लम्बी चुदाई-4
Lambi Choot Chudai-4
हम दोनों ऐसे एक-दूसरे को चूमने-चूसने लगे जैसे कि एक-दूसरे में कोई खजाना ढूँढ रहे हों।
काफी देर एक-दूसरे को चूमने-चूसने और अंगों से खेलने के बाद अमर ने मेरी योनि में लिंग घुसा दिया।
अमर जब लिंग घुसा रहे थे तो मुझे दर्द हो रहा था, पर मैं बर्दास्त करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी।
काफी देर सम्भोग के बाद अमर शांत हुए, पर तब मैंने दो बार पानी छोड़ दिया था। बिस्तर जहाँ-तहाँ गीला हो चुका था और अजीब सी गंध आनी शुरू हो गई थी।
इसी तरह सुबह होने को थी, करीब 4 बजने को थे। हम 10 वीं बार सम्भोग कर रहे थे। मेरे बदन में इतनी ताकत नहीं बची थी कि मैं अमर का साथ दे सकूँ, पर ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अन्दर की प्यास अब तक नहीं बुझी थी।
जब अमर मुझे अलग होता, तो मुझे लगता अब बस और नहीं हो सकता.. पर जैसे ही अमर मेरे साथ अटखेलियाँ करते.. मैं फिर से गर्म हो जाती।
जब हम सम्भोग कर रहे थे.. मैं बस झड़ने ही वाली थी कि मेरा बच्चा जग गया और रोने लगा।
मैंने सोचा कि अगर मैं उठ गई तो दुबारा बहुत समय लग सकता है इसलिए अमर को उकसाने के लिए कहा- तेज़ी से करते रहो.. मुझे बहुत मजा आ रहा है.. रुको मत।
यह सुनते ही अमर जोर-जोर से धक्के मारने लगे।
मैंने फिर सोचा ये क्या कह दिया मैंने, पर अमर को इस बात से कोई लेना-देना नहीं था.. वो बस अपनी मस्ती में मेरी योनि के अन्दर अपने लिंग को बेरहमी से घुसाए जा रहे थे।
मैंने अमर को पूरी ताकत से पकड़ लिया, पर मेरा दिमाग दो तरफ बंट गया।
एक तरफ मैं झड़ने को थी और अमर थे दूसरी तरफ मेरे बच्चे की रोने की आवाज थी।
मैंने हार मान कर अमर से कहा- मुझे छोड़ दो, मेरा बच्चा रो रहा है।
पर अमर ने मुझे और ताकत से पकड़ लिया और धक्के मारते हुए कहा- बस 2 मिनट रुको.. मैं झड़ने को हूँ।
अब मैं झड़ चुकी थी और अमर अभी भी झड़ने के लिए प्रयास कर रहा था।
उधर मेरे बच्चे के रोना और तेज़ हो रहा था। अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने जोर लगा कर अमर को खुद से अलग करने की कोशिश करने लगी, साथ ही उससे विनती करने लगी कि मुझे छोड़ दे।
मैं बार-बार विनती करने लगी- प्लीज अमर… छोड़ दो बच्चा रो रहा है.. उसे सुला कर दोबारा आ जाऊँगी।
पर अमर लगातार धक्के लगाते हुए कह रहा था- बस हो गया.. थोड़ा सा और..
काफी हाथ-पाँव जोड़ने के बाद अमर ने मुझे छोड़ दिया और जल्दी वापस आने को कहा।
मैंने अपने बच्चे को गोद में उठाया और उसे दूध पिलाने लगी। मैं बिस्तर पर एक तरफ होकर दूध पिला रही थी और अमर मेरे पीछे मुझसे चिपक कर मेरे कूल्हों को तो कभी जाँघों को सहला रहा था।
मैंने अमर से कहा- थोड़ा सब्र करो.. बच्चे को सुला लूँ।
अमर ने कहा- ये अच्छे समय पर उठ गया.. अब जल्दी करो।
मैं भी यही अब चाहती थी कि बच्चा सो जाए ताकि अमर भी अपनी आग शांत कर सो जाए और मुझे राहत मिले।
अमर अपने लिंग को मेरे कूल्हों के बीच रख रगड़ने में लगा था, साथ ही मेरी जाँघों को सहला रहा था।
कुछ देर बाद मेरा बच्चा सो गया और मैंने उसे झूले में सुला कर वापस अमर के पास आ गई।
अमर ने मुझे अपने ऊपर सुला लिया और फिर धीरे-धीरे लिंग को योनि में रगड़ने लगा।
मैंने उससे कहा- अब सो जाओ.. कितना करोगे.. मेरी योनि में दर्द होने लगा है।
उसने कहा- हां बस.. एक बार मैं झड़ जाऊँ.. फिर हम सो जायेंगे।
मैंने उससे कहा- आराम से घुसाओ और धीरे-धीरे करना।
उसने मुझे कहा- तुम धक्के लगाओ।
पर मैंने कहा- मेरी जाँघों में दम नहीं रहा।
तो उसने मुझे सीधा लिटा दिया और टाँगें चौड़ी कर लिंग मेरी योनि में घुसा दिया.. मैं कराहने लगी।
उसने जैसे ही धक्के लगाने शुरू किए… मेरा कराहना और तेज़ हो गया।
तब उसने पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- बस अब छोड़ दो.. दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा है।
तब उसने लिंग को बाहर निकाल लिया मुझे लगा शायद वो मान गया, पर अगले ही क्षण उसने ढेर सारा थूक लिंग के ऊपर मला और दुबारा मेरी योनि में घुसा दिया।
मैं अब बस उससे विनती ही कर रही थी, पर उसने मुझे पूरी ताकत से पकड़ा और प्यार से मेरे होंठों को चूमते हुए कहा- बस कुछ देर और मेरे लिए बर्दाश्त नहीं कर सकती?
मैं भी अब समझ चुकी थी कि कुछ भी हो अमर बिना झड़े शांत नहीं होने वाला.. सो मैंने भी मन बना लिया और दर्द सहती रही।
अमर का हर धक्का मुझे कराहने पर मजबूर कर देता और अमर भी थक कर हाँफ रहा था।
ऐसा लग रहा था जैसे अमर में अब और धक्के लगाने को दम नहीं बचा, पर अमर हार मानने को तैयार नहीं था।
उसका लिंग जब अन्दर जाता, मुझे ऐसा लगता जैसे मेरी योनि की दीवारें छिल जायेंगी।
करीब 10 मिनट जैसे-तैसे जोर लगाने के बाद मुझे अहसास हुआ कि अमर अब झड़ने को है.. सो मैंने भी अपने जिस्म को सख्त कर लिया.. योनि को सिकोड़ लिया.. ताकि अमर का लिंग कस जाए और उसे अधिक से अधिक मजा आए।
मेरे दिमाग में यह भी चल रहा था कि झड़ने के दौरान जो धक्के अमर लगायेंगे वो मेरे लिए असहनीय होंगे.. फिर भी अपने आपको खुद ही हिम्मत देती हुई अमर का साथ देने लगी।
अमर ने मेरे होंठों से होंठ लगाए और जीभ को चूसने लगा साथ ही मुझे पूरी ताकत से पकड़ा और धक्कों की रफ़्तार तेज़ कर दी।
उसका लिंग मेरी योनि की तह तक जाने लगा, 7-8 धक्कों में उसने वीर्य की पिचकारी सी मेरे बच्चेदानी पर छोड़ दी और हाँफता हुआ मेरे ऊपर ढेर हो गया।
उसके शांत होते ही मुझे बहुत राहत मिली, मैंने उसे अपने ऊपर से हटाया और हम दोनों सो गए।
एक बात मैंने ये जाना कि मर्द जोश में सब कुछ भूल जाते हैं और उनके झड़ने के क्रम में जो धक्के होते हैं वो बर्दाश्त के बाहर होते हैं।
मेरे अंग-अंग में ऐसा दर्द हो रहा था जैसे मैंने न जाने कितना काम किया हो
अमर ने मुझे 7 बजे फिर उठाया और मुझे प्यार करने लगा।
मैंने उससे कहा- तुम्हें काम पर जाना है तो अब तुम जाओ.. तुम्हें इधर कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी।
अमर ने कहा- तुमसे दूर जाने को जी नहीं कर रहा।
उसने मुझे उठाते हुए अपनी गोद में बिठा लिया और बांहों में भर कर मुझे चूमने लगा।
मैंने कहा- अभी भी मन नहीं भरा क्या?
उसने जवाब दिया- पता नहीं.. मेरे पूरे जिस्म में दर्द है, मैं ठीक से सोया नहीं, पर फिर भी ऐसा लग रहा है.. जैसे अभी भी बहुत कुछ करने को बाकी है।
मैंने उसे जाने के लिए जोर दिया और कहा- अब बस भी करो.. वरना तुम्हें देर हो जाएगी।
पर उस पर मेरी बातों का कोई असर नहीं हो रहा था, वो मुझे बस चूमता जा रहा था और मेरे स्तनों को दबाता और उनसे खेलता ही जा रहा था।
मेरे पूरे शरीर में पहले से ही काफी दर्द था और स्तनों को तो उसने जैसा मसला था, पूरे दिन उसकी बेदर्दी की गवाही दे रहे थे.. हर जगह दांतों के लाल निशान हो गए थे।
यही हाल मेरी जाँघों का था, उनमें भी अकड़न थी और कूल्हों में भी जबरदस्त दर्द था। मेरी योनि बुरी तरह से फूल गई थी और मुँह पूरा खुल गया था जैसे कोई खिला हुआ फूल हो।
अमर ने मुझे चूमते हुए मेरी योनि को हाथ लगा सहलाने की कोशिश की.. तो मैं दर्द से कसमसा गई और कराहते हुए कहा- प्लीज मत करो.. अब बहुत दर्द हो रहा है।
तब उसने भी कहा- हां.. मेरे लिंग में भी दर्द हो रहा है, क्या करें दिल मानता ही नहीं।
मैं उससे अलग हो कर बिस्तर पर लेट गई, तब अमर भी मेरे बगल में लेट गया और मेरे बदन पे हाथ फिराते हुए मुझसे बातें करने लगा।
उसने मुझसे कहा- मैंने अपने जीवन में इतना सम्भोग कभी नहीं किया और जितना मजा आज आया, पहले कभी नहीं आया।
फिर उसने मुझसे पूछा तो मैंने कहा- मजा तो बहुत आया.. पर मेरे जिस्म की हालत ऐसी है कि मैं ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती।
तभी मेरी योनि और नाभि के बीच के हिस्से में उसका लिंग चुभता हुआ महसूस हुआ.. मैंने देखा तो उसका लिंग फिर से कड़ा हो रहा था।
उसके लिंग के ऊपर की चमड़ी पूरी तरह से ऊपर चढ़ गई थी और सुपाड़ा खुल कर किसी सेब की तरह दिख रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे सूज गया हो।
अमर ने मुझे अपनी बांहों में कसते हुए फिर से चूमना शुरू कर दिया, पर मैंने कहा- प्लीज अब और नहीं हो पाएगा मुझसे.. तुम जाओ।
अपने प्यारे ईमेल मुझे लिखें।
कहानी जारी रहेगी।
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