कोचिंग क्लास की कामुक यादें-2
(Coaching Class Ki Kamuk Yaaden- Part 2)
अभी तक इस कहानी के पहले भाग
कोचिंग क्लास की कामुक यादें-1
में आपने पढ़ा कि सरिता की कोचिंग क्लास की सहेली शिखा ने अपने दोस्त सतेंद्र के द्वारा चोदन का आनंद लिया।
अब आगे की कहानी सरिता की ही ज़ुबानी..
3-4 मिनट तक सतेंद्र ने शिखा को अपने रूम के अंदर दबाकर रगड़ा और अचानक उसकी स्पीड कम होकर थम गई। और वो दूसरी तरफ गद्दे पर गिर गया। उनकी ये काम-क्रीड़ा देखकर मेरे तन-बदन में आग सी लग गई थी। मेरी हालत खराब हो रही थी और मैं माथे का पसीना पोंछते हुए वापस चेयर पर जा बैठी। मेरे पैर कांप रहे थे।
5 मिनट बाद शिखा बाहर आई तो उसके चेहरे पर हल्की सी खुशी थी, लग रहा था कि वो जान बूझकर अपनी खुशी को अपने चेहरे पर दिखाना चाह रही थी।
मैंने अनजान बनते हुए कहा- इतनी देर से क्या कर रही थी अंदर? तुम दोनों का कुछ चल तो नहीं रहा है ना? अगर ऐसा है तो मैं चली जाती हूं, फिर तुम भी खुलकर एक दूसरे के साथ बात कर सकते हो।
“नहीं पगली!” शिखा ने जैसे मुझे चिढ़ाते हुए कहा।
“हम तो बस ऐसे ही अच्छे दोस्त हैं।”
शिखा की बातों से लग रहा था कि जैसे वो अपनी किस्मत की शेखी बघार रही है; उसे अपने बॉयफ्रेंड के इतना हैंडसम होने पर घमंड है।
अब मैं सच में शिखा से जलने लगी थी। एक तो सच में सतेंद्र इतना हैंडसम था, ऊपर से उन दोनों की मस्ती भरी काम-क्रीड़ा देख कर मेरे मन में भी इस तरह के ख्यालों ने घर करना शुरु कर दिया था।
अभी तक तो मैं सिर्फ मौज मस्ती में लगी हुई थी लेकिन अब मुझे एक बॉयफ्रेंड की कमी भी महसूस होने लगी थी।
अब मैंने भी मन ही मन ये सोच लिया था कि शिखा को इससे ज्यादा न जलाया तो मेरा नाम सरिता नहीं।
मैंने झूठी मु्स्कान के साथ शिखा से कहा- तूने तो यहीं रहना है लेकिन मुझे अभी घर भी जाना है, बाहर देख बारिश रुक गई या अभी भी हो रही है?
शिखा ने बाहर खिड़की से झांकते हुए कहा- बारिश तो रुक गई है।
“ठीक है तो फिर मैं जल्दी से कपड़े चेंज करके निकलती हूं, नहीं तो बहुत देर हो जाएगी.” मैंने अपने कपड़े उठाते हुए कहा।
“अरे, रुक जा ना, एक दिन में कौन सा पहाड़ टूट जाएगा?” शिखा ने फिर दबाव डाला।
उसकी बात को काटते हुए मैंने कहा- तू मेरी माँ को नहीं जानती, अगर मैं घर नहीं पहुंची तो मुझे ढूंढती हुई यहीं तक आ पहुंचेगी, इतना बड़ा रिस्क नहीं ले सकती मैं!
कह कर मैं साथ वाले कमरे में अंदर चली गई।
टी-शर्ट निकाला तो मेरे निप्पल तनकर खड़े हो गए थे, मैं थोड़ी सी हैरान थी। उसके बाद लोअर निकाली तो चूत की तरफ ध्यान गया। मैंने अपनी चूत को ध्यान से देखा। वो हल्की-हल्की फूली हुई थी। अपनी पहली दो उंगलियों चूत की फांकों को हल्के से मसाज करके देखा तो मज़ा सा आया। मैंने चूत की फांकों को फिर से सहलाना शुरु कर दिया।
धीरे धीरे मेरा सेक्स बढ़ने लगा और मैंने चूत पर हथेली का दबाव बनाते हुए उसे रगड़ना शुरु कर दिया। सीधे हाथ से चूत को रगड़ ही रही थी कि दूसरा हाथ खुद ही चूचों पर जाकर उनको दबाने लगा।
मैं वहीं दीवार के सहारे लग गई और मेरी टांगें अपने आप ही चौड़ी हो गईं।
कमर को दीवार से सटाए हुए मैं तेज़ी से चूत को मसलने लगी और चूचों को बारी बारी से दबाने लगी। मेरी आंखें अपने आप ही बंद हो गईं और सतेंद्र नंगे बदन के साथ मेरी इजाज़त के बिना ही ख्यालों में आकर मेरे सामने खड़ा हो गया।
वो मेरी चूत पर मेरे हाथ को रगड़ते हुए देख रहा था और अपने लिंग को हिला हिला कर मुझे हवस भरी नज़रों से देख रहा था। मेरी उंगलियां कब मेरी चूत में घुसने लगीं, मुझे पता भी नहीं चला। बहुत मज़ा आ रहा था।
तभी दरवाज़े की खटखटाहट ने मेरी आंखें खोल दीं।
बाहर से शिखा ने आवाज़ लगाई- कहां रह गई सरिता, अब देर नहीं हो रही तुझे?
मुझे थोड़ा गुस्सा आया, कमीनी खुद तो मज़े ले गई और मुझे हाथ से भी नहीं करने दे रही।
मैंने अंदर से आवाज़ लगाई- बस अभी बाहर आई, 2 मिनट में!
दरवाज़ा खोल कर बाहर निकली तो सतेंद्र भी बाहर कुर्सी पर बैठा हुआ था। मुझे देख कर उसने एक बार तो नज़र घुमाई लेकिन मैंने उसको देखना जारी रखा। जब उसने देखा कि मैं उसे देख रही हूं तो फिर से उसने मुझे देखा और हल्के से मुस्कुरा दिया।
मैंने भी बदले में हल्की सी स्माइल दे दी।
इतने में साथ वाले कमरे से शिखा निकलकर आई और सतेंद्र के हाथ में हेल्मेट थमाते हुए बोली- चलो जल्दी, कहीं बारिश फिर से शुरु हो गई तो दिक्कत हो जाएगी!
सतेंद्र उठकर चलने लगा तो उसकी लोअर में उसका लिंग अपने आकार में अलग से दिखाई दे रहा था। एक तो वो देखने में इतना हैंडसम था और ऊपर से उसका लिंग भी अच्छा खासा था। मैंने सोचा, शिखा तो सही में मज़े ले रही है अपनी लाइफ के।
सतेंद्र ने मेन गेट खोला और बाहर निकल गया। हम दोनों ने अपने अपने बैग उठाए और मेरे बाहर निकलते ही शिखा ने रूम का दरवाज़ा लॉक कर दिया। तब तक सतेंद्र ने बाइक स्टार्ट कर ली थी और हेल्मेट पहन लिया था।
शिखा ने मुझसे कहा- चल बैठ जल्दी!
इस बार मैंने कोई आना-कानी नहीं की और फटाक से शिखा को बैग थमाते हुए दोनों टांगें फैला कर सतेंद्र के पीछे बैठ गई। जब शिखा बैठने लगी तो मैं थोड़ा और आगे सरक गई। मेरे चूचे सतेंद्र की कमर पर टच होने लगे।
बैठने के बाद शिखा ने अपना बैग कमर पर टांग लिया और मेरा बैग आगे की तरफ अपनी गोदी में लेकर बैठने लगी जिससे मुझे सतेंद्र के थोड़ा और करीब जाने का मौका मिल गया।
मैं थोड़ी और सरकी और मेरे चूचे बिल्कुल सतेंद्र की कमर पर सट गए।
सतेंद्र ने पूछा- चलें?
मैंने हां कह दिया और उसने बाइक की रेस देकर हवा से बातें करना शुरु कर दिया। बाइक गलियों के बीच से दौड़ती हुई जल्दी ही एक फ्लैट के सामने आकर रुक गई।
शिखा उतर गई और मैं थोड़ा पीछे की तरफ सरकते हुए उतरने लगी तो शिखा ने कहा- तू कहां उतर रही है, घर नहीं जाना क्या?
तभी सतेंद्र बोल पड़ा- आप बैठे रहो, मैं आपको बस स्टैंड तक छोड़ देता हूं।
कहते ही शिखा ने मेरा बैग मुझे पकड़ा दिया।
मुझे थोड़ी शर्म भी आ रही थी कि लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे। क्योंकि कभी इस तरह किसी अनजान लड़के के पीछे मैं अकेली नहीं बैठी थी अभी तक।
शिखा ने बाय कहा और सतेंद्र ने फिर से बाइक दौड़ा दी।
मैं चुपचाप सतेंद्र के पीछे बैठी हुई थी। बरसात के बाद की ठंडी हवा चेहरे पर लग रही थी और मेरे कपड़े भी पूरी तरह से सूखे नहीं थे इसलिए कंपकंपी सी बंध गई थी। 5-7 मिनट में सतेंद्र ने मुझे बस स्टैंड पर छोड़ दिया और वापस बाइक घुमा कर चला गया।
मैं हैरान थी कि उसने मुझे ना तो बाय कहा और ना ही कोई ऐसा रिएक्शन दिया कि जिससे मैं समझ सकूं कि वो मेरी तरफ आकर्षित भी हो रहा है या नहीं। क्योंकि लड़के अक्सर लड़कियों के पीछे जीभ निकाल कर घूमते रहते हैं जैसे पागल कुत्ते हों; उनको सेक्स के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता।
मैं सोच रही थी कि सतेंद्र को अपने झांसे में लेना इतना मुश्किल नहीं होगा लेकिन यहां तो मामला कुछ और ही लग रहा था।
खैर, मैंने आधे घंटे तक बस का वेट किया लेकिन कोई बस नहीं आई, मैं वैसे ही काफी लेट हो चुकी थी। इसलिए ऑटो किया और सीधे मैट्रो स्टेशन पहुंच गई।
मैट्रो लेकर मैं घर पहुंची और माँ ने सवालों की फूल-माला से मेरा स्वागत किया।
“कहां रह गई थी? इतनी लेट कैसे हो गई? कपड़े कैसे भीग गए, सब ठीक तो है ना?”
वगैरह वगैरह!
मैंने माँ को सारी बात समझाई और अपने कमरे में चली गई।
रात को खाना खाने के बाद जब मैं पढ़ने के लिए बैठी तो पढ़ाई में मेरा लग ही नहीं रहा था, बार बार सतेंद्र और शिखा की चुदाई के दृश्य ख्यालों में आ रहे थे। सोच सोच कर मेरा दिमाग खराब होने लगा।
मैंने किताबें एक तरफ पटकीं और बेड पर जाकर लेट गई। फोन में इंटरनेट खोला और सर्च इंजन पर सेक्स कहानी लिखकर सर्च करने लगी। सर्च में अंतर्वासना का नाम सबसे ऊपर था। मैंने अंतर्वासना पर क्लिक किया और साइट खुल गई।
उन दिनों हिमांशु बजाज द्वारा लिखित
शादी में चूसा कज़न के दोस्त का लंड
प्रकाशित हुई थी।
कहानी समलैंगिक थी लेकिन उसमें रवि के बदन का जिस तरह से वर्णन किया गया था उसने मेरे अंदर उठ रही हवस की आग में घी का काम किया। कहानी पढ़ते हुए मैंने सलवार का नाड़ा खोलकर चूत को ऊपर से सहलाना शुरु कर दिया. जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती गई मैंने पैंटी के अंदर उंगलियां डालीं और चूत में उंगली करनी शुरु कर दी। और कई मिनट तक अपनी चूत को मसला।
अब मुझे चूत में लंड लेने की तड़प परेशान करने लगी।
कहानी पढ़ने के बाद मैंने फोन को एक तरफ फेंका और कमीज़ भी निकाल दी। अब पैंटी को नीचे सरका कर चूचियों को सफेद ब्रा के ऊपर से ही दबाती हुई आंख बंद करके सतेंद्र के बारे में सोचती हुई चूत को मसलने लगी।
मैंने ख्यालों में ही सतेंद्र को अपने ऊपर लेटा लिया और अपनी उंगलियों को उसका लिंग समझ कर इमेजिन करते हुए कसमसाती रही। मेरा सेक्स अब पूरे उफान पर पहुंच चुका था। मैंने ज़ोर ज़ोर से चूत में उंगलियों को अंदर बाहर करना शुरु कर दिया; बहुत मज़ा आ रहा था।
मेरी टांगें चौड़ी होकर फैली हुई थीं और मैं नंगी पड़ी हुई सेक्स की आग में तपते बदन के साथ खेलती हुई अपनी चूत और चूचियों को ठंडा करने की कोशिश कर रही थी।
“काश, इस वक्त सतेंद्र मेरे चूचे दबा रहा होता और उसका लिंग मेरी चूत में घुसा हुआ होता।” जब इस तरह का ख्याल आता तो मेरी चूत में उंगली करने की स्पीड एकदम से तेज़ हो जाती।
10-12 मिनट तक चूत को रगड़ने के बाद मेरी चूत से पानी जैसा पदार्थ छूट गया और मैं शांत हो गई।
मैंने अपने कपड़े वापस पहने और आराम से लेट गई।
रात के 3 बजे के करीब मुझे पेशाब का प्रेशर महसूस हुआ; उठकर बाथरूम में गई और सलवार खोलकर नीचे बैठ गई। जैसे ही पेशाब निकला, मेरी चूत में जलन होने लगी। शायद सेक्स की आग में मैंने चूत को ज्यादा ही रगड़ लिया था।
चूत पर ठंडा पानी डाला तो कुछ आराम मिला; वापस जाकर सो गई।
सुबह उठी और नहाने लगी तो चूत को ध्यान से देखा, वो सूज़ी-सूज़ी सी लग रही थी। मैंने उसको प्यार से सहलाया और मन ही मन कहा कि जल्दी ही तेरे लिए एक लंड का इंतज़ाम कर दूंगी। चूत को प्यार से सहलाते हुए मैंने नहाना खत्म किया नाश्ता करने के बाद कोचिंग के लिए तैयार होने लगी।
आज वीकली टेस्ट देने जाना था, मैंने शिखा को फोन किया तो उसने कहा कि कोचिंग सेंटर पर ही मिलेगी।
मैं 12.30 बजे तक कोचिंग सेंटर पर पहुंच गई। एक बजे टेस्ट शुरु होना था; मैं कोचिंग सेंटर के नीचे खड़ी होकर शिखा का इंतज़ार करने लगी।
कुछ देर बाद शिखा का फोन आया तो मैंने बता दिया कि मैं कोचिंग सेंटर के नीचे ही उसका वेट कर रही हूं।
10 मिनट बाद शिखा और सतेंद्र साथ में आते दिखाई दिए। जब वो पास में पहुंच गए तो सतेंद्र ने मुझसे हैलो किया; मैंने भी उससे हाथ मिलाया। सतेंद्र के पीछे एक और लड़का खड़ा था।
शिखा ने कहा- अरे सरिता, इससे मिलो, ये आकाश है।
उस लड़के ने भी मुझसे हैलो कहा, मैंने भी उससे हैलो कहा और हम तीनों ऊपर सीढ़ियों में चढ़ने लगे, आकाश भी पीछे पीछे आने लगा।
कोचिंग हॉल में जाकर हमने सीट ले ली’ हम दोनों जाकर लड़कियों की लाइन में बैठ गईं। सतेंद्र और आकाश हमारी बगल वाली लड़कों की लाइन में बैठ गए।
टेस्ट शुरु हुआ और 2 घंटे तक हमने गर्दन उठाकर नहीं देखा। टेस्ट खत्म होने तक दिमाग की दही हो गई; मेरा सिर दर्द करने लगा। एक तो गर्मी का टाइम था ऊपर से दिमाग इतना लगाना पड़ रहा था।
आंसर शीट सबमिट करने के बाद हम नीचे आ गए, शिखा वहीं खड़ी हो गई।
मैंने पूछा- यहां क्यों खड़ी है गर्मी में, चल कहीं चल कर आइसक्रीम खाते हैं! मेरा तो सिर फटा जा रहा है!
“रुक जा, सतेंद्र भी आता होगा..”
“ये आकाश कौन है?” मैंने पूछा।
“सतेंद्र का कोई दोस्त है..” शिखा ने जवाब दिया।
“तू भी जानती है क्या इसे?” मैंने फिर से सवाल किया।
“तुझे क्या करना है इस बात से, वैसे भी मैं यहां के हर एक लड़कों को जानती हूं क्या?”
“मैंने सोचा, सतेंद्र का दोस्त है तो तू भी जानती होगी।”
“नहीं, मैं उसे नहीं जानती।”
इतने में सतेंद्र और आकाश भी नीचे आ गए। हम चारों ही पास में गन्ने के जूस की एक दुकान पर जाकर खड़े हो गए। आकाश ने चार ग्लास गन्ने का जूस बनाने के लिए बोल दिया।
जूस के ग्लास तैयार होने के बाद आकाश ने सबको एक-एक ग्लास जूस का थमाना शुरु कर दिया, चारों जूस पीने लगे।
मैं भी जूस पी रही थी; बार बार मेरी नज़र आकाश पर जा रही थी। आकाश देखने में सतेंद्र से भी बढ़ कर था। कुछ वैसा ही जैसा मैंने अंतर्वासना की स्टोरी में रवि के बारे में पढ़ा था। उसकी लंबाई करीब 6 फीट थी, रंग भी काफी साफ था, उम्र में करीब 26 के आस-पास का लग रहा था। शरीर से भी ताकतवर और लुक्स के मामले में भी सतेंद्र से काफी अव्वल था। उसकी आंखें काली और होंठ सुर्ख लाल थे। चेहरे पर हल्की दाढ़ी और शर्ट का ऊपर वाला बटन खुला रखा हुआ था। जिस हाथ से जूस का ग्लास पकड़ा हुआ था उसकी बाइसेप्स टाइट होकर शर्ट में फंस गई थी। पेट का कहीं नाम निशान भी नहीं था। नीचे ब्लू जींस और पैरों में महंगे जूते।
वो भी मेरी तरफ देख रहा था लेकिन उसकी नज़र में सेक्स जैसा मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
हमने जूस खत्म किया और मैंने शिखा से कहा कि मैं जा रही हूं। कल माँ गुस्सा हो गई थी।
शिखा ने कहा- तुम आकाश के साथ ही निकल जाओ ना… ये भी उसी तरफ जाएगा।
आकाश ने कहा- हां, इतनी गर्मी में कहां परेशान होंगी आप, मैं आपको बस स्टैंड तक छोड़ देता हूं।
मैंने भी ज्यादा आनाकानी करने का नाटक नहीं किया और आकाश के साथ जाने के लिए हां कर दी।
सतेंद्र ने आकाश से हाथ मिलाया और हम दोनों शिखा और सतेंद्र को बाय बोलकर दूसरी तरफ चलने लगे।
पैदल चलते हुए आकाश ने मुझसे मेरे घर और परिवार के बारे में पूछना शुरु कर दिया। मैंने भी उसकी बातों का सीधा सीधा जवाब दिया। साथ ही साथ उसने अपने घर परिवार के बारे में भी बता दिया। उसका पूरा नाम आकाश दहिया था, वो भी यहां पर सरकारी जॉब के लिए कोचिंग सिलसिले में ही आया हुआ था।
बातें करते करते हम दोनों काफी दूर आ गए, मैं पसीना पसीना होने लगी। उसने एक पेड़ के नीचे चल कर खड़ा होने का सुझाव दिया।
हम दोनों कुछ देर पेड़ की छांव में रुक कर आराम करने लगे।
तभी उसने रोड पर गुजरते हुए आइसक्रीम वाले को आवाज़ दी और दो बटर स्कॉच कोन मांगे। आइसक्रीम वाले ने कोन निकाल कर दिए और आकाश ने पैसे दे दिए।
हम दोनों पेड़ की छांव में खड़े होकर आइसक्रीम खाने लगे।
आकाश की बातें सुनकर मेरी हंसी छूट जाती थी; वो भी हल्के से मुस्कुरा देता था। कुछ ही देर में उसने मुझसे मेरा नम्बर ले लिया।
आइसक्रीम खाने के बाद हम चले और एक गाड़ी के पास जाकर वो रुक गया। उसने गाड़ी को अनलॉक किया और मेरे लिए दरवाज़ा खोल कर मुझे अंदर बैठने के लिए कहा। मुझे बैठा कर उसने ड्राइविंग सीट संभाल ली और ऐसी ऑन करके गाड़ी घुमा ली।
कहानी अगले भाग में जारी रहेगी.
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