मेरा गुप्त जीवन -38

(Mera Gupt Jeewan-38 Gitika Aur Vinita Ki Saheliyan)

यश देव 2015-08-17 Comments

This story is part of a series:

गीतिका और विनीता की सहेलियाँ

उस रात मैं और कम्मो घोड़े बेच कर एक दूसरे की बाहों में सोये थे इसलिए सुबह थोड़ी देर से उठे।
मुख्यद्वार जब कम्मो ने खोला तो सामने पारो खड़ी थी, वो और कम्मो मुस्कराते हुए मेरी चाय के साथ मेरे कमरे में आईं।
फिर मेरे सामने ही कम्मो ने पारो को रात की सारी कहानी सुनाई और दोनों बहुत देर तक हंसती रहीं।

तब पारो बोली- मैं भी माहवारी से फ़ारिग़ हो गई हूँ, छोटे मालिक रात को मैं भी आऊँगी आपके पास!

मैंने चाय का कप रखा और उठ कर पारो को गले लगा लिया और उसके होटों को चूम लिया, फिर एक हाथ मैंने कम्मो की कमर में और दूसरा पारो की कमर में डाल कर दोनों के साथ छोटा सा नाच किया, दोनों बहुत खुश हुईं।
फिर मैंने अलमारी से अपना बटुआ निकाल कर दोनों को 100-100 रूपए दिए कि वे अपनी पसंद की अच्छी सी साड़ी खरीद लें और साथ ही दो तीन अंगिया भी खरीद लें।

दोनों ख़ुशी के मारे मुझसे फिर लिपट गई और मेरे मुंह पर ताबड़तोड़ चुम्मियों की बौछार लगा दी।
मेरा लौड़ा तो खड़ा होने लगा था लेकिन कम्मो ने जल्दी से पारो का हाथ पकड़ा और कमरे के बाहर चली गई।

दोपहर जब मैं कॉलेज से लौटा तो कम्मो मुझको दरवाज़े पर मिली, उसके चेहरे पर बड़ी प्यारी सी मुस्कान थी।
मैंने पूछा- बड़ी खुश लग रही हो, क्या कोई ख़ास बात है?
उसने झट से मिठाई का डिब्बा मेरी ओर कर दिया और बोली- बधाई हो छोटे मालिक, आप बाप बन गए!
मैं एकदम हैरान हो गया और बोला- ठीक से बताओ, काहे की बधाई और यह मिठाई कैसी है?
मैं अपने कमरे में जाते हुए बोला।

कम्मो भी मेरे पीछे आते हुए बोली- आप समझे नहीं क्या? अरे चम्पा के लड़का हुआ है।
मैं बोला- चम्पा के लड़का हुआ है तो मुझको काहे की बधाई? वो तो उसके पति का है ना!
कम्मो बोली- हाँ है तो उसके पति का लेकिन छोटे मालिक मेहनत तो आपने की थी और निर्मला कह रही थी कि लड़का बहुत ही सुन्दर है और एकदम हृष्ट पुष्ट।

मैं बोला- चलो अच्छा हुआ, बेचारी बहुत दिनों से आस लगाये बैठी थी।
कम्मो बोली- हाँ वो तो है! अब रह गई फुलवा, उसका भी कुछ समाचार जल्दी ही आएगा।

मैं बोला- और सुनाओ, क्या दोनों को डॉक्टर के पास ले गई थी?
कम्मो बोली- हाँ, वही निकला जो मैंने सोचा था। दोनों को इन्फेक्शन है और अगर लग कर इलाज नहीं कराया तो अंजाम खराब हो सकता है, डॉक्टर ने कहा है।
मैंने पूछा- दवाइयाँ ले आई हो ना उनकी?
कम्मो ने हाँ में सर हिला दिया और वो मेरा खाना लाने के लिए चली गई।
खाना खा कर मैं गहरी नींद में सो गया।

शाम को दोनों बहनें आकर बैठक में मेरे पास बैठ गई।
मैंने उपचारिक तौर से पूछा- दवाई खाई क्या?
दोनों ने हाँ में सर हिला दिया।

उनको हमारे साथ रहते हुए करीब एक हफ्ता होने लगा था। सो वो दोनों मेरे साथ थोड़ी खुल चुकी थीं। कुछ सोचते हुए बड़ी गीति बोली- सोमू, हम शाम को बोर हो जाती हैं, अगर तुम इजाज़त दो तो हम कुछ अपनी सहेलियों को यहाँ बुला लें? हमारे साथ कुछ गपशप हो जायेगी तो हमारा दिल भी बहल जाएगा।
मैंने कहा- हाँ हाँ, ज़रूर बुला लिया करो और उनके आने से पहले पारो आंटी को बता दिया करो ताकि वो कुछ नाश्ता इत्यादि बना दिया करे उन लोगों के लिए!

गीति बोली- मैं अभी उनसे फ़ोन पर बात करती हूँ अगर वो आना चाहें तो आ सकती हैं।

थोड़ी देर बाद दो लड़कियां आईं। गीति जो बाहर उनका इंतज़ार कर रही थी, उनको लेकर बैठक में आई और मुझसे मिलवाया।
दोनों ही बड़ी चुलबली लगी।
वो चारों बातें करने लगी तो मैं उठ कर अपने कमरे में आ गया और एक किताब पढ़ने लगा।

उस रात कमरे का दरवाज़ा अच्छी तरह से बंद किया और पहले पारो को चोदा और फिर कम्मो को।
मैंने कम्मो से पूछा- मैं कई बार तुम दोनों के अंदर छूटा रहा हूँ कहीं तुम को गर्भ का खतरा तो नहीं हो जाएगा?
कम्मो हँसते हुए बोली- नहीं छोटे मालिक, पहले वाली गलती को दोहराने नहीं दूंगी इसलिए मैं और पारो, एक ख़ास दवा आती है, उसका इस्तेमाल कर रहीं हैं, आप निश्चिंत रहो।
सुन कर मुझको बड़ी तसल्ली हुई।

अगले दिन कालेज से लौटने पर गीति और विनी दोनों मेरे पास आई और कहने लगी- सोमू, एक नई पिक्चर सिनेमा हाल में लगी है, हम वो देखना चाहती हैं, तुम चलो हमारे साथ।
कुछ देर सोचने के बाद मैंने हाँ कर दी, हम तीनों रिक्शा पर बैठ कर सिनेमा हाल पहुँच गए।
टिकट लेने के बाद अंदर बालकॉनी की तरफ जा ही रहे थे कि गीति की दो सहेलियाँ मिल गई और वो भी हमारे संग हो लीं।
सिनेमा हाल की बालकॉनी थोड़ी सी भरी थी और बाकी खाली थी।

गीति और उसकी एक सहेली इकट्ठी बैठ गई और फिर विनी बैठ गई और मेरे साथ वाली सीट पर एक गोरे रंग वाली लड़की बैठ गई।

उस लड़की को मैंने ध्यान से देखा, काफी सुन्दर थी और सुडौल जिस्म वाली थी। परिचय हुआ तो उसका नाम परिणीता था प्यार का नाम परी बताया उसने और हमारी कोठी के पास वाली कोठी में रहती थी।

इतने में हाल में अँधेरा हो गया, कोई 10 मिन्ट पिक्चर चली होगी कि मैंने महसूस किया कि किसी का हाथ मेरी जाँघ पर चल रहा है। मैंने कोई खास ध्यान नहीं दिया क्यूंकि पिक्चर काफी रोमांटिक थी और मैं काफी तल्लीनता से पिक्चर देख रहा था।

थोड़ी देर बाद ऐसा लगा कि वही हाथ मेरी पैंट पर ठीक लंड के ऊपर चल रहा है।
मैं समझ गया कि यह हाथ परी का ही है, वो हाथ बाहर से मेरी पैंट पर लंड को सहला रहा था।
मैं भी आनन्द लेने लगा और धीरे धीरे मेरा लंड खड़ा होना शुरू हो गया। परी का हाथ अब सिर्फ मेरे लंड के ऊपर ही था। जैसे ही हाल में थोड़ी रोशनी हुई तो परिणीता ने अपना हाथ हटा लिया।

मुझको शरारत सूझी और मैंने अपना लंड पैंट में से निकाला और खड़े लंड को पैंट के बाहर ही रख दिया और ऊपर हाथ रख दिया।
थोड़ी देर में फिर अँधेरा जब गहरा हुआ तो सूरी का हाथ ढूंढता हुआ मेरे लौड़े पर आ गया।

जैसे उसने खड़े लंड को हाथ लगाया और महसूस किया कि वो पैंट के बाहर है तो उसको एक झटका लगा और उसने अपना हाथ झट से खींच लिया।
मैं वैसे ही बैठा रहा। कुछ मिन्ट के बाद वो हाथ फिर से मेरे लंड को टटोलता हुआ लंड के ऊपर आ कर टिक गया। उसके हाथ ने लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया और उसको हल्के हल्के सहलाने लगा।

तभी उसने मेरा हाथ पकड़ा और उसको अपनी जांघ के ऊपर रख दिया।
मैंने भी देर किये बगैर उसकी जांघ पर हाथ फेरना शुरू कर दिया क्यूंकि वो साड़ी पहने थी तो मैंने अंदाज़े से हाथ को उसकी चूत पर रख दिया और उसको हल्के हल्के साड़ी के बाहर से ही सहलाने लगा, फिर हिम्मत करके मैंने हाथ उसके नंगे पेट पर फेरने लगा और कुछ देर बाद उसके मम्मों की टोह लेने लगा।

यह सारा काण्ड इतने चुपके से हो रहा था कि साथ में बैठी हुए विनी को कोई खबर नहीं लग रही थी।
अब मैं उसके गोल और सॉलिड मम्मों को पूरी तरह से हाथ में ले कर हल्के से मसलने लगा।
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थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया कि उसकी साड़ी उसके घुटने के ऊपर आ चुकी थी। मैंने मम्मे को छोड़ कर हाथ उसके घुटने पर रख दिया और धीरे से हाथ उसकी साड़ी के अंदर डालने लगा।
परी का हाथ लगातार मेरे खड़े लौड़े के साथ खेल रहा था। मेरे हाथ को साड़ी के अंदर जाते महसूस कर उसने अपनी झांगें और चौड़ी कर दी।

मेरा दायां हाथ अब उसकी चूत के बहुत निकट पहुँच चुका था, तभी विनी को हल्की सी खांसी आने लगी, हम दोनों ने अपने हाथ खींच लिए।
जब विनी सामान्य हुई तो हम दोनों के हाथ फिर अपने सफर पर चल पड़े। अब जल्दी से मैंने अपने हाथ को उसकी साड़ी के अंदर दुबारा डाल कर खुली हुई जांघों को पार कर उसकी झांटों से भरे किले के पास पहुँच गया, वहाँ उसकी चूत से टपक रहे रस को महसूस करने लगा और परी का भी हाथ अब मेरे लंड को ऊपर नीचे करने लगा।

मेरा लंड इस वक्त बहुत ही सख्त खड़ा था और वो बिदके हुए घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा और परी के मुलायम हाथ में उछालें मारने लगा।
इधर मैं भी उसके भग को हल्के हल्के सहलाने लगा और परी की टांगें कभी बंद और कभी खुल रही थी जिससे ज़ाहिर था कि उसको बड़ा ही आनन्द आ रहा था।
फिर मैंने अपने हाथ की बीच वाली ऊँगली को उसकी खुली चूत के अंदर डाल दी और हल्के से रगड़ने लगा।

थोड़ी देर में एक ज़ोरदार हुंकार भर कर परी ने अपनी जांघों को भींच लिया और मेरे हाथ को जांघों के बीच जकड़ लिया और एक छोटे से कम्पन के बाद वो एकदम ढीली पड़ गई।
मैंने उसकी चूत से रिसते हुए रस को अपने हाथों में ले लिया और फिर अपना हाथ खींच लिया।
मेरा हाथ एकदम परी की चूत से निकल रहे रस में डूब गया।
तब उसने धीरे से मेरा हाथ अपनी साड़ी से निकाल दिया, अपना हाथ भी मेरे खड़े लौड़े के ऊपर से हटा लिया और अपनी साड़ी भी ठीक कर के सामान्य रूप में बैठ गई।

थोड़ी देर बाद पिक्चर का इंटरवल हो गया और हम सब उठ कर बाहर आ गए।
मैंने लड़कियों से पूछा- क्या पियेंगी या खायेंगी?
सब बोली- हम तो नई वाली कोका कोला की बोतल पियेंगी।
और मैं सबके लिए कोका कोला लेने चला गया और मेरे साथ परी भी चल दी कि शायद मदद की ज़रूरत पड़ेगी।

रास्ते में अपनी ऊँगली को बार बार सूंघ रहा था जिसको देख कर परी बहुत शर्मा रही थी, वो कहने लगी- सोमू, तुम्हें इस ऊँगली से बहुत खुशबू आ रही है क्या?
मैंने झट उसी ऊँगली को परी की नाक के नीचे रख दिया जो कुछ मिन्ट पहले उसकी चूत में डाली थी।

वो थोड़ी शर्माते हुए बोली- वाह सोमू, बड़ी खुश्बू आ रही है इस ऊँगली से। कहाँ डाला था इसको?
मैं बोला- बड़ी प्यारी जगह थी वो! यही सोचता हूँ क्या वहाँ अपना सब कुछ डालने का सौभाग्य दोबारा मिल सकेगा या नहीं?
परी ज़ोर से हंस दी और बोली- अगर कोई दिल से चाहे तो सुना है वह चीज़ अवश्य मिल जाती है।

फिर हम कोका कोला की बोतलें लेकर वापस आ गए और सबको एक एक दे दी। बर्फ में लगी ठंडी बोतल पी कर सब लड़कियाँ खुश हो गई।
फिर इंटरवल खत्म हो गया और हम सब अपनी सीटों पर आकर बैठ गए।

लेकिन मेरे साथ वाली सीट पर अब कोई और लड़की बैठी थी, उसने अपना परिचय खुद ही दिया- मैं जसबीर हूँ और हम सब लड़कियाँ एक ही कॉलेज में एक ही क्लास में पढ़ती हैं। वैसे मेरा घर का प्यारा नाम जस्सी है।
मैं बोला- बड़ी ख़ुशी हुई आप से मिल कर, वो परी कहाँ गई?
जस्सी बोली- वो तो दूपरी सीट पर बैठी है, आपको कोई ऐतराज़ तो नहीं न?
मैं बोला- नहीं तो।

सिनेमा हॉल की लाइट बंद होने से पहले मैंने ध्यान से जस्सी को देखा वो भी काफी गोल मोल थी लेकिन रंग थोड़ा सांवला था और उसने सलवार कमीज पहन रखी थी।
वो शायद पंजाबी थी।
उसके मम्मे काफी बड़े और गोल मोल थे और उसकी गांड भी मोटी और उभरी हुई थी, काफी सेक्सी लग रही थी।
जब पिक्चर इंटरवल के बाद शुरू हुई तो वही कहानी दोबारा दोहराई जाने लगी। यानी जस्सी ने भी परी की तरह मेरे लंड को पकड़ लिया।
उसने खुद मेरी पैंट के बटन खोल कर लंड को बाहर निकाला और उसके साथ मस्त खेलने लगी। मैंने भी फ़ौरन हाथ उसकी सलवार में छुपी उसकी चूत के ऊपर रख दिया और उसको हल्के से रगड़ने लगा।

तब उसने सलवार का नाड़ा हल्के से खोला और इतना खुला कर दिया कि मेरा हाथ सलवार के अंदर जा सके।
मैंने भी अपना दायां हाथ उसकी सलवार में डाल दिया और सीधा उसकी बालों से भरी चूत पर हाथ रख दिया। वो भी मेरे लंड की मुठी मारने लगी और मैं भी अपनी मध्यम ऊँगली उसकी चूत में डाल कर रगड़ने लगा।

थोड़ी देर यह खेल चलता रहा, फिर उसने अपना मुंह मेरे मुंह के पास लाकर मेरे गाल को चूम लिया और मैंने भी ऐसा ही किया।
अब वो जल्दी जल्दी मुट्ठी मारने लगी लेकिन मेरा लौड़ा तो मुट्ठी से डरने वाला नहीं था, वो सर उठाये जमा रह अपनी जगह!

मैंने भी उसकी भग को रगड़ने की गति तेज़ कर दी और 5 मिन्ट में ही वो पानी छोड़ बैठी। थोड़ा सा पानी मेरी ऊँगली में लगा जिसको सूंघा तो वैसी ही खुश्बू थी।
मैंने हाथ खींच लिया और उसने भी हाथ को हटा लिया।

जब पिक्चर खत्म हुई तो सारी लड़कियाँ मेरे साथ चलने की होड़ में लगी रही लेकिन मैंने अपने लिए अपना साथी तय कर लिया था और वो थी परी।
मैं उसके साथ चलने लगा और उसको अपना फ़ोन नंबर बता दिया और कहा- जब तुम चाहो मेरी कोठी में आ सकती हो।
फिर हम तीनों तो अलग रिक्शा पकड़ कर घर आ गए और वो दोनों लड़कियाँ अलग से अपने घर चली गई।

मैंने सारी कहानी कम्मो को बताई और कहा- मुझको परी की चूत ज़रूर लेनी है, जैसे भी हो।
मैं तो पिक्चर मैं काफी गरम हो चुका था, मैंने पारो और कम्मो की चूत पर सारी गर्मी उतारी।
दोनों हैरान थी कि मुझको क्या हो गया है, मैं उन दोनों को छोड़ ही नहीं रहा था, एक के बाद एक को चोद रहा था।

अगले दिन कम्मो ने बताया कि कल रात मैं कैसे पागल हो गया था उनकी चूतों के पीछे और दोनों को कम से कम 7-8 बार चोदा था मैंने।
सुबह वो दोनों बहुत ही थक गई थी और मैं भी काफी थका हुआ था।

कहानी जारी रहेगी।
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