टेनिस टूरनामेन्ट

(Tennis Tournament )

नमस्कार मेरे प्यारे पाठको!
मैं एक बार फ़िर से हाज़िर हूं अपनी कहानी का अगला भाग लेकर।

आपने मेरी पिछली कहानियाँ
टीचर्स डे और ऐन्नुअल डे
तो पढ़ी होंगी। आप वरुण और मुझ से तो वाकिफ़ ही होंगे। यह कहानी ठीक वहीं से शुरू है जहां ‘ऐन्नुअल डे’ खत्म हुई थी।

सभी कहानियों में यह कहानी मेरे दिल के सबसे करीब है। कई बार इस कहानी को लिखते वक्त मुझे शब्दों की कमी महसूस हुई, अपने मन के भावों को शब्दों में ढालना सचमुच एक कठिन कार्य है, फ़िर भी मैंने अपनी पूरी कोशिश की है।

अगर आपका प्यार इसी तरह बना रहा तो मैं अन्तर्वासना के माध्यम से आपको अपनी कहानी के अगले भाग भी पहुंचाती रहूंगी।

उस दिन बस में वरुण के मुंह से इतनी सीरियस बातें सुनने के बाद मैं उससे अपने दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और मैंने सोच लिया कि अपने मन की बात उसे कभी नहीं बताऊंगी, क्योंकि मैं वरुण को किसी भी रूप में खोना नहीं चाहती थी। उसके साथ के लिए अगर मुझे उसकी दोस्ती निभानी पड़ती है तो वही सही।

इसीलिए मैंने अपने दिल के अरमान अपने होठों तक कभी ना पहुंचने देने का तय किया, पर नज़रें हमेशा दिल का साथ देती हैं…दिमाग और जुबान चाहे कितनी भी कोशिश करके खुद को जताने से रोक लें… पर दिल की बात कहने के लिए सिर्फ़ एक नज़र ही काफ़ी होती है।

उस दिन शाम को हम होटल पहुंचे। जयपुर वाली ब्रांच ने दो कमरे बुक करा रखे थे, एक बिना ऐ सी डबल बेडरूम दो विद्यार्थियों के लिए और एक ऐ सी सिंगल बेडरूम हमारे अध्यापक के लिए।

सर ने वरुण से कहा- मैं बेड शिफ़्ट करवा देता हूं, तुम मेरे कमरे में मेरे साथ सो जाना और कृति वहां आराम से सो जाएगी।
सर को मुझ पर और वरुण पर भरोसा नहीं था और हो भी क्यों??? कच्ची उमर में ही ऐसी गलतियाँ होती हैं.

पर वरुण ने सर को भरोसा दिलाते हुए कहा,’आप जैसा सोच रहे हैं, वैसा कभी नहीं होगा, मुझे अपनी मर्यादा और समाज के बंधनों का पूरा ख्याल है, मुझे आपके साथ सोने में कोई दिक्कत नहीं है अगर आपका कमरा भी बिना ऐ सी हो तो। मुझे ऐ सी से अलर्ज़ी है, ऐ सी की हवा में मेरे सर में तेज़ दर्द हो जाता है।’

उसकी वाजिब परेशानी सुनकर सर मान गए और सर और हम अपने अपने बैग लेकर अपने कमरे में चले गए।
सर के कमरे का तो पता नहीं पर हमारा कमरा काफ़ी अच्छा था। वहां कमरे के बीचों बीच दो बिस्तर लगे थे। दोनो के बीच का फ़ासला करीबन चार फ़ीट रहा होगा।

जिसपे क्रीम कलर की बेडशीट थी उसपे एक ओढ़ने के लिए कम्बल और एक चादर थी .. अटैच्ड बाथरूम था कमरे में घुसते ही सबसे पहले सामने की तरफ़ एक खिड़की थी, जिस के उस तरफ़ एक खूबसूरत बागीचा था। उस खिड़की पर जाली वाले परदे लगे थे और दरवाजा सरकाने वाला था वहीँ खिड़की के बायीं तरफ़ एक टेबल रखी थी जिस पर एक रूम सर्विस के लिए फोन, इंटर कॉम नम्बर की लिस्ट, एक पानी का जग और दो गिलास पड़े थे।
टेबल के ठीक बायीं तरफ़ कुछ दूरी पे एक टेबल और थी जिस पर टीवी रखा था (पर उसपे सिर्फ़ न्यूज़ चैनल ही आते थे ) टीवी की टेबल के निचले हिस्से में एक कपबोर्ड था, उसमें उस दिन का न्यूज़ पेपर था हिन्दी और इंग्लिश दोनों और एक स्पोर्ट्स मैगजीन थी.

टीवी से दोनों बिस्तर की दूरी एक बराबर थी. दोनों बिस्तर के बीच में एक और साइड टेबल रखी थी जिसपे एक लैंप रखा था जिसके दो स्विच कनेक्शन दोनों बिस्तर की तरफ़ थे.

वरुण मेरे से आगे चल रहा था इसीलिए कमरे में भी पहले वोही घुसा था और उसने घुसने के साथ ही खिड़की के पास वाले बिस्तर पर अपना बैग पटक दिया और राक्केट पास वाली मेज़ पर रख दिया.

मेरे पास और कोई चोइस न थी इसीलिए मैंने अपना सामान दूसरे बिस्तर पर रख दिया .. और बाथ रूम देखने चली गई .. बाथ -रूम कमरे के मुकाबले बेहद सुंदर था .. व्हाइट टाईल्स, व्हाइट कमोड, व्हाइट वाश बेसिन, सुंदर सजावटी शीशा .. के साथ सभी टोंटियाँसिल्वर कलर की थी। वहाँ हस्त फव्वारा भी था और सीलिंग फव्वारा भी .. सलैब पर दो व्हाइट टोवेल्स रखे थे साथ में साबुन, शैंपू, कंघा.

खैर मैं वापिस कमरे में आई .. वरुण ने कमेन्ट किया- अन्दर जाके सो गई थी क्या .. इत्ती देर लगा दी .. कभी किसी होटल में नहीं गई हो क्या .. ऐसे देख रही हो जैसे कभी देखा न हो!

मैंने उसे कहा- तुम्हे देखूं तो तुम्हे दिक्कत है, होटल को देखूं तो तुम्हे दिक्कत है ..मतलब अब मुझे सब काम तुम्हारे हिसाब से करने होंगे… इसपे उसका मुंह सड़ गया ..और वो अपने बैग से चेंज करने के लिए कपड़े निकलने लगा .. कपड़े निकलने के बाद उसने बाथ रूम में जाकर कपड़े बदल लिए ..और उसके बाद मैंने भी जाकर कपड़े बदल लिए .. हम दोनों ने अपने अपने बैग अपने पलंग के नीचे घुसा दिए ..!!

वो खिड़की से बाहर का नज़ारा देखने लगा .. बगीचे में बहुत सरे पेड़ थे खूब सारे फूल और उन पर मंडराते भँवरे और तितलियाँ…पर मेरे भँवरे का मूड ऑफ़ था वो अपने फूल से नाराज़ था…!!!

मैंने टीवी के नीचे से अखबार उठाया और पलंग पे बैठ के पढ़ने लगी थोड़ी देर बाद फोन की घंटी बजी… वरुण फोन के पास था इसीलिए उसी ने फोन उठाया .. सर का फोन था वो चाए, नाश्ता लेने के लिए हमें होटल के वेटिंग एरिया में बुला रहे थे।

फोन रखते ही उसने कहा- चलो!
मैंने कहा- कहाँ?
.. तो वरुण कहने लगा अब आई हो तो सोच रहा हूँ तुम्हे थोड़ा आस पास घुमा लाऊ .. !!!
मैंने कहा सच ..!!!
कहता ..’ इतनी खुश मत होवो .. सर नीचे बुला रे हैं चलो ..’

ये वरुण की पुरानी आदत थी .. दिल में सपने जगा के तोड़ देना ..!!! पहले भी उसने ऐसा मेरे साथ कई बार किया था…

मैंने थके हुए भाव से कहा- चलो .. !!
और हम नीचे पहुंचे सर पहले ही तीन चाय का आर्डर दे चुके थे ..
सर ने पूछा- कमरे में कोई दिकत तो नहीं है?
हम दोनों ने एक ही स्वर में कहा हाँ ..
सर ने फ़िर पूछा- क्या दिक्कत है?
हम दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ इशारा करते हुए उंगली उनसे कहा- इस से!

सर हँसने लगे .. कहते- अभी से लड़ रहे हो साथ में खेलोगे कैसे?
हम दोनों एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे.

और साथ साथ बोले… हम और साथ में… ना ह ..!!!!

सर फ़िर से मुस्कुरा दिए .. तब तक चाए आ गई और कुछ बढ़िया से पकोड़े भी ..मुझे पकोड़े बेहद पसंद हैं और तब मैंने जाना कि वरुण को भी पकोड़े बहुत पसंद हैं ..!!!

चाय पीने के बाद सर ने हमें बताया कि चूँकि अलग अलग शहरों से स्कूल के बच्चे आए हुए हैं इसीलिए उन सभी के डिनर का इन्तेजाम स्कूल मैंनेजमेंट ने ही किया है .. जिस से बच्चे आपस में घुल मिल सकें और एक दूसरे को जन सकें .. जिस से उनमें खेल भावना जागृत हो… हम दोनों ह्म्म्म स्वर निकला…!!!

चाय पीने के बाद सर ने मुझसे पूछा कि अगर तुम प्रक्टिस करना चाहती हो तो में तुम्हे ले चलता हूँ साथ में दोनों मिलके प्रक्टिस कर लेना .. वहां और बच्चे भी होंगे .. और तुम्हारी ट्यूनिंग भी सेट हो जायेगी .. ..!!!

मैंने सर से कहा सर अब तो आ गई हूँ… न भी चाहूँ तो भी खेलना ही पड़ेगा .. अब जो होगा देखा जाएगा .. ये तो आपको मुझे लाने से पहले सोचना चाहिए था. सर कहते तुम नहीं जाना चाहती वो दूसरी बात है… चलो तुम दोनों जा के रेस्ट करो .. थक गए होंगे लंबे सफर में ..

वरुण उठने लगा .. मैंने सर से कहा .. सर इसे समझा लो .. जब देखो मुंह सड़ाये रखता है अब यहाँ कोई और है भी तो नहीं जिस से मैं बात कर सकूँ ।

सर कहते वरुण इसका ख्याल रखो और हाँ जो कहती है सुन लिया करो .. कम से कम सिर्फ़ कहती ही है न .. बीवी की तरह बेलन थोड़े ही मारती है ..!! सर मुस्कुराते हुए बोले ..!!!

इसके जवाब मैं वरुण बोला .. सर हम तो बेलन खाने को भी तैयार हैं पर मरने वाली तो आये…!!! और हंस पड़ा…

फ़िर हम दोनों अपने कमरे की तरफ़ चले गए .. जा ही रहे थे कि सर ने पीछे से वरुण को आवाज लगाई .. ‘कोई तकलीफ हो तो .. मुझे इंटर कॉम से कॉल कर लेना ..और हाँ तुम्हे याद है ना मैंने क्या कहा था ..’

वरुण ने उन्हें आश्वस्त करते हुए हाँ मैं सर हिलाया ..!!

हमारे कमरे में आते ही वरुण भड़कते हुए बोला .. कमसे काम मोका देख के तो बोल लिया करो की क्या बोल रही हो…क्या जरूरत थी ये कहने की सर से .. ये हम दोनों के बीच की बात है ओरों को हमारे बीच मैं क्यूँ लाती हो ..

मुझे अच्छा लगा कि उसने मुझे अपने मन की डांट लगायी .. और हम दोनों के झगडे को अपनी पर्सनल बात मानी और सार्वजनिक करने से मना किया।

मैंने उस से कहा .. अगर यही बात पहले आपके होठों से फूट पड़ती तो मुझे गैरों से आपको सिले हुए होंठो को खुलवाना ना पड़ता…

बस इतना कहने की देर थी उसने कहा .. कृति यू आर टू मच .. यू आर जस्ट इम्पोस्सिब्ल ..!!!

तुम्हारे साथ रहना तो दूर , बात करना ही बेकार है…

उसके बात ख़तम होने से पहले ही मैंने उसे कहा- सो यू डू ..!!

(जाने क्यूँ हम दोनों के दिल में एक दूसरे के लिए बे-इन्तहां प्यार होते हुए भी हमारा ज्यादातर वक्त झगडों और लडाइयों में गुजरता था )

ये सब सुनने के बाद .. वो बिस्तर पर खिड़की की ओर करवट लेके सो गया… ठीक दो घंटे बाद दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी .. मैंने खोलने से पहले अंदर से पूछा .. वो सर थे…

मैंने दरवाजा खोला .. और सर अंदर आये मैंने सर को बैठने के लिए कुर्सी दी… सर वरुण की तरफ़ देख के बोले .. इसे क्या हुआ .. मैंने कहा सर .. इसे कुछ हो भी नहीं सकता .. कुम्भकरण की इस छटी पुश्त को कहाँ से उठा के लाये हो… जब से आया है सो ही रहा है…पिछले दो घंटे से देख रही हूँ .. इस मनहूस टीवी पे भी तो न्यूज़ के अलावा कुछ और नहीं आता .. और फ़िर इन्सान एक दिन की अखबार कितनी बार पढ़ लेगा।

सर ने कहा तुम इतना ही बोरे हो रही हो तो मेरे साथ चलो मैं डिनर के लिए स्कूल कम्पाउंड में जा रहा हूँ ..(मुझे सर से ज्यादा वरुण पे भरोसा था .. इसीलिए मैंने जाने से मना कर दिया) मैंने कहा- नहीं सर मुझे भूख नहीं है, शाम को पकोड़े कुछ ज्यादा ही हो गए थे, अगर पेट ख़राब हो गया तो सुबह खेलना मुश्किल हो जाएगा .. और वैसे भी मैं भी सोने की ही तैयारी कर रही थी .. सर कहते- ठीक है जैसा तुम ठीक समझो .. पर हाँ कल सुबह 8 बजे नीचे मुख्य हॉल में पहुँच जाना .. 9 बजे तुम दोनों का मैच है चंडीगढ़ के साथ ..!! सर ने मुझे गुड नाईट किया

.. और सर के जाने के बाद में अपने बिस्तर पे लैंप जला के अपना नोवेल पढ़ने लगी…पर थोड़ी थोड़ी देर बाद मुझे उसे देखने की इच्छा होती .. जाने मुझे क्या हो रहा था… वो इतना पास होते भी मुझे ख़ुद से दूर जाता हुआ महसूस हो रहा था .. पर मैं उसे चाहकर भी रोक नहीं पा रही थी ..आँखों में उसे देखने की प्यास थी की ख़तम होने का नाम नहीं ले रही थी .. रात के 11 बज चुके थे .. और मैं सोने की नाकाम कोशिश कर रही थी .. परेशां थी .. ख़ुद से या उस से पता नहीं ..!!

बिस्तर पर उठ के बैठी ..तो देखा कि .. खिड़की से आती चाँद कि चंचल चांदनी परदे से छन छन के उसके चेहरे पे पड़ रही है .. उसके रेशमी धागों से बाल उसकी आँखों पे थे .. मैंने खिड़की के पास पड़ी कुर्सी उठाई और उसके चेहरे के ठीक आगे कुर्सी लगा के बैठे बैठे उसे निहारने लगी

..कुछ भी कहो .. उसे जितना देखती थी .. उसे और देखने कि इच्छा होती थी .. मैं उसके मोह जाल मैं फंसती जा रही थी. उसकी दांई हथेली उसके दांए गाल के नीचे ऐसे लग रही थी जैसे पत्ते पर ओस की पहली बूंद होती है… इतनी सौम्य कि बस देखते रहने का मन कर रहा था और वो इतने भोलेपन से सो रहा था जैसे बच्चा अपनी मां की गोद में सिर रख के सोता है…दुनिया से बेखबर, एकदम निश्चिन्त होके।

उसका बायाँहाथ उसके दाएं हाथ के नीचे रखा था और उसकी टांगें सुकड़ी हुई थीं… उसे पंखे की हवा में भी ठण्ड लग रही थी शायद ! मैंने उसे अपनी चादर औढा दी।

उसके रेशम से बाल कभी उसके माथे को चूमते तो कभी उसकी आंखों को हल्के से सहला के चले जाते, मानो उसकी आंखों में सपने भर रहे हों !!

यूं ही देखते देखतेवक्त गुज़र गया, सुबह के चार बज गए, पता ही नहीं चला…!!! इस से पहले वो जागता, मैंने कुर्सी वापिस उसी जगह रख दी जहां पड़ी थी और खिड़की के पास जा के खड़ी हो गई क्योंकि नींद तो मुझे आने वाली थी नहीं… और फ़िर आए भी क्यूं… मैं अपनी जिन्दगी के कुछ यादगार लम्हें गुजार रही थी जिन्हें शायद ही मैं कभी भूल पाऊंगी…!!!

धीरे धीरे रात की कालिमा को भोर के उज़ियारे ने धो दिया। आसमान में चिड़ियाँगश्त लगाने लगी थी, पन्छी हर तरफ़ गाने लगे थे, मानो सभी को उठने का संदेश दे रहे हों… और सबको शुभ-प्रभात कह रहे हो ! तकरीबन साढे पांच बजे वो आंखें मलता हुआ उठा- अरे तुम तो काफ़ी जल्दी उठ गई… मुझे लगा कि अब तक तुम सो रही होगी !

तो मैंने कहा,’कुछ मूर्ख लोग होते हैं जो वक्त को इस तरह सो के बरबाद कर देते हैं पर मैं उन में से नहीं हूं…!!!

कहता- तुम सोई नहीं क्या…

मैंने आश्चर्यचकित होते हुए कहा- हैं…???
वो फ़िर बोला- तुम्हारी आंखें क्यों सूजी हुई हैं, रो रही थी क्या?!?!

मैंने कहा- आंसू पौंछने वाला अगर कोई होता तो शायद जरूर रोती… सहारा देने वाला होता तो शायद ठोकर खाकर जरूर गिरती… कोई हाथ थामने वाला होता तो शायद जरूर बहकती… पर अफ़सोस ऐसा कोई नहीं है…!!!

वो आंखें झुका के सब सुन ध्यान से रहा था.. खड़े होके मेरे पास आया..कन्धे पे हाथ रखके उसने मुझ से पूछा- क्या बात है?..सुबह सुबह शेर-ओ-शायरी ! क्या हुआ मेरी स्वीटी को…इतनी सेन्टी क्यूं हो?? किसी की याद आ गई क्या???

मैंने उसे कहा- याद उसकी आती है जो दूर हो… कोई है जो सब कुछ देखके भी आंखें बंद कर लेता है, सुन कर भी अनसुना कर देता है। वो हर वक्त मेरे पास होता है…पर मेरे साथ नहीं होता… पर पता नहीं मैं भी उसके इतने ही करीब हूँ या नहीं…

उसने मुझे दिलासा देते हुए कहा .. कोई पागल ही होगा जो तुमसे प्यार करना नहीं चाहेगा .. तुम उसे कह के तो देखो शायद कुछ हो जाए ..

मैंने कहा .. उसे कहने से कुछ फायदा नहीं उस बेदर्द में दिल ही नहीं है .. दिल होता तो शायद अब तक समझ जाता… (उसे अब तक पता नहीं चला था कि मैं उसी की बात कर रही थी .. इडियट कहीं का )

उसने कहा .. और ऐसा भी तो हो सकता है कि वो सब कुछ समझता हो, जानता हो.. वो सब कुछ तुम्हारी आँखों में पढ़ लेता हो, पर शायद तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हो .. शायद उसे लगता हो कि अगर वो कहेगा तो कहीं तुम उसे मना न कर दो .. कहीं उसे ये डर न हो कि उसकी इगो हर्ट हो जायेगी…

उसके शब्द सुन के मेरी आंखें भर आई .. क्यूंकि बस में जिसने मेरे दिल को इतनी चोट पहुंचाई .. क्या ये वरुण वही इन्सान था जो तब मुझसे इतने प्यार से बात कर रहा था…

मैं उसे तब भी कुछ नहीं कह सकी. . बस उसकी आँखों में झांकती रही और कब आखों से आंसू छलक गए पता भी नहीं चला .. उसने कंधे से हाथ हटा के मेरे आंसू पौंछे और मेरे सर पर अपना हाथ रख दिया .. उसने कहा .. थोड़े आंसू बचा लो .. तुम लड़कियों के पास एक यही तो हथियार है… उसे बर्बाद मत ।करो .. और हाँ थोड़े इसीलिए बचा के रखा करो क्यूंकि ये अनमोल हैं. और मैं तुम्हे रोते हुए नहीं देख सकता…

मुझे चुप कराने के बाद उसने कहा मैं मोर्निंग वाक् पे जा रहा हूँ, चलोगी?.. थोडी फ्रेश भी हो जोगी .. और थोड़ा वार्म अप भी कर लोगी .. लेग्स की मस्सल्स भी खुल जाएँगी .. और तुम्हे खेलते वक्त दिक्कत भी नहीं होगी ..मुझे उसकी बात ठीक लगी और मैं उसके साथ ट्रैक सुइट पहन कर मोर्निंग वाक् पे चली गई। वापिस आकर हम दोनों फ्रेश हुए अपने स्पोर्ट्स ड्रेस पहने और अपने अपने बल्ले ले के नीचे हॉल मैं चले गए .. जहाँ सर नाश्ता कर रहे थे…

हमारे पहुँचते ही सर ने कहा- अरे आ गए तुम दोनों .. वैरी गुड ! वरुण ने व्हाइट शोर्ट्स और टी -शर्ट पहनी थी .. और सर पे हेयर-बैंड था ताकि बाल खेलते वक्त उसकी आखों में ना आयें… मैंने चोटी बनाई थी .. एक व्हाइट टी -शर्ट और व्हाइट मिनी स्कर्ट पहनी थी ..हाँ इस बार वरुण ने मेरी स्कर्ट को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई .. क्यूंकि उसे मालूम था टेनिस में कभी कभी एक और से दूसरी और तेज़ और बड़े क़दमों से भागना पड़ता है .. जो कि लम्बी स्कर्ट में नहीं किया जा सकता ..

हम दोनों तैयार थे। नाश्ते में हमने एक एक ग्लास ओरंज़ जूस और कुछ फल लिए ..और पहुँच गए गेम वेन्यु पर ..9 बजे खेल शुरू होना था .. हमारी प्रतिद्वंदी टीम चंडीगढ़ के स्कूल की थी। लड़की सुंदर थी (ज्यादातर सरदारनियाँ सुंदर होती हैं ) उसके नैन नक्श एक दम टिपिकल सरदारनियों जैसे थे और लड़का सरदार था। हमारा खेल शुरू हुआ, हम दोनों को शुरू में तालमेल की वजह से कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा, पर ब्रेक में वरुण ने मुझे उसके साथ खेलने के कुछ टिप्स सिखाये और नेक्स्ट हाफ में हमने बहुत अच्छा किया और हम मैच जीत गए।

12 बजे खेल ख़तम हुआ। ये हमारा क्वाटर फाईनल था। इसके बाद हमें सेमी फाइनल में जयपुर के स्कूल की टीम के साथ खेलना था और वो मैच उसी दिन 2 बजे होना था। मुकाबला कड़ा था। खेल शुरू होने से पहले हम दोनों ने एक दूसरे को बेस्ट ऑफ़ लक कहा और कड़ी मेहनत के बाद हम वो गेम 6 -4, 5 -4, 6 -5 से जीत गए। गेम 4.30 बजे ख़तम हुआ। निकलते समय मैंने दूसरी टीम की लड़की से हाथ मिलाया और वरुण ने लड़के से .. उसके बाद वरुण ने लड़की से मिलाया और मैंने लड़के से।

सामने वाली टीम के लड़के ने मुझसे हाथ मिलते वक्त कहा कि मैं ये मैच जीत जाता अगर तुम न खेल रही होती, मेरा सारा ध्यान तो तुम्हारी टांगों पर था, सच कहूँ युअर लेग्स आर सो स्टन्निंग .. ये सुनने के बाद मैंने सीधा वरुण के चेहरे पे देखा, उसने बात सुनी थी पर उसने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दिखाई, हाथ छुड़ाने पर मुझे अपने हाथ मैं एक पर्ची मिली, जो हाथ मिलाते वक्त उस लड़के ने मेरे हाथ पे रखी थी, उसपे लिखा था .. ‘7 बजे शाम को इसी मैदान की पार्किंग में मिलो.!!!!’

हम सर के साथ वापिस होटल आ गए। उस वक्त 5 .30 बजे थे। सर हमारी बहुत तारीफ़ कर रहे थे, पर मैं अपने मन में यही सोच रही थी कि अभी डेड़ घंटा बाकी है। हम दोनों कमरे में गए, और मैंने वो स्लिप मेज़ पे रख दी। पहले वरुण फ्रेश हो के बाहर आया, और मैं फ्रेश होने बाथ रूम में चली गई। मैं नहा ही रही थी, मुझे लगा कि कमरे का दरवाजा खुला है। मैंने वरुण को अंदर से ही आवाज़ लगाई पर कोई जवाब नहीं मिला। जल्दी जल्दी में मैंने नहाना धोना ख़तम किया और कपड़े पहन के बाहर आई। 6.45 हुए थे, मुझे पता था वरुण कहाँ गया है।

मैं भी उसके पीछे पीछे चल दी। वहां पहुँच के मैंने सिर्फ़ इतना देखा कि वरुण पार्किंग से बाहर आ रहा है, मैं छुप गई और उसके जाने के बाद मैं पार्किंग में गई। वहां वो लड़का एक गाड़ी के पीछे जख्मी पड़ा था। वरुण ने उसे बहुत मारा था, मेरे पहुँचते ही वो रो रो के सॉरी मैडम, सॉरी दीदी कहने लगा और तो और पाँव छूने लगा।

उसने मुझसे कराहती हुई आवाज़ में कहा- वो आपका भाई है क्या?
मैंने कहा- नहीं! उसने फ़िर से पूछा- प्रेमी???

मैंने कहा नहीं ! हम दोनों का रिश्ता इन सब रिश्तों से ऊपर है .. वो तुम नहीं समझोगे .. आज जो तुमने गलती की .. दोबारा किसी के साथ मत करना .. ये कह के मैं वहां से निकल गई .. निकलते समय मैंने…ग्राउंड की अथॉरिटी को इन्फोर्म किया कि पार्किंग मैं कोई लड़का जख्मी पड़ा है और उसे फर्स्ट ऐड की जरूरत है।

उसके बाद मैं होटल पहुँची, करीबन 7 .30 बजे। उसने आते ही पूछा- कहाँ गई थी? मैंने कहा- जहाँ तुम गए थे! कहता- मैं तो कहीं नहीं गया, यहीं था, थोड़ी देर के लिए सर के कमरे में गया था, लौटा तो देखा तुम कमरे में नहीं हो।

मैंने कहा,’ जब तुम्हे झूठ बोलना आता नहीं तो बोलते क्यूँ हो… क्यूँ मारा तुमने उस लड़के को…’ वरुण कहने लगा ..’किस लड़के को .. तुम किसकी बात कर रही हो .. ‘

मैं चुप हो गई मैं उसके जख्मों को कुरेदना नहीं चाहती थी .. और न ही दोबारा झगड़ा करना चाहती थी .. हम दोनों बहुत थक गए थे .. और आज भी कल ही की तरह बिना खाए पिए सो गए .. और उस दिन मुझे चैन की नींद आई .. क्यूंकि मैं आश्वस्त हो चुकी थी की वरुण के दिल में भी मेरे लिए कुछ न कुछ तो जरूर है…

सुबह 10 बजे हमारा फाइनल था मुंबई टीम के साथ .. मैं जल्दी उठ गई .. आज का दिन मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण था .. इसलिए नहा धोकर पूजा की .. तब तक वरुण भी उठ गया .. रोज़ की तरह आज फ़िर से वो मोर्निंग वाक् पे गया ..जाने से पहले उसने मुझसे पूछा ..पर मैंने ही मना कर दिया .. क्यूंकि कमरे पर और भी काम थे करने को .. पैकिंग करनी थी .. चेक आउट करना था…

जब वो मोर्निंग वाक् से आया तब तक मैं दोनो बिस्तर ठीक कर चुकी थी, हम दोनों के बैग पैक कर चुकी थी उसके पहनने वाले कपड़े निकाल के रख दिए थे (बिल्कुल बीवियों की तरह ) आने के बाद उसने पूछा- अरे! ये कमरा इतना व्यवस्थित कैसे हो गया? मैंने कहा- मैंने किया और कौन करेगा? कहता- तुम कबसे इस होटल की सफाई कर्मचारी बन गई… और यह कहके हंसने लगा… मैंने भी उसकी बैटन को मजाक मैं लेते हुए कहा .. जब से तुम जमादार बने हो तभी से…

मैं उसके आने तक तैयार हो चुकी थी, आने के बाद वो भी नहा धो के तैयार हो गया, हम दोनों अपने अपने बैग ले के नीचे पहुंचे। सर हमारा इंतजार कर रहे थे। हम तीनों ने रजिस्टर पर चेक आउट करने के लिए हस्ताक्षर किए और सामान उठा के स्टेडियम चले गए। वहां लॉकर में सामान रख दिया। तब तक 9 .45 हो चुके थे, मैच शुरू होने में सिर्फ़ 15 मिनट बाकी थे।

मैच शुरू हुआ। मुंबई टीम का लड़का बेहद स्मार्ट था, और लड़की सांवली सी थी लेकिन उसके फीचर बहुत अच्छे थे। उनकी टीम बहुत अच्छे खेल के प्रदर्शन के बाद यहाँ तक पहुँची थी। मैं बहुत नर्वस थी (ऐसे मौकों पर मैं अक्सर नर्वस हो जाया करती हूँ ) मुझे ख़ुद पे भरोसा नहीं था कि मैं इन्हे चुनौती दे भी पाऊँगी या नहीं, पर वरुण पे भरोसा था…उनकी टीम ने हमारा खेल पिछले दो मैचों में देखा था।

खैर पहला सेट हम जीत गए, पर दूसरा सेट शुरू होने के साथ बाल बार बार मेरी तरफ़ ही आ रही थी और वरुण बार बार भाग कर बाल अपने बल्ले पर ले रहा था। वो जानता था कि मैं कांफिडेंट नहीं हूँ और ये बात सामने वाली टीम को भी पता थी। इसीलिए वो हमारी कमजोरी का फायदा उठा रहे थे। आखिर कार वही हुआ जिसका डर था- वरुण भी आखिर कब तक अकेले मोर्चा संभालता, वो भी इन्सान है उसे भी थकन होती है, नतीजतन हम दूसरा सेट हार गए और फ़िर एक के बाद एक तीसरा और चौथा भी ..

हम मैच हार गए ..

और सब कुछ हुआ मेरे कारण .. जब ये बात मैंने वरुण से कही .. तो उसने कहा हम मैच तुम्हारी वजह से नहीं हारे .. हम मैच इसलिए हारे क्यूंकि .. मेरी प्रक्टिस वंशिका के साथ हुई थी, तुम्हारे साथ नहीं, ऐसे में दिक्कतें तो आती ही हैं। सर ने भी मुझे दिलासा देते हुए कहा- कोई बात नहीं बेटे ! तुम तीन में से 2 मैच तो जीते न, ये मत देखो कि तुम आखिर में हारे या जीते .. तुम ये देखो कि तुमने खेल भावना से खेले या नहीं .. अगर हाँ तो तुम हारने के बावजूद जीत गए क्यूंकि इस से तुम्हे बहुत कुछ सीखने को मिला और फ़िर हर हार के बाद कोई कुछ न कुछ तो सीखता ही है, तुमने भी सीखा ही होगा .

जब तक खेल में कोई हारेगा नहीं तो सामने वाला जीतेगा कैसे…!! सर की बातों ने मुझ पे और मेरे मूड पे काफी असर किया .. उसके बाद हमने कुछ रेफ्रेश्मेंट्स ली और थोड़ी देर आराम करने के बाद हम वहां से 2 बजे निकल पड़े बस लेने के लिए। बसों की हड़ताल थी इसलिए हमें टैक्सी करनी पड़ी। सर साथ में थे इसलिए रास्ते भर हमने ज्यादा बातचीत नहीं की और सर ने मुझे करीबन 7 बजे और वरुण को मेरे बाद टैक्सी से ही हमारे घर छोड़ा।

इस एक्सपेरिएंस के बाद मुझे तो पूरा यकीन हो गया भले वरुण बाहर से दिखाता न हो .. पर उसके मन में एक सॉफ्ट कार्नर जरूर है मेरे लिए .. शायद इसलिए क्यूंकि .. मैं उसकी सबसे करीबी और अच्छी दोस्त थी .. या फ़िर शायद कुछ और…

ये आपको मेरी आगे वाली कहानियों में पता चलेगा… कि उसके दिल में आखिर क्या था .. और वो मुझ से दूर जाने की कोशिश क्यूँ करता था ….

आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी मुझे अपने विचार केवल और केवल ईमेल के ज़रिये भेजें .. मुझे आपके फीड बैक का इंतज़ार रहेगा ..

मेरी मेरे पाठकों से तहे दिल से गुजारिश है कि वो मुझसे केवल कहानी से जुड़े सवाल ही करें… अश्लील सवालों के उत्तर नहीं दिए जायेंगे.

पाठको से ये भी अनुरोध है कि आप अपनी लेखिका कि मजबूरी को समझ कर निजी से ज़िन्दगी से जुड़े सवाल भी न करें… मैंने वरुण और अपनी कहानी अन्तर्वासना पर भेजने से पहले वरुण से ये वायदा किया है कि .. मैं अपनी से जीवन से जुड़ी कोई बात यहाँ नहीं लिखूंगी .. जैसे कि मेरा नाम, शहर, मेरी उमर, मेरी फिगर .. इसलिए आपसे अनुरोध है कि ऐसे सवाल न करें जिनका मैं जवाब न दे सकूँ…
कहानी पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
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