दो सहेलियाँ चुद गई बॉयज हॉस्टल में-1
(Do saheliyaan Chud gai Boys Hostel me-1)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_right दो सहेलियाँ चुद गई बॉयज हॉस्टल में-2
-
View all stories in series
हेलो दोस्तो, मैं टीन मेघा…
मेरी पिछली कहानी
‘अब्बू के दोस्त और मेरी अम्मी की बेवफाई’
पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
अनगिनत मेल आईं जिनमें अधिकतर एक ही फ़रमाइश थी आपका व्हाट्स ऐप नंबर क्या है।
दूसरी फ़रमाइश थी कि क्या आप मेरे साथ सेक्स कर सकती हो।
सॉरी दोस्तो, मैं एक स्टूडेंट हूँ, मेरे लिए यह संभव नहीं है।
कुछ लोगों ने पूछा था कि ज़ीनत और उसकी अम्मी की कहानी वास्तविक ही या काल्पनिक?
तो आपको बता दूँ कि यह निर्णय लेना लेखक का नहीं पाठक का होता है।
कई लोगों ने मांग की थी कि प्लीज़ ज़ीनत और अपनी दोस्ती के बारे में लिखें।
यह बात मुझे काफी पसंद आई तो दोस्तो, ज़ीनत से मेरी दोस्ती कैसे हुई, इस कहानी में आप यही जानेंगे।
बात पिछली होली की है लेकिन जब भी याद आती है तो तन-मन में आग सी लग जाती है।
दरअसल मैं बारहवीं करने के बाद मैं ग्रेजुएशन करने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी चली गई।
‘हाय! क्या यह रूम नंबर 42 D है?’ लाल कुर्ती काली लेग्गिंग और गले में सफ़ेद दुपट्टा डाले वह चश्मा लगाए लड़की मेरे रूम के सामने खड़ी थी।
‘हाँ यह रूम नंबर 42 D ही है! मैं मेघा और आप?’ उसके हाथ में एक सूटकेस पीठ पर लैपटॉप बैग और दूसरे हाथ में बेड रोल था।
‘मैं ज़ीनत मेरठ से… लॉ स्टूडेंट!’
‘मैं मेघा, दिल्ली से ही…’ इस तरह ज़ीनत से मेरी पहली मुलाक़ात होस्टल के रूम में हुई थी।
जब मुझे मालूम पड़ा कि वह मेरी रूम मेट है, मुझे अजीब लगा कि यह तो बिल्कुल भी मोर्डन नहीं है।
लेकिन थोड़े ही दिनों में वह मेरी अच्छी सहेली बन गई थी।
जिन दिनों मैं हॉस्टल में रहकर अपनी ग्रेजुएशन कर रही थी, हमारा पहला साल था, उन दिनों होली का त्यौहार आया और अचानक एक्साम्स की डेट नजदीक आने के कारण मैं घर नहीं जा पाई।
ज़ीनत भी नहीं गई।
हमने होस्टल में रहकर परीक्षा की तैयारी करने का निर्णय लिया।
मम्मी पापा चौंके लेकिन एक्साम का जानकर आने के लिये ज्यादा नहीं कहा। ज़ीनत मेरी तरह पैसे वाले घर से नहीं थी लेकिन फिर भी उसके पास कभी पैसों की कमी नहीं रहती थी।
गर्ल्स हॉस्टल में बहुत ही कम लड़कियाँ थीं, तकरीबन सभी होली पर घर जा चुकी थीं, मैं और मेरी सहेली ज़ीनत नहीं गये थे।
बची हुई लड़कियों को, खासकर fresher को बॉयज़ हॉस्टल में होली खेलने के लिए बुलाया गया।
इस मौके पर मुझे किसी ने बताया कि होली पर यहाँ कालेज में एक ख़ास रस्म होती है।
मैंने घबराकर पूछा- कैसी रस्म?
तो वह बोला- शाम को होली के बाद बॉयज होस्टल में आपको सब कुछ खुद मालूम पड़ जायेगा।
मैं हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही थी, होस्टल की पुरानी लड़कियों जो घाट-घाट का पानी पी चुकी थी, उन्होंने बताया कि यह यहाँ की एक बेहद मजेदार और पुरानी रस्म है, हर साल फर्स्ट इयर की लड़कियाँ जाती हैं, इसमें कोई घबराने वाली बात नहीं है।
‘ऐसी भी क्या रस्म है बताओ न दीदी?’ मैंने एक सीनियर लड़की से पूछा।
उसको मैं दीदी बोलती थीं।
‘डर मत छुटकी… तीन साल पहले मैं भी जब आई थी तो तेरी जैसी ही थी।’
अगले दिन होली का त्यौहार था।
‘हे लड़कियो, चलो फटाफट… होली खेलने नहीं जाना क्या?’ सीनियर लड़कियाँ जिनको मैं दीदी कहतीं थीं, मुझे और मेरी रूममेट ज़ीनत को लेने आ गई थीं।
जब मैं उनके साथ बॉयज हॉस्टल गई तो वहाँ बाहर ही निरंजन और उसके दोस्त पहले से ही मौजूद थे।
उन सबने हम फ्रेशर लड़कियों का ताली बजाकर जोरदार स्वागत किया।
मैं शरमा रही थी।
मेरे हाँ कहने पर सीनियर लकड़ियों ने वार्डन से कहा कि मेघा की हॉस्टल में पहली होली है, यह बॉयज हॉस्टल होली खेलने जाना चाहती है।
बॉयज होस्टल के वार्डन ने मुझ सिर से लेकर पाँव तक देखा और मुस्कुरा कर अन्दर जाने के लिए इजाजत दे दी।
बाद में पता चला कि मेरा बॉयफ्रेंड वहाँ नहीं था, धीरे-धीरे मुझे दबी ज़बान से मालूम पड़ रहा था कि वह रस्म क्या है।
हॉस्टल में एक कमरा था जहाँ होली के दिन पहले सेमिस्टर की जूनियर लकड़ियों की रैगिंग ली जाती थी, जिसमें फिगर की माप होती थी।
यह जान कर मैं डर गई कि यह कैसी रस्म है।
बस उस दिन पहली बार होली के दिन मेरी चुदाई हुई थी।
मेरे साथ और भी चार जूनियर लड़कियाँ थीं, उनमें से दो ही थीं जिनको चुदाई का अनुभव था, बाकी सब मेरी जैसी ही कच्ची और नासमझ कलियाँ थीं।
हमने चुदाई के नाम पर अब तक सिर्फ इन्टरनेट पर वीडियो ही देखे थे।
दिन में हमने खूब होली खेली, हम सब खूब घुल मिल गए थे।
होली खेलते हुए न जाने कितनी बार लड़कों ने बहाने से मेरी चूत दबाई, चूचे दबाये और गांड में उंगली डालनी चाही, मैं न-न करती रही लेकिन अन्दर ही अन्दर खुश थी।
हम सब फिल्मी गानों पर डांस कर रहे थे।
सीनियर लड़के-लड़कियों में एक कॉम्पीटिशन सा होने लगा था, दो गुट बन गए थे।
एक लड़की पाखी ने कई बार अपनी टॉप ऊपर उठाई थी जिससे उसके मांसल यौवन उभारों को देखकर बॉयज में सीटियाँ और तालियाँ बज उठीं थीं और ‘पाखी जिंदाबाद’ के नारे लगने लगे थे।
पाखी यहाँ की पुरानी स्टूडेंट थी, यूनिवर्सिटी चुनाव के समय वह जिसको सपोर्ट कर देती थी उसकी जीत पक्की मानी जाती थी।
उसका बॉयफ्रेंड भी साथ में ही पढ़ता था।
दूसरी टीम की लड़की शालिनी जिसको मैं दीदी बोलती थी, वह पाखी से सबसे ज्यादा चिढ़ती थी, उसने तो हद पार कर दी, उसने स्कर्ट के नीचे से अपनी गीली पैंटी निकाल कर हवा में घुमाकर उछाल दी थी।
उसकी पैंटी को लूटने के लिए न जाने कितने लड़के गिरे थे, छीना झपटी में उनके हाथ में सिर्फ चीथड़े ही रह गये थे।
तुरंत ‘शालिनी जिंदाबाद’ के नारे गूंजने लगे थे।
शराब और भांग के नशे में न जाने कितने लड़के और लड़कियाँ एक दूसरे के भरपूर मज़े ले रहे थे।
जूनियर लड़कियों को भांग और शराब पीने से मना किया गया था।
होस्टल का अपना कानून था जहाँ किसी भी तरह की कोई शर्म हया, रोक टोक नहीं थी।
हमेशा सलवार कुर्ती और दुपट्टे में रहने वाली मैं घर से दूर पहली बार खुली हवा में सांस ले रही थी, मुझे यह सब बहुत अच्छा लग रहा था।
मेरी रूम मेट ज़ीनत शरमा रही थी तो उसको सीनियर लड़कियों ने ज़बरदस्ती गिराकर सफ़ेद सलवार निकलवा कर किसी का जीन्स का शॉर्ट्स पहना दिया था।
वैसे कई बार लड़कियाँ शर्माने का दिखावा भी करती हैं।
फिर शाम के समय हम सब नहा धोकर तैयार होकर एक क्लास रूम में इकट्ठे हुए, रूम में अंधेरा किया गया और सारी जूनियर लड़कियाँ सीनियर लड़कियों के पास बैठ गई।
होस्टल के दो सीनियर लड़के सुमित और शरद मेरे पास आये, वे एकदम जवान और हट्टे कट्टे थे तो उन्हें देख कर मैं डर गई, मेरे चेहरे पर पसीना आ गया।
तभी एक लड़का रूम से निकल कर आया सभी जूनियर सीनियर खड़े हो गए थे।
‘राजीव सर’ पास वाली लड़की फुसफुसाई, उसने मुझे भी खींचकर खड़ा कर दिया।
राजीव यहाँ का पुराना स्टूडेंट था, उसके आते ही हम सोफे से खड़े हो गए, हम चारों लड़कियाँ लाइन से खड़ी थी।
राजीव और बाकी लड़के हम सब को आगे पीछे से देख रहे थे।
मैं समझ चुकी थी कि हमारी होली के बहाने होस्टल में रैगिंग ली जाने वाली थी।
‘इस बार सिर्फ चार लड़कियाँ ही? अपना-अपना इंट्रोडक्शन दो?’ राजीव ने एक सीनियर लड़की पाखी के चूतड़ दबाते हुए कहा।
‘ओए भोसड़ी की, चल सुना नहीं तूने… इंट्रोडक्शन दे?’ एक सीनियर लड़की शालिनी ने हम चारों जूनियर लड़कियों में से एक सलवार कमीज़ पहने दुबली पतली लड़की को आगे खींचा।
‘मेरा नाम सुमन है मैं आगरा से हूँ!’
‘नाम के साथ ऐज तेरा बाप बोलेगा? सीनियर लड़की शालिनी ने उसके गाल को पकड़ कर खींचा।
वह मुस्कुरा दी लेकिन अगले ही पल थोड़ा डर गई ‘सुमन उम्र 21 साल, आगरा से!’
‘अब सही बोली, चल फिगर बता?’ शालिनी उसकी सफ़ेद कुर्ती को ऊपर उठाते हुए बोली।
‘नहीं मालूम!’
‘तू 18 साल की हो गई है और तुझे फिगर नहीं मालूम? और यह हमेशा सलवार कुर्ती ही पहनती है या कुछ और भी?’
‘तेरा नाम क्या है? वह लड़की मेरी तरफ बढ़ी, बाकी सब लड़के लड़कियाँ हम पर जोर जोर से हंस रहे थे।
‘मेघा फ्रॉम दिल्ली, ऐज 18 साल!’ मैंने सर झुका लिया था।
‘तू तो लोकल है, तुझे भी फिगर नहीं मालूम अपना? ऐसा कर तू उस सुमन की सलवार खोल, उसका फिगर देखकर बता!’ उस लड़की शालिनी ने मेरे गाल खींचे, मैं खामोश थी।
‘तू ऐसे नहीं सुनेगी, रुक… सुमन तू इसकी जीन्स खोल आकर!’
सुमन ने भी मुंह लटका लिया।
सब हँस रहे थे, बाकी जूनियर लड़कियाँ भी हम पर हँस रहीं थी, सिर्फ ज़ीनत निडर खड़ी थी।
‘यह ऐसे नहीं मानेगी! तुम में से कौन लड़का इनकी सलवार और जीन्स निकालना चाहता है?’
तुरंत ‘मैडम मैं… मैडम मैं…’ कहते हुए सभी हाथ खड़े हो गए थे।
यह देखकर मैं घबरा गई और तुरंत सुमन के पास जाकर उसकी सलवार का नाड़ा टटोलने लगी। सुमन ने भी सहयोग करते हुए अपनी सफ़ेद कुर्ती ऊपर कर दी, अगले ही पल नाड़ा खींचते ही सुमन की सलवार सरकती हुई फर्श पर जा गिरी, वह भी मेरी जीन्स का हुक और ज़िप खोलने लगी।
मैंने उसकी मदद करते हुए मुसकुराते हुए अपनी जीन्स घुटनों पर सरका दी थी।
‘अरे वाह ! कैल्विन कालिन… यह तो बड़े घर की लौंडिया निकली!’ राजीव ने आगे आकर मेरी गुलाबी सफ़ेद कैल्विन कालिन की चड्डी की इलास्टिक को खींचते हुए कहा।
सभी लोग जोर जोर से हंस रहे थे।
‘यार यह तो सच में कमसिन हैं!’ कहते हुए उस लड़की ने पहले हमारे लटके हुए मुंह ऊपर उठाये और बारी-बारी से हमारे हिप पर थप्पड़ लगाते हुए सहलाया।
‘तेरा नाम क्या है? इंट्रो दे?’
‘आई ऍम ज़ीनत फ्रॉम मेरठ!’
‘ओये अँग्रेज़ की भूरी चूत… हिंदी बोलने में शर्म आती है तुझे? फिर से बता?’ उस लड़की ने ज़ीनत के बूब्स खींचे।
सॉरी कहती हुई वह ‘आउच’ करके कराह उठी।
हालांकि हम सभी ने इंग्लिश में ही बोला था लेकिन मैं समझ गई थी कि रैगिंग में कितनी भी आप समझदारी दिखाओ सीनियर तुम्हारी गांड मारेंगे ही मारेंगे।
‘मेरा नाम ज़ीनत है, मैं मेरठ से हूँ और मेरा फिगर 34 32 36 है।’
इतना सुनते ही सब उसको देखने लगे थे।
‘वाह! इसे कहते हैं एकदम तैयार माल!’ लड़कों में से किसी ने कमेंट की तो किसी ने सीटी बजाई।
‘तेरे लिए दो टास्क हैं, या तो तू खुद अपनी यह पटियाला सलवार निकाल या फिर यहाँ किसी लड़के की जीन्स उतार!’
ज़ीनत हम लोगों से भी बुरी तरह फंस गई थी।
सभी लड़के उसको अपने अपने लंड तरफ इशारा कर रहे थे।
अपनी सलवार खोलने से बेहतर उसने किसी लड़के की जीन्स उतारना ज्यादा सही समझा और एक जूनियर लड़के की तरफ बढ़ गई जो सबसे खूबसूरत दिख रहा था।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
सभी लोग मुंह दबाये उसको देख रहे थे।
‘यह चूतिया अभी इस लायक नहीं है, मेरी जीन्स खोल!’ राजीव ने ज़ीनत को अपनी तरफ खींच लिया।
ज़ीनत उस नए लड़के से हटकर राजीव की जीन्स खोलने लगी।
‘ऐसे नहीं… नीचे बैठ कर खोल और मेरा लौड़ा बाहर निकाल!’ राजीव ने ज़ीनत को नीचे गिरा दिया, वह उसकी जीन्स खोल कर उसका अंडरवियर नीचे सरकाने लगी।
धीरे धीरे राजीव थोड़े रोमांटिक होने लगा।
ज़ीनत ने बिना किसी झिझक के राजीव का लंड बाहर निकाल कर अपने मुंह में ले लिया।
सब की आँखें फटी की फटी रह गई।
‘आह्हह्ह ह्हह्हह… ज़ीनत तू तो पास हो गई।’ राजीव ने एक ज़ोर की सांस ली। हम जूनियर लड़कियों की भी आँखें फटी की फटी रह गई।
बाकी सब भी देखने लगे, इतनी बोल्ड लड़की कभी होस्टल में नहीं आई थी।
ज़ीनत बे झिझक आराम से लोलीपोप की तरह राजीव का लंड चूस रही थी।
इधर अचानक एक सीनियर लड़के ने अपना हाथ मेरी जांघ पर रख दिया। मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह किस लिए आये हैं आज से पहले किसी ने मेरे साथ कभी ऐसी हरकत नहीं की थी पर आज उन्हें मौका मिल गया था।
मैंने पीछे हटना चाहा तो एक दूसरा लड़का मेरी गांड सहलाने लगा। ज़ीनत के जैसे मैं भी बोल्ड होना चाहती थी लेकिन मैं बहुत डर रही थी।
‘नीचे बैठकर ठीक से मेरी जीन्स की ज़िप खोल और मेरा लौड़ा बाहर निकाल!’ शरद ने मेरे हाथ पकड़ कर अपने सामने बैठा दिया था।
ज़ीनत को बिंदास ब्लो जॉब देता देखकर मेरी हिम्मत बढ़ गई थी, मैं दिल ही दिल में राज़ी थी लेकिन पहली बार था इसलिए झिझक रही थी।
‘दीदी…?’ मैंने सीनियर लड़की की तरफ देखते हुए पूछा।
वह कुछ देर तक मेरे बदन को ऊपर से नीचे तक घूरती रही, कुछ बोली नहीं!
‘हटिये मुझे ऐसे क्या देख रहे हो आप लोग?’ मैंने उस लड़के का हाथ झटक दिया, थोड़े बनावटी नखरे दिखाए ताकि लोग मुझे चालु माल न समझ बैठें।
‘कहाँ है दीदी? यह तेरी दीदी नहीं, हमारी होस्टल की रखैल है। पिछले चार साल से लॉ कर रही है, अब तो इसके बच्चे भी यहीं पढ़ते हैं।’
‘चल मादरचोद…’
उसके इस जवाब से सब लोग एक बार फिर जोर हँस पड़े।
‘चल टीन मेघा तू हमारे साथ चल, बहुत नाज़ुक दिख रही है तू!’ उन्होंने मुझसे रूम की तरफ चलने का इशारा किया।
सीनियर पाखी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और अन्दर ले जाकर दरवाजे को बंद कर दिया।
घर से दूर आज मैं बहुत खुश थी कि आज पहली बार मेरी चुदाई होने वाली थी, यहाँ कोई रोक टोक नहीं थी।
अब तक भी मुझे कोई अस्वाभाविक कुछ नहीं लगा मगर रूम के दरवाजे पर पहुँचते ही मैं थोड़ा झिझक गई।
अंदर दो लड़के पहले से ही बेड पर बैठे हुए थे, उनके बदन पर सिर्फ चड्डियाँ थी, ऊपर से वे निर्वस्त्र थे, उनकी हाथों में शराब के गिलास थे और सामने ट्रे में कुछ नमकीन चिकन और एक आधी बोतल रखी हुई थी।
अचानक पास में नज़र गई, कंप्यूटर पर कोई ब्लू फिल्म चल रही थी।
मैं समझ चुकी थी कि मेरी पहली चुदाई ही बहुत ज़बरदस्त होने वाली है।
‘जूनियर बेबी, क्या सोच रही हो? कुछ देर हमारी महफिल में भी तो बैठो।
तेरी दीदी शालिनी तो तेरी रूम मेट के माल को लेकर गई है जिसकी वह जीन्स खोलना चाहती थी, कुछ देर बाद आ ही जायेगी, फिर उसको तेरे सामने चोदेंगे!’ कहकर उसने मुझे जोर से धक्का दिया, मैं उन लोगों के बीच बेड पर जा गिरी।
उन्होंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया- बोल हम सब को खुश कर पाएगी तू?
‘Sir I’ll try my best.’
‘वाओ…तूने मेरा दिल जीत लिया मेघा!’
‘वाह छुटकी तू तो मास्टर निकली, भाई मैं भी तो देखूँ तू मेरे बॉयफ्रेंड को सन्तुष्ट कर पायेगी या नहीं?’
‘बिल्कुल पाखी दीदी, कहीं ऐसा न हो कि सर आपको भूल जायें?’ मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया।
मैंने हाथ पैर ढीले छोड़ दिए और उनको आमंत्रण देने लगी ‘दीदी दीदी आप यही रूककर मुझे सिखाती रहना, पहली बार है, अभी कच्ची हूँ।’
‘फिकर मत कर मेघा, तेरी दीदी भी दो साल पहले तेरी तरह कच्ची ही थी।’
यह कहकर राजीव सर मुझे दरवाजे के पास आकर मुझे गोद में उठा कर बेड तक ले गए।
‘बाकी लड़कियाँ कहाँ हैं? ज़ीनत कहाँ है?’ बेड से उठते हुए मैंने पूछा।
‘यह इस कालेज की रस्म है बेबी, शुक्र मना तू कमरे में है, ज़ीनत हाल में सबके सामने चुदेगी। पहली नज़र में ही हम जान गए थे कि वह खेली खाई है। कालेज ने सीनियर को जूनियर का ख़याल रखने को कहा है इसलिये आज सारी रात हम तेरा ख्याल रखेंगे।’
कह कर उसने मेरे बदन से टाई नोच कर फेंक दी, तीनों मुझे यहाँ वहाँ चूमने लगे।
मैंने आँखें बंद कर लीं।
‘इसकी जीन्स निकालो पहले, नीचे का माल बहुत ज़बरदस्त होगा इसका!’ कहते हुए एक लड़का मेरी जीन्स का बटन खोलकर ज़िप खींचने लगा।
मैं अपने चूतड़ उठाते हुए सहयोग करने लगी।
कुछ ही देर में मेरे बदन से जीन्स और टॉप अलग कर दिया।
मैं शर्माते हुए दोनों हाथों से अपने अधखिले यौवन को छिपाने की असफल कोशिश कर रही थी।
‘बहुत शर्माती है यार… कुछ नहीं होगा.’ कहते हुए पाखी ने मेरे हाथ पकड़कर मेरी छातियों से हटा दिए।
अगले ही पल तीन जोड़ी हाथ मेरी नन्ही- नन्ही मासूम छातियों को बुरी तरह मसल रहे थे और मैं आअह्ह्ह… आअह्ह्ह… करती दर्द से छटपटाती हुई हाथ पैर चला रही थी।
फिर धीरे धीरे मैंने यह निर्णय लिया कि सेक्स के वक़्त समर्पित कर देने में ही समझदारी है।
कहानी जारी रहेगी।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments