दोस्ती में फुद्दी चुदाई-9

(Dosti Mein Fuddi Chudai-Part 9)

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दोस्तो, पिछले भाग में आपने मेरी और रूचि की घमासान चुदाई पढ़ कर अपनी लौड़े जरूर हिलाए होंगे..
कई चूतों से पानी छूट पड़ा होगा और मेरे कुछ दोस्तों ने मेरी और रूचि की तरह चुदाई करने की कोशिश भी की होगी।

लेकिन असल मुद्दा था कि अंकिता ने रूचि के साथ ऐसी क्या बकचोदी की थी..

जिसकी वजह से रूचि और अंकिता की दोस्ती टूट गई।

आइये आगे पढ़ते हैं।

रूचि आगे बताना चालू करती है कि अंकिता हरामजादी मुझे गालियाँ पे गालियाँ सुनाए जा रही थी और मैं नंगी घुटनों के बल नीचे बैठे हुए उसकी गालियाँ और बीच-बीच में चांटे भी खा रही थी।

पता नहीं.. मुझे क्या हुआ था कि मैं कुछ कर ही नहीं पा रही थी और आशीष जिसने मुझे इस तरह फंसाया था वो भी अब शेर बन चुका था।

उसका लण्ड भी धीरे-धीरे आकार लेने लगा था क्योंकि अंकिता उसको कुछ नहीं बोल रही थी बल्कि मुझे ही रंडी.. कुतिया.. छिनाल.. भड़वी चिल्लाने में लगी थी।

मैंने पूछा- वो ऐसा क्या बोल रही थी तुझे और क्यों?

रूचि- अंकिता जब बाथरूम में नहा रही थी तो मैं और आशीष एक-दूसरे को चूमने-चाटने में लगे थे.. अब तुम्हीं बताओ कि तुम्हारी गर्लफ्रेंड तुम्हारी आँखों के सामने दूसरे का लण्ड अपने मुँह में लिए हो.. तो तुम क्या करते?

मैं बोला- लेकिन डार्लिंग गर्लफ्रेंड.. ना कि टाइमपास और जहाँ तक मुझे पता है आशीष अंकिता का टाइमपास ही है।

रूचि- बिलकुल सही.. मैं भी ये समझ नहीं पाई थी कि ये इतना ज्यादा ओवर-रियेक्ट क्यों कर रही है। लेकिन इसका जवाब भी मुझे कल ही मिला है.. जिसके बाद मुझे सारी कहानी समझ आई.. अब आगे सुनो।

अंकिता का चिल्लाना बदस्तूर जारी था.. वो मुझे बोली- छिनाल तेरी चूत में बहुत आग लगी है.. हरामजादी.. जब मैं इसी घर में हूँ तब तू चुद रही है.. जब मैं नहीं होती तो क्या क्या करती होगी तू.. रंडी।

मैं रोते हुए बोली- नहीं अंकिता मेरी जान.. ये पहली बार हुआ है.. वरना मैं तुझसे दूर कहाँ!

तभी ‘तड़ाक’ की आवाज़ के साथ एक तमाचा मेरे गालों पर पड़ा और अंकिता बोली- साली मादरचोद.. भोसड़ी की.. तेरी गांड इतनी फुदक रही थी तो सड़क पर खड़ी हो जाती.. कोई ना कोई तो चोद ही देता.. साली छिनाल.. माँ की लौड़ी.. शकल तो अच्छी है नहीं.. सीरत में भी चोर.. साली कुतिया मेरा ही ब्वॉयफ्रेंड मिला था तुझे.. अपनी भोसड़ी की आग बुझाने को साली सूअर की औलाद।

मैं चुपचाप नीचे अपना गाल पकड़े सिसक रही थी.. मुझे उस वक़्त वाक़यी में ख़ुद पर शर्म आ रही थी कि मैं अंकिता की बातें बर्दाश्त कर रही थी।

तभी अंकिता ने मुझे बाल से पकड़ कर खींचा और बोली- साली मादरजात.. तू काली दिखती ही नहीं.. दिल की भी काली है.. मैंने तुझे दोस्त बनाया और तूने मेरी ही पीठ में छुरा घोंपा.. और आशीष से बोलती हैं आशू डार्लिंग तुमने अपना लण्ड इसकी चूत में डालकर गन्दा तो नहीं किया ना.. पता नहीं लण्डखोर ये रंडी.. किस-किस से चुदती होगी।

आशीष बोला- नहीं अंकू जानू.. इसकी काली चूत में कौन अपना लण्ड डालेगा.. तुम्हारी मस्त गुलाबी चूत के आगे इसकी क्या बिसात।

मुझे आशीष से ऐसे जवाब की उम्मीद बिलकुल नहीं थी।

मैंने उसकी ओर देखा तो अंकिता और आशीष एक-दूसरे के होंठों को चूसते हुए हँस रहे थे।

अंकिता मेरी ओर उसी छोटी सी तौलिया में आई और अपनी दो उँगलियाँ मेरी चूत में अन्दर तक घुसा दीं और आशीष की तरफ देख कर बोली- अरे इस छिनाल की चूत तो अब भी गीली है आशु बेबी.. लगता है इसकी चुदाई की चाहत अभी खत्म नहीं हुई।

उसने मुझे लगभग घसीटते हुए आशीष के लण्ड के पास ले जाकर बिठा दिया और जोर से गरजी- चूस मादरचोदी…

मैं डर गई और मैं बिना कुछ कहे आशीष का लण्ड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।

वो दोनों खिलखिला कर हँसने लगे.. मैंने नजरें ऊपर उठाईं तो दोनों एक-दूसरे के होंठों को बुरी तरह से चूस रहे थे।

उनकी जीभ एक-दूसरे से लिपट रही थी आशीष का एक हाथ मेरे सर को आगे-पीछे कर रहा था और दूसरा अंकिता की चूचियों के साथ खेल रहा था।

मैं किसी डर की वजह से आशीष का लण्ड बिना रुके चूसे जा रही थी और उधर अंकिता की तौलिया भी निकल गई थी।

अभी रूचि की बात चल ही रही थी कि तभी खाना आ गया और मैंने रूचि को रुकने का इशारा किया.. वेटर खाना रख कर चला गया तो मैंने रूचि के हाथों को अपने हाथ में लेकर पूछा- किस बात का डर था तुम्हें स्वीटी.. जो तुम उसकी हर बात मान रही थीं।

रूचि- उसकी दोस्ती खोने का.. क्योंकि कुछ दिन पहले ही मेरा ब्रेक-अप हुआ था और मैं जैसे अकेली सी पड़ गई थी।

अंकिता के होने से हौसला था.. उसी वजह से शायद मैं सजा भुगतने को राज़ी थी.. ऊपर से मैं इतना डर भी गई थी कि मुझे कुछ समझ ही नहीं आया।

‘फिर क्या हुआ?’ मैंने पूछा।

रूचि एक कौर मेरे मुँह में मुस्कराते हुए डालते हुए बोली।

रूचि- फिर अंकिता ने मेरे बाल खींचे और मुझे उठा कर अपने करीब लाई और मेरे होंठों को अपने होंठों से सी कर मेरे होंठ काटने लगी.. कि तभी आशीष ने एक ऊँगली मेरी चूत में और एक ऊँगली मेरी गाण्ड में डाल दी।

मैं चिहुँक उठी और थोड़ा उछल गई.. मेरे होंठ अंकिता के दांतों के बीच होने की वजह से बहुत तेज दर्द हुआ।

लेकिन इसके बाद भी उन दोनों कमीनों ने मुझे छोड़ा नहीं.. अंकिता अब मेरी चूत चाट रही थी और मैं बिस्तर पर औंधी पड़ी थी.. उसी स्थिति में आशीष ने मेरे हाथ पलंग के कोनों से बांध दिए।

कुछ देर के बाद मेरी चूत दुबारा गीली हो गई मेरा शरीर भी अब मेरे हिसाब से नहीं चल रहा था। मन बहुत खिन्न हो रहा था कि बेल्ट की एक तेज चपत मेरे कूल्हों पर पड़ी.. मेरी लगभग चीख निकलते-निकलते बची। जैसे ही मैं पीछे मुड़ी.. तो देखा अंकिता अपनी बेल्ट पकड़े मेरी गाण्ड पर दुबारा वार करने को तैयार थी।

‘चटाआआआक…’ की एक और जोर की आवाज़ हुई और मेरी चीख निकल गई।
मेरे हाथ तो बंधे थे.. मैं सहला भी नहीं पाई और इसी तरह चार-पांच बार और मेरी गाण्ड को मार सहनी पड़ी.. मेरे आंसू निकल आए लेकिन चूत का गीलापन और बढ़ गया.. पता नहीं क्यों।

अंकिता मेरी गाण्ड चूमते हुए मेरे कानों के पास आकर बोली- कुतिया जो दर्द तूने मुझे दिया है.. उसके आगे तो ये कुछ भी नहीं.. तू चुदेगी आज.. जबरदस्त चुदेगी.. यही तेरी सजा है और मजा भी… हाहाहा।

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अंकिता आशीष से गुर्राई, ‘डाल दे अपना लण्ड इस मादरचोदी चूत में…’

गनीमत यह थी कि आशीष ने कंडोम चढ़ाया हुआ था वरना एक ही झटके में डाला गया आशीष का मोटा लण्ड मेरी चूत छीलने के लिए काफी था। तब भी मेरी चीख रोकते-रोकते निकली ही गई। आशीष धक्के लगाने लगा लेकिन क्योंकि मैं उलटी लेटी थी।

आशीष का लण्ड गहराई तक चोट कर रहा था मैं सिसकारियाँ भरने लगी.. तभी अंकिता मेरी पीठ पर बैठ गई और मेरे मुँह में एक लॉलीपॉप डाल दी.. पहले मैं ये समझ नहीं पाई लेकिन फिर अंकिता ने अपना 9 इंच लंबा और लगभग 3 इंच चौड़ा गुलाबी डिल्डो निकाला और मेरी आँखों के सामने नचाया। उसी वक़्त मैं समझ गई कि मेरी गाण्ड का उद्घाटन करने की तैयारी है.. मेरा मुँह बंद था और मेरी चीख किसी को सुनाई नहीं पड़नी थी।

अंकिता ने उसे एक बार चूसा और फिर मेरी गाण्ड पर एक जेल लगा कर रख दिया। उधर आशीष बिना रुके धक्के मारे जा रहा था और मेरी गाण्ड पर रखा डिल्डो अंकिता ने झटके से अन्दर घुसा दिया। मैं कुछ नहीं कर पाई क्योंकि मेरे हाथ बंधे हुए थे। उस वक़्त का दर्द मैं बयान नहीं कर सकती.. मेरी आँखें बाहर आ गई थीं.. मेरी दर्द सहने की क्षमता पार हो चुकी थी। मेरी गाण्ड फट चुकी थी.. मेरे आंसुओं से बिस्तर का सिरा गीला हो चुका था। अंकिता मेरी ही पीठ पर बैठी हुई आशीष को चूम रही थी.. आशीष मेरी चूत जोर-जोर से चोदने में लगा था और अंकिता मेरी गाण्ड खोद रही थी।

कुछ देर बाद मेरी सिसकारियाँ निकलनी चालू हो गईं.. मेरी चूत झड़ने लगी.. पर आशीष अभी भी मुझे चोद रहा था.. मुझे भी मजा आने लगा लेकिन असली मजा गांड मरवाने में आ रहा था।

तभी अंकिता ने डिल्डो बाहर निकाला और आशीष को धक्का दिया।

मुझे भी थोड़ी राहत मिली लेकिन उसका मुझे आराम देने का शायद कोई इरादा नहीं था। आशीष ने आकर मेरी रस्सियाँ खोलीं और मुझे सीधा किया। उसने मुझे प्यार से एक चुम्बन किया और फिर एक थप्पड़ जड़ दिया.. इससे पहले कि मैं कुछ सोच पाती.. उसने कंडोम पहने हुए ही अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया।

उधर अंकिता ने डिल्डो खुद पहन लिया था और मैं समझ गई कि अब चूत की बारी है। जैसे ही अंकिता ने मेरी तंग चूत को उस भयानक लण्ड से चोदना चालू किया.. आशीष के लण्ड ने उस लिसलिसे और मेरी चूत के पानी लगे कंडोम में पिचकारी मार दी…

मैंने मुँह से निकालने की कोशिश की.. लेकिन आशीष ने ऐसा करने नहीं दिया। नीचे मेरी चूत में आग लगी हुई थी और मेरी आँखें वासना की वजह से बार-बार बंद हो जा रही थीं। आखिर में मुझे अपने मुँह के ही अन्दर वो लिसलिसा नमकीन सा रस पीना पड़ा। आशीष ने अपना लण्ड बाहर नहीं निकाला मेरा मुँह दर्द हो रहा था.. मैं चूसती रही कुछ ही देर में उसका लण्ड दुबारा खड़ा हो गया था।
पिछले तीन घंटों की लगातार चुदाई की वजह से मेरा पूरा बदन टूट रहा था। मैं कुछ करने की हालात में नहीं थी। तभी आशीष ने मुझे उठाया और मेरे नीचे लेट कर मेरी गाण्ड में अपना लण्ड डाल दिया और अपनी गाण्ड उठा-उठा कर धक्के मारने लगा।

मैं अन्तर्वासना से भर गई.. अंकिता का चोदन अब भी जारी था.. मैं चार बार झड़ चुकी थी। कुछ ही देर में आशीष ने मेरी गाण्ड भर दी वीर्य का स्पर्श होते ही मेरी चूत भी झड़ गई। मैंने अंकिता से बस का इशारा किया। अंकिता रुक गई हमारी नजरें मिलीं.. उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे।

मैं समझ नहीं पाई, मेरे पूरे शरीर पर हवस के निशान थे.. मैं उठ कर बाथरूम जाना चाहती थी.. पर उठ ना पाई.. आशीष के सहारे किसी तरह बाथरूम पहुँची और उसी के सहारे नहाई।

रूचि को टोक कर मैंने पूछा- इसमें सजा क्या थी.. तुम्हारी लगातार चुदाई या फिर दर्द.. जो तुम्हें हुआ या बेइज़्ज़ती.. तुम्हें तुम्हारी नजरों में गिराने की…!

मेरी बात काट कर रूचि बोली- उससे भी बुरा।

मैंने पूछा- मतलब..?

रूचि बोली- अगले दो दिन मैं कॉलेज नहीं गई सोती रही.. जब उठी तो लगा भूख लगी है तुम्हें पता है किस चीज की भूख?

मैंने बोला- खा..ना.. मेरे ख्याल से।

रूचि बोली- नहीं लण्ड की भूख .. मेरी चूत में सुरसुरी हो रही थी.. किसी तरह सुबह से खुद को रोका.. लेकिन शाम को अपने पड़ोसी के लड़के से चुदवा बैठी.. उसके अगले दिन उसके बाप से.. उसके अगले दिन कॉलेज में ही कैंटीन के अन्दर एक गार्ड से और आज तुमसे.. ये सजा दी है मुझे अंकिता ने रण्डी बना दिया.. बिलकुल खुद जैसा।

मैंने पूछा- लेकिन आखिर क्यों??

दोस्तों इस सवाल का जवाब अगले भाग में मिल सकता है।

आपके विचार मुझे और भी सत्यघटनाएं आपके साथ बांटने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

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