यार! चलें क्लास में?
घर पहुँच कर मैंने मम्मी को फ़ोन किया और पूनम की सारी बात बताई तो मम्मी बोली कि अभी वो चाचाजी जी को फ़ोन करती हैं।
शाम को ही मम्मी जी का फ़ोन आ गया कि चाचा जी मान गए है, कल तुम पूनम को घर ले आना!
अब मैंने कम्मो को भी बता दिया और पूछा- क्या पूनम के यहाँ आने से हमारे खुले व्यवाहर में कोई फर्क तो नहीं पड़ेगा?
कम्मो बोली- उम्मीद तो नहीं, लेकिन कोई प्रॉब्लम हो गई तो मिल कर सोचेंगे क्या करें?
अगले दिन पूनम क्लास में मेरे वाले बेंच पर ही बैठी थी। जब मैं उसके पास बैठा तो मैंने कहा- फिर कब आऊँ विदाई करवाने?
पूनम मुस्करा कर बोली- डोली लेकर आओगे या ऐसे ही आओगे?
मैं बोला- जैसे तुम चाहो, कहो तो डोली ले कर आ जाता हूँ… क्यों क्या मर्ज़ी है?
पूनम बोली- अभी डोली रहने दो, सिर्फ रिक्शा लेकर आ जाना।
मैं बोला- चाचा जी से बात कर ली है तुमने?
पूनम बोली- कर तो ली है लेकिन क्या यह हम ठीक कर रहे हैं?
मैं बोला- क्या तुम नहीं चाहती मेरे साथ रहना? तुम्हारे मन में कोई संदेह है तो रहने दो! मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही कह रहा था।
पूनम बोली- सोमू क्या तुम नाराज़ हो गए हो? मैं यह सोच रही थी कि जब हम साथ रहेंगे तो क्या एक दूसरे से बच पाएंगे?
मैं बोला- क्या तुम बचना चाहती हो मुझसे?
पूनम मेरी आँखों में देखती हुई धीरे से बोली- वही तो, मैं बहुत ही कामातुर हो जाती हूँ कभी कभी!
हम बातें इतनी धीरे से कर रहे थे कि शायद ही किसी के कान में पड़ी हो, फिर भी मैंने पूनम को इशारा किया और कहा- आओ क्लास के बाहर चलते हैं, यहाँ यह बातें करना सेफ नहीं।
हम दोनों उठ कर कैंटीन में चले गए और एक एक कोक पीते हुए बातें करने लगे।
मैं मुस्करा कर बोला- तुम कामातुर हो जाती हो कभी कभी लेकिन मैं तो हर वक्त कामातुर रहता हूँ। चलो अच्छी निभ जाएगी जब मिलेंगे दो महाकामातुर… तुम मेरी लेना और मैं तुम्हारी।
पूनम बोली- उफ़ सोमू, यह तुम कह रहे हो? तुम जो कल तक दूध पीते बच्चे ही थे, आज काम वासना की बातें कर रहे हो?
मैं बोला- कामवासना में तो तब से लिप्त हूँ जब से दूध पीने लगा था।
पूनम शरारतन बोली- किसका दूध पीने लगे थे और कब से?
मैं भी शरारत से बोला- जिसने भी अपनी दूधी मुझको दी मैंने उसी का जी भर के दूध भी पिया और अपना दूध भी पिलाया। यही है अभी तक के मेरे जीवन का सार… दूध पीते और पिलाते रहो!
पूनम अब ज़ोर सोर से हंसने लगी और मेरा हाथ पकड़ कर बोली- मेरा भी पियोगे क्या दूध?
मैंने उस का हाथ पकड़ कर कहा- अगर तुम पिलाओगी तो ज़रूर पियूँगा और रात दिन पियूँगा।
अब पूनम सीरियस हो गई और शर्माते हुए बोली- मैं तो मज़ाक कर रही थी।
मैं बोला- मैं कौन सा सच्ची कह रहा था, मैंने तो आज तक दूध चखा ही नहीं।
अब हम दोनों हंसने लगे।
कॉलेज ख़त्म होने के बाद मैं पूनम को रिक्शा में लेकर उसके चाचा के घर ले गया।
चाचा का घर काफी छोटा था, सिर्फ 2 ही कमरे थे, मैं पूनम का समान लेकर चाची से विदाई ले आया और उनसे कहा कि वो हमारी कोठी ज़रूर आएं।
कोठी पहुँचा तो कम्मो ने पूनम का स्वागत किया और पूनम का समान मेरे साथ वाले कमरे में लगा दिया। पूनम को कमरा बहुत ही पसंद आया।
कोठी के आगे पीछे का लॉन जिसकी देखभाल माली करता था, कई तरह के फूलों से सजा हुआ था।
मैंने उसको वहाँ थोड़ा घुमाया और एक बहुत ही सुन्दर लाल गुलाब का फूल उसको भेंट किया और कहा- वेलकम टू सोमू’ज़ हाउस।
कम्मो हम सबके लिए चाय ले आई और बैठक में ही हम सबने चाय पी और साथ में लखनवी कचौड़ी भी खाई।
अब कम्मो भी आकर हमारे साथ बैठ गई।
मैंने पूनम को बताया- कम्मो ही घर की मालकिन है और सारा घर वो संभालती है।
रात को पारो ने बहुत ही स्वादिष्ट मटन कीमा और हरा पुलाव बनाया था, वो हम सब ने बड़े चाव से खाया।
खाने के बाद मैं और पूनम मेरे कमरे में आ गए और आते ही मैंने पूनम को बाहों में भर लिया।
पूनम थोड़ा कसमसाई लेकिन जब मैंने उसके लबों पर एक लम्बा और गहरा चुम्बन दिया तो उसने अपने हाथ पैर ढीले छोड़ दिए और मेरी बाँहों में झूल गई।
मैं उसकी आँखों को चूमता हुआ उसके गालों को चूम ही रहा था कि अचानक कम्मो कमरे में आ गई।
पूनम मुझसे दूर हटना चाहती थी लेकिन मैंने उसको कस के बाहों में पकड़े रखा और कहा- कम्मो हमारी गुरु है हर काम में और मैं बगैर कम्मो के आज्ञा के कोई भी काम नहीं करता। तुमको कोई ऐतराज़ तो नहीं पूनम?
पहले वो चुप रही और फिर बोली- कम्मो दीदी जब तुम्हारी गुरु है तो मेरी भी गुरु हुई ना, तो उनसे क्या पर्दा?
मैंने ज़ोर ज़ोर से तालियाँ बजाईं और पूनम और कम्मो दोनों को अपनी बाँहों के घेरे में ले लिया, पूनम को किस किया और साथ ही कम्मो को भी किस किया।
मैंने पूनम को कहा- मैं तो बहुत ही कामातुर हो रहा हूँ और मैं पूनम और कम्मो की आँखों से देख रहा हूँ कि वो भी काफी कामातुर हो चुकी हैं तो यदि पूनम जी की आज्ञा हो तो श्रीगणेश करें?
पूनम बोली- मेरी आज्ञा नहीं गुरुदेव की आज्ञा चाहिए? क्यों गुरुदेव आज्ञा है?
कम्मो बोली- ज़रा सब्र करो, तुम दोनों एक दूसरे के बारे में जान तो लो?
पूनम बोली- हम एक दूसरे को खूब अच्छी तरह से जानते हैं। बचपन में सोमू की नाक अक्सर मैं ही पौंछा करती थी! क्यूँ सोमू?
मैं बोला- क्या कह रही हो पूनम? मम्मी जी तो कहती थी कि बचपन में मेरी नाक हुआ ही नहीं करती थी, यह तो जवान होने पर ही उगी थी जैसे मेरी कई चीज़ें जवानी में ही उगी हैं।
यह सुन कर पूनम झेंप गई।
कम्मो बोली- ठीक है तो वस्त्र विसर्जन करें?
पूनम बोली- कहाँ विसर्जन करना है कपड़ों को कम्मो दीदी?
मैं और कम्मो ज़ोर से हंस दिए और मैं बोला- कम्मो का मतलब है कि कपड़े उतारें क्या?
पूनम और भी शरमाई।
लेकिन कम्मो सबसे पहले मेरे ही कपड़े उतारने लगी और जब पूनम ने मेरा लंड देखा तो वो एकदम आश्चर्य में पड़ गई।
लंडप्रकाश जी वैसे ही खड़े थे जैसी कि उनकी आदत थी,
यह देख कर पूनम बोली- अरे सोमू, यह चीज़ कहाँ से खरीद के लाये हो? इतनी मोटी और सख्त छड़ी कहाँ से चुराई?
अब हैरान होने की बारी मेरी थी, मैं हैरानी से बोला- अरे यह मेरा ही है पूनम।
पूनम ज़ोर से बोली- तुम बिल्कुल झूठ कह रहे हो! खेल खेल में मैंने जब इसको देखा था तो उस टाइम यह इत्ता सा था। यह तुम्हारा हो ही नहीं सकता सोमू चोर?
कम्मो का हंसी के मारे बुरा हाल हो रहा था और वो अपने को संभाल नहीं पा रही थी।
मैं भी खिसयाना हो कर बोला- कम्मो हंसी छोड़ो और पूनम के भी कपड़े उतारो। देखें तो सही उसने क्या कहाँ से चुराया है?
कम्मो हँसते हुए पूनम के कपड़े उतारने लगी।
जब वो पूरी नंगी हो गई तो मैंने भी उँगलियों पर गिनना शुरू किया और बोला- यह गोल गोल जो तुम्हारी छाती पे लगे हैं वो भी तुम्हारे नहीं हैं, यह शायद तुमने किसी फिल्म एक्ट्रेस के चुराए हैं और जो यह पीछे गोल और मोटे चूतड़ हैं वो भी तुम्हारे नहीं हैं और कहीं से चुराए लगते हैं। और जो यह तुम ने काले बाल नीचे लगाये हैं यहाँ पता नहीं तुमने क्या छुपा रखा है?
शर्माने की बारी अब पूनम की थी।
मैं नकली गुस्से में बोला- आप तो तीन तीन चीज़ें चुरा कर अपने ऊपर लगा ली है और मेरी एक चीज़ देख कर इतना शोर मचा रही यह लड़की उफ्फ्फ मेरी माँ!
हमारी इस नकली लड़ाई से कम्मो बड़ी खुश थी, उसकी ख़ुशी उसके होटों और आँखों से झलक रही थी।
मैं आगे बढ़ कर कम्मो के कपड़े उतारने लगा। पहले तो वो हक्का बक्का होकर मुझको देख रही थी लेकिन मैंने उसकी साड़ी खींच डाली और फिर उसका ब्लाउज भी उतारने लगा और फिर उसका पेटीकोट भी खींच डाला।
यह सारा काण्ड पूनम चुपचाप देख रही थी।
कम्मो बनावटी गुस्से में बोली- यह क्या कर रहे हो छोटे मालिक, मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हो आप?
मैं बोला- मैं चेक कर रहा था कि कहीं तुम्हारे गोल मुम्मे, चूतड़ और काले बाल तो नहीं चुरा लिए पूनम ने? और अपने ऊपर लगा लिए हों क्यूंकि इस लड़की का कोई भरोसा नहीं? बचपन में यह मेरे साथ भी ऐसे ही किया करती थी!
अब तो पूनम और कम्मो मुंह में कपडा ठूंस कर ज़ोर ज़ोर से हंस रही थी।
मैं भी नकली गुस्से में बोला- हंस लो हंस लो तुम दोनों… मैं जानता हूँ बचपन से ही इस लड़की की मेरे लौड़े पर नज़र थी, यह हमेशा इस को अपने ऊपर लगाना चाहती थी! क्यों है न पूनम? सच बोलना?
पूनम भी गुस्साई हुई बोली- हाँ तो थी मेरी मर्ज़ी वो मैं अब पूरी कर लूंगी। कम्मो दीदी देना ज़रा अपनी कैंची, मैं काट ही देती हूँ इस साले को! ना होगी यह लण्डी न बजेगी चूती।
पूनम गुस्से में कैंची ढून्ढ रही थी और मैं अब वाकयी में ही डर कर भाग रहा था और पूनम मुझ को पकड़ने की कोशिश कर रही थी। और इस भागा भागी में ना जाने कब मैंने पूनम को पकड़ लिया और उसको अपनी बाहों में भर लिया और उसके लबों पर एक हॉट किस जड़ दी।
उसने भी किस का जवाब किस से दिया और मेरा लौड़ा पकड़ कर उससे खेलने लगी।
कहानी जारी रहेगी।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments