तीसरी कसम-4
(Teesari Kasam-4 Premguru)
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प्रेम गुरु की अनन्तिम रचना
मैं अभी अपने ख्यालों में खोया ही था कि पलक की आवाज से चौंका।
‘सर एक बात पूछूँ?’
‘यस… हाँ जरूर !’
‘क्या एक आदमी दो शादियाँ नहीं कर सकता?’
‘क्यों? मेरा मतलब है तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो?’
‘कुछ नहीं ऐसे ही !’
‘दरअसल किसी धर्म में चार बीवियाँ रखने का अधिकार है पर मेरे धर्म में केवल एक ही पत्नी का क़ानून है।’
‘ओह… चलो छोड़ो वो… आप मालिश और जल थेरेपी बताने वाले थे ना?’
‘ओह.. हाँ अभी करता हूँ !’
‘क्या?’
‘वो… ओह… अरे मेरा मतलब था कि मैं समझा देता हूँ।’
‘तो समझाइए ना?’ वो में इस हालत पर मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।
‘पहले मैं तुम्हें आयल मसाज़ सिखाता हूँ, फिर जल थेरेपी के बारे में बताऊँगा !’
‘हम्म…’
‘पर उसके लिए तुम्हें यह टॉप उतारना होगा !’
‘वो क्यों?’
‘ओह.. शर्ट पहने पहने कैसे मसाज़ होगा?’
‘वो.. वो.. पर.. यहाँ कोई देखेगा तो नहीं ना.. मेरा मतलब है कोई दूसरा तो नहीं आएगा ना?’
‘अरे नहीं मेरी परी, यहाँ कोई नहीं आएगा, दरवाज़ा तो बंद है। तुम चिंता मत करो !’
‘पर वो आयल?’
मैं तो कुछ और ही सोच रहा था। मुझे आयल या क्रीम का कहाँ होश था पर मैंने बात सम्भालते हुए कहा,’ठहरो.. मैं देखता हूँ !’
मैं उठ खड़ा हुआ और अपने शेविंग किट से क्रीम और आयल की शीशी निकाल कर ले आया। पलक ने फिर अपना टॉप उतार दिया। उसने काले रंग की पैडेड ब्रा पहन रखी थी। अब मुझे समझ आया कि उसके उरोज इतने बड़े क्यों नज़र आ रहे थे।
उसने जब टॉप उतारने के लिए अपने हाथ ऊपर किये तो मेरी नज़र उसकी कांख पर चली गई। हे भगवान् ! उसकी बगल में तो हलके हलके रोयें ही थे। उसके कमसिन बदन की मादक महक तो जैसे पूरे कमरे में ही फ़ैल गई थी। मैं तो मंत्रमुग्ध हुआ उस रूप की देवी को देखता ही रह गया। काले रंग की पैडेड ब्रा में फंसे दो चीकू जैसे उरोज शर्म के मारे जैसे दुबके पड़े थे। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा।
‘पलक, इस ब.. ब्रा को भी उ… उतारना होगा !’ मैं हकलाता हुआ सा बोला।
उसने ब्रा का हुक खोलने का प्रयास किया पर जब वो नहीं खुला तो वो मेरी ओर पीठ करके खड़ी हो गई और फिर बोली,’ओह.. यह नहीं खुल रहा.. प्लीज आप खोल दो ना?’
मैंने कांपते हाथों से ब्रा का हुक खोल कर उसे नीचे गिर जाने दिया।
उसकी बेदाग़ गोरी गोरी नर्म नाज़ुक पीठ देख कर तो बरबस मेरे दिल में आया कि उसे अपनी बाहों में जकड़ लूँ पर इससे पहले कि मैं कुछ करता, वो पलट कर मेरे सामने हो गई।
दो छोटे छोटे गुलाबी रंग के चीकू मेरी आँखों के सामने थे। जैसे कोई नई नई अम्बियाँ पनपी हों। उरोजों के आस पास की त्वचा शरीर के अन्य हिस्सों की तुलना में अधिक गोरी थी।
छोटे छोटे कूचों में पतली पतली रक्त शिराएँ, एक इंच का लाल रंग का घेरा (एरोला) और चने के दाने से भी छोटे गहरे लाल रंग के दो मोती (चूचक)। बाएं उरोज पर नीचे की ओर एक छोटा सा तिल।
सपाट पेट और उसके बीच छोटी पर गहरी नाभि। उभरे हुए से पेडू के दाईं ओर एक छोटा सा काला तिल।
हे लिंग देव ! यह तो रति का अवतार ही है जैसे। मैं तो मुँह बाए उसे देखता ही रह गया। मेरा मन तो कर रहा था कि झट से इन रसगुल्लों को पूरा का पूरा मुँह में भर कर इनका सारा रस निचोड़ लूँ।
‘अब क्या करना है?’ अचानक पलक की आवाज सुनकर मैं चौंका।
‘ओह.. हाँ ! मैंने तुम्हें समझाया था ना कि पहले तेल मालिश और फिर कुछ कसरत फिर वो जल थेरेपी तुम्हें समझाऊँगा।
उसे तो कुछ समझ ही नहीं आया उसने असमंजस में मेरी ओर ताका।
‘ओह.. चलो ऐसा करो, तुम बिस्तर पर लेट जाओ !’
पलक अपने जूते उतारने के लिए झुकी तो उसके पुष्ट नितम्बों देख कर तो बरबस मेरा मन उन्हें चूम लेने को करने लगा।
जूते उतार कर वो बेड पर चित्त लेट गई। मेरी आँखें तो उसके उरोजों की सुरम्य घाटी से हट ही नहीं रही थी। मेरा दिल किसी रेल के इंजन की तरह जोर जोर से धड़क रहा था और मेरी साँसें बेकाबू होने लगी थी। पर मैं तो अपने सूखे होंठों पर जुबान ही फेरता रह गया था।
मैं अभी अगले कदम के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक पलक की आवाज मेरे कानों में गूंजी,’सर.. क्या हुआ?’
‘ओह.. कुछ नहीं…’
मैंने नारियल के तेल की शीशी से लगभग एक चम्मच तेल निकाल कर अपनी हथेली पर ले लिया। मैं बेड पर उसके पास वज्रासन की मुद्रा में (अपने घुटने मोड़ कर) बैठ गया। मेरा पप्पू तो पैंट के अन्दर कोहराम ही मचाने लगा था। जैसे कह रहा था कि गुरु छोड़ो इस तेल मालिश के चक्कर को और इस खूबसूरत बला को अपनी बाहों में भर कर मेरे साथ अपना जीवन भी धन्य कर लो। पर मैं जल्दबाजी में कुछ भी नहीं करना चाहता था। मैंने तेल से सनी अपनी दोनों हथेलियाँ उसके उरोजों पर रख दी।
उफ़… रुई के फोहों जैसे नर्म नाज़ुक दो उरोजों की घुन्डियाँ तो अकड़ कर जैसे अभिमानी ही हो गई थी। जैसे ही मेरा हाथ उसके उरोजों से टकराया उसके शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई और शरीर के सारे रोम-कूप खड़े हो गए। कुँवारे नग्न स्तनों पर शायद किसी पर पुरुष का यह पहला स्पर्श था। उसे गुदगुदी भी हो रही होगी और थोड़ा रोमांच भी हो रहा होगा। उसकी साँसें भी तेज़ हो गई थी। उसने अपनी आँखें बंद कर ली थी और अपनी जांघें कस कर भींच ली।
मैंने पहले उसके उरोजों की घाटी में हाथ फिराया और फिर हौले से उरोजों को अपनी मुट्ठी में भर कर हल्के से दबाया। मेरे ऐसा करने से वो तो अपनी नाज़ुकता खोकर और भी कड़े हो गए। मैंने हौले से उन पर हाथ फिराना और मसलना चालू कर दिया। मेरा मन तो उन छोटे छोटे चीकुओं को मुँह में भर कर चूस लेने को कर रहा था पर अभी ऐसा करना ठीक नहीं था। मैंने अपने हाथ गोल गोल घुमाने चालू कर दिए। इसे सीत्कार तो नहीं कहा जा सकता पर मुझे लग रहा था कि उसकी साँसें बहुत तेज़ हो गई हैं और वो भी अपने आप को अनोखे आनन्द में डूबा महसूस करने लगी है। जरूर उसके जिस्म में प्रेम का मीठा जहर फैलने लगा होगा।
मैंने उसके चूचकों को अपनी अँगुलियों की चिमटी में पकड़ कर जब मसला तो पलक थोड़ी सी चिहुंकी और उसकी हल्की सी सीत्कार निकल गई पर उसने आँखें नहीं खोली। उसने अपनी जाँघों को और जोर से भींच लिया। उसका सारा शरीर अकड़ने सा लगा था।
मैं जानता था कि दूसरी लड़कियों की तुलना में पलक के उरोज थोड़े छोटे जरूर हैं पर वो पूर्णयौवना बन चुकी है। प्रेम आश्रम वाले गुरूजी तो कहते हैं जब लड़की रजस्वला होने लगती है और उसके कामांगों पर बाल आने शुरू हो जाते हैं तो वह कामदेव को समर्पित कर देने योग्य हो जाती है।
मैंने कोई 10-15 मिनट तो उसके उरोजों पर मालिश करते हुए उनको जरुर मसला और दबाया होगा। ऐसा नहीं था कि बस मैं उन्हें मसले ही जा रहा था। मैं कभी कभी उसके एक उरोज को अपनी मुट्ठी में पकड़ लेता और दूसरे हाथ की हथेली उसके नुकीले हो चले चुचूक पर फिराता तो उसके मुँह से मीठी सित्कार ही निकल जाती। साथ साथ मैं उसे मालिश का तरीका भी समझाता जा रहा था कि मालिश नीचे से ऊपर की ओर करनी चाहिए ना कि ऊपर से नीचे की ओर।
गलत तरीके से मालिश करने से दबाव के कारण उरोज लटक सकते हैं। मैंने उसे यह भी बताया कि उरोजों को कभी भी जोर से नहीं भींचना चाहिए बस हौले होले दबाना और सहलाना चाहिए ताकि उनका रक्त संचार बढ़ जाए। पर उसे मेरी बातें सुनने का कहाँ होश था। वो तो आँखें बंद किये हल्की-हल्की हाँ हूँ के साथ सिसिया रही थी। उसकी साँसों की गति के साथ उसके उरोज ऊपर नीचे हो रहे थे। उसके चुचूक अकड़ कर रक्तिम से हो गए थे और उसके साथ ही उसके चेहरे और कानों का रंग भी गुलाबी हो चला था। मेरे लिए तो यह दृश्य नयनाभिराम ही था।
मुझे तो लगने लगा था कि मैं अपने होश ही खो बैठूँगा। मेरा चेहरा भी अब तमतमाने लगा था और पप्पू तो पैंट के अन्दर जैसे घमसान मचा रहा था। आज तो वो इस तरह अकड़ा था कि अगर मैंने जल्दी ही कुछ नहीं किया तो उसकी नसें ही फट जायेंगी। मुझे अब लगने लगा था कि मैं अपना विवेक खो बैठूंगा। मेरा मन उसे बाहों में भर लेने को उतावला होने लगा।
मैंने जैसे ही उस पर झुकने का उपक्रम किया तो अचानक पलक ने आँखें खोल दी और उठ कर बैठ गई। मैं तो उससे टकराते टकराते बचा। उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी और आँखों में खुमार सा आने लगा था।
‘बस सर, अब वो वो… जल थेरपी… सिखा दो !’ उसकी आवाज थरथरा रही थी।
कहानी जारी रहेगी !
प्रेम गुरु नहीं बस प्रेम
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