लण्ड न माने रीत -3
(Lund Na Mane Reet-3)
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अब तक आपने पढ़ा..
‘अब झूठ भी बोलने लगी तू.. मैंने तुझे कल तेरी सहेलियों के साथ बगीचे में वो गन्दा वाला खेल खेलते देखा है..’ मैंने कड़कती आवाज़ में कहा।
‘नहीं.. वो..वो..वो..!’ इसके आगे आरती कुछ न बोल पाई और उसकी आँखें झुक गईं..
तभी मैंने वो डिल्डो अपनी जेब से निकाल कर उसके सामने कर दिया।
‘यह तेरा है ना.. कल इसी से खेल रही थी न.. अपने भीतर घुसा कर?’ मैंने उसे डांटते हुए पूछा।
डिल्डो देख कर उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
अब आगे..
‘मैंने नहीं लिया था भीतर..’ वो मरी सी आवाज़ में बोली और अपने हाथों में चेहरा छुपा कर रोने लगी।
‘ठीक है.. आने दे तेरे पापा को.. तेरा यह हथियार उन्हीं को दे दूँगा मैं.. और तू क्या-क्या करती है सहेलियों के साथ.. वो सब भी बताना पड़ेगा मुझे.’
मैंने उसे डराया.. यह सुनकर भय से कांपने लगी और मेरे पैरों पर गिर पड़ी।
‘मुझे माफ़ कर दो बड़े पापा.. अब मैं कोई गलत काम कभी नहीं करूँगी..’ वो रोते हुए बोली।
‘अरे करेगी कैसे नहीं.. अभी तू सिर्फ जवान हुई है.. और तेरी चूत में ज्वार-भाटा अभी से आने लगा.. तेरे बदन में जवानी की आग अभी से दहकने लगी?’
मैं कड़क आवाज में बोला और उसे पकड़ कर खड़ा कर दिया।
‘नहीं करूँगी बड़े पापा.. इस बार माफ़ कर दो..’ वो सुबकते हुए बोली।
‘तेरी यह चूत बहुत तंग करती है न.. तेरे को.. अब इसका इलाज मैं करूँगा..’ मैं गुस्से में बोला और आरती की सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसकी झांटें खींचते हुए उसे धीरे-धीरे मसलने लगा।
वो कसमसा कर रह गई.. फिर मैंने उसके कुर्ते में शमीज़ के भीतर हाथ घुसा दिया और उसका नर्म मुलायम बायाँ स्तन दबोच लिया। वो परकटी हंसिनी सी निष्चेष्ट रह गई.. मेरा विरोध भी नहीं कर पा रही थी वो..
‘बोल.. अब क्या बोलती है?’ मैंने उसका दूध मसलते हुए पूछा।
‘बड़े पापा.. आप मेरी शिकायत मत करना.. वर्ना मैं मर जाऊँगी..’ वो अनुनय भरे स्वर में बोली।
‘ठीक है.. नहीं करूँगा.. लेकिन तुझे मेरी एक बात माननी पड़ेगी..’ मैं उससे बड़े प्यार से बोला।
‘कौन सी बात..’ वो डरते-डरते पूछने लगी।
‘अब इतनी भोली बन के भी मत दिखा.. सब समझ रही है तू..’ मैंने कहा और इस बार उसकी चड्डी में हाथ घुसा के उसकी नंगी चूत अपनी उंगलियों से कुरेदने लगा।
वो छिटक के दूर हट गई और एक तरफ खड़ी होकर सिर झुका कर पांव के अंगूठे से जमीन कुरेदने लगी..
मानो धरती से पूछ रही हो कि अब मैं क्या करूँ..
‘जल्दी बता मानेगी मेरी बात.. या तेरे पापा से बताऊँ तेरी करतूत?’ मेरी बात सुनकर उसने कातर दृष्टि से मुझे देखा लेकिन वो बोली कुछ नहीं पर सहमति में गर्दन हिला दी।
‘तो ठीक है.. कल दोपहर में अपने बगीचे में मिलना मुझे..’ मैंने उसे फिर से अपनी बाहों में समेट लिया और फिर से चड्डी में हाथ घुसा कर उसकी नंगी चूत सहलाते हुए बोला।
‘आऊँगी… बड़े पापा.. लेकिन आप वादा करो कि मेरी शिकायत किसी से भी कभी नहीं करोगे..’ वो बोली।
‘अरे नहीं करूँगा.. मेरी गुड़िया रानी.. पक्का वादा..’ मैं उसका गाल चूमते हुए बोला और उसकी चूत जोर से मुट्ठी में भींच ली।
‘उई.. आप बड़े ख़राब हो बड़े पापा..’ वो बोली और मेरा हाथ अपनी चड्डी से बाहर निकाल दिया, फिर दौड़ कर अन्दर वाले कमरे में भाग गई।
मैंने अपने उस हाथ को जोर से सूंघा और मैं अपनी धूर्तता पर मन ही मन प्रसन्न होता हुआ अपने घर की ओर चल दिया।
ट्रेन में सामान बेचते वेंडर्स बार-बार मेरी तन्द्रा भंग कर रहे थे.. पर मैं बार-बार अतीत की गहराइयों में डूब कर बिखरी हुई कड़ियों को जोड़ने की कोशिश कर रहा था.. आरती और मेरे बीच जो कुछ घट चुका था.. वो सब सोचते हुए ऐसा लग रहा था कि जैसे ये कल की ही बातें हों।
हाँ.. तो उस दिन मैंने आरती को तैयार कर लिया था और अगले दिन बगीचे में मिलने का वादा भी हो गया था.. वो रात बड़ी मुश्किल से कटी। आरती को कैसे चोदना है.. क्या-क्या कैसे कैसे करना है उसके साथ.. इन्हीं सब ख्यालों में डूबते-उतराते रात बीत गई।
अगले दिन मैं जल्दी तैयार हो गया.. अपनी झांटें साफ़ कर ली थीं और नहाने के बाद अपने सुपारे पर खूब सारा तेल चुपड़ कर उसे चमड़ी से ढक लिया था।
करीब ग्यारह बजे मैं बगीचे में पहुँच गया.. वो जून की गर्मी वाली दोपहर थी लू के थपेड़े शुरू हो रहे थे।
मैं आरती के इंतज़ार में एक पेड़ पर चढ़ कर बैठ गया। लगभग एक घंटे बाद वो आती दिखाई दी.. उसने अपने सिर और मुँह पर दुपट्टा लपेट रखा था और तेज़-तेज़ क़दमों से चली आ रही थी।
जैसे ही वो बगीचे में दाखिल हुई.. मैं पेड़ से उतर उसके सामने पहुँच गया.. उसने मुझे देखा और फिर नीचे देखने लगी।
मैं आगे बढ़ा और उसे कलाई से पकड़ अपनी छाती से चिपका लिया।
‘क्यों बुलाया मुझे यहाँ पर?’ वो मुझसे छूटने का यत्न करते हुए बोली।
‘अब इतनी भोली भी मत बनो गुड़िया रानी.. कल तुम डिल्डो से खेल रही थीं। आज मैं तुम्हे तुम्हारी चूत को असली वाला लण्ड दूँगा।’ मैंने आरती का गाल चूमते हुए कहा।
‘धत्त.. बड़े पापा कैसे गंदे-गंदे शब्द बोलते हो आप तो..’ वो अपने दोनों हाथ कानों पर रखते हुए बोली।
बगीचे में एक झोपड़ी बनी हुई थी.. मैंने आरती से उसी झोपड़ी में चलने को कहा। लेकिन उसने मना कर दिया.. बोली- वहाँ कभी भी कोई आ सकता है.. इससे अच्छा आम के पेड़ पर चलते हैं.. वहाँ एक मचान बनी है.. जो नीचे से दिखाई नहीं पड़ती।
उसकी समझदारी की मैंने मन ही मन तारीफ़ की और हम लोग उस घने आम के पेड़ पर चढ़ गए।
गाँव की लड़किया। पेड़ पर चढ़ने में एक्सपर्ट होती हैं.. सो वो भी फुर्ती से मेरे पहले मचान पर पहुँच गई।
मचान दो समतल डालियों के ऊपर लकड़ी के पटिये बिछा कर बनी थी.. उस पर नर्म बिस्तर लगा था। जगह शानदार लगी मुझे.. ऊपर घने पत्तों के साथ हरे हरे कच्चे आम लटक रहे थे.. तोतों के कुछ झुण्ड आमों को कुतर रहे थे.. बीच-बीच में उनके टांय-टांय बोलने की आवाजें भी आ रही थीं।
घनी डालियों और पत्तों से घिरी वो जगह नीचे से बिल्कुल नहीं दिखाई पड़ती थी और वहाँ गर्मी भी न के बराबर थी.. या यूँ कहो कि कुल मिलाकर मस्त सुहानी जगह थी।
आरती मचान के एक कोने में बैठ गई उसने अपने पैर मोड़ कर सीने से लगा रखे थे और ऊपर से बाहें लपेट ली थीं।
मैं उसके सामने बैठ उसे मुस्करा कर देखने लगा।
मुझसे नज़र मिलीं तो उसने शर्मा कर अपना मुँह घुटनों में छुपा लिया।
मैंने उसकी कलाई पकड़ कर उसे अपनी गोद में गिरा लिया और उसके गालों को चूमने लगा।
‘छोड़ो बड़े पापा.. लाज आती है.. मत करो ऐसे..’ आरती बोली और अपना चेहरा हथेलियों में छुपाने लगी।
लेकिन मैंने उसे ऐसा नहीं करने दिया और उसका निचला होंठ अपने होंठों में दबा के चूसने लगा और उसकी कुर्ती के ऊपर से ही उसके दूध सहलाने लगा।
उसने कुर्ती के नीचे शमीज़ नहीं पहनी हुई थी, इस कारण उसके छोटे-छोटे स्तनों का नर्म-गर्म स्पर्श बड़ा उत्तेजक महसूस हो रहा था। उसके कुंवारे अधरों का रसपान जी भर के करने के बाद मैंने उसके कान की लौ और गर्दन को सब ओर से चूमना शुरू किया और धीरे-धीरे उसकी पीठ पर उंगलियाँ फिराना शुरू कीं।
जैसा कि होना ही था.. वो भी धीरे-धीरे सुलगने लगी और उसने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया। अब मैंने उसके नितम्बों को धीरे-धीरे सहलाने लगा था।
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मेरे हाथ उसके नितम्बों और गुदाज़ जाँघों का जाएजा ले रहे थे.. कमसिन कच्ची कली के जिस्म का उष्ण स्पर्श कितना मादक कितना रोमांचकारी होता है.. यह उस दिन पहली बार अनुभव हो रहा था।
मैंने आरती को कस कर अपनी बाहों में समेट लिया और आँखें मूँद कर उन पलों का आनन्द लेने लगा।
उसके फूल से कोमल स्तन मेरे सीने से दबे हुए थे और मैं धीरे-धीरे उसकी गर्दन को चूम-चाट रहा था। उसके दिल की धक.. धक.. मुझे अपने सीने पर साफ़ सुनाई पड़ रही थी।
जब मेरा हाथ उसकी जाँघों पर से फिसलते हुए योनि प्रदेश की ओर बढ़ चला तो उसने अपनी जांघें कस कर भींच लीं और मेरा हाथ वहीं फंस कर रह गया।
दोस्तो, मुझे पूरी उम्मीद है कि आपको मेरी इस सत्य घटना से बेहद आनन्द मिला होगा.. एक कच्ची कली को रौंदने की घटना वास्तव में कामप्रेमियों के लिए एक चरम लक्ष्य होता है.. खैर.. दर्शन से अधिक मर्दन में सुख होता है..
इन्हीं शब्दों के साथ आज मैं आपसे विदा लेता हूँ.. अगली बार फिर जल्द ही मुलाक़ात होगी। आपके ईमेल मुझे आत्मसम्बल देंगे.. सो लिखना न भूलियेगा।
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