कल्पना का सफ़र: गर्म दूध की चाय
(Kalpna Ka Safar: Garam Doodh Ki Chay)
दोस्तो, मेरा नाम राज है, मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। आज जो कहानी मैं बताने जा रहा हूँ वो पूर्णतः एक कल्पित कहानी है। आप इस कहानी के करेक्टर को अपने आप में ढाल के पढ़ियेगा तो कहानी का लुत्फ़ कुछ और ही रहेगा।
सामान्य तौर पर यह कहानी अन्य कहानियों से अलग है और कल्पना होने के कारण थोड़ी धीमी चलेगी लेकिन इसमें भी अन्य कहानियों की तरह सेक्स है लेकिन साथ-साथ भरपूर रोमांस भी है।
इस कहानी में लड़के खुद को विवेक और लड़कियाँ खुद को संध्या समझें और पढ़ते-पढ़ते अपने आपको आपके प्यारे शख्स के साथ सेक्स करे या करवाएँ और खुद को शांत करें। यकीं मानिये मेरा, आपने ऐसी संतुष्टि पहले कभी नहीं महसूस की होगी।
वैसे तो विवेक पढ़ने में बेजोड़ था, यही नहीं, वो हर बार अपनी क्लास में अव्वल आता था लेकिन अब बस उसके थोड़े ही दिन थे स्कूल में, वो 12वीं की एग्जामिनेशन देकर कॉलेज में दाखिला लेने वाला था।
विवेक भी सभी लड़कों की तरह उम्र के उस पड़ाव पर खड़ा था जहाँ से जायज़-नाजायज़ सब ठीक ही लगता है, मन में कई कई तरह के सेक्स के विचार चलते रहते थे, लड़कियों से अब तक नहीं मिलने वाला शर्मीला विवेक अब कॉलेज में आने वाला था।
विवेक जहाँ रहता था, वहीं बगल में एक परिवार रहता था जिनमें एक पति-पत्नी और उनके दो छोटे-छोटे बच्चे थे। पति का नाम निशीथ और उसकी पत्नी का नाम संध्या था। पति की गांव में ही एक शॉप थी, वो रोज सुबह 8 बजे दुकान पे जाता और रात को लौट के आता!
विवेक रोजाना संध्या को देखता, वो उन्हें संध्या भाभी कहकर बुलाता था। विवेक मन ही मन संध्या भाभी को चाहने लगा था क्योंकि वोह उम्र ही कुछ ऐसी थी।
जब संध्या शाम को दूध वाले के पास दूध लेने के लिए जाती तो विवेक उन्हें देखता… अक्सर उनके पीछे उनके नितम्बों पर विवेक की नजर आकर ठहर सी जाती। संध्या क्या मटक-मटक कर चलती थी, विवेक तो क्या, सारे मोहल्ले के लड़के संध्या पर मरते थे। जब भी संध्या गुजरती, विवेक उनके पीछे जरूर देखता।
एक बार जब संध्या दूध लेने जा रही थी तब रोज की तरह विवेक उनके पिछले वाले हिस्सों को बड़ी गौर से निहार रहा था, तभी उसको अंदाज़ा हुआ कि भाभी उसे पकड़ चुकी है।
विवेक कुछ सिहर गया लेकिन भाभी ने उसे कुछ बोला नहीं और हंस कर चल पड़ी।
अगले दिन विवेक में हिम्मत नहीं थी तो उसने भाभी को निहारना मुनासिब नहीं समझा। कुछ दिन यों ही बीत गये। फिर रोज की तरह विवेक बाहर खड़ा था, भाभी निकली और विवेक ने थोड़ी सी हिम्मत कर उनके पिछवाड़े को निहारना शुरू किया। लेकिन इस बार भी भाभी ने उसे पकड़ लिया।
फिर वो थोड़ी मुस्कुराई और चल दी। विवेक भी कुछ असमंजस में था, शायद संध्या विवेक की नियत को भांप चुकी थी। विवेक ने सोचा की यदि भाभी कुछ नहीं बोलती तो फिर क्यों ना एक और बार उनको निहारा जाए?
अब विवेक का भाभी का मटक-मटक कर चलना और उनके पिछवाड़े को निहारना रोज का नित्यक्रम बन गया। भाभी भी रोज विवेक को हलकी सी मुस्कराहट देकर चली जाती, शायद उन दोनों को प्यार हो गया था लेकिन संध्या तो शादीशुदा थी इसलिए विवेक हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
एक दिन संध्या कुछ परेशान सी दिख रही थी तो विवेक ने पूछ लिया कि क्या हुआ भाभी, कोई परेशानी है? अगर है तो मुझे बताएँ।
भाभी ने कहा कि उन्होंने अपनी छोटी बेटी का दाखिला एक बड़ी इंग्लिश मीडियम स्कूल में करवाया है, कल उसकी बेटी का एक्ज़ाम है और उसे मैं नहीं सिखा पा रही हूँ क्योंकि मैं ज्यादा पढ़ी नहीं हूँ, क्या तुम मेरी बेटी को पढ़ा दोगे?
विवेक ने भाभी को हाँ कहा और भाभी के घर उनकी बेटी को पढ़ाने चला गया।
बातों बातों में उसने भाभी से कहा- भाभी आप भी सीख लो थोड़ा मुझसे… क्योंकि जब मैं यहाँ ना होऊँ तो आप अपनी बेटी को आसानी से पढ़ा सकें।
भाभी ने भी यह उचित समझा और कहा- मैं तेरे भैया को पूछ कर तुझे कल बताऊँगी।
विवेक ने भी कह दिया- ठीक है, मुझे बता देना।
फिर विवेक अपने घर चल दिया।
अगले दिन विवेक रोजाना की तरह भाभी के पिछवाड़े को निहार रहा था, तभी भाभी ने कहा- कहाँ खो गये विवेक? मैंने तुम्हारे भैया से पूछ लिया है, उन्होंने हाँ बोला है तो तुम कब से मुझे पढ़ाने आओगे?
विवेक ने कहा- भाभी, जो वक्त आप ठीक समझें, मैं आ जाऊँगा।
भाभी ने कहा- शाम को 6 बजे चलेगा?
विवेक ने अपनी सहमति दे दी और भाभी को शाम 6 बजे पढ़ाने चला गया। भाभी ने विवेक से चाय के बारे में पूछा तो विवेक ने ना बोल दिया।
भाभी ने कहा- विवेक एक बार मेरे दूध की चाय पीकर तो देखो, तुम रोज पीना चाहोगे।
विवेक ने थोड़ा सा नॉटी होकर पूछा- आपके दूध की चाय?
संध्या थोड़ी शरमाई और फिर हंस कर बोली- चल बदमाश, ऐसे बात करेगा अपनी भाभी से?
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विवेक ने कहा- मैं तो मजाक कर रहा था, हाँ, लेकिन आप पिलाना चाहती है तो पिला दीजिये।
फिर विवेक भाभी को सिखाने में लग गया, सिखाते-सिखाते कभी विवेक भाभी को छू लेता तो कभी भाभी विवेक को…
अब तो विवेक और संध्या एक दूसरे में कुछ ज्यादा ही घुलमिल गये थे, अब वे खुल कर बाते करने लगे थे।
एक बार भाभी ने विवेक से पूछा- चाय पियोगे?
विवेक ने पूछा- किसके दूध की?
संध्या ने कहा- मेरे दूध की!
विवेक ने बोला- सच्ची? तो तो मैं जरूर पियूँगा।
भाभी ने कहा- सच में पिएगा क्या?
विवेक बोला- मैं तो मजाक कर रहा था, आप चाय न बनाना!
एक बार विवेक को आने में कुछ देरी हो गई, संध्या उसकी आतुरता से राह देख रही थी। विवेक उस शाम आधा ही घंटा भाभी के वहाँ गया और फिर अपने घर चला गया।
अगले दिन विवेक भाभी के घर नहीं आया। एक हफ्ता बीत गया अब विवेक को भाभी के घर आये हुए।
अब न तो विवेक भाभी को दूध लेने के वक़्त उनके पिछवाड़े को निहारने के लिए वह होता था और न ही कुछ भी!
फिर भाभी विवेक के घर गई और विवेक से इसका कारण पूछा। जवाब में विवेक ने कहा कि उसकी कॉलेज में एक गर्लफ़्रेंड है जो उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध जोड़ना चाहती है।
तो भाभी ने बीच में बात काटते हुए कहा- जब तुम्हारी फ्रेंड को कोई दिक्कत नहीं तो तुम क्यों परेशान हो? अक्सर ऐसे मामलों में लड़कों की बजाय लड़कियाँ दिक्कत में होती हैं।
विवेक बोला- ऐसी बात नहीं है भाभी, मैं भी उसके साथ सम्बन्ध बनाना चाहता हूँ लेकिन इससे पहले मेने कभी सेक्स नहीं किया और ना ही मुझे कुछ इसके बारे में ज्ञान है, मैं अपनी गर्लफ़्रेंड के सामने एक नौसिखिया नहीं बनना चाहता।
इतने पर ही संध्या ने अपने होंठ विवेक के होंठों पर रख दिए और एक किस किया।
वो छोटा किस था जो विवेक की ज़िन्दगी का पहला सुखद अनुभव था।
बाद में भाभी ने विवेक के कान में हल्के से कहा- जैसे तुमने मेरी मदद की, वैसे ही मैं तुम्हारी मदद करुँगी, केवल यह ख्याल रखना कि इसके बारे में किसी और को शक ना हो पाए कि हम क्या कर रहे हैं। और हाँ कल से 6 बजे क्लास में आ जाना, मैं तुम्हें अपना सबसे बेस्ट वाला स्टूडेंट बनाऊँगी।
विवेक अगली शाम भाभी के घर पहुँच गया, संध्या बोली- आ गये तुम? काफी जल्दी लगती है तुम्हें, चलो अब आ गये हो तो कोई बात नहीं, आओ बैठो।
विवेक को बिठा के भाभी रसोई में चली गई। थोड़ी देर बाद अन्दर से आवाज़ आई- चाय पियोगे?
विवेक ने ना बोला।
संध्या अन्दर से बोली- अब चाय पीने की आदत डाल लो, अब शर्म को छोड़ दो, अभी तो तुम्हें बहुत कुछ सीखना है, ऐसे करोगे तो कैसे चलेगा? तुम चाय पी रहे हो, मैं बना रही हूँ।
थोड़ी देर बाद संध्या चाय बनाकर लाई, उसने अपना दुपट्टा कमर पर खींच कर बाँधा हुआ था और उसका फिगर विवेक पर भारी पड़ रहा था, 36-24-36 जैसा फिगर होगा उसका…
वो चाय लेकर आई और विवेक के सामने झुकी, उस वक़्त उसने अपने बूब्स की झलक उसको दिखा दी।
विवेक देखता ही रह गया, उसी हड़बड़ाहट में उसके हाथ से चाय का कप छुट गया और चाय उसकी पैंट पर जा गिरी।
संध्या ने कहा- अरे विवेक, संभल कर जरा… तुमने तो देखो, चाय गिरा दी आगे क्या होगा? एक काम करो, चलो अपनी पैंट निकाल दो और वाशरूम हो आओ!
विवेक- मगर…
भाभी ने बीच में बात काटते हुए कहा- अगर मगर कुछ नहीं, तुम पहली बात तो शर्माना छोड़ दो, वरना हम आगे कैसे बढ़ेंगे?
भाभी ने विवेक की पैंट निकाल ली और उसकी जांघों पर अपने हाथ फिराने लगी।
विवेक अब भी थोड़ा असहज़ महसूस कर रहा था।
भाभी बोली- तुम अब रिलैक्स हो जाओ, अब तुम्हें इसकी जल्दी आदत हो जाएगी।
इतने में भाभी ने अपने होंठ विवेक के होंठों पर रख दिए और विवेक को चुम्बन करने लगी। धीरे धीरे कर संध्या विवेक के शर्ट के बटन एक-एक कर खोलने लगी और उसकी छाती पर अपने मुलायम हाथ चलाने लगी।
विवेक अपना नियंत्रण धीरे-धीरे खोता जा रहा था, एक तरफ संध्या का किस करना चालू था, फिर भाभी ने विवेक को खड़ा किया और उसका बनियान भी उतार दिया।
अब विवेक संध्या के सामने केवल चड्डी में था। संध्या विवेक को एक पल निहारती रही, बाद में विवेक को बोली- वाओ विवेक… बॉडी तो काफी मेन्टेन की है, कितना छुपा कर रखोगे इसे?
बातें करते-करते संध्या ने विवेक का हाथ अपने बूब्स पर टिका दिया।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी, मुझे जरूर मेल करें।
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