दोस्त की भतीजी संग वो हसीन पल-4
(Dost Ki Bhatiji Sang Vo Haseen Pal-4)
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जब मैंने अपना एक हाथ उसके पजामे के ऊपर से ही उसकी चूत पर रखा तो पजामा चूत के पानी से इतना गीला हो चुका था कि लगता था जैसे मीनाक्षी ने पजामे में पेशाब कर दिया हो।
मैंने अपना हाथ मीनाक्षी के पजामे में घुसा दिया और ऊँगली से उसकी चूत के दाने को सहलाने लगा।
मीनाक्षी मस्ती से बेहाल हो गई थी और मेरे सर को जोर से अपनी चूचियों पर दबा रही थी।
मेरा लंड भी पजामे को फाड़ कर बाहर आने को मचल रहा था।
मैंने मीनाक्षी को बैठाया और पहले उसकी टी-शर्ट को उतारा और फिर सीधा लेटा कर उसके पजामे को भी उसके गोरे-गोरे बदन से अलग कर दिया।
यही समय था जब पहली बार मैं उसकी कमसिन कुंवारी चूत को अपनी आँखों के सामने नंगी देखा था। नर्म नर्म रोयेदार भूरी भूरी झांटों के बीच छोटी सी गुलाबी चूत… चूत देखते ही मेरे लंड ने तो जैसे बगावत कर दी।
मैंने भी बिना देर किये अपने कपड़े उतार कर एक तरफ रख दिए और झुक कर मीनाक्षी की चूत को सूंघने लगा। एक मादक खुशबू से मेरे बदन में वासना की ज्वाला बुरी तरह से भड़क उठी थी।
मैंने बिना देर किये मीनाक्षी की गोरी गोरी जाँघों को चूमना और चाटना शुरू कर दिया। मीनाक्षी के मुँह से मादक सिसकारियाँ फूट रही थी।
जाँघों को चूमते चूमते मैंने अपने होंठ मीनाक्षी की कुंवारी चूत पर रख दिए। मेरे होंठों के स्पर्श से एक बार फिर उत्तेजना के मारे मीनाक्षी की चूत ने पानी छोड़ दिया।
मैं ठहरा चूत का रसिया… मेरे लिए तो कुंवारी चूत का ये पानी अमृत समान था, मैं जीभ से सारा पानी चाट गया।
चूत चाटते हुए मैंने मीनाक्षी का एक हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया।
मेरे लंड की लम्बाई और मोटाई का अंदाजा लगते ही मीनाक्षी उठ कर बैठ गई। शायद अब से पहले उसको मेरे लंड की लम्बाई और मोटाई का एहसास ही नहीं था।
‘चाचू… ये तो बहुत बड़ा और मोटा है…’ मीनाक्षी ने हैरान होते हुए कहा।
‘तो तुम क्यों घबराती हो मेरी जान… ये तो तुम्हें प्यार करने की ख़ुशी में ऐसा हो गया है।’
‘प्लीज इसे मेरे अन्दर मत डालना… मैं नहीं सह पाऊँगी आपका ये!’
‘घबराओ मत… कुछ नहीं होगा…’ मैंने उसको समझाते हुए दुबारा लेटा दिया और लंड को उसके मुँह के पास करके फिर से उसकी चूत चाटने लगा।
मैंने मीनाक्षी को लंड सहलाने और चूमने को कहा तो उसने डरते डरते मेरे लंड को अपने कोमल कोमल हाथों में पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाने लगी।
मेरे कहने पर ही वो बीच बीच में अपनी जीभ से मेरे लंड के टमाटर जैसे सुपारे चाट लेती थी पर मुँह में लेने से घबरा रही थी।
मैं भी कोई जोर-जबरदस्ती करके उसका और अपना मज़ा खराब नहीं करना चाहता था। मैं उसकी चूत के दाने को उंगली से सहलाते हुए जीभ को उसकी चूत में घुसा घुसा कर चूस और चाट रहा था।
लगभग दस मिनट ऐसे ही चूसा चुसाई का प्रोग्राम चला और फिर मीनाक्षी भी तड़प उठी थी मेरा लंड अपनी कुंवारी चूत में लेने के लिए… मेरे लिए भी अब कण्ट्रोल करना मुश्किल हो रहा था।
मैंने मीनाक्षी को लेटा कर उसकी दोनों टांगों को चौड़ा किया और खुद उसकी टांगों के बीच में आकर मैंने अपने लंड का सुपारा उसकी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया।
अपनी चूत पर मेरे मोटे लंड का एहसास करके मीनाक्षी घबरा रही थी, उसकी घबराहट को दूर करने के लिए मैं मीनाक्षी के ऊपर लेट गया और कभी उसके होंठ तो कभी उसकी चूची को चूसने लगा, नीचे से लंड भी मीनाक्षी की चूत पर रगड़ रहा था।
रगड़ते रगड़ते ही मैंने लंड को चूत पर सही से सेट करके थोड़ा दबाव बनाया तो मीनाक्षी की रस से भीग कर चिकनी हुई चूत के मुहाने पर मेरा सुपारा अटक गया।
मुझे अपने आप पर गुस्सा आया कि जब पता था की एक कमसिन कुंवारी चूत का उद्घाटन करना है तो क्यों नहीं मैं तेल या कोई क्रीम साथ लेकर आया।
पर अब क्या हो सकता था, सोचा चलो थूक से ही काम चला लेते है। इतना तो मैं समझ चुका था कि चुदाई में मीनाक्षी बहुत शोर मचाएगी क्यूंकि आज उसकी चूत फटने वाली थी।
मैं दुबारा से नीचे उसकी चूत पर आया और फिर से उसकी चूत चाटने लगा। चाटते हुए ही मैंने ढेर सारा थूक मीनाक्षी की चूत के ऊपर और अन्दर भर दिया।
मैंने पास में पड़े अपने और मीनाक्षी के कपड़े उठा कर एक तकिया सा बनाया और उसकी गांड के नीचे दे दिया जिससे उसकी चूत थोड़ा ऊपर की ओर होकर सामने आ गई।
मैंने लंड दुबारा मीनाक्षी की चूत पर लगाया और एक हल्का सा धक्का लगाया तो मीनाक्षी दर्द के मारे उछल पड़ी।
रात का समय था और अगर मीनाक्षी चीख पड़ती तो पूरी कॉलोनी उठ जाती।
मैंने रिस्क लेना ठीक नहीं समझा और अपनी जेब से रुमाल निकाल कर उसको गोल करके मीनाक्षी के मुँह में ठूस दिया। मीनाक्षी मेरी इस हरकत पर हैरान हुई पर मैंने उसको बोला कि ऐसा करने से तुम्हारी आवाज बाहर नहीं आएगी।
वो मुँह में कपड़े के कारण कुछ बोल नहीं पा रही थी।
मैंने अब बिना देर किये किला फतह करने की सोची और दुबारा से लंड को चूत पर रख कर एक जोरदार धक्के के साथ अपने लंड का सुपाड़ा मीनाक्षी की कमसिन कुंवारी चूत में घुसा दिया।
मीनाक्षी दर्द के मारे छटपटाने लगी पर रुमाल मुँह में होने के कारण उसकी आवाज अन्दर ही घुट कर रह गई।
मैंने उचक कर फिर से एक जोरदार धक्का लगा कर लगभग दो इंच लंड उसकी चूत में घुसा दिया। सच में मीनाक्षी की चूत बहुत टाइट थी, दो तीन इंच लंड घुसाने में ही मुझे पसीने आ गए थे।
मुझे पता था कि अब अगले ही धक्के में मीनाक्षी का शील भंग हो जाएगा तो मैंने लंड को वापिस खींचा और अपनी गांड का पूरा जोर लगा कर धक्का मारा और लंड शील को तोड़ता हुआ लगभग पाँच इंच चूत में घुस गया।
धक्का जोरदार था सो मीनाक्षी सह नहीं पाई और थोड़ा छटपटा कर लगभग बेहोशी की हालत में चली गई। मैंने नीचे देखा तो मीनाक्षी की चूत से खून की एक धारा सी फूट पड़ी थी जो मेरे लंड के पास से निकाल कर नीचे पड़े कपड़ों पर गिर रही थी। मैंने जल्दी से उसकी गांड के नीचे से कपड़े निकाल कर साइड में किये और जितना लंड अन्दर गया था उसको ही आराम आराम से अन्दर बाहर करने लगा।
लंड तो जैसे किसी शिकंजे में फंस गया था, बड़ी मुश्किल से लंड अन्दर बाहर हो रहा था।
कुछ देर मैं ऐसे ही करता रहा और फिर करीब पांच मिनट के बाद मीनाक्षी को कुछ होश सा आया। उसकी आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बह रही थी, उसने कपड़ा मुँह से निकालने की विनती की तो मैंने रुमाल उसके मुँह से निकाल दिया।
‘चाचू… प्लीज बाहर निकालो इसको… बहुत दर्द हो रहा है, मैं नहीं सह पाऊँगी।’ मीनाक्षी ने रोते रोते कहा।
‘अरे तुम तो वैसे ही घबरा रही थी… देखो तो ज़रा पूरा घुस गया है और अब मेरी स्वीटी जान को दर्द नहीं होगा क्योंकि जो दर्द होना था वो तो हो चुका, अब तो सिर्फ मजे ही मजे हैं।’
‘नहीं चाचू… मुझे अभी भी दर्द हो रहा है।’
मैंने उसको लंड अन्दर बाहर करके दिखाया कि देखो अब लंड ने अपनी जगह बना ली है और अब दर्द नहीं होगा। इन पांच मिनट में लंड ने सच में इतनी जगह तो बना ही ली थी कि सटासट तो नहीं पर आराम से लंड जितना चूत में घुस चुका था वो अन्दर बाहर हो रहा था।
जो दर्द मीनाक्षी को महसूस हो रहा था वो चूत फटने का दर्द था। चूत मेरे लंड के करारे धक्के के कारण किनारे से थोड़ा सा फट गई थी जिसमें धक्के लगने से दर्द होता था।
मैंने फिर से लंड एक सधी हुई स्पीड में चूत के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया, हर धक्के के साथ मीनाक्षी कराह उठती थी।
चार-पांच मिनट तो मीनाक्षी हर धक्के पर कराह रही थी पर उसके बाद उसकी दर्द भरी कहराहट के साथ साथ मादक आहें भी निकलने लगी थी।
वैसे तो अभी भी मेरा लगभग दो इंच लंड बाहर था पर मुझे पता था कि जितना भी लंड उसकी चूत में गया है वो भी उस कमसिन हसीना के लिए ज्यादा था।
मैंने अब धक्कों की स्पीड तेज करनी शुरू कर दी थी। मीनाक्षी की चूत ने भी कुछ पानी छोड़ दिया था जिससे चूत अब चिकनी हो गई थी। अब तो मीनाक्षी भी अपनी गांड को कभी कभी उठा कर लंड का स्वागत करने लगी थी। अब दर्द के बाद मीनाक्षी को भी मज़ा आने लगा था।
मेरे धक्कों की स्पीड बढ़ती जा रही थी और हर धक्के के साथ मैं थोड़ा सा लंड और मीनाक्षी की चूत में सरका देता जिससे कुछ ही धक्कों के बाद मेरा पूरा लंड मीनाक्षी की चूत में समा गया और मीनाक्षी की भूरी भूरी रेशमी झांटों से मेरी काली घनी झांटों का मिलन हो गया।
चुदाई एक्सप्रेस अब अपनी अधिकतम स्पीड पर चल रही थी, तभी मीनाक्षी का बदन अकड़ने लगा, वो झड़ने वाली थी और कुछ ही धक्कों के बाद मीनाक्षी की चूत से पानी की धार निकल कर मेरे आंड गीले करने लगे थे।
झरने के बाद मीनाक्षी थोड़ा सा सुस्त हुई पर उसके झड़ने से मुझे फायदा यह हुआ कि चूत अब पहले से ज्यादा चिकनी हो गई और लंड अब सटासट चूत में अन्दर बाहर हो रहा था।
करीब दो मिनट सुस्त रहने के बाद मीनाक्षी की चूत में फिर से हलचल होने लगी और वो हर धक्के के साथ अपनी गांड उठा उठा कर चुदवाने लगी ‘आह्ह्ह… उम्म्म्म… चाचू… बहुत मज़ा आ रहा है अब तो… जोर जोर से करो… ओह्ह्ह्ह… आह्ह्ह्ह… आईईई… उम्म्म… चोदो… जोर से चोदो मुझे… मेरे प्यारे चाचू… फाड़ दो… बहुत मज़ा…. आ रहा है चाचू..’ मीनाक्षी मस्ती के मारे बड़बड़ा रही थी और मैं तो पहले ही मस्त हुआ शताब्दी एक्सप्रेस की स्पीड पर चुदाई कर रहा था।
चुदाई लगभग पंद्रह मिनट तक चली और फिर मीनाक्षी जैसे ही दुबारा झड़ने को हुई तो मेरा लंड भी मीनाक्षी की चूत में अपने गर्म गर्म पानी से ठंडक पहुँचाने को तैयार हो गया।
बीस पच्चीस धक्के और लगे और फिर मीनाक्षी और मैं दोनों ही एक साथ झड़ गये। जैसे ही मीनाक्षी को अपनी चूत में मेरे वीर्य का अहसास हुआ वो मस्ती के मारे हवा में उड़ने लगी और उसने मुझे कसकर अपनी बाहों में भर लिया और टांगों को भी मेरे कूल्हों पर लपेट कर अपने से ऐसे जकड़ लिया जैसे वो मेरे लंड को अपनी चूत से अलग ही ना करना चाहती हो।
हम दोनों ही जोरदार ढंग से झड़े थे। मीनाक्षी अपनी पहली चुदाई के जोश में और मैं अपने लंड को मिली कमसिन चूत को फाड़ने के जोश में!
हम दोनों आधा घंटा भर ऐसे ही लिपटे रहे, दोनों को जैसे पूर्ण संतुष्टि के कारण नींद सी आने लगी थी।
तभी अचानक बाहर से कोई कार गुजरी और उसके हॉर्न ने जैसे हमें नींद से उठाया, हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए।
मीनाक्षी तो अभी भी टांगें चौड़ी किये सीधी लेटी हुई थी और चूत से मेरा वीर्य उसकी चूत के पानी से मिलकर बह रहा था। देख कर लगता था कि जैसे मेरे लंड से बहुत पानी निकला था।
मैंने मीनाक्षी को उठाया, उसने उठकर अपनी चूत और मेरे लंड को साफ़ किया। घड़ी देखी तो उसमें रात के तीन बज रहे थे।
लगभग दो घंटे से हम दोनों छत पर चुदाई एक्सप्रेस पर सवार थे।
समय का पता ही नहीं लगा कि कब बीत गया।
मीनाक्षी उठ कर कपड़े पहनने लगी तो मेरा ध्यान गया कि उसकी टी-शर्ट पर चूत से निकले खून के निशान थे। मैंने उसको वो दिखाए और समझाया की नीचे जाकर इन कपड़ों को धो कर डाल दे।
खून देख कर वो थोड़ा घबराई पर फिर उसने खून वाले हिस्से को चूम लिया।
तब तक मैंने भी अपना पजामा पहन लिया था। मीनाक्षी ने भी पजामा तो पहन लिया पर टी-शर्ट नहीं पहनी। अब हम दोनों का ऊपर का बदन नंगा था। वो एकदम से आई और मुझसे लिपट गई, मैंने भी उसके होंठो पर होंठ रख दिए।
कुछ देर ऐसे ही रह कर मैंने मीनाक्षी को टी-शर्ट पहनने को बोला तो उसने मना कर दिया।
मैंने बहुत समझाया की ऐसे ठीक नहीं है पर वो नहीं मानी।
फिर हम नीचे की तरफ चल दिए।
अन्दर बिलकुल शांति थी, नाईट बल्ब की लाइट में हम सीढ़ियाँ उतरने लगे। मूसल जैसे लंड से चुदाई के कारण मीनाक्षी चल नहीं पा रही थी। सीढ़ियाँ उतरते हुए तो मीनाक्षी की आह्ह निकल गई।
मैंने बिना देर किये उसको गोद में उठाया और नीचे लेकर आया। नीचे आकर मीनाक्षी बाथरूम में घुस गई और मैं भी बिना देर किये अमन के कमरे में चला गया।
कहानी जारी रहेगी।
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