माँ बेटी की मज़बूरी का फायदा उठाया-1

(Maa Beti Ki Mazboori Ka Fayda Uthaya- Part 1)

This story is part of a series:

मेरे पड़ोस में एक अंकल हैं, जिनकी उम्र अभी 60 साल है। उनसे मेरी बहुत पक्की दोस्ती है, हम एक दूसरे से बहुत खुले हुए हैं और अपनी सभी बातें शेयर करते हैं। वो बहुत ही ठरकी किस्म के हैं, गाँव की जवान होती लड़कियों के बारे में बहुत सी बातें करते हैं।
उन्होंने मुझे अपनी जवानी की सच्ची घटना सुनाई जो मैं उन्हीं के शब्दों में लिख रहा हूँ।

मैं राजपुर गाँव के जमींदार प्रताप सिंह के यहाँ मुनीम का काम करता था। उस समय मेरी उम्र 40 साल थी। मुझे गाँव में सभी मुनीमजी कहते थे। गाँव में मेरी बहुत इज़्ज़त थी। मैं काम के सिलसिले में अक्सर शहर जाया करता था। गाँव से शहर बहुत दूर था। जहाँ से सुबह एक बस शहर जाती थी और फिर शाम को लौट आती थी।

एक दिन मैं गाँव के पंडित जी के घर से गुजर रहा था तो पंडित जी ने रोक लिया- मुनीम जी, आप शहर कब जा रहे हो? मुझे एक विश्वासी आदमी की जरूरत है। मेरी लड़की को औरतों वाली कोई बीमारी है। आपकी शहर में बहुत जान पहचान है। आप किसी जान पहचान वाले अच्छे डॉक्टर से मेरी लड़की को दिखा देना।

लड़की की बात सुनकर मैंने पंडितजी से बोल दिया- मैं कल ही शहर जाने वाला हूँ।

फिर पंडित जी ने आवाज लगाई- मानसी बेटी, ज़रा यहाँ आना!
तभी एक बेहद खूबसूरत लड़की बाहर आई। वो बेहद रूपवती थी, बदन ऐसा कि छूने से मैला हो जाए। चूचियां छोटी छोटी थी लेकीन बहुत कसी और बहुत नुकीली थी। उसे देखकर मेरी नीयत ख़राब हो गई।
मानसी- जी बाबा, आपने बुलाया?
पंडित जी- देखो बेटी, ये मुनीमजी हैं। कल तुम अपनी माँ के साथ सुबह वाली बस से शहर चले जाना। मुनीमजी भी साथ में जाएंगे और तुमको डॉक्टर से दिखा देंगे।
मानसी मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराई और ‘जी बाबा!’ कहकर अंदर चली गई।

मैं भी उसकी रसीली जवानी के सपने देखता अपने घर आ गया। मुझे बहुत दुःख हुआ यह सुनकर कि मानसी के साथ उसकी माँ भी जायेगी। नहीं तो मैं सोच रहा था कि मानसी की रसीली जवानी को बहुत प्यार से चूसता लेकिन अब क्या हो सकता था।

अगली सुबह मैं अच्छे से तैयार होकर वहाँ पहुँच गया जहाँ से बस मिलती थी। मानसी अपनी माँ सुशीला के साथ पहुँच चुकी थी, वह मेरी तरफ देखकर मुस्कुराई।

कुछ देर में बस आ गई। बस में बहुत भीड़ थी, हम लोग कैसे भी बस के अंदर पहुँच गए। मैं मानसी के पास खड़ा हो गया था। मैं बस में ही उसके रसीली जवानी को टटोल लेना चाहता था लेकिन उसकी माँ से बचकर!
कुछ ही देर में बस ने रफ़्तार पकड़ ली लेकिन गाँव का रास्ता सही नहीं था तो बस में झटके भी लग रहे थे। उसी का फायदा उठाकर मैंने अपनी कोहनी से मानसी की एक चूची को स्पर्श कर दिया। लेकिन जब मानसी ने कोई एतराज़ नहीं किया तो मैंने ज्यादा देर इन्तजार नहीं किया … और मानसी की चूची को धक्का मारना प्रारम्भ कर दिया। लंड का आनन्द बढ़ता जा रहा था … मैं आहिस्ता आहिस्ता कोहनी से उसकी चूची को धक्के मारने लगा.

एक बार उसने तिरछी नजर से मुझे देखा मगर हाथ थोड़ा तिरछा करके मेरी कोहनी को उसकी छाती पर छूने दी। मैं खुश हो गया। मुर्गी तो लाईन पर है!
मैंने अब हाथ उसकी पीठ पर रख दिया और उसकी पीठ सहलाने लगा. वो कुछ नहीं बोली। मैं उसका दूसरा हाथ अपने लंड पर रख दिया। वह पहले तो घबराई लेकिन धीरे धीरे बस की स्पीड के साथ मेरे लंड को सहलाने लगी। मेरा लंड तो जोश में आकर फड़फड़ाने लगा। मानसी टेढ़ी नजर से देख कर मेरे लंड को सहलाने लगी मगर कुछ नहीं बोली और मुझे रास्ता देने लगी. मैंने हाथ को थोड़ा ऊपर उठाया पर तभी सुशीला झुक कर देखने लगी कि मैं क्या कर रहा हूँ। मैं झट से हाथ पीछे ले लिया.

मानसी सब समझ गई, उसने अपनी ओढ़नी को उस तरफ कर दिया ताकि उसकी माँ को मेरा हाथ दिखाई न दे.
मैं बहत खुश हो गया.

मैं- बेटी हम एक बार डॉक्टर को देखने के बाद सारा शहर घूमेंगे।
मानसी- अच्छा चाचाजी … आप शहर घुमायेंगे।
कहकर खुशी से उछल पड़ी.
मैं अपने एक हाथ को उसकी चूची पर दबा दिया और दूसरे हाथ से अपने लंड को.
मैं- क्यों नहीं बेटी, हमारी प्यारी मानसी को हम खरीदारी भी कराएँगे.
सुशीला गुस्से से- लेकिन तुम्हारे इलाज के लिए पैसे ठीक से नहीं होगा … उसमें खरीदारी के लिए पैसे कहाँ से आएंगे?
मैं- भाभीजीईईईई … आप भी न … चाचा के होते हुए भतीजी को पैसे की क्या जरूरत?
और हाथ थोड़ा ऊपर चूत के पास दबाया. मानसी की आँखें बंद हो गई मगर कुछ नहीं बोली.
क्या सेक्सी लड़की थी!

सुशीला- नहीं, हम किसी से पैसे नहीं लेंगे.
मैं- आपको थोड़े ही दे रहा हूँ … अपनी भतीजी को दे रहा हूँ.
सुशीला चुप हो गई और मानसी का ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा … इसी बहाने अब मैं अपने हाथ को चूत के ऊपर से सहलाने लगा था.

मानसी की हल्की सी सिसकारी निक़ल गई और सुशीला थोड़ा झुक के देखने लगी तब तक मैं हाथ निकाल चुका था। मुझे सुशीला के ऊपर बहत ग़ुस्सा आया। साली न ही ख़ाती है और न खाने देती है.
फिर थोड़ी देर बाद मेरा हाथ अपनी जगह पर पहुँच गया था और मानसी की चूत कुरेदने लगा था. इधर मेरा दूसरा हाथ मेरे लंड के ऊपर घिस कर अजीब गर्मी पैदा कर रहा था. दो जिस्म गर्मी से जल रहे थे और एक हड्डी बगल में बैठी थी.

मैंने अब मानसी की चूत को सहलाना शुरू किया. मानसी ने भी अच्छे से ओढ़नी से ढक ली ताकि उसकी माँ को उसके चेहरे के कामुक भाव दिखाई न दें.
मगर सुशीला को कुछ शक होने लगा था पर वो कुछ बोल ही नहीं पाती थी क्यूंकि उस समय मेरी ही जरूरत उनको थी.

मैं अब हाथ से अपने लंड को जोर से दबाने लगता और एक हाथ से उसकी चूत को! इधर मेरी धोती प्रिकम से भीगने लगी थी, उधर उसकी सलवार … वो बीच बीच में सेक्सी नजरों से मुझे देखने लगती.
वो एक बार बस के झटके के साथ ऐसे झुकी और मेरे लंड पर हाथ रख कर उसे पकड़ लिया जैसे वो गिरने से बचने के लिये मेरे लंड का सहारा ले रही हो अपने हाथों से!
मैं समझ चुका था कि लड़की नादान नहीं है … पहले से ही शातिर है … और मुझे फुल लाइन दे रही है।

हाथ उठाने से पहले उसने मेरे लंड को ऐसे कसके दबा दिया कि मेरे मुँह से भी जोर की सिसकारी निकलने वाली थी लेकिन मैंने रोक लिया नहीं तो सुशीला को शक हो जाता।

बस अभी शहर से थोड़ी ही दूर थी और हमारा खेल भी अन्तिम चरण में था, मैं झड़ने वाला था। उसके हावभाव से लगता था कि मानसी भी झड़ने वाली थी. मैं जोर से घिसना शुरु कर दिया … मेरे लंड को और उसकी चूत को … एक जोर की सिसकारी उसके मुँह से निकली और एक हाथ से मेरे हाथ को अपनी चूत पर उसने दबा दिया.
सिसकारी सुन कर उसके साथ की सीट वाला पीछे देखने लगा, सुशीला भी।

मेरा भी पानी छुट गया और मेरे मुँह से सिसकारी भी निकली मगर कोई कुछ समझ नहीं पाया. सुशीला को पूरा यकीन हो गया कि क्या चल रहा था. जब उसने मेरे मुँह की तरफ देखा तो आनन्द से मेरी आंखें बंद थी।
मैं बात को बदलाने के लिये बोला- शहर आ गया।
पर सुशीला की गुस्से भरी नजर कभी मुझे और कभी मानसी को देखती जा रही थी. बस आकर बस स्टोप पर रुकी, हम बस से उतरे … पर सुशीला कुछ बोल नहीं रही थी. मैं और मानसी भी चुप थे.

मैं आगे चल रहा था और वो दोनों मेरे पीछे पीछे … हम तीनों एक होटल के पास आ पहुंचे. मैंने जानबूझकर एक ही कमरा लिया. वेटर चाभी लेकर रूम खोल गया.
सुशीला- क्या एक ही कमरा?
मैं- हाँ …
सुशीला गुस्से से- एक ही कमरे में हम तीनों कैसे रहेंगे … पराये मरद के साथ तो मैं नहीं रह सकती.

मैंने मन ही मन सोचा … साली देख कैसे रुला रुला कर चोदता हूँ। पराया मरद कहाँ … उस पुजारी को छोड़कर मेरा आठ इंच का लंड एक बार ले ले, फिर इसका गुलाम बन जाएगी।
मैं- वो कमरे का किराया बहुत ही ज्यादा है. तुम तो बोल रही थी कि पैसा कम लाये हो। इसीलिए एक ही कमरा लिया। तुम अगर मेरे साथ सोना नहीं चाहती हो तब नीचे सो जाना … मानसी मेरे साथ सो जाएगी … क्यूं बेटी?
मानसी उछल कर- हाँ क्यों नहीं … मैं अंकल के साथ सो जाऊंगी।
सुशीला गुस्से से- नहीं तुम नीचे सोना!
उसके मुँह से निकल गया।

मैं- मुझे क्या एतराज हो सकता है।
वो थोड़ी देर सोचने लगी … फिर भी कुछ नहीं बोल पाई.
मैं- अब सामान इस कमरे में रख कर निकलो … डॉक्टर के पास जाना है।
सुशीला का मन थोड़ा शांत हुआ।

मेरा एक दोस्त जो मेरे कॉलेज में था, डाक्टरी की पढ़ाई करके अब उसी शहर में सिटी हॉस्पिटल में स्त्री रोग विशेषज्ञ था। हम उसके पास पहुँच गये।
उसका नाम दीपक था।

दीपक- क्या तकलीफ है आपकी बेटी को?
सुशीला ने इधर उधर देखा।
दीपक- घबराओ नहीं, रोग तो सभी को होती है। इसमेँ शरमाने की बात क्या है.
सुशीला- इसका मासिक दो महीने से बंद है।
दीपक- ठीक है, इसकी मैं कुछ जांच करता हूँ. आओ बेटी उधर लेटो बेड पर!

दीपक ने उसे एक कोने में बेड पर लेटाया और जांच शुरु कर दी.

कुछ देर के बाद वो आया और बोला- मैं कुछ टेस्ट लिख देता हूँ, करा देना और रिपोर्ट कल लाकर मुझे दिखाना।
मैं- ठीक है दीपक।
दीपक- तुम जरा रुकना … कुछ बात करनी है तुमसे … आप दोनों बाहर जाओ।

मैं कुछ समझ नहीं पाया और रुक गया। सुशीला और उसकी बेटी मानसी बाहर चले गई।
मैं अंदर रहा …

दीपक- तुम इन्हें जानते हो?
मैं- ऐसे ही गाँव के पुजारी की बीवी और लड़की है.
दीपक- ओह …
मैं- क्या हुआ?
दीपक- मुझे शक है कि उसके पेट में बच्चा है।
मैं- क्या!?

दीपक- टेस्ट के बाद मैं यकीन के साथ कह सकूंगा.
मैं- अच्छा … इसीलिये ये लड़की मुझे इतनी लाइन दे रही थी।
दीपक- लाइन देने का क्या मतलब?

मैं- सुन एक राज की बात बताने जा रहा हूँ … हमारे बीच रहनी चाहिए!
दीपक- हाँ बोल?
मैं- मैं सोच रहा था कि माँ बेटी को चोद दूंगा … और तुझे भी शामिल कर लूंगा इसमें!
दीपक- क्या ये हो सकता है?
मैं- हो सकता है क्या … तुमने तो मेरे काम को आसान कर दिया … उसकी पेट में बच्चा है। वो तो लाइन दे रही थी … पर उसकी माँ नहीं … जब उसके पेट में बच्चा होने की बात किसी को पता चलेगा तो पुजारी तो बदनाम हो जायेगा … और उसको गाँव में पूजा करने भी कोई नहीं देगा. इस बात लेकर अगर उसकी माँ को ब्लैकमेल किया जाये तो आसानी से हम दोनों को चोद लेंगे।

दीपक- उसकी माँ तो बेटी से भी सुन्दर दिखती है।
मैं- और बेटी कितने से चुदी है मालूम नहीं!
दीपक- तू कुछ इन्तजाम कर!
मैं- चिंता मत कर, अगर रिपोर्ट में उसकी गर्भवती की बात दिखे तो रेपोर्ट लेकर कल सुबह अप्सरा होटल में 69 रूम में आ जाना!
दीपक- ठीक है.

दीपक ने कम्पाउण्डर से बोल के उसका कुछ ब्लड और यूरीन टेस्ट करवाया … पर मैंने असली बात सुशीला और मानसी को नहीं बताई.
और हम सब वहाँ से निकल पड़े।

सेक्स कहानी जारी रहेगी.
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top