बरसात में अजनबी लड़की की कुंवारी चूत मिली- 2
(Gaon Ki Ladki Ki Sex Kahani)
गाँव की लड़की की सेक्स कहानी में पढ़ें कि मैंने बारिश में एक लड़की को लिफ्ट दी, उसे घर छोड़ने गया तो उसने घर में बुला लिया. वहाँ क्या हुआ?
दोस्तो, मैं हर्षद मोटे एक बार फिर से अपनी सेक्स कहानी में आप सभी का स्वागत करता हूँ.
कहानी के पहले भाग
सरे राह चलते उससे मुलाक़ात हो गई
में अब तक आपने पढ़ा था कि मैं नीता के साथ बाइक की सवारी का मजा ले रहा था.
वो भी मेरे पीछे बैठ कर अपनी चूचियां मेरी पीठ से रगड़ रही थी और मेरे लंड को सहला रही थी.
अब आगे गाँव की लड़की की सेक्स कहानी:
रास्ते पर एकदम अंधेरा छाया था, हमें देखने वाला कोई नहीं था.
अब बारिश तेज होने लगी थी.
मैंने मुँह मोड़ कर नीता से पूछा- क्या करें, रुकें या चलते चलें?
मेरा गाल नीता के कोमल होंठों पर सट गया तो उसने मुझे चूमकर कहा- अब नहीं रुकना हर्षद … आहिस्ता आहिस्ता चलते चलो.
नीता ने चूमकर मुझे और गर्म कर दिया था.
इसके साथ ही नीता मेरे लंड को पैंट के ऊपर से ही कुछ और ज्यादा दबाती हुई सहलाने लगी थी.
इससे मेरा लंड गर्म होने लगा था.
थोड़ी दूर जाने के बाद नीता बोली- आगे से राईट में जाने का हर्षद.
मैंने आगे से राईट मोड़ लेकर बाईक साईड में खड़ी कर दी.
नीता ने पूछा- क्या हुआ हर्षद?
मैंने कहा- यार, बहुत जोर से पेशाब लगी है.
वो बोली- हां मुझे भी लगी है लेकिन अब घर जाकर ही करूंगी.
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- अब कर भी लो ना इधर ही … यहां कौन देखने वाला है तुम्हें?
उसने हंस कर कहा- तुम तो हो ना!
मैंने कहा- अच्छा … चलो मैं अपनी आंखें बंद कर लेता हूँ.
वो बोली- अरे नहीं यार … मैं तो मजाक कर रही थी. तुम देखोगे तो मुझे कोई ऐतराज नहीं हर्षद.
मैंने गाड़ी की लाईट चालू ही रखी थी तो उसके उजाले में थोड़ा दूर जाकर मैं अपना लंड निकाल कर मूतने लगा.
नीता भी थोड़ी दूरी पर अपनी सलवार और पैंटी नीचे करके मूतने बैठ गई.
मैं बाइक के उजाले में तिरछी नजर से उसकी गांड देख रहा था.
नीता भी मेरा लंड देख रही थी.
फिर हम दोनों बाईक के पास आ गए.
मैंने नीता से पूछा- और कितनी दूर तुम्हारा घर?
उसने कहा- आगे हमारा गांव है, उससे पहले ही राईट मोड़ से जाने का रास्ता है, वो सीधे मेरे घर पर ही जाता है.
बारिश थोड़ी कम हो गयी थी तो मैंने बाईक चालू कर दी और नीता पीछे मुझसे सटकर बैठ गयी.
हम निकल पड़े.
दस मिनट में ही हम दोनों नीता के घर पहुंच गए थे.
मैंने घड़ी देखी तो आठ बज चुके थे.
नीता बाईक से उतर गयी, तो मैंने कहा- अब मैं चलता हूँ नीता.
नीता बोली- अरे इतनी रात हो गयी है … और बारिश भी चालू है. मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगी हर्षद. वैसे भी तुम्हारा कोई जरूरी काम भी नहीं है कि जाना ही चाहिए. अगर रास्ते में कुछ हो गया तो कौन देखने वाला है तुम्हें?
ये कहकर उसने मेरी बाईक की चाबी निकाल ली.
फिर अपने घर की चाबी निकाल कर दरवाजा खोलकर अन्दर आ गयी और सब लाईटें जला दीं.
बाहर की भी लाईट जला दी.
मैंने उससे कहा- नीता चाबी तो दे दो … बाईक यहां बाजू में लगा देता हूँ.
नीता ने गाड़ी की चाबी देकर कहा- गाड़ी लगाकर बाथरूम में जाकर पहले गीले कपड़े उतार देना.
मैंने कहा- पहले तुम अपने बदल लो. मैं बाद में बदलता हूँ.
नीता बाथरूम में चली गयी.
मैंने घर के आगे एक पत्तों का छपरा सा बना था, वहीं बाईक लगा दी और अपना बैग निकाल लिया.
घर में आकर मैंने बैग में से अपनी लुंगी और तौलिया बाहर निकाली और बैग एक कोने में रख दिया.
फिर मैंने अपनी टी-शर्ट और पैंट निकालकर उसे निचोड़ और बाहर लगी रस्सी पर सूखने को डाल दी.
अब मैं सिर्फ एक छोटे से सफेद बाक्सर में था.
मैं अपनी से तौलिया से बदन पौंछने में लगा था कि इतने में गाँव की लड़की नीता तौलिया लेकर दरवाजे पर खड़ी होकर मेरी तरफ ही देख रही थी.
मेरा सोया हुआ पांच इंच का गोरा लंड भीगे हुए बॉक्सर से साफ नजर आ रहा था.
मैं उसे अनदेखा करके अपनी जांघें पौंछने लगा.
नीता ने पिंक कलर का टाईट गाउन पहना था. उसकी चूचियों का उभार साफ दिख रहा था.
शायद उसने ब्रा और पैंटी भी नहीं पहनी थी.
वो मेरे सोये हुए लंड का उभार देखकर गाउन के ऊपर से ही अपनी चूत सहला रही थी.
उसने मुझे आवाज दी- हर्षद, सब यहीं करोगे क्या? बाथरूम में जाओ और गर्म पानी से नहा लो. मैंने पानी निकाल कर रखा है. गर्म पानी से थकावट दूर हो जाएगी.
मैं अपना तौलिया और लुंगी लेकर बाथरूम में जाने लगा.
नीता दरवाजे पर ही खड़ी होकर मेरे सोये हुए लंड के उभार को लगातार देख रही थी.
मैं दरवाजे के करीब आकर उसके सामने ऐसा खड़ा हुआ कि उसके हाथ को मेरे लंड के उभार का स्पर्श हो सके.
उसके हाथ का स्पर्श होते ही मेरे बदन में बिजली सी दौड़ने लगी थी.
नीता भी सिहर उठी.
नीता ने अपना हाथ जोर से मेरे लंड पर दबाया और बोली- बाहर ठंडी हवा चल रही है, बीमार पड़ जाओगे हर्षद.
नीता वासना भरी आंखों से मेरी तरफ देखकर बोल रही थी.
मैं बस उसे ही देख रहा था.
तभी नीता ने मेरे लंड अपने हाथ से दबाकर कहा- अब चलो जल्दी से नहाकर आओ, मैं तब तक चाय बनाती हूँ.
मैं बाथरूम में आ गया और मस्त गर्म पानी से नहाने लगा. मैं बहुत हल्का सा महसूस कर रहा था.
एक लुंगी लपेटकर मैं अपना तौलिया लेकर बाहर आया, तो नीता चाय बना रही थी.
मैंने पूछा- चाय बन गयी नीता?
तो उसने कहा- हां हर्षद, बन गयी.
उसने दो कप में चाय छान ली थी और वो मेरे पास आ गई.
चाय के कप एक तिपाई पर रख कर वो बोली- तौलिया मुझे दे दो.
मैंने तौलिया दे दी.
उसने मेरे हाथ से तौलिया लेकर मेरी पीठ पौंछना शुरू कर दिया और बोली- हर्षद अभी भी गीली है तुम्हारी पीठ!
पीठ पौंछकर वो बोली- अब मेरी तरफ मुँह करो.
मैं मुड़कर खड़ा हो गया.
नीता अपने हाथ ऊपर करके, मेरे सर के बालों को तौलिया से साफ करती हुई बोली- अभी भी बाल गीले हैं हर्षद … क्या तुमने सही से अपना बदन नहीं पौंछा?
वो मेरे बाल साफ कर रही थी और उस समय उसकी चूचियां मेरे नंगे सीने पर रगड़ रही थीं.
उसकी चूचियां बहुत कड़क लग रही थीं.
उसने ब्रा नहीं पहनी थी, तो उसके कड़क निप्पल्स मेरे सीने पर चुभ रहे थे.
अब मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ने लगी थी.
नीता भी गर्म होने लगी थी.
वो मेरे और पास आ गयी थी.
नीता गाउन के ऊपर से ही मेरे लंड पर अपनी चूत रगड़ने लगी.
हम दोनों गर्म हो गए थे.
मेरे हाथ अपने आप उसकी मांसल गांड पर आ गए और मैं उसके चूतड़ों को सहलाने लगा.
मैंने नीचे झुककर अपने होंठ नीता के गुलाबी और मुलायम होंठों पर रख दिए.
नीता सिहर गयी.
उससे भी रहा ना गया और उसने भी मुझे अपनी बांहों में कस लिया.
वो भी मेरे होंठों को चूसने लगी.
कुछ पल बाद वो मुझसे दूर हटकर बोली- हर्षद, चाय ठंडी हो जाएगी. चलो पहले चाय पीते हैं.
उसने मुझे एक कप दे दिया और खुद एक कप लेकर आगे बढ़ गई.
फिर हम दोनों उसके बेड पर बैठ कर चाय पीने लगे.
नीता मेरी जांघों पर हाथ रखकर बोली- हर्षद, कितने समय बाद आज किसी मर्द का स्पर्श मेरे शरीर को हुआ है. जब से मैंने तुम्हें देखा है हर्षद, मैं तुम्हें चाहने लगी हूँ. पता नहीं तुमने क्या जादू किया है?
मैं हंस दिया.
“तुम बहुत ही हैंडसम हो. तुम्हारा ये गठीला बदन, चौड़ा सीना और तुम्हारा गोरा बदन देख कर मैं अपने आप तुम्हारी ओर आकर्षित हो गयी हूँ. अब तुम ही मुझे समझ सकते हो.”
मैं कुछ नहीं बोला, बस मुस्कुराता रहा.
हम दोनों ने चाय पी ली थी.
फिर नीता बोली- मैं खाना बनाती हूँ. तब तक तुम आराम करो हर्षद.
वो किचन में गयी. उसका किचन वहीं पास में ही था. एक ही बड़े से रूम में सब कुछ सैट किया हुआ था. घर साधारण ही था, लेकिन गाँव की लड़की नीता ने अच्छे से सजाया था.
रूम में ही एक चार फिट की दीवार बनाकर एक बाजू आने जाने को रास्ता कर रखा था और इधर बेडरूम बनाया था.
यहां से किचन पूरा दिखाई देता था.
मेरी नजर नीता पर ही टिकी हुई थी.
काम करते समय गोल मटोल और थोड़ी सी बाहर निकली हुई उसकी गांड ऊपर नीचे हो रही थी. गांड के बीच की दरार भी साफ दिख रही थी.
सीने पर चूचियों के उभार ऊपर नीचे झूल रहे थे.
ये सब देखकर मेरा हाथ अपने आप लंड को सहलाने लगा.
मेरा मन कर रहा था कि अभी के अभी जाकर नीता को रगड़ दूं.
लेकिन मैंने अपने आपको रोक कर रखा था कि ऐसा किया तो नीता क्या सोचेगी.
एक लड़की के अकेली होने का फायदा उठा रहा हूँ.
ऐसा नहीं होना चाहिए.
इतने में नीता ने आवाज लगाई- सो गए क्या हर्षद?
उसने मेरी तरफ देखकर कहा.
मैं अपनी लुंगी में हाथ डालकर लंड सहला रहा था.
वो ये सब देख कर मुस्कुराती हुई बोली- ये क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- कुछ नहीं नीता. बस ऐसे ही बैठा हूँ.
मैं उठकर उसके पास गया और कहा- नीता, अभी और कितना समय लगेगा?
नीता मुस्कुराकर बोली- क्यों अकेले दिल नहीं लग रहा है क्या हर्षद?
मैंने कहा- हां यार नीता.
मैं उसकी चूचियां देखते हुए बोला, तो वो बोली- यहां मेरे पास खड़े रहो और बातें करो. पन्द्रह-बीस मिनट में ही खाना तैयार हो जाएगा हर्षद. तब तक मेरे पास ही रहो हर्षद, मुझे भी अच्छा लगेगा.
मैंने उसके पीछे जाकर उसकी पतली कमर को अपनी बांहों में कस लिया. मेरा सोया लंड उसकी गांड की दरार में चलने लगा.
नीता सिहर कर बोली- ओह हर्षद प्लीज ऐसा मत करो ना. पहले मुझे खाना तो बना लेने दो.
मैंने उसकी गर्दन पर चूमकर कहा- मैं कुछ नहीं करूंगा नीता, बस ऐसे ही खड़ा रहूँगा … तुम अपना काम करती रहो.
नीता मेरा लंड अपनी गांड की दरार में लेकर रगड़ती हुई बोली- तुम बहुत बदमाश हो हर्षद …. ऐसे भी कभी काम होता है क्या?
मैंने कहा- आज मौसम कितना सुहाना है ना … नीता दिल करता है कि तुम्हें ऐसे ही बांहों में कसकर ढेर सारा प्यार तुम पर बरसाऊं.
नीता अपनी गांड हिलाती हुई बोली- अच्छा, तो जो भी करना है, बाद में कर लेना हर्षद. मैं भी चाहती हूँ कि ढेर सारा प्यार तुम पर बरसाऊं. लेकिन खाना खाने के बाद हर्षद. पूरी रात सिर्फ हम दोनों के लिए ही है.
मैंने नीता को छोड़कर कहा- अच्छा बाबा जैसा तुम कहती हो, वो ही सही.
मैंने उसके गाल को चूम लिया तो नीता ने भी मेरे गाल पर अपने गुलाबी और मुलायम होंठ रखकर चूम लिया.
मैं वहां से जाकर दरवाजे में खड़े होकर बारिश देखने लगा.
हल्की सी बारिश चल रही थी. ठंडी हवा भी जोर से चल रही थी.
मैंने टी-शर्ट नहीं पहनी थी, तो मुझे ठंड लग रही थी लेकिन अच्छा लग रहा था.
काफी रोमांटिक माहौल था.
दूर दूर तक कुछ दिखाई नहीं दे रहा था; आस पास एक भी घर नहीं था.
जब बिजली चमकती थी, तब उसके उजाले में ही कुछ दिखता था.
मैं तो पहली बार ये सब अनुभव कर रहा था.
इतने में नीता ने पीछे से आकर मुझे अपनी बांहों में कस लिया और बोली- चलो हर्षद, खाना तैयार हो गया है.
उसकी चूचियां मेरी पीठ पर दब गयी थीं, उसके कठोर निप्पल मेरी पीठ पर चुभ रहे थे.
“चलो ना खाना ठंडा हो जाएगा.”
मैंने मुड़कर कहा- हां चलो.
नीता की चूचियां अब मेरे सीने पर रगड़ने लगीं और नीचे मेरा लंड गाउन के ऊपर से चूत पर रगड़ खा रहा था.
नीता दूर होकर बोली- अब चलो.
नीता ने हम दोनों के लिए खाना लगाया.
हम दोनों ने बातें करते हुए अपना खाना खाकर हाथ धो लिए.
नीता बोली- तुम कुछ देर आराम कर लो हर्षद, मैं बर्तन मांजकर अभी आती हूँ.
मैं कुर्सी लेकर दरवाजे के पास बैठ गया.
हल्की हल्की सी बारिश चल रही थी, साथ में ठंडी हवा भी चल रही थी.
मैंने अपना मोबाईल निकाला और मम्मी को फोन करके बता दिया.
फिर मैं गेम खेलने लगा.
थोड़ी देर में नीता आ गयी और बोली- यहां क्यों बैठे हो हर्षद? चलो बेड पर आराम से बैठते हैं.
दोस्तो इसके आगे की सेक्स कहानी आप दूसरे भाग में जरूर पढ़ें.
अब तक की गाँव की लड़की की सेक्स कहानी आपको कैसी लगी, मेल करना मत भूलें.
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गाँव की लड़की की सेक्स कहानी का अगला भाग:
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