दिल्ली की कॉलेज गर्ल पापा के सामने चुद गई-2
(Delhi Ki College Girl Papa Ke Samne Chud Gayi- Part 2)
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अब तक आपने पढ़ा..
मेरी बेटी एक शादी में बहुत ही कामुक ड्रेस में फुदक रही थी और उसकी मस्त जवानी को चोदने के लिए लौंडे मचल रहे थे।
अब आगे..
दिल्ली की कमसिन कॉलेज गर्ल
उसकी कमर पर चिपका छोटा सा चमकता टैटू सबको दिख रहा था। डांस के बहाने फायदा उठाकर कई लड़के उसक पास आ जाते.. कोई कोई उसके चूतड़ों को दबा देता.. तो कोई बहाने से उसके मम्मों को मसल देता। वह हिचक जाती.. मुझे देखती.. मैं मुस्कुरा देता। वह जानती थी कि मैंने उसको जवानी जीने के लिए पूरी आज़ादी दी हुई है।
‘मैं इसको आज रात में ही सैट करता हूँ..’ एक लड़के ने अपने दोस्तों के बीच पूरी तरह से बकचोदी करते हुए कहा।
बाकी लड़के उस पर हँस दिए। उसने शायद शराब भी पी रखी थी।
‘बेटा दिल्ली का माल है.. ऐसे नहीं पटेगी..’ एक लड़के ने उस पर कमेंट करते हुए कहा।
‘तो तू पटा के दिखा दे चूतिये।’
‘अरे यार.. तुम दोनों लड़ो मत, दोनों ट्राई करो.. जिससे भी सैट होगी वह पार्टी देगा।’
उन लड़कों की बातें सुनकर मेरी भी दिलचस्पी बढ़ गई कि मेरी मॉडर्न बेटी इन कनपुरिया छिछोरों से पट जाएगी या नहीं। मैं दूर से ही उनकी गतिविधियां देखने लगा।
कुछ देर बाद मैंने देखा कि वह उन दोनों जवान लड़कों के साथ बातें कर रही है। वह लड़के उस पर फ्लर्ट कर रहे थे। ड्रिंक शेयर करने के बाद वह अचानक फेरों के समय फ्लोर से गायब हो गई।
क्योंकि फेरों के समय सब एक ही जगह होते हैं, मेरा माथा ठनका.. मैं उसको ढूंढने लगा।
मैंने उसको कॉल किया लेकिन उसने उठाया नहीं।
तब मैं बाहर निकल कर उसको देखने लगा.. लेकिन वह हॉल में नहीं थी। मैं धीरे से हॉल की छत पर गया तो मैंने देखा कि मेरी बेटी मेघा उन्हीं लड़कों के साथ दीवार के सहारे छत पर खड़ी हँस-हँस कर बातें कर रही थी।
एक लड़के ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था- क्या नाम है आपका?
‘मेघा! और तुम दोनों का?’
‘बहुत प्यारा नाम है आपका.. मैं गौरव हूँ और यह मेरा दोस्त प्रशांत है।’
‘हाय.. कानपुर से ही हो?’
‘हाँ.. मैं खलासी लाइन से और यह बिठूर से है।’
‘ओह गुड.. लेकिन तुम दोनों ने मुझे यहाँ क्यों बुलाया है?’
‘सच बोलूं.. नाराज़ तो नहीं होंगी आप?’
‘झूठ बोलोगे तो ज़रूर होऊँगी।’
कानपूर के लौंडों ने मेरी बेटी को पटा लिया
‘दरअसल हम दोस्तों में यह शर्त लग गई है कि हम लोग कोई दिल्ली की लड़की को नहीं पटा सकते हैं.. इसलिए अगर आप हमारे साथ थोड़ी सी एक्टिंग भी कर देंगी.. तो हमारी इज्ज़त की माँ चुदने से बच जाएगी।’
‘हाँ मेघा.. वरना यह सारे महामादरचोद दोस्त हमारी गांड मार देंगे।’
मैं अँधेरे में खड़ा उन दोनों की मेघा के साथ हो रही बातें सुन रहा था, दोनों उसके हाथों को पकड़े रिक्वेस्ट कर रहे थे।
‘ठीक है.. लेकिन एक्टिंग.. और कुछ नहीं..’ ये कहते हुए मेघा ने अपनी चुनरी निकाल दी.. उसके उभार ब्लाउज से झाँकने लगे।
‘कुछ नहीं.. के लिए तुम्हारी ही चलेगी मेघा… यदि तुम्हारा मन हुआ तो आगे बढ़ेंगे नहीं तो नहीं करेंगे।’
‘ओके..’
फिर एक लड़के ने हिम्मत करके उसके होंठों को अपने होंठों में ले लिया था। वह भी उसके चेहरे को थामकर स्मूचिंग करने लगी। दूसरे लड़के ने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसकी लाल बैकलेस ब्लाउज की डोरियाँ धीरे से खोल दीं। उस अंजान लड़के का एक हाथ पीछे लहंगे के अन्दर जाकर उसकी गांड को सहलाने लगा।
‘कोई आएगा तो नहीं?’ मेघा ने अलग होते हुए सवाल किया।
‘कोई नहीं आएगा.. सब फेरों में लगे हुए हैं।’
सेक्स का नियम है कि अगर बीवी बेटी हो या सिस्टर अगर किसी के साथ सेक्स करते हुए देख लो.. तो उसको रोको नहीं, पूरा हो जाने दो। बीवी, बहन, बेटी या गाड़ी, किसी और को दोगे.. तो ठुक/चुद कर ही आएगी। मैंने भी उसको इस हालत में डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा और पास ही साइड से देखने लगा।
लेकिन मेरी बेटी पर मेरा अधिकार था। उसको किसी और की बांहों में देखकर कसम से ऐसा लगा कि दिल में किसी ने खंजर चुभो दिया हो। वह भी एक साथ दो लड़कों की बाँहों में।
मैं अपनी बेटी के लिए अच्छे रिश्तों में से भी सबसे अच्छे रिश्ते को छांटने की कोशिश में था और वो अंजान लड़कों के साथ लगी हुई थी। मन तो किया कि लंड निकाल कर दोनों की गांड मार दूँ। लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि बेटी की अपनी भी लाइफ है.. उसको जीने देना चाहिए। यहाँ इतने मेहमानों के बीच कुछ बोला तो बेईज्ज़ती हमारी ही होगी।
लेकिन फिर मैंने सोचा कि चलो देखता हूँ कि ये तीनों किस हद तक जाते हैं।
अंजान लड़कों की बाँहों में जाते ही मेघा ने अपने होंठों से उसके गालों को चूमना चालू कर दिया। मुझे कितनी ग्लानि हुई वो मैं शब्दों में नहीं बता सकता। आखिर मैंने ही अपनी बेटी को बिगाड़ा था।
‘ओह प्रशांत यार.. जल्दी से करो फटाफट.. मम्मी का तो पता नहीं लेकिन मेरे पापा मुझे ढूंढ रहे होंगे।’
‘ठीक है. वैसे कहाँ पढ़ती हो? पहले कभी कानपुर में देखा नहीं.. दिल्ली में कहाँ से हो?’
‘मैं बाहरवीं में हूँ.. दिल्ली में साउथ एक्सटेंशन में एक हॉस्टल में रहती हूँ।’
‘इतनी कम उम्र में भी माल दिखती हो यार.. पहले कभी यह सब किए हो?’
वे लोग स्मूचिंग करते हुए बातें कर रहे थे।
‘तुम आम चूसो न.. गुठलियों में क्या मजा आएगा..’ मेघा में अपना ब्लाउज नीचे सरकाते हुए जवाब दिया।
उसने तुरंत पहले उसके दोनों मासूम गोरे मम्मों को मसला.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… फिर एक-एक में मुँह लगा दिया। फिर दूसरे लड़के गौरव ने उसके लहंगे को ऊपर करते हुए उसकी थोंग पैंटी में हाथ डाल दिया और उसकी गांड को पीछे से मसलने लगा।
‘तुम्हारी गर्लफ्रेंड है प्रशांत?’
‘थी.. अब नहीं है।’
‘कुछ किया था.. मतलब ली थी उसकी? वो कहाँ की थी?’
‘यहीं कानपुर की ही थी.. मेरे मामा की लड़की निशा.. कई बार उसको एग्जाम दिलाने दिल्ली ले गया था.. तब होटल में उसकी ली थी.. फिर उसने ब्वॉयफ्रेंड बना लिया था।’
‘वाओ.. मामा की ही लड़की को चोद दिया?’
‘लड़की लड़की होती है यार.. मैं नहीं चोदता.. तो कहीं बाहर चुदवाती.. और फिर वही हुआ भी।’
‘हाँ यह तो है.. कैसे चोदा था उसको? अच्छा अब जल्दी करो.. मेरे पापा कभी भी आ सकते हैं।’
मेघा ख़ुद अपना लहंगा ऊपर करके दीवार के सहारे झुक गई थी। मैं सीढ़ियों की आड़ में खड़ा होकर उन तीनों को देख रहा था। नीचे मंडप में फेरे शुरू होने वाले थे। प्रशांत ने मेघा के मम्मों को दबाते हुए कहा।
‘पूछो मत यार.. परिवार के सामने तो बड़ी शरीफ बनती थी.. और मौक़ा मिलते ही वापस मुझे ढूंढने लगती थी। कई बार कॉलेज से ही दोस्तों के घर बुलाकर चोदा था। कई बार अपनी मेडिकल शॉप में ही चोद दिया था.. फिर एक दिन पार्क में ही एक लड़के का लंड खुलेआम चूसते हुए दिखी.. तभी से उसको छोड़ दिया। बहन थी इसलिए घर पर नहीं बताया.. उसकी पढ़ाई छूट जाती।’
‘हाहा हा.. कानपुर है यार.. यहाँ लड़कियां घर में शराफत दिखाती हैं.. कॉलेज में चूचे हिलाती हैं.. सब कुछ होता है.. लेकिन थोड़ा परिवार से बचकर करना चाहिए..’ गौरव ने बात पूरी की।
‘दिल्ली में यह सब चक्कर नहीं है.. पार्क, स्टेशन या हॉस्टल का रूम.. जहाँ मौक़ा मिल जाए.. ठोक दो..’ मेघा ने प्रशांत के लंड को उसके पेंट में ही दबाते हुए कहा।
मेरा दिल चाहा कि उन दोनों को रोक दूँ.. लेकिन मैंने उसको उसकी लाइफ ‘जैसे चाहे जिए..’ का वादा किया था।
लेकिन फिर भी दो-दो अंजान लड़कों की बाँहों में और उनके लंड से खेल रही मासूम बेटी किसको अच्छी लगेगी।
उसके बाद जो हुआ वो तो अब तक जो हुआ उससे भी बुरा हुआ था।
प्रशांत ने मेघा को साइड में हटा कर अपना लंड बाहर निकाला। बाप रे.. उसका लंड तो एकदम काला और मोटा था। उसका सुपारा बड़े आंवले की तरह था जो खड़े हुए लंड की वजह से फुल के किसी गिरगिट की माफिक अपनी गरदन को ऊपर किए हुए था।
प्रशांत के लंड को मेघा ने अपने हाथ में लिया और उसे मुट्ठी में दबाने लगी। इधर गौरव ने मेघा की छाती पर दोनों हाथ रख दिए और वो मेरी मासूम बेटी की छोटी-छोटी चूचियों से खेलने लगा।
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मैं खड़े खड़े अपनी बेटी का समागम देख रहा था। प्रशांत ने अब मेघा के होंठों पर अपने होंठों को लगा दिया और किस करने लगी। प्रशांत ने उसके होंठों को अपने होंठों से लगा कर रखा था और वो एक हाथ से अभी भी उसके लौड़े का मसाज कर रही थी। उसका काला लंड तो आकार में बढ़ता ही जा रहा था।
मैंने फिर सोचा कि बाहर निकल कर दोनों को झाड़ दूँ.. लेकिन तभी मुझे मेघा के वो वाक्य याद आ गए ‘मैं पापा की परी बनकर रहूँगी.. लेकिन मुझे मम्मी की रोक टोक से आज़ादी चाहिए।’
तभी मैंने दिल्ली में घर होते हुए भी उसे हॉस्टल में भेज दिया था।
अब मैं नहीं चाहता था कि मैं उसके सामने जाकर उसे अपने सामने बगावत करने पर मजबूर कर दूँ। वो मेरे से डर रही थी और मैं उसे ऐसे ही रखना चाहता था। मैं नहीं चाहता था कि वो मेरे हाथों सेक्स करते पकड़ी जाए और फिर उसे मेरा कोई डर ही ना रहे। आप मेरी मनोस्थिति समझ सकते हो दोस्तों, मेरी मज़बूरी.. जिसने मुझे बेटी का सेक्स दिखाया था।
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कहानी जारी है।
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