मेरी सुप्रिया डार्लिंग-4
सुप्रिया का गण्डतंत्र
लेखक : रोहित
अपनी कहानी के पिछले भागों ‘सुप्रिया डार्लिंग’, ‘सुप्रिया का उद्घाटन’ और ‘सुप्रिया को लंड-चटोरी बनाया’ में मैंने बताया कि मैंने कैसे सुप्रिया के दो छेदों का मजा लिया। अब मैं आपको बताऊँगा कि कैसे मैंने सुप्रिया की सुपर सेक्सी गाण्ड की सील तोड़ी।
मैं और सुप्रिया अब नियमित रूप से चुदाई का मजा लेते थे लेकिन अब मैं उसकी गाण्ड मारने के लिए बेचैन था। जब मैंने पहली बार सुप्रिया को नंगी किया था तभी से उसकी एकलक्खी (लाखों में एक) गाण्ड में अपना लंड पेलने के लिए व्याकुल था और अब तो सुप्रिया पूरी तरह मेरे कंट्रोल में थी लिहाजा इस शुभ काम में देरी ठीक नहीं थी।
एक दिन चुदाई के दौरान मैंने सुप्रिया को बताया कि पीछे भी लण्ड डाला जाता है।
सुप्रिया ने चकित होकर कहा- अच्छा? ऐसा भी होता है क्या?
मैंने कहा- हाँ ! तुझमें भी मैं डालूंगा, हालांकि यह अप्राकृतिक होता है।
इस पर सुप्रिया ने कहा- तब तो मैं कतई नहीं डालने दूंगी।
लेकिन मैंने उसकी बात अनसुनी करते हुए कहा- एक ना एक दिन मैं भी तुझमें डालूँगा।
सुप्रिया ने उकताते हुए कहा- ठीक है डाल लेना, आज नहीं न डालोगे?
मैं समझ गया कि अब उसकी गाण्ड का रास्ता साफ है।
अगले दो-तीन दिन मैं सुप्रिया को खूब उत्तेजित करने के बाद उससे पूछता कि पीछे डालूँ तो वह यही कहती कि ‘मुझे कुछ नहीं पता, जो चाहे करो’ और मैं उसकी चूत ही ठोक कर छोड़ देता।
इसी बीच 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस आ गया। सवेरे मैंने सुप्रिया को अपनी बाँहों में कस कर उसकी गाण्ड में उंगली घुमाते हुए कहा- डार्लिंग, आज इसी में लण्ड डालकर गणतंत्र दिवस मनाना है।
सुप्रिया का चेहरा लाल हो गया और उसने ‘तुम बड़े गंदे हो !’ कह कर खुद को छुड़ा लिया।
रात को मैंने उसे खूब गर्म करने के बाद उसे पेट के बल लिटा दिया और उसके कान में फुसफुसाया- जरा कल्पना करो डार्लिंग कि मैं तुम्हारे ऊपर लेट कर अपने हाथों को तुम्हारी चूचियों पर पहुँचा दूँ, मेरे होंठ तुम्हारे गाल पर हों, मेरी गर्म साँसें तुम्हें मस्त करें और तुम्हारे पीछे मेरा लंड धीरे-धीरे अंदर-बाहर हो।
सुप्रिया ने बेसुध आवाज में कहा- ठीक है, कर लो।
अब मैंने सुप्रिया की चूत के नीचे एक तकिया लगाया जिससे उसकी गाण्ड उभर जाए। इसके बाद मैंने एक जेली की ट्यूब ली और सुप्रिया की गाण्ड में जेली डालने लगा, उसने भी गाण्ड ढीली कर सहयोग किया। पूरी ट्यूब की जेली को सुप्रिया की गाण्ड में डालने के बाद मैंने अपने लंड का सुपारा सुप्रिया की गाण्ड के छेद पर रखा और ईश्वर को धन्यवाद देते हुए धक्का लगाया।
सुपाड़ा जाते ही सुप्रिया चीख उठी लेकिन मैंने तुरंत दूसरा धक्का लगाया और आधा लंड अंदर चला गया। सुप्रिया की तो जैसे गाण्ड ही फट गई और वो चिल्लाने लगी। तभी मैंने तीसरा धक्का लगाया और पूरा लंड अंदर !
सुप्रिया छटपटाई लेकिन मैं उसके ऊपर लेट गया और अपनी दोनों हथेलियों को उसकी चूचियों पर पहुँचा दिया। मेरे होंठ उसके गाल पर थे और मेरी गर्म साँसें उसे महसूस हो रही थी।
कुछ देर पहले की कल्पना साकार हो चुकी थी। मैं उसे ‘मेरी सुप्पी ! मेरी जानू ! आई लव यू डार्लिंग !’ जैसे शब्द बोलते हुए अपना लंड अंदर-बाहर कर रहा था। जेली के कारण मेरा लंड आसानी से मूव कर रहा था लेकिन सुप्रिया को दर्द हो रहा था फिर भी उसे अपने ऊपर अपने प्रियतम रोहित के होने का अहसास सांत्वना दे रहा था।
तकरीबन 15 मिनट तक सुप्रिया की गाण्ड मारने के बाद मैंने अपना लंडामृत उसकी गाण्ड में ही छोड़ दिया ताकि उसे अपनी गाण्ड में इसका गर्म अहसास बना रहे। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
झड़ने के बाद भी मैं उसके ऊपर ही लेटा रहा और जब लण्ड ढीला होकर बाहर आया तो मैं उस पर से उतर गया और करवट लेटते हुए सुप्रिया को अपनी बाँहों में कस लिया और एक गहरा चुम्बन लेने के बाद कहा- लो डार्लिंग, तुम्हारा गण्डतंत्र दिवस मन गया, आज मैंने तुम्हारी गाण्ड भी मार ली।
सुप्रिया झेंप गई और कुछ न बोल कर चुम्बनबाजी में व्यस्त हो गई। कुछ देर बाद हम दोनों मीठी नींद में सो गये।
अब मैं सुप्रिया से पूछता नहीं था, उसे चूम-चाट कर गर्म करने के बाद उससे लंड चुसवाता-चटवाता था, फिर लंड को उसकी गाण्ड में डाल देता था। थोड़ी देर गाण्ड मारने के बाद फिर अंत में उसकी चूत चोदता था।
सुप्रिया समझ गई कि चूत में लंड लेने के लिए लंड चाटना और गाण्ड मरवानी ही पड़ेगी।
सुप्रिया को गाण्ड मरवाना बहुत पसंद नहीं था लेकिन मेरी खुशी के लिए मरवाती थी। कभी-कभी वो कहती भी थी- देखो, पीछे कुछ मत करना !
तब मैं कटाक्ष करता- क्यों गाण्ड फटती है क्या तेरी?
फिर सुप्रिया ताव में आ जाती और अपनी तशरीफ(गाण्ड) मेरे लंड पर रख देती।
अब मैं नियमित रूप से सुप्रिया की गाण्ड मारने लगा। मेरी पसंदीदा स्टाइल था कि उसे बिस्तर के बाहर खड़ा करता और फिर उसके दोनों हाथ बिस्तर पर रख कर झुका देता। इससे उसकी मस्त गाण्ड उभर कर सामने आ जाती और मैं अपना लंड पेल कर अपनी दाएँ हाथ की उंगली सुप्रिया की चूत में डाल देता। मेरा बायाँ हाथ उसकी बायीं चूची मसलता रहता। जबकि सुप्रिया को वह स्टाइल ज्यादा पसंद थी जिसमें उसकी गाण्ड का उद्घाटन हुआ था।
तो मित्रो, इस तरह मैंने सुप्रिया को न सिर्फ चुदक्कड़ बनाया बल्कि लंड़चट यानी लंडचटोरी और अन्ततः गाण्डू भी बना दिया।
सुप्रिया को लेकर मेरी अगली और अंतिम कहानी होगी ‘इतिश्री सुप्रिया’
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