चूत जवां जब होती है- 7
(Chut Jwan Jab hoti hai-7)
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आरती उठ बैठी और अपने बालों को लपेट कर जूड़ा बना लिया और बेड पर नंगी ही बैठ गई और वत्सला को खींच कर लिटा दिया।
वो भी अपनी भाभी की गोद में सिर रख कर लेट गई और मेरी तरफ देखने लगी. उसने अपने बूब्स अपने हथेलियों से ढक लिए थे और दोनों पैरों को आपस में चिपटा कर सीधी लेटी थी।
उसके बदन पर मात्र एक पैंटी ही शेष थी जो उसकी चूत की रखवाली कर रही थी।
‘बड़े पापा.. हो जाओ शुरू! अब मेरी प्यारी ननद रानी को लड़की से औरत बना दो, खिला दो इस कली को!’ आरती ने मुझसे कहा।
मैंने बिना एक पल गंवाये वत्सला को अपनी बाहों में भर लिया, मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने किसी रेशम की सुगन्धित गठरी को अपनी बाहों में समेट लिया हो!
मैं कब से तरस रहा था इस कली का रस पीने को! मैंने उसका संतरे की फांक जैसा निचला होंठ अपने होंठों में ले लिया और रस पीने लगा।
ऐसी कोमल सुकुमारी कामिनी का आलिंगन इसके पूर्व मैंने कभी नहीं किया था।
देर तक उसके होंठ चूसने के बाद मैं उसके फूल से गालों पर अपने गीले होंठों की छाप छापनी शुरू कर दी और फिर उसके कान की लौ को चूसने लगा।
लड़कियों के कान की लौ बहुत संवेदनशील होती है और अगर कान छिदे न हों तो उनका चुम्बन लड़की को बहुत जल्दी कामातुर कर देता है।
वत्सला के कान भी छिदे नहीं थे तो मेरे चूसने का असर उस पर जल्दी ही हो गया और उसने अपने हाथ अपने बूब्स पर से हटा कर मेरी पीठ पर रख लिए और अपने नाख़ून गड़ाने लगी।
अब उसके रुई के गोले से सॉफ्ट मम्मे मेरी कठोर छाती के नीचे पिस रहे थे और मैं उसकी हथेलियों को अपनी हथेलियों में फंसाए उसका पूरा चेहरा जगह जगह से चूम चाट रहा था।
मैं उसके गले को चूमता हुआ उसके स्तनों तक आ पहुँचा और उसका बायाँ स्तन मैंने अपनी मुट्ठी में भर लिया और दायें स्तन को अपने मुंह में भर के धीरे धीरे काटते हुए चूसने लगा।
वत्सला के बदन में हल्की सिहरन सी होने लगी थी और वो अपने तन की उमंगों को अपने वश में रखने का पूरा प्रयास कर रही थी। अब उसके उरोजों में कसाव आने लगा था और उसके निप्पल भी फूल गए थे, किशमिश से अंगूर बन चुके थे।
अब मैंने उसका बायाँ स्तन चूसना मसलना शुरू किया और दायें वाले को मुट्ठी में भर के गूंथने लगा। वत्सला के मुख से धीमी धीमी कामुक कराहें आने लगीं थीं और वो जल्दी जल्दी मेरी पीठ सहलाने लगी थी, साथ ही मुझे लगता कि वो अपनी कमर को बार बार ऊपर की तरफ उठा कर अपनी चड्डी को मुझसे टच करवा रही थी।
मेरा लण्ड तो कब का पूरी तरह से भीमकाय रूप धर चुका था, कुछ ही देर पहले आरती की चूत मार के झड़ा था और ऊपर से उस गोली का असर… कुल मिलाकर मेरा लण्ड रेस के घोड़े की तरह लम्बी और खूबसूरत पारी खेलने को तैयार था। मेरे लण्ड ने अभी अपनी पिच का मुआयना तो नहीं किया था परन्तु मुझे यकीन था कि वत्सला की जगह कोई मर्दखोर, लण्डखोर रण्डी भी होती तो वो भी पनाह मांग जाती।
उसके स्तनों का स्वाद और मज़ा जी भर के लेने के बाद मैं वत्सला के बदन के नीचे की ओर बढ़ चला, उसके समतल सुतवां पेट को चाटते हुए उसकी नाभि के कूप में मैंने अपनी जीभ घुसा दी और उस गोल गोल घुमाने लगा…
वत्सला की साँसें बेतरतीब होती जा रहीं थीं और अब वो अपनी एड़ियाँ भी बिस्तर पर रगड़ने लगी थी।
पेट और नाभि को चाट चूम कर मैंने उसकी पैंटी को जानबूझ कर नहीं छेड़ा और उसके पैरों के पास बैठ कर उसके पैर की उँगलियों को दोनों हाथों से दबाने और मुंह में लेकर चुभलाने लगा।
वत्सला ने मुझे गहरी नज़र से देखा। शायद उसकी आँखों वो प्रश्न था कि मैंने उसकी जाँघों के मध्य भाग को क्यों यों ही बिना कुछ किये छोड़ दिया था।
अब वो बेचारी क्या जाने कि मैं उसे किस मंजिल की तरफ ले जा रहा था…
उसके पैरों की उँगलियों को मुंह में ले के धीमे धीमे दांतों से काटने कुतरने लगा और उसके तलवे चाटना शुरू किये। वो भी बेचारी भरपूर जवान छोरी थी, कब तक सब्र करती, मेरे तलवे चाटना शुरू करते ही उसने अपना आपा खो दिया और उठ कर बैठ गई।
‘बस भी करो अंकल जी… मत करो ऐसे प्लीज. बहुत गुदगुदी सी हो रही है सब जगह!’ वो बोली और उसने अपने पैर सिकोड़ लिए और बैठ गई।
लेकिन मैंने उसकी बात अनसुनी करके उसकी टाँगें फिर से खींच लीं और उसकी पिंडलियाँ काटने, चाटने लगा। वो मुझे पैरों से परे धकेलने लगी लेकिन मैंने इस बार उसकी जाँघों को चूमना चाटना शुरू कर दिया।
मित्रो, क्या बताऊँ वत्सला का पूरा बदन किसी रसीले फल, किसी मिठाई के डिब्बे की तरह था जिसमें तरह तरह के स्वाद भरे पड़े थे… वत्सला की गुदाज़, केले के तने जैसी सुडौल साटन की तरह चिकनी मरमरी जाँघों को चूमने चाटने का वो आनंद मैं आजीवन नहीं भूल सकता। मेरी नाक बार बार उसकी पैंटी के निचले तिकोने छोर तक जाती और मैं जानबूझ कर अपनी नाक की नोक को वहाँ पर छुआ देता और वापस लौट आता।
उधर वत्सला का हाल बेहाल हो रहा था, उसकी चड्डी के ऊपर नमी की दरार अब साफ़ साफ़ दिख रही थी। उसकी चूत की दरार के निचले हिस्से पर जहाँ जन्नत का प्रवेश द्वार होता है, वहाँ पर उसकी पैंटी कुछ ज्यादा ही गीली चिपचिपी सी हो रही थी।
अब मेरा सब्र भी मेरे हाथ से निकलने लगा था और मैं उसकी रिसती चूत देखने को उतावला बेकरार हो उठा था, मैंने झट से उसके दोनों मम्मे अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिए और उसकी चूत को पैंटी के ऊपर से ही चाटने लगा और समूची चूत मुंह में भर कर धीरे धीरे झिंझोड़ने लगा।
आरती यह सब मुझे करते हुए बड़े गौर से देख रही थी और वत्सला के बालों में अपनी उँगलियों से कंघी करती जा रही थी।
मैंने वत्सला के चूचुकों को चुटकियों से मसलते हुए उसकी चूत को चड्डी के ऊपर से ही चबाना जारी रखा।
एक दो मिनट बाद ही वो बेकाबू हो गई और अपने पैर से मेरे सिर पर दबाव देकर मुझे हटाने की पूरी कोशिश करने लगी लेकिन सफल नहीं हुई और अपने दोनों पैर मेरे कंधों पर रख दिए साथ ही अपनी जाँघों से मेरा सिर भींचने लगी।
मैं समझ गया कि उसे क्या हो रहा था और मैं उसी क्षण उसके ऊपर से हट गया।
उसने अविश्वास से मेरी तरफ देखा और फिर अपनी पैंटी को मुट्ठी में भर कर अपनी चूत खुद ही मसलने लगी लेकिन मैंने उसके दोनों हाथ पकड़ कर हटा दिये, उसकी कमर दो तीन बार हवा में उछली और फिर वो अपनी बेबसी के कारण अपने होंठ खुद चबाने लगी।
‘भाभी…????’ वत्सला ने जैसे आरती को सहायता के लिए आवाज दी।
‘बड़े पापा, क्यों सता रहे हो बेचारी को? अब ठोक भी दो अपना मूसल इसकी बुर में, देखो न, यह कैसे तरस रही है लण्ड के लिए, मनवा दो इसका हैप्पी बर्थडे अब!’ आरती ने मुझसे कहा।
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मैंने वत्सला के हाथ छोड़ दिए और उसकी कच्छी पकड़ कर नीचे खिसकाने लगा।
उसने भी झट से अपनी कमर उठा कर मेरा काम आसान कर दिया।
जैसे ही उसकी कच्छी उसके बदन से अलग हुई उसने झट से लजा कर अपनी चूत हथेलियों से ढक ली लेकिन मैंने उसके हाथ हटा दिए और उसकी अनचुदी चूत निहारने लगा।
मित्रो, यूँ तो आप सब की दुआ से मैंने अपनी जिंदगी में बहुत सी चूतें देखीं थीं और चोदी थीं लेकिन वत्सला की चूत उन सबसे निराली थी। अपनी भारतीय लड़कियों की चूत गहरे सांवले रंग की या काली होती है चाहे लड़की कितनी भी गोरी चिट्टी क्यों न हो। लेकिन वत्सला की चूत एकदम फक गोरी गुलाबी मक्खन जैसी थी, बिल्कुल किसी बेबीसिटर पोर्न स्टार के जैसी!
आरती ने सुबह ही उसकी झांटें शेव कर दीं थीं इस कारण उसकी जाँघों और चूत के लिप्स की स्किन और रंग एक सा ही था… गोरा गुलाबीपन लिए हुए!
उसकी चूत का आकार भी बहुत छोटा सा था, देखने में बहुत मासूम भोली सी चूत, किसी अवयस्क बच्ची की तरह. कचौरी जैसी फूली हुई उसकी चूत बहुत ही मोहक लग रही थी, चूत के उपरी भगोष्ठ आपस में चिपके हुए थे और उसकी दरार एक पतली रेखा की तरह थी जैसे किसी ने ब्लेड से चीरा लगा दिया हो!
उसकी चूत से रस के स्राव के कारण पूरा तिकोना भीगा भीगा सा था।
मैं उस पर झुक गया और उसके भगोष्ठ चाटने लगा, उसके रस का हल्का नमकीन स्वाद भा गया मुझे! यह स्वाद आरती की चूत के स्वाद से भिन्न था और बेहतर भी!
कुछ देर चूत ऊपर से चाटने का आनन्द लेने के बाद मैंने उसकी चूत धीरे से अपने दोनों हाथों से खोल दी।
चूत के भीतर जैसे तरबूज के जैसा लाल रसीला गूदा भरा हुआ था जिसे मैं बरबस ही चाटने लगा।
वत्सला अब बिस्तर पर अपनी एड़ियाँ रगड़ रही थी और बार बार अपनी कमर उचका कर अपनी चूत मेरे मुंह में ठेल दे रही थी।
‘अंकल जी… करो न अब!’ वत्सला इतनी देर के फोरप्ले के बाद मुझसे बोली।
कहानी जारी है!
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