लण्ड न माने रीत -2
(Lund Na Mane Reet-2)
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अब तक आपने पढ़ा..
ऐसे ही हंसी-ठिठोली करते हुए वे सब ये गन्दा खेल खेलती रहीं। मैं दम साधे वो सब देखता रहा.. मेरी कनपटियाँ गर्म होने लगी थीं.. लण्ड तो पहले से ही खड़ा था.. अब उसमें हल्का-हल्का दर्द भी होने लगा था।
मुझे आरती पर क्रोध भी आ रहा था.. लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकता था। मैं जैसे-तैसे खुद को संभाले था।
अब आगे..
थोड़ी देर बाद उनका ये खेल खत्म हो गया और सब लड़कियाँ कपड़े पहन कर चल दीं। आरती ने वो डिल्डो एक कपड़े में लपेट कर वहीं एक झाड़ी में छुपा दिया। सबके चले जाने के बाद मैं भी घर लौट आया।
उस रात बिस्तर पर करवटें बदलते-बदलते आधी रात हो चुकी थी.. लेकिन नींद आने का नाम ही नहीं ले रही थी.. मुझे आरती को लेकर चिंता हो रही थी.. कैसी संगत में पड़ गई थी यह लड़की..
मैं जानता था कि लड़की का यौवन जब खिलना शुरू होता है.. उसी कच्ची उम्र में उसके फिसलने की सबसे ज्यादा सम्भावना होती है। उसे बहकाना बहुत आसान होता है.. क्योंकि उसके नाज़ुक अंग विकसित हो रहे होते हैं और उनमें पनप रहा उन्माद लड़की को बेकरार किए रहता है.. उसकी योनि स्वतः ही गीली होने लगती है.. उसमें मादक सिहरन की लहरें उठने लगती हैं और वो अपने ही कामरस में भीगी हुई कुछ कर गुजरने को बेचैन रहने लगती है। जैसे जब किसी छोटे बच्चे के नए-नए दांत निकलते हैं तो वो कुछ भी चबाना चाहता है.. कुछ भी उसके मुँह में डालो.. वो चबाना चाहता है.. इससे उसे बड़ी राहत और सुकून मिलता है।
ठीक यही हालत आरती की थी.. उन दिनों वो उमड़ती जवानी के बहाव में बहते हुए खुद को नहीं संभाल पा रही थी।
फिर मुझे उन लड़कियों के खेल का एक एक सीन याद आने लगा। उनका वो डिल्डो.. वो गन्दी-गन्दी बातें.. वो सब कुछ.. और फिर आरती का वो रूप..
मुझे लगा कि वो मेरे सामने अभी भी उसी तरह नग्न बैठी है और अपनी योनि की दरार में उंगली रगड़ रही है। उसके वो अल्प विकसित स्तन… उफ्फ्फ.. वो सब सोचते ही मेरा लिंग फनफना उठा और मेरा हाथ अनचाहे ही उसे सहलाने लगा।
आरती के बारे में सोच-सोच कर जैसे मैं अपने लिंग को सहलाते हुए उसे धीरज बंधा रहा था।
‘मादरचोद.. कुत्ते कमीने.. तुझे शर्म नहीं आती.. आरती के बारे में ऐसा सोचते हुए.. तेरे सामने उसका जन्म हुआ.. वो तेरे दोस्त की बेटी.. तेरी भी बेटी जैसी ही है..’
मेरी अंतर्रात्मा ने मुझे धिक्कारा..
‘साले.. याद कर, वो बचपन से ही तेरी गोद में खेली है.. और तू ही तो उसे गोद में उठा कर स्कूल लेकर गया था.. उसका एडमिशन करवाने.. वो तुझसे बड़े पापा.. बड़े पापा.. कहते नहीं थकती और तू ये अपना हथियार हाथ में लेकर उस बेचारी कमसिन कली को रौंदने की सोच रहा है..’
मेरी अंतरात्मा मुझे ऐसे ही तरह-तरह से धिक्कार उठी..
मैं पसीने-पसीने हो गया और अपने उत्थित लिंग को जबरदस्ती चड्डी में धकेल दिया और बाथरूम में जाकर हाथ-पैर.. मुँह धोया.. लौट कर ठण्डा पानी पिया और खुली हवा में जाकर बैठ गहरी गहरी साँसें लेने लगा..
इससे मन को कुछ हल्कापन महसूस हुआ तो फिर बिस्तर पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा।
लेकिन नींद कहाँ.. मेरे भीतर का कामुक पुरुष मेरी अंतर्रात्मा को पराजित करने की बार-बार चेष्टा करने लगा।
‘अबे चूतिये.. ज़रा सोच.. आरती जिस संगत में पड़ चुकी है.. उसमें वो बिना चुदे तो रहेगी नहीं.. तुझे याद नहीं उसकी सहेली.. वो शबनम क्या बोल रही थी? कि वो अपने जीजू से उसकी सील तुड़वा के रहेगी? आरती जैसी भोली-भाली नासमझ लड़की को वो किस बहाने कहीं ले जाकर किस-किस से चुदवा देगी। यह कौन जान सकता है??’
इससे तो अच्छा है कि तू ही सबसे पहले भोग ले.. उस कच्ची कुंवारी कली को.. वो कौन सी तेरी सगी बेटी है.. आखिर उसके बाप ने भी तो ऐसी-ऐसी कई कच्ची कलियों को खिला कर फूल बनाया है.. आज कुदरत ने उसकी अपनी बेटी को भी उसी राह पर ला दिया है और फिर ऐसा मौका ज़िन्दगी में पता नहीं फिर मिले या न मिले.. वैसे भी तेरे लण्ड ने कोरी चूत का खून नहीं चखा सालों से..’ मेरा दिल इस तरह मुझे दुनियादारी समझा रहा था।
ये सब बातें सोचते-सोचते मेरा लण्ड फिर से बगावत कर बैठा और तमतमा कर खड़ा हो गया और मैं आरती के बारे में सोचता हुआ अनजाने में ही मुठ मारने लगा।
जब मेरे लण्ड से लावा की पिचकारियाँ छूटीं.. तब जाकर मुझे कुछ राहत मिली।
अंततः मेरी अंतरात्मा की पुकार अनसुनी रह गई..
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फिर मैंने सोच लिया था.. पक्का कर लिया था कि अब आगे कैसे क्या-क्या करना है।
ट्रेन अपनी पूरी रफ़्तार से मेरी मंजिल की तरफ दौड़ी जा रही थी। कभी-कभी कोई दूसरी ट्रेन क्रॉस करती तो मेरी तन्द्रा भंग हो जाती.. कल तक मैं गाँव पहुँच जाऊँगा.. अब कैसी लगती होगी आरती?
कुछ ही देर बाद अतीत के पन्ने फिर से मेरे सामने एक-एक करके खुलने लगे..
तो उस रात की अगली सुबह मैं बहुत जल्दी उठ गया और तैयार होकर आरती के बगीचे की ओर चल पड़ा.. सुबह की पुरवाई मुझमें एक अजीब सी मस्ती और जोश भर रही थी.. मैं मन ही मन आरती की साथ अपनी हवस पूरी करने की प्लानिंग बनाता हुआ तेज तेज क़दमों से चला जा रहा था..
जल्दी ही मैं झाड़ियों के बीच उस जगह पहुँच गया.. जहाँ कल दोपहर में लड़कियाँ चूत-चूत खेल रही थीं.. फिर मैंने एक झाड़ी में छुपा वो कपड़े में लिपटा डिल्डो खोज निकाला।
कपड़ा हटा कर देखा तो वो एक लकड़ी का बना हुआ करीब सात इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा बेहद खूबसूरत लण्ड था। एकदम चिकना और हूबहू असली लण्ड जैसा.. गोल तराशा हुआ… चिकना सुपाड़ा.. इसके पीछे असली चमड़ी जैसी झुर्रीदार सिलवटें और पूरी लम्बाई में उभरी हुई नसें.. जिस भी कारीगर ने उसे बनाया था.. उसकी कला तारीफ़ के काबिल थी।
मुझे उस डिल्डो पर कुछ नमी सी महसूस हुई.. फिर मैंने उसे सूंघ कर देखा तो लड़कियों की चूत के रस की बास उसमें रची-बसी हुई थी।
मैंने खूब गहरी सांस लेकर वो महक अपने में भर ली, डिल्डो को वैसे ही लपेट कर अपनी जेब में रखा और वापिस चला आया।
उसी दिन दोपहर को मैं आरती के घर जा पहुँचा। संयोग से आरती घर पर अकेली थी.. मुझे देखकर वो पहले की ही तरह चहक उठी।
‘बड़े पापा आ गए..’ और खुश होकर पानी लेकर आई और मेरे पास बैठ कर बतियाने लगी। लेकिन आज मैं उसे एक नई नज़र से देख रहा था। उसके घने काले-काले लम्बे बाल.. गुलाबी रंगत लिए हुआ भोला सा गोल चेहरा। मेरी नज़र फिसलती हुई उसके सीने के उभारों पर ठहर गई.. दुपट्टा उसने ले नहीं रखा था। उसके कुर्ते में से अपनी उपस्थिति का आभास देते उसके वे अर्धविकसित अमृत कलश.. वो अविकसित स्तनों का जोड़ा मुझे लुभाने लगा।
फिर मेरी नज़र आरती से मिली.. उसने मेरी नज़रें शायद पढ़ लीं और अपने हाथ मोड़ कर सीने पर रख लिए और घबरा कर दूसरी तरफ देखने लगी।
लड़कियों में यह गुण जन्मजात होता है कि वो पुरुष की इस तरह की नज़रें तुरंत भांप लेती हैं.. पुरुष की नीयत को फौरन पढ़ लेती हैं।
‘आप बैठो बड़े पापा.. मैं चाय बना के लाती हूँ..’ आरती बोली और खड़ी हो गई।
शायद वो मेरी नज़रों से बचना चाह रही थी।
‘तेरे पापा कहाँ हैं.. आज उनसे तेरी शिकायत करना है.. जरा बुला के तो लाना उन्हें..’ मैंने थोड़ी कड़क आवाज में कहा।
‘पापा तो शहर गए हैं.. रात तक लौटेंगे.. मेरी क्या शिकायत करनी है.. ऐसा क्या कर दिया मैंने?’ वो भोलेपन से पूछ बैठी।
‘तुम कल दोपहर में कहाँ गई थी?’ मैंने पूछा..
मेरा प्रश्न सुनते ही आरती के चेहरे पर भय की परछाई तैर गई।
‘कहीं नहीं बड़े पापा.. मैं तो यहीं थी घर पर..’ वो झूठ बोल गई.. लेकिन उसकी आवाज़ कांप रही थी।
‘अब झूठ भी बोलने लगी तू.. मैंने तुझे कल तेरी सहेलियों के साथ बगीचे में वो गन्दा वाला खेल खेलते देखा है..’ मैंने कड़कती आवाज़ में कहा।
‘नहीं.. वो.. वो.. वो..!’ इसके आगे आरती कुछ न बोल पाई और उसकी आँखें झुक गईं।
तभी मैंने वो डिल्डो अपनी जेब से निकाल कर उसके सामने कर दिया।
‘यह तेरा है ना.. कल इसी से खेल रही थी न.. अपने भीतर घुसा कर?’ मैंने उसे डांटते हुए पूछा।
डिल्डो देख कर उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
दोस्तो, मुझे पूरी उम्मीद है कि आपको मेरी इस सत्य घटना से बेहद आनन्द मिला होगा.. एक कच्ची कली को रौंदने की घटना वास्तव में कामप्रेमियों के लिए एक चरम लक्ष्य होता है.. खैर.. दर्शन से अधिक मर्दन में सुख होता है.. इन्हीं शब्दों के साथ आज मैं आपसे विदा लेता हूँ.. अगली बार फिर जल्द ही मुलाक़ात होगी। आपके ईमेल मुझे आत्मसम्बल देंगे.. सो लिखना न भूलियेगा।
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