आकर्षण-1

(Aakarshan- Part 1)

वृंदा 2009-06-28 Comments

This story is part of a series:

मैं वृंदा, एक बार फिर से हाज़िर हूँ आपके सामने एक नई कथा लेकर !

आपने मेरी पिछली कहानी

राजा का फ़रमान-1

पढ़ी होगी, काफी अच्छा लगा यह जानकार कि आप सबको वो कहानी बेहद पसंद आई !

“राजा का फरमान” मेरी पहली कहानी थी, ऐसे में हिंदी लेखन त्रुटियों के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ !

अब बात करते हैं आज की कथा की !

यह कहानी शायद आपको एक सेक्स और कामुक कहानी ना लगे पर इस कहानी से कई लोग खुद को जोड़ सकेंगे, कई लोगों को यह अपनी सी लगेगी..

कहानी का शीर्षक है

“आकर्षण”

यह कहानी कुछ लम्बी होने साथ साथ, मनुष्य के द्वंद्व, भावनाओ, कर्मों और निर्णयों को आज़माती है..!!! आशा है आपको पसंद आएगी…

यह कहानी है छोटी वृंदा और वेदांत की… जो छुटपन से साथ थे, साथ खेले, घूमे, पढ़े और बड़े हुए…

वृंदा के पिता एक व्यवसायी थे और माता एक गृहिणी।

वेदांत के पिता एक इंजिनियर थे और शहर के पुल, इमारतें के खाके बनाते और असल ज़िन्दगी में उन्हें जीवंत करते…

वेदांत के पिता और माँ में तलाक हो चुका था, वेदांत अपने पिता और अपनी दादी के साथ हमारे सामने वाले घर में रहता…

वो और मैं बचपन में साथ खेले और एक ही स्कूल जाते थे … वो मुझसे उम्र में एक साल बड़ा था पर फिर भी हम एक ही कक्षा में थे..!

फर्क केवल इतना था कि वो कक्षा के दूसरे विभाग में था पर हमारी कक्षाएँ साथ साथ थी… हम दोनों बहुत अच्छे एवं घनिष्ट मित्र थे, मैं उसके लिए अपनी कक्षा की किसी भी लड़की या लड़के से भिड़ सकती थी…वो थोड़ा सीधा था… और मैं थोड़ी शरारती… फिर भी हमारे बीच कभी लड़ाई या मनमुटाव नहीं हुआ था…

हम दोनों को सुबह स्कूल बस लेने आती थी, वही स्कूल बस हमें दोपहर में भी घर तक छोड़ती। उसके बाद वो अपने घर चला जाता, मैं अपने घर ! हम दोनों के घरों में पढ़ाई को लेकर बेहद सख्ती थी, हमें पढ़ाई ख़त्म किये बगैर खेलने जाने नहीं दिया जाता था… हमारी ही सोसाइटी में हमारे हम-उम्र कई लड़के-लड़कियाँ थे पर हमारी जैसी मित्रता किसी की नहीं थी। मैं उसके घर उसके साथ कैरम खेलने जाती थी और वो मेरे साथ बैडमिंटन खेलने आता था…

खेल कूद के बाद हम दोनों शाम मैं अपने अपने घर जाते और रोज़मर्रा की क्रियाओं में व्यस्त हो जाते… हमारी यह गहरी दोस्ती करीब तब से थी जब उसके पिता उसकी माँ से तलाक ले हमारी सोसाइटी में रहने आए थे !

उन दिनों वो बेहद शांत रहता.. माँ को याद करता था उसका यहाँ कोई दोस्त भी नहीं था.. बहुत जतनों और कई चोकलेट खिलाने के बाद मेरी उससे दोस्ती हुई… तब मैं 11 साल की थी, मुझे आज भी वो दिन याद है, रविवार था, मैं पार्क में झूला झूल रही थी और वो ऐसे ही जाने किस सोच में डूबा बेंच पर बैठा कुछ सोच रहा था … मैं उसका नाम पुकार कर उससे कह रही थी- देखो मैं कितना ऊँचा झूल रही हूँ…

मैं : वेदांत… देखो देखो.. और ऊँचा… और ऊँचा.. देखो ना…

वो मेरी और देख नहीं रहा था.. और शायद सुन भी नहीं रहा था…

मैंने उसका ध्यान बटाने की एक बार फिर कोशिश की…

मैं : देखो वेदांत खड़े होकर ! बहुत मज़ा आ रहा है… तुम भी झूलो ना आकर … वेदान्त…. वेदांत ! ओफ्फ्फो ….

वो वैसा ही गुमसुम बैठा घास की ओर देखे जा रहा था…

मैंने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की एक और कोशिश की…

मैं : देखो वेदांत ! हाथ छोड़ के …!!!!

बस मैंने इतना बोला ही था और एक झटके के साथ में झूले की उच्चतम छोर से नीचे गिर पड़ी…!!

वो दौड़ा दौड़ा मेरे पास आया.. ” चोट तो नहीं लगी…? पागल है क्या तू… ज्यादा सुपरमैन बनने का शौक चढ़ा है… जा छत से भी कूद ले.. बेवक़ूफ़ लग गई न अब…” वो गुस्सा करते हुए बोला..

उसका गुस्सा शांत हुआ तो उसने भाषण देना शुरू कर दिया,”क्या कर रही थी? कैसे गिर गई?”

मैं : तू सुन ही नहीं रहा था !!!

वेदांत : हाँ कभी पीछे से आवाज़ दोगी और अगर कभी गलती से नहीं सुना.. तो क्या गिर पड़ेगी?

मैं : नहीं, कुत्ते दौड़ा दूँगी तेरे पीछे..!

और मैं खिलखिला कर हंसने लगी…

वेदांत : बड़ी हंसी आ रही? अभी बताएँगे ना जब अंकल आंटी तब पता लगेगा…!!! चल अब.. या शाम तक यहीं बैठना है..? चल बैंड ऐड लगवा ले…

वो बड़ा परेशां सा मेरा हाथ पहली बार पकड़ के घर ले गया.. उसका घर बेहद साफ़-सुथरा था, उसके पापा बाज़ार गए थे, दादी अपने कमरे में थी, वो मुझे दादी के पास ले गया।

दादी ने पहले मेरे सर पर प्यार से हाथ फेरा, उसे भी डांटा- तूने गिराया होगा जरूर इसे? प्यारी सी है इतनी !

मैं शरारत भरी निगाहों से उसे देख कर मुस्कुरा रही थी..

“चल आ जा हल्दी लगा दूँ !” दादी ने कहा।

वेदांत : नहीं दादी, बैंड ऐड..!

दादी : तुम बच्चे भी जाने क्या क्या कहाँ कहाँ से सीख कर आते हो, बैंड भी कोई भला चोट पे लगता है, आ बिटिया मैं तुझे हल्दी लगा दूँ…!!!

दादी ने मुझे रसोई में लेजा कर हल्दी लगाई और वेदांत को मेरा ध्यान रखने की हिदायत दी।

वहां से वेदांत मुझे मेरे घर ले गया और अब बारी उसकी थी मुझसे बदला लेने की !

उसने मुझे मम्मी के पास लेजा कर कहा, देखो आंटी यह गिर गई, यह ना पार्क में गंदे गंदे कुत्तों के साथ खेल रही थी, और देखो अब गिर गई, चोट लग गई…

मम्मी : हे भगवान्, यह लड़की भी ना ! चैन से तो इससे बैठा नहीं जाता, आफत की पुड़िया… वहाँ क्या खड़ी है? इधर आ अब, अच्छा हुआ कुत्ते ने नहीं काटा, नहीं तो पेट में बड़ी बड़ी सूइयाँ लगती न तब पता चलता इसे… , बेटा तुम कहाँ रहते हो??

वेदांत : आंटी, यहीं सामने वाले घर में !

कौन सी क्लास में हो?

जी छठी में !

यह निकम्मी भी छठी में है, पढ़ती तो कुछ है नहीं, इस बार पक्का फ़ेल हो जाएगी, बेटा तुम दोनों साथ में क्यों नहीं पढ़ लेते, तुम तो होशियार लगते हो, इसे भी कुछ सिखा दिया करो..!!!

मैंने मन में सोचा : वैसे मम्मियों को ना, अपने छोड़ के औरों के बच्चे अच्छे लगते हैं…!!!

वेदांत भी ना जाने क्या सोच रहा होगा..

मम्मी अपनी बात जारी रखते हुए : बेटा कौन से स्कूल में पढ़ते हो? कहीं ट्यूशन भी लगा रखी है क्या..??

वेदांत : नहीं आंटी, ट्यूशन तो नहीं है, 3-4 दिन पहले ही दाखिला लिया है अमिटी में..

मम्मी : अच्छा अच्छा, यह भी वहीं जाती है.. बेटा, मम्मी पापा क्या करते हैं,…??

वेदांत : जी मम्मी तो………………..साथ नहीं हैं, पापा, इंजिनियर हैं..

मम्मी: च च च च, इतनी छोटी उम्र में बिना मम्मी के….

वेदांत : जी मैं और पापा दादी के साथ रहते हैं…!!

बातों का रुख मुड़ते देख उसने कहा : अब मैं चलता हूँ देर हो रही है…

मम्मी : ओह, ठीक है बेटा, आना ! हैं…?

उसके जाते ही… मैंने खीजते हुए कहा : क्या मम्मी.. कितना सवाल जवाब करती हो आप..???

मम्मी : बेटा पड़ोस में आये हैं खबर तो रखनी पड़ती है ना..!!!

मैं अपनी ही धुन में अपने कमरे में चली गई, शाम को पापा मेरे घुटने वाली चोट पर डॉक्टर से पट्टी करवा लाए.. अब मुझसे टांग मोड़ी नहीं जा रही थी, एक बार बैठने के बाद खड़े होने में तकलीफ होती, सुबह स्कूल के लिए तैयार होने में भी बहुत परेशानी हो रही थी, जैसे कैसे मैं तैयार हो घर से बाहर निकली, वेदांत बस्ता और पानी की बोतल लिए दरवाजे के पास ही खड़ा था ..

वेदांत : चल साथ चलते हैं…!!!

मैंने ड्रामा किया.. : आ आ आ चलने में दर्द हो रहा है .. थोड़ा धीरे चल..

उसने मेरी पानी की बोतल पकड़ ली.. और दूसरे हाथ में मेरा हाथ थाम लिया ताकि में फिर से न गिर जाऊँ..!!!

मैंने बात छेड़ी : वेदांत… तुम अपनी मम्मी का नाम लेते ही.. उखड़ क्यों जाते हो.. अपनी मम्मी से प्यार नहीं करते..???

वेदांत : नहीं री.. अपनी मम्मी से कौन प्यार नहीं करता.. मेरी मॉम, मेरे डैड से अलग रहती हैं… पहले हम साथ साथ रहते थे… फिर पता नहीं क्यों… मेरे मम्मी पापा अलग हो गए…तीन साल तक केस चला.. मेरी मॉम मुझे अपने साथ रखना चाहती थी.. और मेरे डैड भी मुझे अपने साथ रखना चाहते थे..

मैं: तुम किसके साथ रहना चाहते थे..???

वेदांत: कौन अपने मॉम डैड के साथ अलग अलग रहना चाहेगा.. मैं बस उन दोनों को साथ देखना चाहता हूँ…मैं दोनों से बहुत प्यार करता हूँ.. और वो दोनों भी मुझसे बहुत प्यार करते हैं… बस रहते अलग अलग जगह हैं…

इतने में बस आ गई… बात अधूरी रह गई..

वेदांत का चेहरा फिर से उतर गया था…वो फिर उसी उदासी की खाई में जा गिरा था, जहाँ से मैं उसे निकलना चाहती थी.. मैं सिर्फ चाहती थी कि वो अपने दिल की बात बस कह दे ताकि उसके दिल में चुभती सी हुई कोई भी बात उसे और परेशान न करे…

वो बस में मेरे साथ ही बैठा था.. पर मेरी उससे पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी… मैंने बात बदलते हुए कहा,” अच्छा सुन, तूने मैथ का होमवर्क किया है…???, कल वो चोट लग गई थी ना कोहनी और घुटने में, तो मैं ना स्टाडी टेबल पे बैठ पाई न मैं होमवर्क कर सकी.. प्लीज तू कर दे ना… तू मेरा प्यारा सा अच्छा सा इकलौता दोस्त नहीं है…? है ना…? तो करदे ना प्लीज ….!!!

वेदांत : हाँ अभी आधा घंटा लगेगा स्कूल पहुँचने में ! ला कॉपी दे, मैं लिख देता हूँ … नहीं तो क्लास के बाहर खड़ी होगी तो और टांग में दर्द होगी…!!!!

बस फिर वो सवाल करता रहा में उसे देखती रही.. और हम स्कूल पहुँच गए.. वो रिसेस में मुझसे मेरा हाल पूछने आया…

वेदांत : अब दर्द कैसा है .. खाना खा लिया..??

मैंने ना में सर हिला दिया..

वेदांत : आ जा ! मैं भी अकेला हूँ ! साथ में खाते हैं…

मैंने लंच उठाया और उसकी क्लास में चली गई.. हमने पहली बार साथ लंच किया… वो बड़ा ही मासूम लग रहा था.. जाने वो क्या था.. वो मेरा उसकी तरफ होने वाला अबोध .. निष्पाप, निष्काम, पहला आकर्षण…आज भी दिल में महसूस होता है…!!!

पहला भाग समाप्त…

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