लण्ड न माने रीत -10
(Lund Na Mane Reet-10)
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अब तक आपने पढ़ा..
फिर मैंने उसके मम्मे कसके दबोच लिए और लण्ड को उसकी चूत में गोल-गोल मथानी की तरह घुमाने लगा.. कभी क्लॉक वाइज कभी.. एंटी क्लॉक वाइज.. और अपनी झांटों से उसके क्लिट को रगड़ता हुआ.. फुर्ती से उसे चोदने लगा।
ज्यादा देर नहीं लगी और मेरे लण्ड से वीर्य की पिचकारियाँ छूट-छूट कर उसकी चूत में समाने लगीं..
आरती ने भी मुझे कसकर जकड़ लिया और अपनी जांघों से मेरी कमर कस के कस ली, उसकी चूत में स्पंदन होने लगे.. चूत की मांसपेशियाँ लण्ड को भींचने लगीं.. ताकि मेरे वीर्य के एक-एक बूँद निचुड़ जाए।
मैं भी गहरी-गहरी साँसें लेता हुआ उसके उरोजों के बीच सिर रख कर लेट गया।
अब आगे..
इस तरह मेरी छूट होने के बाद मैं कब सो गया मुझे पता ही नहीं चला।
रात को जब मेरी नींद खुली तो पाया कि मैं आरती को दबोच कर सोया हुआ था और आरती भी बड़ी गहरी नींद में थी।
मैंने मोबाइल में समय देखा तो सुबह के पांच बजकर दस मिनट हो रहे थे। मैं फिर से सोने की कोशिश करने लगा लेकिन नींद नहीं आई। रात्रि का अंतिम प्रहर समाप्ति पर था.. खुली खिड़की से ताजा हवा के झोंके आ रहे थे।
फागुन की हवा तो वैसे भी मदमस्त होती है.. ऊपर से जब कोई जवान छोरी नंगी होकर आपकी बाँहों में सो रही हो.. अंदाज कीजिए कि आपका क्या हाल हो सकता है।
वही हुआ.. लण्ड महाराज ने खड़े होकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी।
मित्रो.. आप सब तो जानते ही हो कि खड़ा लण्ड किसी बादशाह के बराबर होता है।
हम दोनों के नंगे बदन गुत्थम-गुत्था होकर लिपटे थे.. सहसा वो जगी और उसके बदन में हलचल हुई. उसने धीरे से मेरी हथेली.. जो उसके बायें वाले दूध को दबोचे थी.. हटा दी और मेरा पैर जो उसके ऊपर था.. उसे भी धीरे से हटा कर पलंग से उतर कर बाहर छज्जे की तरफ चल दी। नाईट लैंप की मद्धिम रोशनी में मैं उसके मटकते हुए नितम्बों को देखता रहा और फिर वो दरवाजा खोल कर बाहर छज्जे पर बने बाथरूम में जा घुसी।
कुछ ही क्षण बाद मुझे तेज़ सीटी बजने की आवाज़ आई.. पहले तो मुझे लगा कि गाँव का चौकीदार गश्त पर होगा.. लेकिन नहीं.. मैंने फौरन से पहचाना ये आरती की ‘सू..सू..’ की आवाज थी.. जो उसकी चूत में से सीटी बजाती हुई निकल रही थी। कई लड़कियों की यह आवाज़ बहुत मीठी सीटी के बोलने जैसी होती है। इस वक्त वैसी ही ध्वनि आरती की चूत से निकल उस भोर को संगीतमय बना रही थी।
फिर उसकी चूत की सीटी बजते-बजते धीमी पड़ती चली गई.. फिर पानी की छपाक-छपाक.. शायद वो अपनी चूत धो रही थी। फिर कुल्ला करने जैसी आवाजें आईं और फिर जल्दी ही वो वापस आई और कुर्सी पर पड़े नैपकिन से अपनी चूत पोंछ कर वापस आकर लेट गई और मुझे चूम लिया। फिर मेरे सिर को अपने स्तनों के मध्य दबा लिया और मेरे सिर पर थपकी देने लगी और मैं आरती के ममता भरे वात्सल्य पूर्ण ह्रदय का स्पंदन महसूस करने लगा और अपनी आँखें मूँद लीं।
उधर मेरा लण्ड धीरे-धीरे अपने पूरे शवाब पर आ रहा था। जल्दी ही उसने आरती की जाँघों पर दस्तक देनी शुरू कर दी।
आप तो जानते ही हो कि सुबह-सुबह लण्ड स्वतः ही बिना किसी प्रेरणा के विकराल रूप धर लेता है और यदि पहलू में कोई नंगी हसीना हो तो वो कैसी धमा-चौकड़ी मचा सकता है.. इसका अंदाजा सहज ही लग सकता है।
आरती को भी लण्ड की चुभन महसूस हुई और उसने उसे टटोल कर देखा।
‘आप जाग रहे हो बड़े पापा?’
‘ऊं.. हूँ..’ मैं बोला और और उसके दायें दूध को मुँह में लेकर चुसकने लगा.. साथ ही उसकी जाँघों के बीच घुस कर लण्ड को उसकी चूत में घुसाने की जुगाड़ बैठाने लगा।
‘अरे ये क्या… इस टाइम कुछ नहीं करना.. जल्दी उठो.. तैयार हो जाओ.. मेरी ननद को लेने आपको शहर जाना है..’ वो थोड़ी अधीरता से बोली।
उसकी बात सुनकर मैं भी चौंका.. याद आया कि आरती की मम्मी ने भी मुझे इस बारे में कहा था।
‘वो अपने आप नहीं आ सकती क्या?’ मैंने बात को टालने की कोशिश की.. क्योंकि उस हालत में बिस्तर छोड़ के जाना किसी सजा से कम नहीं था।
‘अरे.. वो ट्रेन से एक बजे आ रही है.. उसे आप बस से लेकर आओगे.. उसे बस-वस का कुछ नहीं पता.. वो अकेली परेशान हो जाएगी।’ आरती बोली।
‘यह तेरी कौन सी ननद है.. मैंने तो सुना था कि तेरी कोई ननद नहीं है.. तेरा पति घर में इकलौता है..’ मैं अपनी याददाश्त पर जोर देता हुआ बोला।
‘अरे वो मेरी सगी ननद नहीं है.. आप उठो तो सही.. और जल्दी तैयार हो जाओ.. फिर मैं आपको पूरा किस्सा बताती हूँ..’ वो बोली।
‘अच्छा.. उठता हूँ..’ मैं अनमने स्वर में बोला।
फिर मैंने आरती का हाथ पकड़ कर वापिस लण्ड पर रख लिया।
‘अब इसका क्या करूँ..’
‘नहीं मानोगे ना.. चलो एक बार घुसा के बाहर निकाल लो.. इसके आगे कुछ नहीं..’ वो बोली और अपनी टाँगे फैला कर चित्त लेट गई।
‘अपनी चूत खोल न.. अपने हाथों से..’ मैं बोला।
उसने थोड़ा गुस्से से मेरी तरफ देखा और अपनी चूत पर दोनों हाथ रखकर उँगलियों से बुर के दोनों कपाट पूरी चौड़ाई में खोल दिए।
सुबह की रोशनी होने लगी थी.. खुली खिड़की से सुबह की सुनहरी धूप की पहली किरण सीधी आकर आरती की खुली चूत पर पड़ी।
ऐसा मनमोहक मनभावन नज़ारा पहले कभी नहीं देखा था।
उसकी गोरी-गोरी उँगलियाँ सांवली चूत के द्वार खोले हुए लण्ड की प्रतीक्षारत थीं। उसकी चूत का छेद भी स्वतः खुल सा गया था और छोटी ऊँगली जाने लायक बड़ा सुराख दिखाई दे रहा था और उसकी आँखों में भी आमंत्रण का भाव था।
लड़की जब खुद अपने हाथों से अपनी चूत को खोल लेटी हो.. तो वो नज़ारा कितना दिलकश होता है.. यह मैंने उस दिन पहली बार जाना।
मैंने बिना देर किये लण्ड को उसकी चूत में एक ही बार में पूरा पेल दिया।
दोस्तो, मुझे पूरी उम्मीद है कि आपको मेरी इस सत्य घटना से बेहद आनन्द मिला होगा.. अगली बार फिर जल्द ही मुलाक़ात होगी। आपके ईमेल मुझे आत्मसम्बल देंगे.. लिखना न भूलियेगा
कहानी जारी है।
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