माँ बेटी की मज़बूरी का फायदा उठाया-3
(Maa Beti Ki Mazboori Ka Fayda Uthaya- Part 3)
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कमरे में घुसकर मानसी चली गयी बाथरूम में नहाने … मेरे लिए यही मौका था … जब पानी गिरने की आवाज हुई बाथरूम में तो मैंने जाकर गुस्से से सुशीला को पकड़ लिया।
सुशीला- यह क्या कर रहे है मुनीम जी … आप तो बदतमीज़ी पर उतर आए।
मैं- बदतमीजी तो अभी की नहीं है, आगे देखती जाओ कि मैं क्या करता हूँ।
सुशीला- क्या कर रहे हो … अभी हम चिल्ला देंगे।
मैं- चिल्लाओ … क्या बोल रही थी कि हम मानसी की नादानी का फयदा उठा रहे हैं।
सुशीला- और नहीं तो क्या?
उसके आँखों से आँसू निकलने लगे थे।
मैं- सुन … तेरी बेटी मुँह काला कर चुकी है … उसके पेट में बच्चा है।
सुशीला चौंक गयी।
सुशीला- आ … प … झूठ बोल रहे हो। हमको फंसाने का नाटक है।
मैं- मैं नाटक कर रहा हूँ या तू … दो महीने से उसका मासिक बंद है। मालूम नहीं पड़ता क्या … कल रिपोर्ट आ रही है चिंता मत कर।
यह सुनकर सुशीला जोर से रोने लगी.
मैं- अब चिल्ला तू कितना चिल्लाती है … गाँव सबको बोल दूंगा कि उसके पेट में बच्चा है … और यह औरत भी कितने जगह मुँह काला कर चुकी है … मालूम नहीं। मेरे सामने सती सावित्री बनती है … देख दोनों को कैसे रगड़ रगड़ कर चोदता हूँ।
सुशीला के जोर से रोने की आवाज कमरे में गूंजने लगी … आवाज सुनकर मानसी ने पानी बंद कर दिया … वो बाथरूम से निकलने वाली थी।
सुशीला- हमारे साथ ऐसा मत करो। हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?
और रोने लगी.
मैं- अब आई ना लाइन पर … सुन उसको कितने चोद चुके हैं मालूम नहीं … मैंने और एक बार चोद लिया तो क्या फर्क पड़ता है। अगर तू चाहती है कि गाँव में किसी को तेरी बेटी के बारे में पता न चले तो उसके और मेरे बीच में रुकावट न बनना … अगर तू साथ देगी … तो कल उसका पेट साफ करके जाएंगे। किसी को पता नहीं चलेगा। नहीं तो गाँव में अपना काला मुँह तेरी बेटी किसी को नहीं दिखा सकेगी … समझी?
सुशीला रो रही थी वैसे दीवार से चिपकी हुई … मैं उसके गाल और कान को चूमने लगा वैसे ही उसे दीवार से दबाकर … वो खड़ी थी और मैं उसके चूतड़ मसल रहा था.
तभी बाथरूम का दरवाजा खोलकर मानसी निकली, मानसी अपनी माँ को इस हालत में देख कर थोड़ा डर गयी।
मानसी- क्या हुआ माँ? यह अवाज कैसी थी और तुम रो रही हो?
मैं सुशीला के कान में आहिस्ता से बोला- अपनी बेटी को कुछ मत बोलना … नहीं तो सबको बता दूंगा.
सुशीला रो रही थी, मैंने उसके गाल पर चुममा दिया और उसके चूतड़ को मसलते हुए बोला- मानसी, वो कुछ नहीं, तुम्हारी माँ हमसे थोड़ा प्यार कर रही थी न … इसीलिए।
मानसी ने और एक बार उसकी माँ की अवस्था पर नजर डाली … और देखा कि सचमुच वो मुझे कुछ बोल नहीं रही है और मैं उसके चूतड़ मसल रहा हूँ, गालों को चूम रहा हूँ.
तो मानसी गुस्से से बोली- अंकल जो बोल रहे थे, ठीक था … खुद तो इश्क लड़ाती हो और हमारे पर गुस्सा दिखाती हो सती सावित्री बनकर?
मैं- ठीक समझी तू मानसी, अब अपनी माँ का असली रूप तो देख चुकी हो। अब मैं जो बोलूँगा वो करना … समझी … अपनी माँ की तरह तुम्हें भी हक़ है मजा लेने का। क्यूँ मानसी?
और मैंने एक बार चूम लिया सुशीला के गाल को! वह अभी भी रोती जा रही थी सिसक कर!
मानसी- जी अंकल … मैं आपका पूरा साथ दूंगी.
अब दोनों मुर्गी मेरी मुट्ठी में थी … एक चुप और दूसरी फड़फड़ाती हुई। लेकिन उसके पर काटने में भी मुझे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा, यह मैं जानता था.
मैंने सुशीला को छोड़ दिया, वो मुंह लटकाये हुए बेड पर बैठ गयी.
मैं- मानसी … अब देर किस बात की? चलो खेल शुरु करते हैं।
मेरा अब उसकी माँ के सामने उसे चोदने का अब प्रोग्राम था.
मानसी मेरे पास आयी और हम दोनों के प्यासे होंठ मिल गये। मानसी को तो लाइसेंस मिल गया था। अभी अभी वो नहा के आई थी। सुशीला हमें देखते ही रह गयी, वो गुस्से से दोनों को देख रही थी मगर कुछ बोल नहीं पा रही थी.
और मानसी ने मेरी धोती खींच दी … मेरा लंड फन लहराते हुए धोती से आजाद था … सुशीला की नजर एक बार उस पर पड़ी तो वो देखती ही रह गई.
मैं- क्या देख रही हो भाभी? लगता है कि पसंद आ गया?
सुशीला ने लाज से सर को दूसरी तरफ घुमा दिया।
मैं मन में- चिंता मत कर साली … तुझे भी चोदूँगा … मगर तड़पा तड़पा कर!
अब मैंने उसकी बेटी को उसके सामने बेड पर पटक दिया और चढ़ गया उसके उपर और उसके कपड़े उतार दिए.
मैंने अपना कुर्ता भी उतार कर फेंक दिया.
मानसी- क्या कर रहे हो मुनीम जी? आहिस्ता से … आपने तो मेरा ड्रेस फाड़ दिया?
मैं- चिंता मत करो … और दस खरीद लाएँगे.
मानसी- ठीक है … मगर आहिस्ते!
मैं पूरा जानवर बन गया था, मैंने मानसी को पलट दिया और उसकी गाण्ड में कस के लंड पेल दिया.
मानसी- मर गई … आहह आह!
सुशीला की भी आँखें फट के रह गयी. मैंने सुशीला की ओर देख कर और एक जोर का धक्का मारा और मानसी की गाण्ड से खून निकल आया। सुशीला देखती ही रह गयी … उसकी आँखें फट चुकी थी जैसे!
मेरे लंड पर मुझे मानसी की कसी गाण्ड का दबाव महसूस हो रहा था, मानसी की जवान गांड ने मेरे विशाल लंड को जकड़ लिया था.
मानसी- मुनीम जी, क्या कर रहे हो … मेरी तो गांड फट गई … इतना बड़ा लंड … मुझ पर दया करो मुनीम जी। इसे निकालो मेरी नाजुक गाण्ड से!
मैं- चुप कर यार … थोड़ी देर की बात है, तेरी गांड ढीली हो जायेगी तो मजा आयेगा.
उसने अपनी माँ के सामने ऐसे बात सुनकर बात बढ़ाना ठीक नहीं समझा।
मैं- और ले मेरी रानी!
और उसके चूतड़ को दोनों हाथ से दबा कर एक जोर का धक्का मारा … अब मेरा पूरा लंड अब मानसी की गांड के अंदर था। उसके मुँह से चीख निकल गई ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
लेकिन मैंने उस पर थोड़ा भी रहम नहीं किया और लंड को थोड़ा बाहर निकाल के फिर से धक्का लगाया. वो सिर्फ चिल्लाती रह गयी … क्या मजा था … उसकी चीख में!
अब मैं उसकी चूचियों को जोर जोर से दबा रहा था और गांड में धक्का भी मार रहा था और सुशीला के चेहरे को देख के मुस्कुरा रहा था.
कुछ देर के बाद मानसी साथ देने लगी और चिल्लाना छोड कर सिसकारी भरने लगी. अब मैं भी जोश में आकर और स्पीड बढ़ाता गया- ले साली और ले … मेरी नयी नवेली रंडी!
सुशीला आंखें फाड़ कर वैसे ही देखे जा रही थी कि उसकी बेटी क्या कर रही है! उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे!
थोड़ी देर बाद मैंने मानसी की गाण्ड में अपना पानी विसर्जित कर दिया और उसके नंगे बदन के ऊपर लुढ़क गया.
हम दोनों हांफ रहे थे.
कुछ देर बाद मानसी ने मुझे अपने ऊपर से हटाया और बाथरूम में जाने को उठी।
मैं- चल रंडी … इसे चाट के साफ कर! जाती कहाँ है?
वो अब आँखें फाड़ कर मेरे लंड को देख रही थी, बोली- तुम तो राक्षस हो। मैं तो तुम्हारे इस घोड़े जैसा लंड का मज़ा लेना चाहती थी मगर तुमने तो मेरे ऊपर थोड़ा भी रहम नहीं किया.
मैं- चुप साली … ज्यादा बक बक मत कर और इसे चाट के साफ कर!
वो वही बेड के नीचे बैठी और मेरे लंड को चाटने लगी। मानसी अपनी माँ के सामने मेरे लंड को मुँह में लेकर आगे पीछे अच्छे से चाट रही थी.
मेरा लंड फिर से ताव में आ गया और मैंने उसके चोटी पकड़ लिया और उसके मुँह को चोदने लगा. उसके मुँह से ‘गु गूं हह गु गूं …’ की आवाज निकलने लगी. मैं कुछ सुना नहीं और उसके गले तक लंड घुसाने लगा. मेरी आँखें अभी भी सुशीला के चहरे पर ही टिकी थी. मैंने उसे एक संदेश देना चाहता था कि उसे भी ऐसे चोदने वाला हूँ.
वो मेरे आँखों में उसके लिए वासना देख कर डर गयी.
मैं सुशीला से बोला- देख साली, तेरी बेटी को कैसे चोद रहा हूँ.
और उसके गले तक लंड घुसा दिया. वो फिर तड़पने लगी ‘गू गूं गु …’ करके। उसकी आँखों से पानी बह निकला था. साथ ही वो उलटी करने लगी थी.
सुशीला बोली- मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ। उस पर रहम करो … वो अभी छोटी है.
मैं- हा … ह … हा … साली पूरी रंडी है। पाँच भी अगर इसे चोदें तो कुछ नहीं होगा इसका … ये तो मजा ले रही है. तुम अपनी सोचो … इसके बाद तुम्हारी बारी है.
और मैं जोर जोर से धक्के लगाने लगा. सुशीला को चोदने की सोच से मैं और गर्म होने लगा. अब मैं जानता था कि मैं और ज्यादा देर नहीं टिकूंगा।
मैंने मानसी को कहा- जो भी रस निकले, सब निगल जाना!
और दस बीस धक्के के बाद मैं सिसकारी मारके उसके मुँह में ही झड़ गया और वो सब निगल गई और वहीं जमीन पर खांसने लगी।
मानसी- मुझे तुमसे और चुदवाना नहीं है। तुम तो पूरे मादरचोद हो। जानवर हो तुम!
मैं- साली कितनों का लंड खा चुकी है और बोलती है चुदवाना नहीं है। देख थोड़ी देर में कैसे बोलेगी कि मुझे फिर से चोद दो जब तेरी चूत लंड मांगेगी.
मैंने यह बोल कर उसके दोनों पैर को दोनों तरफ फैला दिया और उसकी चूत थोड़ा फ़ैल गयी. मैंने झट से एक उंगली उसकी चूत में डाल दी और उसको आगे पीछे करने लगा. उसके मुँह से सिसकारियां निकलने लगी- आह उम्म्ह… अहह… हय… याह…
मैं तुरंत दो उंगलियाँ उसकी चूत में डाल दी और जोर जोर से फिंगर फक करने लगा. मानसी के मुँह से बड़ी बड़ी सिसकारियां निकलने लगी.
मैंने सुशीला की ओर देख कर मानसी से पूछा- कैसा लग रहा है मेरी रंडी?
मानसी- बहुत अच्छा … आहह स स आ … चोदते रहो!
यह सुनकर सुशीला हैरानी में पड़ गयी और मैं उसे देख कर थोड़ा मुस्कुरा दिया. फिर मैंने मानसी की गर्म चूत से अपनी उंगलियाँ निकाल ली और अपना मुँह उसकी चूत से लगा दिया और चाटने लगा.
वह मुँह से और बड़ी बड़ी सिसकारियाँ छोड़ने लगी- उम्माह … अंकल और जोर से … आह आस्स मुनीम जी … आहह!
थोड़ी देर के बाद मैंने मानसी की चूत से मुँह उठा लिया तो मानसी गिड़गिड़ाती हुई बोली- मुनीम जी, रहम करो मेरे ऊपर … चाटते रहो!
मैं- रंडी, अभी तो तुझे चुदवाना नहीं था … अब क्या हुआ साली? अब अपनी माँ को दिखा तू कि तू कितनी बड़ी रंडी है। मेरे लंड के ऊपर आ जा और अपनी चूत में मेरा लंड लेकर अपनी गांड को उछाल उछाल के चुदवा!
यह बोल कर मैं बेड के ऊपर लेट गया.
कहानी जारी रहेगी.
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