जिस्म की जरूरत-13
(Jism ki Jarurat Chut Chudai Sex-13)
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मैं समझ गया था कि जिस रेणुका में मैं अपना प्यार तलाश रहा था वो रेणुका सिर्फ मुझसे अपने जिस्म की जरूरत पूरी कर रही थी…
रेणुका मुझसे मिल कर धीरे धीरे अपनी कमर और चूतड़ मटकाती हुई मुझे अपनी कामुक चाल दिखा कर चली गई… मैं भारी मन से उसे जाते हुए देखता रहा..
मैंने एक बात नोटिस करी.. पहले जब भी रेणुका मुझसे लिपटती और मेरे लंड पे हाथ फेरती मेरा लंड फनफना कर खड़ा हो जाया करता था… लेकिन आज ऐसा नहीं हुआ… शायद मेरे टूटे हुए दिल की वजह से?
खैर मैं बुझे हुए मन से रेणुका के घर तक गया और बाहर से ही वंदना को आवाज़ लगाई…
एक दो बार पुकारने के बाद ही वंदना अपने हाथों में एक बड़ा सा डब्बा लेकर बाहर आई, शायद अपने दोस्त के लिए गिफ्ट लिया होगा…
मेरा मन उदास था और थोड़ी देर पहले वंदना और मेरे बीच हुए उस हादसे की वजह से मैं उसकी तरफ देख नहीं पा रहा था… लेकिन एक बार जल्दी में जब मैंने उसकी आँखों में देखा तो उसकी आँखें वैसे ही लाल दिखाई दी जैसी उस वक़्त हो गई थीं और उसके चेहरे पे एक प्रणय भरा निवेदन सा था।
मैंने मुस्कुरा कर झट से अपनी नज़रें हटा लीं और इधर उधर देखने लगा।
तभी अन्दर से अरविन्द भैया अपे कार की चाभी लेकर बाहर निकले और पीछे पीछे रेणुका भी मुस्कुराते हुए आई।
‘समीर, मेरी कार ले जाइए… रात में शायद आप लोगों को लौटने में देर हो जाए और मौसम भी कुछ ठीक नहीं है… और इतनी रात गए इस शहर में बाइक से जाना सही नहीं होगा…’ अरविन्द भैया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा और अपने गराज से कार निकलने लगे।
इसी बीच रेणुका हम दोनों के पास आई… वंदना को उसने कुछ कहा और फिर वो मेरी तरफ मुड़ी- आराम से आइयेगा… रात का वक़्त है हड़बड़ाने की कोई जरूरत नहीं है… कहीं कोई हादसा न हो जाए।
उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा।
मैं उसका इशारा समझ गया था… और उसकी बातों का मतलब समझते ही एक बार फिर से मेरे टन बदन में आग लग गई… असल में रेणुका अपने पति के साथ तन्हाई में रहना चाह रही थी।
‘अजी अगर आप कहें तो आज हम आते ही नहीं हैं… फिर अप अपने दिल के सारे अरमान पूरे कर लीजियेगा।’ मैंने गुस्से में बनावटी हंसी दिखाते हुए रेणुका को आँख मारते हुए कहा।
‘फिर तो मजा आ जायेगा।’ उसने भी बेशर्मी से कह दिया।
मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया… मैं उसके पास से हटकर अरविन्द भैया के पास चला गया और गाड़ी निकलने में उनकी मदद करने लगा।
गाड़ी निकल गई और हम दोनों यानि वंदना और मैं उसमें बैठ कर चल दिए।
घर से थोड़ी दूर आगे निकलने के बाद वंदना ने कार के म्यूजिक सिस्टम को ओन कर दिया और एक रोमांटिक गाना बजा दिया…
अगर तुम मिल जाओ…
ज़माना छोड़ देंगे हम…
गाना शुरू होते ही उसने अपनी नज़रें मेरी तरफ कर लीं और मुझे एकटक देखने लगी…
मेरा ध्यान सीधे रास्ते पर था लेकिन मुझे यह पता चल रहा था कि वो टकटकी लगाये मुझे ही देख रही है… मैंने धीरे से अपनी नज़रें उसकी तरफ करीं और उसकी आँखों में देखा।
जैसे ही मैंने देखा, उसने अपने चेहरे पे मुस्कराहट बिखेर दी और अपनी आँखें बड़ी बड़ी करके बिना पलकें झपकाए देखने लगी… दो पल के बाद उसकी आँखों को मैंने फिर से डबडब होते देखा।
मैंने अचानक से ब्रेक दबाया और गाड़ी रोक दी..
‘नाराज़ हो?’ वंदना ने रुंधे हुए गले से मेरी तरफ देखते हुए गेयर पर रखे मेरे हाथ पे अपना हाथ रख कर पूछा।
उसकी आँखों में उस वक़्त इतना प्रेम और इतनी करुणा थी कि मेरा दिल पसीज गया और मैंने अपने बाएँ हाथ से उसके गालों को पकड़ कर प्यार भरे अंदाज़ में उसकी आँखों में देखते हुए न में सर हिलाया।
मेरा यह स्नेह एक बार फिर से उसे रोने पर मजबूर कर गया और उसकी आँखों से आँसुओं की बरसात होने लगी, झट से आगे बढ़ कर वो मेरे सीने से लिपट गई और जोर जोर से रोने लगी…
‘समीर… मैं आपसे बहुत प्यार करने लगी हूँ… बोलो ना… आप मुझसे नाराज़ तो नहीं हो ना… मैं आपके बगैर नहीं रह सकती… मुझसे नाराज़ मत होना.. मैं मर जाऊँगी।’ एक ही सांस में वंदना ने रोते हुए मेरे सीने से चिपक कर वो सारी बातें कह डालीं जो प्यार में पागल हो चुकी एक लड़की अपने चाहने वाले से कहती है।
मैं हक्का बक्का सा उसकी बातें सुनता रहा और उसके बालों को सहलाता हुआ उसे चुप करता रहा।
‘पागल… ऐसे कोई रोता है भला… तुम भी मुझे बहुत अच्छी लगती हो… लेकिन ये प्यार व्यार के बारे में मैंने कभी नहीं सोचा है… अब रोना बंद करो प्लीज!’ मैंने उसे बड़े प्यार से सहलाते हुए चुप करने की कोशिश करते हुए कहा।
जिस जगह हमने गाड़ी रोकी थी, वहाँ से कुछ लोग गुजर रहे थे और हम दोनों को ऐसी हालत में देख कर घूर रहे थे। छोटे शहरों में ऐसा लाज़मी है।
‘अब उठ जाओ..देखो लोग देख रहे हैं… और ये रोना बंद करो वरना तुम्हारी सहेलियाँ कहेंगी कि हमने आपको रुलाया है और मैं भी नहीं चाहता कि मेरी प्यारी वंदना के खूबसूरत से चेहरे पे आँसुओं के कोई भी निशाँ पड़ें… न आज न ही आगे कभी… तुम मुझे वैसे ही पसंद हो, शरारती और हमेशा हंसती हुई…’ मैंने इतना कहकर वंदना को सीधा किया और फिर अपनी जेब से रुमाल निकाल कर उसके आँसू पोंछे।
मेरी बातों ने वंदना को इतना खुश कर दिया कि वो चहक उठी और उसने मुझे पकड़ कर सीधा मेरे होठों पे चूम लिया। जब उसने मुझे चूमा तब बाहर से किसी ने हमें देख लिया और वंदना ने भी यह देखा कि कोई हमें देख रहा है।
‘इस्स्स… बदमाश… यहीं रोकनी थी गाड़ी आपको… कैसे घूर रहे हैं सब? अब चलो यहाँ से!’ वंदना ने लजाते हुए कहा और अपनी सीट पर वापस ठीक से बैठ गई।
‘अच्छा जी… शरारत आप करो और बदमाश हम…’ मैंने भी चुटकी लेते हुए कहा।
‘गंदे कहीं के… अब चलो भी!’ प्यार और मनुहार से उसने मेरे जांघों पे एक मुक्का मारा और हंसने लगी।
अचानक से पूरा महल खुशनुमा हो गया… मेरे मन पे परा बोझ भी न जाने कहाँ खो गया.. रेणुका ने जो गुस्सा दिलाया था वो वंदना के प्यार ने कहीं दूर भगा दिया था। वंदना बहुत खुश हो गई थी… उसके चेहरे की चमक और होठों की मुस्कराहट ने मेरा सारा दर्द भुला दिया था।
मेरे दिल से एक आवाज़ आई कि बेटा समीर… जिस प्यार की तलाश में तू कहीं और भटक रहा था वो तुझे वंदना से ही मिल सकता है… तू खामख्वाह रेणुका के पीछे दिल लगा रहा है।
यह बात दिमाग में आते ही मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और मैं मुस्कुराता हुआ वंदना की तरफ देख कर गाड़ी चलाता रहा… शायद हमारे इस ख़ुशी में ऊपर वाला भी शामिल होना चाहता था… इसीलिए बाहर ज़ोरों से बारिश होने लगी और जोर से एक बिजली चमकी जिससे डर कर वंदना मुझसे चिपक सी गई।
‘हाहाहा… डरपोक… डर गई?’ मैंने वंदना का मजाक उड़ाते हुए कहा।
‘अच्छा जी… मैं डरपोक… अभी बताती हूँ..’ इतना बोलकर उसने आगे बढ़ कर मेरे गालों के अपने दांत गड़ा दिए।
‘आउच… बदमाश… बना दिए न दांतों के निशान..अब जब आपकी सहेलियाँ पूछेंगी तब क्या जवाब दूँगा? मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।
‘कह दीजियेगा कि रास्ते में एक जंगली बिल्ली ने काट खाया…’ शरारत भरे शब्दों में वंदना ने कहा और ठहाके लगा कर हंसने लगी।
इसी तरह हंसी मजाक करते हुए हम थोड़ी देर में उसकी सहेली के यहाँ पहुँच गए… बारिश अब भी बड़े ज़ोरों से हो रही थी।
गाड़ी से निकल कर हम भागते हुए वंदना की सहेली के घर के भीतर घुसे, अन्दर बड़ा ही खुशनुमा सा माहौल था, ढेर सारी लड़कियाँ सच कहूँ तो खूबसूरत लड़कियाँ तरह तरह के आधुनिक पोशाकों में इधर उधर इठलाती हुई चहल कदमी कर रही थीं और मद्धिम सी आवाज़ में संगीत का शोर भी फैला हुआ था।
पूरा हॉल चमकीले सितारों से और रंग बिरंगे बलून से भरा पड़ा था।
मैंने नज़र दौड़ाई तो वहाँ कुछ लड़कों को भी देखा जो शायद वंदना और उसकी सहेली के सहपाठी रहे होंगे। सब लोग अपनी मस्ती में खोये हुए थे।
हम जैसे ही हॉल में दाखिल हुए तभी हॉल के एक कोने से लाल रंग की खूबसूरत सी ड्रेस में बिल्कुल किसी बार्बी डॉल की तरह वंदना के उम्र की ही लड़की आई और ख़ुशी से चिल्लाते हुए वंदना को अपने गले से लग लिया।
‘शैतान… अब समय मिला है तुझे… ये कोई वक़्त है… कहाँ थी अब तक?’ एक ही सांस में सारे सवाल पूछ लिए उसने।
उफ्फ… ये लड़कियाँ… सारी की सारी एक जैसी ही होती हैं… सबके लबों पे बस सवाल ही सवाल होते हैं!
‘अरे यार माफ़ कर दे… एक तो मौसम इतना खराब है और ऊपर से ये जनाब नखरे दिखा रहे थे।’ वंदना ने अपनी सहेली को मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा।
‘ओह… तो आप हैं समीर बाबू… धन्य भाग हमारे जो आपके दर्शन हो गए।’ वंदना की सहेली ने मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखकर कहा और फिर वंदना को देख कर आँख मारी।
मुझे कुछ अजीब सा लगा, उसकी सहेली की बातों से ऐसा महसूस हुआ मानो वंदना और उसके बीच मेरे बारे में बहुत कुछ बातें हो चुकी हों शायद… मेरे चेहरे पर एक शिकन आई लेकिन मैंने भी मुस्कुराते हुए वंदना की सहेली की तरफ देखा।
‘समीर जी, यह है मेरी सबसे प्यारी और सबसे ख़ास सहेली ज्योति… हम सगी बहनों से भी ज्यादा प्यार करते हैं एक दूसरे को, और ज्योति… ये रहे समीर बाबू, अब मिल लो… इतने दिनों से मेरी जान खा गई थी न मिलवाने के लिए सो आज मैं इन्हें लेकर आ ही गई।’ वंदना ने हम दोनों का परिचय एक दूसरे से करवाया।
उन दोनों की आँखों में मुझे शरारत नज़र आ रही थी… एक चमक सी थी उन दोनों की आँखों में, मानो वंदना और हमारी नई नई शादी हुई हो और वो अपने पति का परिचय अपनी सहेली से करवा रही हो।
साथ ही ज्योति इस तरह मिल रही थी मानो अपने नए नए जीजाजी से मिल रही हो।
यह समझना मुश्किल नहीं था कि वंदना अपनी सहेलियों या यूँ कहें कि अपनी ख़ास सहेली से मेरे बारे में काफी दिनों से बातें करती आ रही होगी… यानि कि जिन दिनों में मैं रेणुका जी के साथ प्रेम लीला में व्यस्त था उन दिनों उसकी बेटी मन ही मन में मेरे साथ अपने प्रेम की लीला की संरचना में मस्त थी।
वाह रे ऊपर वाले… तेरी लीला भी अपरम्पार है !!
‘आइये समीर जी, आपको अपनी सहेलियों से मिलवा दूँ… सब आपसे मिलने को बेकरार हैं।’ ज्योति ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर हॉल के बीच में ले गई और एक एक करके वहाँ मौजूद सभी से मेरा परिचय करवाया।
लगभग 35 लोग थे वहाँ जिनमें 10 से 12 लड़के भी थे। सभी लड़कियों ने बड़े ही गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और लड़कों ने भी मुझसे पहले तो हाथ मिलाये और फिर मेरे गले लग कर मेरा अभिवादन किया।
सच कहूँ तो ऐसा लग ही नहीं रहा था कि मैं कोई अनजान हूँ या उनसे पहली बार मिल रहा हूँ… यह अपनापन मेरे दिल को छू गया।
थोड़ी देर हम सब यूँ ही एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते रहे और इस पूरे समय के दरम्यान वंदना मुझसे चिपक कर रही और अपने हाथों से मेरा हाथ पकड़े रखा, उसके हाथों में मेरा हाथ यूँ देख कर लड़कियाँ तिरछी निगाहों से देख देख कर मुस्कुराती रहीं तो वहीं लड़कों की आँखों में मुझे जलन साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी।
आखिर मैं भी एक लड़का हूँ और मुझे पता है उस एहसास के बारे में जब आपके क्लास की सबसे खूबसूरत लड़की किसी और का हाथ थामे बैठी हो और आप बस अपना मन मसोस कर रह जाते हो।
खैर, समय बहुत हो चुका था और अब बारी आई केक काटने की…
कहानी जारी रहेगी।
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