कॉलेज में पहला पहला प्यार- 1
(First Time Love Story)
फर्स्ट टाइम लव स्टोरी मेरी कॉलेज लाइफ की है. मेरे कुछ दोस्त बने. उनमें मेरी क्लास की एक लड़की भी थी. वो मुझे अच्छी लगती थी. आगे क्या हुआ?
दोस्तो, यह कहानी मेरे साथ हुई सच्ची घटनाओं पर आधारित है। कहानी थोड़ी लंबी है क्योंकि यह कहानी मेरी कॉलेज लाइफ के 3 साल के अनुभवों की है।
फर्स्ट टाइम लव स्टोरी को मनोरंजक बनाए रखने के लिए कल्पनाओं का इस्तेमाल भी किया गया है।
चलिए शुरू करते हैं.
मेरा नाम विशाल सिंह है, मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूं और एक मध्यमवर्गीय परिवार से आता हूं।
कसरती बदन है मेरा … दिखने में भी मैं ठीक-ठाक हूं।
यह बात 2016 से शुरू होती है जब मैंने अपनी 12वीं की परीक्षा पास की और मुझे आगे की पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय में एडमिशन लेना था।
पढ़ाई लिखाई में सामान्य से अच्छा छात्र हूं. इसी के चलते मेरे 12वीं के बोर्ड में अच्छे नंबर आए और मुझे दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला मिला।
मेरा दाखिला एक प्रतिष्ठित कॉलेजों के साइकॉलजी डिपार्टमेंट में हो चुका था हालांकि दाखिला चौथी कटऑफ में हुआ।
तीसरी कटऑफ के बाद क्लास लगनी शुरू हो चुकी थी क्योंकि मेरा दाखिला चौथी कटऑफ में हुआ तो मैंने कुछ क्लास मिस कर दी।
कॉलेज का पहला दिन था यहां मेरी मुलाकात राहुल नाम के लड़के से हुई।
राहुल का दाखिला पहली कटऑफ में हो चुका था।
फिर मेरी मुलाकात संजना नाम की एक लड़की से हुई जो कि हमारी ही कक्षा में पढ़ती थी।
कुछ ही दिनों में हम तीनों अच्छे दोस्त बन गए थे।
राहुल एक बिजनेस फैमिली से आता है और दिखने में काफी हैंडसम भी है।
संजना भी एक अच्छे परिवार से आती है और संजना के माता-पिता सरकारी अधिकारी हैं।
मेरी क्लास में 30 छात्र थे जिनमें से 23 लड़कियां और 7 लड़के थे।
आप सभी को हैरानी होगी कि लड़कियों की संख्या ज्यादा और लड़कों की संख्या कम, दरअसल बात यह है कि साइकॉलजी सब्जेक्ट मैं लड़कियों की रूचि अधिक होती है इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि दिल्ली में लगभग 10 कॉलेज ऐसे हैं जो साइकॉलजी पढ़ाते हैं लेकिन उन 10 में से सिर्फ 4 या 5 कॉलेज ऐसे हैं जो लड़कों के लिए हैं बाकी सभी ओन्ली फॉर गर्ल्स कॉलेज हैं।
दिन बीतते गए और हम तीनों की दोस्ती और भी गहरी होती रही.
इसी दौरान मुझे पता चला कि राहुल और संजना एक दूसरे को चाहने लगे हैं।
मुझे यह समझते देर नहीं लगी।
अब राहुल और संजना कॉलेज बंक करके एक दूसरे के साथ घूमने जाने लगे.
कभी फिल्म देखने, कभी किसी पार्क में और कभी सिर्फ यूं ही इधर-उधर!
जब राहुल और संजना एक दूसरे के साथ घूमने जाते तो मैं कॉलेज में अकेला हो जाता।
मेरा ध्यान इस बात पर गया ही नहीं कि मेरे क्लास में और भी छात्र हैं जिनसे दोस्ती की जा सकती है।
इसी दौरान मेरी दोस्ती मेरी क्लास में पढ़ने वाली आकांक्षा नाम की लड़की से हुई।
दोस्तो, सभी लड़कियां खूबसूरत होती हैं कोई अपने स्वभाव से खूबसूरत होती है, कोई अपने दिमाग से खूबसूरत होती है, कोई अपनी बातों से खूबसूरत होती है.
और हां शारीरिक आकर्षण से भी लड़कियां खूबसूरत होती हैं जिसे हम सभी अक्सर सराहते हैं.
लेकिन सिर्फ खूबसूरती शारीरिक आकर्षण तक ही सीमित नहीं होती।
आकांक्षा सभी पैमानों में खूबसूरत थी.
या फिर यूं कहूं कि वह हमारी क्लास की सबसे खूबसूरत लड़की थी और मेरा उसकी तरफ आकर्षित होना स्वभाविक ही था।
अब आकांक्षा, राहुल, संजना और मेरा एक ग्रुप बन चुका था.
हम सभी एक साथ बैठते, एक साथ पढ़ाई करते एक साथ खाना खाते और एक साथ बाहर घूमने भी जाते थे.
लेकिन राहुल और संजना एक दूसरे में ही मगन रहते।
वे ज्यादा ही रोमांटिक हो जाते थे और आकांक्षा और मैं थोड़े शर्मा भी जाते थे जब वे एक दूसरे के साथ ऐसी हरकतें करते थे।
कॉलेज शुरू हुए लगभग 2 महीने बीत चुके थे.
इसी दौरान हमारे सीनियर्स ने हम जूनियर्स के लिए एक फ्रेशर पार्टी अरेंज की।
हम सभी पार्टी में आए.
सभी ने खूब मस्ती की नाचे कूदे.
लेकिन यह सामान्य सी बात है।
उस पार्टी में जो असामान्य घटना हुई थी.
वह यह थी कि उस दिन आकांक्षा एक काले रंग की साड़ी पहन कर आई थी जिसमें वह बहुत ही खूबसूरत और आकर्षक लग रही थी.
हम सभी लड़के उसी को घूरे जा रहे थे.
और शायद उसे भी इस बात का आभास हो चुका था।
राहुल और संजना एक दूसरे में मग्न थे, तभी आकांक्षा मेरे पास में आकर बैठी।
आकांक्षा- सुनो, कैसी दिख रही हूं मैं?
उसने शर्माते हुए मुझसे पूछा।
मैं- सभी लड़के तुम्हें ही देख रहे हैं. शायद इस बात से अंदाजा हो जाना चाहिए था कि तुम कैसी लग रही हो।
आकांक्षा मुस्कुराते हुए बोली- अरे बुद्धू! तुम बताओ ना तुम्हें कैसी लग रही हूं?
मैंने अपने हाथ से इशारा करते हुए कहा- बहुत ही खूबसूरत किसी की नजर ना लगे।
वह थोड़ा शर्मा गई।
आकांक्षा- क्या आज तुम मुझे मेरे घर तक छोड़ सकते हो?
मैं- हां बिल्कुल छोड़ सकता हूं … लेकिन क्या हुआ?
आकांक्षा- आते वक्त तो पापा ने छोड़ दिया था अब जाते वक्त मुझे इस साड़ी में थोड़ी तकलीफ होगी तो इसीलिए पूछ रही थी।
मैं- ठीक है छोड़ दूंगा।
अब फ्रेशर पार्टी में से जाने की बारी आई।
मैंने एक कैब बुक कर ली थी।
आकांक्षा और मैंने राहुल और संजना से विदा ली और कैब में बैठ गए।
तब आकांक्षा बोली- वैसे तुम भी आज बहुत अच्छी दिख रहे हो।
मैं- हा हा हा … मैं तो रोज ही अच्छा दिखता हूं।
आकांक्षा मेरे कंधे पर चपत लगाते हुए- अपने मियां मिट्ठू!
फिर वो बोली- अच्छा एक बात बताओ, संजना और राहुल कितने समय से रिलेशनशिप में हैं?
मैं- यही कोई ताजा ताजा एक महीना! पर तुम यह सब क्यों पूछ रही हो?
आकांक्षा- बस यूं ही क्यूट लगते हैं दोनों एक साथ!
उसने पूछा- तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है?
मैं- नहीं यार!
उदासी भरा मुंह बनाते हुए!
आकांक्षा- आज तो पार्टी में भी सभी लड़कियां बहुत सुंदर लग रही थी तो उनमें से कोई पसंद आई?
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- मुझे तो सभी लड़कियां पसंद आई और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा और तुम भी!
आकांक्षा खिजयाते हुए बोली- बस फ्लर्ट करवा लो तुमसे!
ऐसे ही बातचीत और नोकझोंक करते हुए आकांक्षा का घर आ चुका था।
उसने मुझे अंदर आने के लिए आग्रह किया और मैं अंदर चला गया।
आकांक्षा भी एक अमीर घराने की लड़की थी आकांक्षा की मां की मृत्यु उसके बचपन में ही हो गई थी और वह अपने पिता के साथ अकेली रहती थी।
आकांशा- बताओ क्या पियोगे ठंडा या गर्म?
मैं- गर्म की इच्छा तो बिल्कुल नहीं है, ठंडा पानी पिला दो।
आकांक्षा मेरे लिए ठंडा पानी लेकर आई।
मैंने ठंडा पानी पीकर उससे चलने के लिए विदा ली।
आकांक्षा और मैं अगले दिन कॉलेज में मिले आज राहुल और संजना फिर बंक पर थे।
आकांक्षा- विशाल? क्या आज हम भी बंक पर चलें?
मैं- चल तो सकते हैं लेकिन कहां?
आकांक्षा- कहीं भी।
मैं- पुराना किला घूमने चलें?
आकांक्षा- हां ठीक है. मैंने भी नहीं देखा पुराना किला।
हम मेट्रो से पुराना किला जाने लगे।
हालांकि मेट्रो में रोज ही भीड़ होती है लेकिन आज तो और भी ज्यादा भीड़ थी।
आकांक्षा और मैं किसी तरह मेट्रो में चढ़ गए हम दोनों एक दूसरे से सट कर खड़े हुए थे।
आज मुझे अहसास हुआ कि आकांक्षा का कद मुझसे सिर्फ 2 इंच छोटा है।
उसकी दाई आंख के ऊपर एक छोटा सा कट का निशान है।
एक बालों का गुच्छा उसके गालों से टकराकर उसे परेशान कर रहा था लेकिन भीड़ की वजह से वह हिल भी नहीं पा रही थी।
मैंने समझते हुए उसके बालों के गुच्छे को उसके कान के पीछे लगा दिया।
मेरी इस हरकत से शायद वो थोड़ा शर्मा गई जिसकी वजह से उसने अपनी गर्दन और आंखें झुका ली।
उसका सुंदर बदन (30–26–30) मुझसे चिपका हुआ था जिसकी वजह से मेरा उत्तेजित होना स्वाभाविक था।
मेरे लन्ड में हरकत होने लगी थी।
मैं नहीं चाहता था कि आकांक्षा को इसकी भनक हो और मैं ध्यान भटकानेके लिए इधर उधर की बातें करने लगा।
हम पुराना किला पहुंच चुके थे।
दो-तीन घंटे सभी जगह घूमने के बाद आकांक्षा थोड़ा थक गई थी।
हमने पेड़ के नीचे एक बेंच पर शरण ली।
वह मेरे कंधे पर सर टिकाकर शायद सो गई थी मैंने भी उसको परेशान ना करते हुए अपने कानों में हैंडफ्री लगाकर गाने सुनने लगा।
करीब 1 घंटे बाद जब उसकी नींद खुली तो उसकी आंखों के किनारों पर हल्के हल्के आंसू थे।
मैं गाने सुनने में इतना मगन था कि मैं यह देख नहीं पाया।
मैं- अरे तुम रो रही हो?
आकांक्षा- न न न नहीं तो!
वो सकपकाकर बोली।
मैं- तो फिर ये आंसू?
आकांक्षा मौन रही।
मैं- बताओ तो क्या बात है?
आकांक्षा- कुछ नहीं, बस आज मां की बहुत याद आ रही है।
मैं कुछ नहीं बोला और प्यार से उसका हाथ पकड़ लिया आकांक्षा ने फिर से मेरे कंधे पर अपना सर रख दिया और हम ऐसे ही कुछ देर बैठे रहे।
आकांक्षा- बहुत देर हो गई है, अब हमें चलना चाहिए।
मैं- हां ठीक है चलो चलते हैं।
हम मेट्रो से घर वापस जाने लगे और मैंने आकांक्षा को उसके घर वाले मेट्रो स्टेशन तक छोड़ा।
आज पहली बार हुआ था कि आकांक्षा ने मुझे विदा करते वक्त गले लगा लिया।
मैं घर पहुंच चुका था।
रात के करीब 10-00 बजे आकांक्षा का मुझे मैसेज आया- थैंक यू सो मच!
मैं- अरे बाबा किसलिए?
आकांक्षा- आज मुझे बहुत दिनों के बाद अच्छा लगा और तुम बहुत प्यारे हो।
वैसे तो मैं आकांक्षा के साथ फ्लर्ट कर लेता था लेकिन आकांक्षा के इस जवाब पर मुझसे कोई जवाब ही ना बन पाया।
आकांक्षा- कहां गए?
मैं- कुछ नहीं, आज मुझे भी अपने घर की याद आ रही है।
आकांक्षा- तो फोन पर बात कर लो।
मैं- हां कर लूंगा।
आकांक्षा- चलो ठीक है कल मिलते हैं।
इतना कहकर आकांक्षा सोने चली गई और मैं भी अपने घर पर फोन करके सो गया।
आकांक्षा और मैं अब बहुत करीब आ गए थे वह मुझे अपने बचपन की सारी बात बता चुकी थी और अपनी सारी बातें मुझसे बेझिझक शेयर कर लिया करती थी।
मुझे आकांक्षा की बातों से यह अहसास तो हो चला था कि आकांक्षा अपने जीवन में बहुत अकेली है और शायद इसका कोई दोस्त भी नहीं था।
मैं शायद अब आकांक्षा को चाहने लगा था और मुझे यह भी अहसास था कि आकांक्षा के दिल में मेरे लिए भी प्यार है लेकिन हम दोनों ही एक दूसरे से कह नहीं पा रहे थे।
हम दोनों एक दूसरे की परवाह करने लगे।
वह मेरे लिए खाना बना कर लाया करती थी हम दोनों घूमने जाया करते थे।
संजना और राहुल को यह लगने लगा था कि हम दोनों भी रिलेशनशिप में है।
एक दिन संजना ने मुझसे पूछ ही लिया- क्या तुम दोनों रिलेशनशिप में हो?
जिस पर मैंने हड़बड़ा कर कहा- अरे नहीं, नहीं तो, हम तो सिर्फ अच्छे दोस्त हैं!
संजना- हम्म्म अच्छे दोस्त … सब समझती हूं मैं!
मैं- ऐसा कुछ भी नहीं है, अपना ज्यादा दिमाग मत लगाओ।
संजना- विशाल मैं भी एक साइकॉलजी स्टूडेंट हूं और मुझे भी सब कुछ दिखाई दे रहा है।
उसने मेरी तरफ आंख मारते हुए कहा।
मुझे लगा कि मेरी चोरी पकड़ी गई।
संजना ने जोर लगाना शुरू कर दिया और वह मेरे पीछे पड़ गई कि मैं अपने मुंह से सब उगल दूं और मुझे हार मानकर सब कुछ बोलना ही पड़ा।
मैंने संजना के सामने कबूल लिया था कि मैं भी आकांक्षा को चाहने लगा हूं लेकिन मैंने संजना से यह भी कहा कि वह इस बारे में आकांक्षा को कुछ ना बताए नहीं तो उसे बहुत बुरा लगेगा।
संजना- अरे बुरा क्यों लगेगा? मुझे तो यह भी लगता है कि वह भी तुम्हें चाहने लगी है उसकी हरकतों से साफ नजर आता है।
दोस्तो, मैं आपको बता दूं कि जब यू.पी. में कोई लड़का जवान हो रहा होता है तो उसे हर चीज का ज्ञान हो जाता है बस उसे आज तक अपने प्यार का इजहार करना नहीं आया।
मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही था ना तो मुझे अपनी फीलिंग के बारे में कुछ समझ आ रहा था और ना ही आकांक्षा के बारे में कुछ समझ में आ रहा था।
लेकिन इतना तो मुझे पक्का पता था कि आकांक्षा मुझे अब अच्छी लगने लगी थी।
संजना- तो मैं पता करूं फिर आकांक्षा के मन में है?
मैं- अरे नहीं उसे बुरा लगेगा।
संजना- तुम फिकर मत करो, तुम्हारा नाम नहीं आएगा।
मैं- ठीक है फिर!
अगले भाग में यह रोमांस आगे बढेगा.
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फर्स्ट टाइम लव स्टोरी का अगला भाग: कॉलेज में पहला पहला प्यार- 2
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