सुहागरात भी तुम्हारे साथ मनाऊँगी-2
(Suhagraat Bhi Tumhare Sath Manaungi-2)
कहानी का पहला भाग : सुहागरात भी तुम्हारे साथ मनाऊँगी-1
मैं बैचेन था। शाम को मैं खेतों पर चला गया। मेरे खेतों पर एक पेड़ था, मैं वहाँ जाकर बैठ गया। मैं जब भी खेतो पर जाता था तो वो मुझ से कहती थी कि उसने मुझे देखा।
यही सोचकर मैं वहाँ बैठा था कि वो मुझे देखकर जरूर आयेगी।
थोड़ा अन्धेरा हो गया पर चाँदनी रात के कारण मुझे उसका घर दिखाई दे रहा था। थोड़ी देर बाद वो आ गई। उसने गुलाबी रंग का कमीज़ और सफेद सलवार पहन रखी थी। चाँदनी रात में उसके गोरे बदन पर गुलाबी कमीज़ में वो बिल्कुल परी की तरह दिख रही थी। कमीज़-सलवार फिटिंग में थे जिससे उसकी चूची और गाण्ड के उभार साफ दिख रहे थे। उसे देखते ही मेरा लण्ड फिर सलामी देने लगा।
मैं उसे देखकर मुस्कुराया।
यहाँ क्यूँ बैठे हो? उसने मुस्कराते हुए पूछा।
उसका मुस्कराना मुझ पर बिजली सी डाल गया- आपका इन्तजार कर रहा था।
तुम्हें क्या पता था कि मैं आऊंगी?
मुझे विश्वास था कि तुम जरूर आओगी।
अच्छा?
हाँ जान !
बोलो, क्यूँ इन्तजार कर रहे थे?
अपनी बात का जबाब जानने के लिए !
कौन सी बात?
डू यू लव मी?
अब भी बोलने की जरुरत है?
तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ।
और मैं मना कर दूँ तो?
आपकी मर्जी ! मैं थोड़े रुखे स्वर में बोला।
जानू, ऐसा हो सकता है कि मैं मना कर दूँ? आई लव यू ! आई लव यू वैरी मच ! मैं तुम्हें पहले से ही चाहती हूँ, पर कहने से डरती थी कि तुम नाराज न हो जाओ।
अच्छा फिर तब हाँ क्यों नहीं की जब मैं पूछ रहा था?
तब तुम मुझे छोड़ते?
मतलब?
कुछ नहीं !
अच्छा तो तुम क्या सोच रही हो कि तुम्हें अब छोड़ दूँगा? और हाथ उसकी तरफ बढ़ाया।
वो पीछे होने लगी तो अचानक गिर पड़ी।
मैंने पूछा- लगी तो नहीं?
वो हँसने लगी।
मैं उसके बगल में लेट गया।
उसके चहरे से बाल अलग किये और उसके होटों को चूमने लगा।
उसने भी मुझे बाहों मे जकड़ लिया।
वो बोली- यहाँ कोई देख लेगा।
मैं खड़ा हुआ और उसे घुटनों और गर्दन से हाथों में उठा एक ज्वार की फसल के बराबर में ले आया और खड़ा कर दिया।
मैंने पूछा- दोपहर को क्यों भाग आई थी?
वो शरमा गई- धत ! तुम गन्दे हो।
मैं बोला- इसमें गन्दा ही क्या ?
उसने कहा- वहाँ कोई देख लेता तो ?
मैंने कहा- ठीक है।
वो बोली- जानू, मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ और सिर्फ तुम्हारी हूँ पर !
पर क्या? मैंने पूछा।
पर वो काम मैं करना नहीं चाहती !
मैं बोला- कौन सा काम?
उसे शर्म आ रही थी- वो तुम जानते हो कि मैं क्या कहना चाहती हूँ।
मैं नहीं जानता।
वो सेक्स नहीं करना चाहती।
शर्म से उसका चेहरा लाल हो रहा था उसने मुँह नीचे कर लिया।
मैं बोला- कहती हो कि मेरी हो तो फिर मना क्यों?
वो बोली- मेरी सहेली कहती है कि लड़के सिर्फ इसी काम के लिए लड़कियों को पटाते हैं।
मैं बोला- प्यार करते हैं तो सेक्स में क्या बुराई है? हमारी उम्र मौज लेने की है तो लेनी चाहिए।
वो उदास सी हो गई और बोली- ठीक है ! कर लो ! मैं कुछ नहीं कहूँगी।
फिर मैं उसे चूमने लगा और उसकी चूचियों को दबाने लगा। 5-10 मिनट तक ऐसे ही करता रहा लेकिन मुझे वो उदास लग रही थी।
फिर वो बोली- जल्दी कर लो, काफी देर हो गई है।
मैं बोला- क्या?
जो तुम करना चाहते हो ! वो धीरे से बोली, उसकी आवाज में उदासी थी।
मैं उसे नाराज नहीं करना चाहता था क्योंकि मैं उसे दिल से चाहने लगा था।
मैंने उसका हाथ पकड़ा और बोला- लक्ष्मी, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ ! तुम्हारे शरीर से नहीं ! मैं तब तक तुम्हारे साथ सेक्स नहीं करूंगा तब तक तुम खुद नहीं कहोगी।
मैंने उसके हाथ को चूमा।
वो खुश हो गई जैसे उसे कुछ मिल गया हो- तुम नाराज तो नहीं हो? उसने पूछा।
मैंने मना कर दिया और बोला- जिसमें मेरी जान खुश है उसी में मैं खुश हूँ।
वो बहुत खुश हुई, फिर से पहले की तरह मुस्कराने लगी।
मैंने कहा- अब तुम जाओ, काफी देर हो गई है।
वो बोली- मन तो नहीं कर रहा !
मैं बोला- न जाओ तो अच्छा है।
क्यों? उसने पूछा।
मैं फिर करने लगूँगा।
क्या?
सेक्स !
डरा रहे हो?
हाँ !
मैं नहीं डरूँगी।
अच्छा?
हाँ !
मैंने हाथ पकड़ कर उसे अपनी ओर खींचा।
ओ जानू डर गई !
मैं जा रही हूँ, नहीं तो घर से कोई आ जाएगा।
उसने मेरे होटों का चुम्बन लिया और बोली- लव यू जान !
गुड नाईट !
बाय !
फिर वो हँसती हुई चल दी।
मैं भी उसके साथ उस पेड़ तक गया, उसे पकड़ कर एक लम्बा चुम्बन लिया और बाय कहा।
वो चली गई। मैं वहीं खड़ा होकर उसे देख रहा था, मेरा मन कर रहा था कि उसी के साथ बैठा रहूँ।
वो घर पहुँच गई और मुड़कर हाथ हिला कर बाय किया, मैंने भी हाथ हिला दिया।
मैं लगभग 30 मिनट वहाँ बैठा उसके बारे में सोचता रहा।
अचानक वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गई।
मैं कुछ बोलता, इससे पहले बोली- जानू, घर जाने की सलाह नहीं है?
मैंने कहा- नहीं !
क्यूँ?
पता नहीं ! मन नहीं कर रहा।
तुम क्यों आई?
मैंने देखा कि तुम यहीं बैठे हो तो खुद को आने से रोक ही नहीं पाई। अब घर जाओ ! घरवाले चिन्ता कर रहे होंगे।
या नाराज हो?
मैंने पूछा- नाराज क्यों।
मैंने मना कर दिया?
किसके लिए?
मुझसे बार बार मत कहलवाओ ! मुझे शर्म आती है।
तभी तो शर्म दूर होगी।
अच्छा तो तुम नाराज हो !
मैंने मजाक में हाँ कह दिया।
उसने भी रुठने का चेहरा बना लिया।
मैं बोला- जानू मजाक कर रहा हूँ।
मुझे पता है ! अब जाओ !
नहीं गया तो?
मैं भी नहीं जाऊँगी।
कहते हुए बैठ गई।
तुम नहीं जाओगी?
हाँ ! नहीं जाऊँगी।
यह तो अच्छा है।
जानू जाओ न प्लीज ! अलग सा चेहरा बनाकर बोली।
मुझे उसका चेहरा देखकर हँसी आ गई, मैं बोला- रोओ मत ! जा रहा हूँ !
मैं कहाँ रो रही हूँ?
ठीक है, चलो चलते हैं !
मैंने उसे चूमा और बाय कहकर चला आया।
कहानी अभी खत्म नहीं हुई है।
1630
What did you think of this story??
Comments