गलतफहमी-14

(Galatfahami- Part 14)

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दोस्तो.. आप अब तक कहानी को धैर्य और उत्साह के साथ पढ़ रहे हैं, और पढ़ ही नहीं रहे हैं बल्कि कमेंट के जरिये मेरा हौसला भी बढ़ा रहे हैं, इसके लिए मैं आप लोगों का शुक्रगुजार हूँ।
अब मिलन और श्रृंगार रस के रसास्वादन का वक्त आने वाला है, जो आपको कामुकता की पराकाष्ठा तक पहुंचायेगा। पर उससे पहले जवानी की दहलीज पर आकर जो हरकतें इंसान करता है, अभी उसका भी आनन्द लेना बाकी है।

कविता को टूर के वक्त जो गलतफहमियाँ हुई थी, उसके लिए पश्चाताप होने लगा और उसने रोहन की याद में खूब आँसू भी बहाए, और रोहन के लिए जो तोहफा (की-रिंग) झांसी में लिया था, उसे जाकर दे दिया। कविता ने सॉरी जैसे छोटे किन्तु कारगर शब्द को भी अपनी गलती के पश्चाताप के लिए तुच्छ समझा, और रोहन को थैंक्स सॉरी जैसे शब्दों से खुश करने की कोई कोशिश नहीं की। कविता जानती थी कि रोहन के उपकारों का बदला कैसे चुकाना है, पर वह सही समय के फिराक में थी।

कविता ने जो की-रिंग रोहन को दिया था, उसमें एक तरफ रोहन-कविता लिखा था और दूसरी ओर आई लव यू। इसलिए इस की-रिंग को देखकर, रोहन के लिए कविता के मन की बात को समझना मुश्किल ना था। पर जवाब के इंतजार में कविता की व्याकुलता आसमान छू रही थी। कविता तो उससे उसी दिन जवाब पाना चाहती थी जब वो छोटी को लाने फिर उसके घर गई थी। पर उस वक्त रोहन घर पर नहीं था। और अब रोहन की दी हुई ब्रेसलेट कविता के लिए रोहन का प्रतिरूप बन गई थी।

चार दिन बाद कविता का इंतजार खत्म हुआ, रोहन अपनी बहन को छोड़ने हमारे घर आया। उस समय मैं अपने कमरे में रोहन को ही याद करते हुए ब्रेसलेट से बातें कर रही थी- रोहन तुम कब आओगे.. मेरे दिल की बेचैनी की आहट तुम तक नहीं पहुंचती है क्या..?
और तभी उसकी आहट मिली, शायद मेरी आत्मा की पुकार उस तक पहुंच गई थी, मैं दौड़ कर कमरे से बाहर निकली, तेज सांसों की वजह से मेरा सीना ज्वार भाटे की तरह उठ बैठ रहा था। मैंने अब भी हाथों में ब्रेसलेट पकड़ रखा था, मुक्ता छोटी के पास बरामदे में चले गई, और रोहन दरवाजे पर ही खड़ा रहा.

मैं अकारण ही शर्माने लगी, पर मैं तो शर्मीली लड़की नहीं थी, फिर मुझे शर्म क्यों आने लगी?

मैंने बड़े ही प्यार से रोहन से अंदर आने का आग्रह किया, पर उसने मना किया और सबसे नजर बचा कर उसने मुझे एक छोटा सा कागज पकड़ा दिया, मैंने उसे ब्रेसलेट दिखाया और एक बार चूम भी लिया।
उसकी शर्म भरी मुस्कुराहट मेरी नजरों में कैद हो गई।
शायद मैंने अपनी सभी गलतियों के लिए सॉरी कह दिया था और उसने भी मुझे माफ कर दिया था।

वो जाने लगा.. मन तो किया कि उससे लिपट जाऊं और उसे रोक लूं। पर ये सब संभव ना था, और मुझे उसकी पर्ची भी तो पढ़नी थी, सो मैंने उसे नजर के ओझल होते तक देखा वह भी मुड़-मुड़ कर देखता रहा।

फिर मैं दौड़ कर अपने कमरे में आई और उस पर्ची को खोल कर देखा, उसमें केवल दो शब्द लिखे जो किसी मंत्र या सिद्धि शब्द से कम ना थे, मैं खुशी के मारे झूम उठी, उन दो शब्दों को मैंने दिनभर में कम से कम दो सौ बार पढ़ा होगा, उसमें लिखा था ‘कल आना’
कहाँ आना, क्यों आना, कैसे आना, किसके साथ आना..?? ये सब ना उसने लिखा, और ना ही मुझे लगा कि उसे लिखना था..! क्योंकि उसने अपना काम कर दिया था, बाकी का काम मुझे करना था।

अब मैंने खुद की धड़कनों पर काबू किया और बरामदे में छोटी और मुक्ता के पास जा बैठी, मेरी मुस्कुराहट उन लोगों से भी ना छिप सकी, तो उन्होंने मुझसे पूछ ही लिया- दीदी क्या बात है आप बहुत मुस्कुरा रही हो?
तो मुझे चोरी पकड़े जैसा अहसास हुआ। फिर मैंने सम्हलते हुए उनको टाल दिया। कुछ देर इधर-उधर की बातें करते हुए मैंने बहाने से कहा- छोटी कल तुम्हें मुक्ता के घर जाना है क्या, मैं छोड़ दूंगी। तो मुक्ता ने कहा- दीदी, कल तो मैं सुबह से ही बाहर जा रही हूँ।
मुझे अपनी प्लानिंग चौपट होते नजर आई.
मैंने फिर पूछा- कहाँ जा रही हो? कौन-कौन जाओगे?

तो उसने बताया कि एक रिश्तेदार के घर शादी में जाना है.. हम सब जा रहे हैं।
अब तो मेरे होश उड़ गये, कल तो रोहन ने मुझे बुलाया है पर वो तो बाहर जा रहा है।

मैं उदास और गुस्सा होकर फिर अपने कमरे में आ गई, लेकिन मेरे से नहीं रहा गया, और मैंने जाकर मुक्ता से सीधे पूछा- रोहन भी जा रहा है क्या?
तो मुक्ता ने कहा- नहीं दीदी, वो सगाई के समय गया था, तो अभी नहीं जा रहा है।
मेरी जान में जान आई पर मैं ना चाहते हुए भी मुक्ता पर चिल्ला उठी- गधी कहीं की… ‘सब जा रहे हैं’ का मतलब नहीं समझती क्या?
और उनके चेहरे देखे बिना ही अपने कमरे में आ गई।

अब तो मेरे लिए दोहरी खुशी का मौका था, पहले तो ये कि रोहन से मिलना है, और दूसरी बात यह कि उससे अकेले में मिलना है। मैं तो मुलाकात के बारे में सोच कर अकेले में भी शर्माने लगी। मुझे रोहन पर बड़ा प्यार आ रहा था क्योंकि उसने अकेले मिलने का मौका निकाला था।

और कुछ देर बाद ही रोहन उसे लेने आ गया, मैंने उसे कातिल मुस्कुराहट के साथ देखा, लेकिन उसके साथ मुक्ता थी तो उसने अपने आव-भाव सामान्य ही रखे और आँखों से ही बात करके वापस चला गया।

उसके जाने के बाद मैं उसके ही ख्वाबों में खोने लगी, और फिर जब मेरी सोच गहराती गई तो मेरी योनि भी पनियाती गई। लेकिन मैंने रात तक सब्र कर लिया और रात को अपनी चूत और मन को खुद से ही शांत किया।

दूसरे दिन सुबह के छ: बजे मैं अंगड़ाई लेते हुए उठी.. मुस्कुराई.. फिर हड़बड़ाने लगी, मुझे लगा कि मैं बहुत देर से उठी हूँ। वैसे मैं रोज इसी समय उठती थी, पर आज का दिन मेरे लिए विशेष था, इसलिए मैं आज जल्दी उठना चाहती थी, पर रात को मैं ख्वाबों में ही सही पर रोहन की बाहों में सोई थी, और उसकी बाहों में मुझे बहुत ज्यादा सुकून मिल रहा था तो सुबह उठने में देर हो गई।
मैंने उठकर सबसे पहला काम उस ब्रेसलेट को चूमने और गुडमार्निंग करने का किया। फिर जब मैं अपने नित्यकर्म निपटा कर नहाने गई, तो नहाते वक्त मेरे हाथों ने तन पर को स्वतः ही सहलाना शुरू कर दिया। और अपने हर अंग को मैं साफ और सुगंधित बनाने का प्रयास करने लगी।

रोहन चाहे जैसा भी दिखता रहा हो, पर मेरे लिए तो वो मेरे दिल का राजकुमार ही था। और मैं अपने राजकुमार की खिदमत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। मैं नहा कर अपने कमरे में आई, और कपड़े पहनने से पहले आईने के सामने बिना कपड़ों के खड़े होकर खुद को निहारने लगी.
मेरा हर अंग चमक रहा था और छूने पर मखमली अहसास करा रहा था, ऐसी हालत में मैंने अपने आप को कई बार आईने के सामने देखा था, पर आज मैं रोहन के लिए तैयार हो रही थी, इसलिए मेरे चेहरे की हल्की मुस्कुराहट और शर्म ने मेरी खूबसूरती में चार चांद लगा दिए थे।

अब मेरे सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि मैं कैसे कपड़े पहन कर रोहन के सामने जाऊं??
फिर मेरे मन में बात आई कि मैंने जिस जगह पे बात अधूरी छोड़ी थी, आज वहीं से नई शुरुआत की जाए..! मतलब मैं अपने टूर में रोहन को चांटा मारते वक्त जो कपड़े पहने थी, वही कपड़े पहन कर उसके पास जाने की सोचने लगी।

अब मैंने अपने अलमारी से कपड़े निकाल कर बिस्तर पर रखे, और उन्हें गौर से देखने लगी, असल में मेरे मन में था कि इन कपड़ों की वजह से मेरे अंदर अहंकार ने प्रवेश किया था, तो आज इन कपड़ो को मैं रोहन के सामने अपने तन से उतार कर उस अहंकार को भी रोहन के सामने ही तोड़ दूंगी, जिसकी वजह से रोहन और मेरे बीच दूरी आई थी।

अभी मेरे चेहरे पर दृढ़ निश्चय का भाव था, और मैंने वही ब्रा वही पेंटी और वही काली टॉप और काली जींस पहनी जो टूर के वक्त पहने थे। वो कपड़े अब पुराने तो हो ही चुके थे और साथ ही वह और तंग होने लगे थे। उन कपड़ों में आज मैं पहले से ज्यादा कामुक और हसीन लग रही थी, मेरे उभार स्पष्ट समझ आ रहे थे, और ज्यादा नुकीले और बड़े नजर आ रहे थे, पेट अंदर सुडौल कमर नितंभ थोड़े उभरे हुए, और चिपके हुए जींस में खूबसूरत लंबी टांगों का पूरी तरह बखान कर पाना कठिन ही है, बाल बिखरे हुए ही थे, और आज मैंने पांच इंच हिल वाली सैंडल पहन रखी थी। और अब मैं अपने साथ एक पर्स भी रखा करती थी, मैंने याद से ब्रसलेट को पहना और निकलने लगी।

मेरे निकलने के ठीक पहले ही माँ ने कहा- इतना तैयार होकर कहाँ जा रही है?
पर मैंने तो बहाना पहले ही सोच रखा था, मैंने तुरंत कहा- प्रेरणा की दीदी का जन्मदिन है, वहीं जा रही हूँ।
माँ ने बात झट से पकड़ ली- जन्मदिन..?? जन्मदिन तो शाम को मनाते हैं, फिर तू इतनी सुबह से जाके क्या करेगी।
अब मैं हड़बड़ा गई- माँ व्व्व्वो उसके घर पर पूजा भी है ना, तो मुझे अभी से बुलाया है।
माँ ने अच्छा कहते हुए सर हिलाया फिर कहा- सुबह बुलाया है तो दस, ग्यारह बजे तक चली जाना, घड़ी देख अभी आठ ही बजे हैं। इतनी सुबह कोई पूजा नहीं करवाता। अब चल सैंडल निकाल के आ जा, मेरे पास काम में हाथ बंटा..

अब मेरे पास कहने को कुछ ना था, और सच तो यह है कि मैं सुबह आठ बजे ही तैयार हो जाऊंगी ऐसा मैंने खुद नहीं सोचा था।
मैंने माँ की बात यंत्रवत मानी और माँ के साथ काम करने लगी.

मेरा ध्यान रोहन की ही तरफ था और काम की वजह से पसीने आ रहे थे, और पसीने की वजह से मेरा मेकअप खराब होने लगा। मैंने सोचा कि जाने से पहले फिर से तैयार हो लूंगी और बिंदास होकर काम में लग गई।

काम के वक्त किचन में सिर्फ माँ और मैं थे, तो मैंने माँ से कुछ इधर-उधर की बातों के बात यौवन का ज्ञान पाने की सोची, और बातों को घूमा कर पूछने लगी- माँ एक बात पूछूं?
माँ ने कहा- हाँ पूछ ना!
‘माँ बड़ी दीदी बता रही थी कि उनके कोर्स में मादा जननांग का रेखाचित्र बनाने का प्रश्न आता है। माँ ये जननांग क्या होता है?’
हालांकि मुझे इस मामले में थोड़ी जानकारी थी, पर मैं बातों को और अच्छे हे समझना चाहती थी।

उस समय माँ रोटी बेल रही थी, और मेरा सवाल सुनते ही उसके हाथ कुछ पल के लिए रुक गये, उसने कुछ सोचते हुए मेरा चेहरा देखा, और फिर रोटी बेलते हुए कहा- जहाँ से बच्चा पैदा होता है उसे ही जननांग कहते हैं!
मैंने फिर कहा- और बच्चा कहाँ से पैदा होता है?
माँ ने कहा- जहाँ से हम यूरीन करते हैं!
मैंने मुंह पकड़ते हुए कहा- हाय राम… मतलब हमें उस जगह की चित्र बनानी पड़ती है। अगर ऐसा है तो फिर मैं कभी बायोलाजी विषय लेकर पढ़ाई नहीं करुंगी।

माँ ने हारकर कहा.. ऐसा नहीं है बेटी, विज्ञान में दिमाग का खुला होना आवश्यक है, इन बातों का क्रमिक ज्ञान ही इंसान को आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करता है, और विज्ञान में सभी चीजों के लिए अपनी एक अलग भाषा है, जिसे जानने के बाद पढ़ाई करना या उस पर चर्चा करना आसान हो जाता है।

फिर मैंने कहा- तो उस जननांग को विज्ञान की भाषा में क्या कहते हैं, और वहाँ से बच्चा कैसे पैदा होता है?
तब माँ ने लंबी सांस लेते हुए कहा- तू अब बिना जाने मानेगी नहीं, अब ध्यान से सुन, मैं तुम्हें समझाती हूँ। वैसे ज्यादा पढ़ी लिखी तो मैं भी नहीं हूँ, पर मैं तुम्हें अपने अनुभव से इकट्ठी की गई जानकारी बताती हूँ।

सबसे पहले तुम्हें प्रकृति को जानना होगा। जन्म, जीवन, मृत्यु ये तीनों शब्द में ही दुनिया सिमटी हुई है, मृत्यु सबसे आसान है, जीवन सबसे कठिन, पर जन्म केवल ईश्वर के हाथों में होता है।
वैसे तो आत्मा जन्म और मृत्यु से परे होता है, फिर आत्मा के शरीर में आने और शरीर को त्यागने को ही हम जन्म मृत्यु कहते हैं। ईश्वर ने जन्म देने वाली क्रिया के लिए मातृ शक्ति का चयन किया है। अर्थात हम महिलायें सीधे तौर पर ईश्वर का काम करती हैं। किन्तु हम भी मानव ही हैं, और मानव में अंहकार का दुर्गण भी स्वाभाविक रुप से रहता है इसीलिए भगवान ने हमारे अहंकार को तोड़ने के लिए यह तय किया है कि हम अकेली ही सृजन कर्ता नहीं बन सकती। हमें किसी पुरुष की आवश्यकता अनिवार्य रूप से होती है। भले ही आज कल टेस्ट ट्यूब बेबी जैसी चीजों का चलन आ गया है, पर ये सभी कुदरती नियम के विपरीत हैं।
नर और मादा के मिलन या सहवास की क्रिया के फलस्वरूप ही किसी का जन्म होता है। जन्म की इस प्रक्रिया को भी चरण बद्ध तरीके से बांधा गया है, यह वरदान वयस्क लोगों को ही प्राप्त हुआ है। बचपने या वृद्धावस्था में संतान को जन्म देना संभव नहीं है, कुछ अपवाद स्वरूप बातें सामने आते रहती हैं उन्हें छोड़ दें तो कुदरत के अपने अलग ही नियम होते हैं। जब किसी लड़की का जन्म होता है तब उसे पता भी नहीं होता कि एक दिन वो भी किसी को जन्म देगी, फिर वो अपने बचपन की अल्हड़ता में खोये हुए बढ़ने लगती है, और एक दिन उसे मासिक धर्म आने लगता है, मासिक धर्म का मतलब है कि महिला के अंडे का परिपक्व होना, किसी महिला के अंदर लाखों अंडे पहले से मौजूद होते हैं, और उनमें से हर महीने एक अंडा परिपक्व होकर निषेचन के लिए तैयार होता है, और जब उनका निषेचन नहीं होता तो वह फूट कर खराब रक्त के रूप में हमारी वेजाईना (योनि) से बाहर निकल जाता है।

ऐसे ही पुरुष के शरीर में शुक्राणु होते हैं, जो एक विशेष अवस्था और शरीर के विशेष हिस्से पेनिस (लिंग) से बाहर आते हैं। महिला पुरुष का संभोग क्रिया स्वाभाविक कुदरती प्रक्रिया होती है। जिससे संतान उत्पत्ति होती है। इस दौरान शरीर की उत्तेजना और विपरीत लिंग के प्रति आकर्षक चरम में होता है। कुछ लोग इसे आनन्द प्राप्ति का जरिया भी बना लेते हैं। तो कुछ लोग इसे प्रेम का मार्ग समझते हैं। वैसे भगवान ने हमें जैसा बनाया है उस हिसाब से एक सुखी जीवन के लिए सही समय में सहवास का होते रहना भी आवश्यक ही है। जब पुरुष और महिला संसर्ग करते हैं उस वक्त पुरुष महिला की वेजाईना में पेनिस डालकर घर्षण करता है, तब अपनी उत्तेजना के चरम पहुंच कर वह स्पर्म का त्याग वेजाईना के भीतर ही कर देता है। और औरत के भीतर का अंडाणु उस शुक्राणु के साथ निषेचित होकर संतान को उत्पन्न करता है।
हर बार अंडाणु और शुक्राणु संपर्क में आ जाये ऐसा संभव भी नहीं होता, कभी-कभी एक संबंध ही किसी को गर्भ ठहरा देता है, तो कभी-कभी सालों लग जाते हैं। और संपर्क होने के बाद भी माँ संतान को नौ महीने कोख में रखती है, और असहनीय पीड़ा को सह कर बच्चे को जन्म देती है।
माँ के लिए ये पल कैसा होता है वह माँ ही जान सकती है, उसे चाहे कितनी भी पीड़ा क्यों ना हो वो अपने स्वस्थ बच्चे को देखकर जीवन के सबसे सुखद अहसास का अनुभव करती है।

ये बताते हुए माँ की आँखों में आँसू आ गये थे, मैंने माँ को गले लगाया और ‘आई लव यू माँ’ कहा.
उसने मेरा माथा चूमा और कहा- यह बहुत लंबा विषय है, इसके बारे में जितना बताऊंगी उतना कम है, अभी तो मैंने तुम्हें तुम्हारी उम्र के हिसाब से मोटी-मोटी बात ही बताई हैं। और तुझे भी तो प्रेरणा के यहाँ जाना है ना, देख ग्यारह बज रहे हैं।

अब मुझे समय का ध्यान आया मैं ‘ओह.. माई गॉड…’ कहते हुए अपने रूम की ओर दौड़ पड़ी और अपना बैग उठा कर सायकल से रोहन के घर पहुंच गई।

मैं अभी काम के कारण अस्त व्यस्त सी थी। पर मेरे पास तैयार होने का वक्त ही नहीं था।

मैंने सायकिल साईड में रखी और मैं दरवाजे के सामने पहुंच कर जैसे ही दरवाजा खटखटाने वाली थी उससे पहले ही दरवाजा खुल गया और रोहन ने वेलकम कह कर मेरा स्वागत किया।
मैंने उस चौखट को सैकड़ों बार पार किया था पर आज मन में एक अलग ही अहसास हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे मैं एक दुनिया से दूसरी दुनिया में कदम रखने जा रही हूँ।

मैं उसके घर के भीतर चार कदम चलकर रुक गई, रोहन ने दरवाजा बंद कर दिया, और पलट कर मेरा हाथ पकड़ते हुए सिर्फ कविता ही कह पाया था.. और मैं उससे जा लिपटी और ताबड़तोड़ चुम्बनों की झड़ी लगा दी, उसका भी साथ मिल रहा था, पर उसकी झिझक स्पष्ट समझ आ रही थी।

मैंने उससे चिपके हुए ही, अपना बैग नीचे गिरा दिया और उससे जोरों से चिपक गई, मेरी आंखों से आँसू झर रहे थे, यही हाल उसका भी था, हम एक दूसरे को बेचैन होकर सहला रहे थे, चिपक रहे थे, चूम रहे थे, सांसें तेज हो रही थी, धड़कनों पर काबू करना मुश्किल हो रहा था, पर हमें अभी सिर्फ एक ही बात सूझ रही थी, और वो ये है कि हम दोनों कैसे भी करके एक दूसरे में समा जायें।
लगभग दस मिनट बाद हम थोड़े से सामान्य होने लगे, पर दूर नहीं हुए एक दूसरे से चिपके हुए ही थोड़ा घसीटते हुए हम बिस्तर तक आये और लिपटे हुए ही गिर पड़े. मेरे उभार उसके सीने में गड़े हुए थे, उसके हाथ मेरे पीठ को सहला रहे थे। वो नीचे था, मैं ऊपर थी और हम ऐसे ही लेटे रहे, और फिर उसका सीना सहलाते हुए मैंने अपनी चुप्पी तोड़ी.. रोहन आई लव यू.. तुम बहुत अच्छे हो..!

कहानी जारी रहेगी..
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