चूत जवां जब होती है- 4
(Chut Jwan Jab hoti hai-4)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left चूत जवां जब होती है- 3
-
keyboard_arrow_right चूत जवां जब होती है- 5
-
View all stories in series
‘वाह.. मेरी गुड़िया रानी, ग्रेट है तू… आखिर मेरे लण्ड के लिए नई चूत का जुगाड़ फिट कर ही दिया तूने!’ मैंने कहा और आरती को बाहों में भर कर चूम लिया।
‘हाँ बड़े पापा, वो वत्सला खुद असली लण्ड से चुदने को बेकरार है लेकिन बोलती थी कोई पतले, छोटे लण्ड वाला लड़का हो तो ज्यादा अच्छा है। लेकिन बड़े पापा, आप तो पहली बार पूरी ताकत से एक बार में ही अपना लण्ड पेल देना उसकी चूत में… उसके रोने चीखने की फिकर मत करना… फिर उसे कस के रगड़ रगड़ के बेरहमी से ही चोदना ताकि उसे अपनी पहली चुदाई जिंदगी भर याद रहे… बिल्कुल जंगली बिल्ली है वो सेक्स में… आप देखना, एक बार लण्ड लीलने के बाद कैसे बेशर्मी से चुदवाती है फिर!’ आरती बोली।
‘अरे तू देखना आज रात को, पहले तेरी चूत लूँगा फिर मेरा लण्ड तेरी ननद रानी चूत में जा के हैप्पी बर्थडे बोलेगा उसे!’ मैंने कहा और हंसने लगा।
आरती भी हंसी और बोली- रात के खाने के बाद मैं बुलाने आऊँगी सब तैयारी कर के!
और वो अपने काम में लग गई।
मित्रो, दो दो चूतें तृप्त करने की जिम्मेवारी आन पड़ी थी मुझ पर! यूँ तो मैं नॉर्मली फिट हूँ और किसी भी चूत को खुश करने का सामर्थ्य है मुझमें लेकिन यह मेरी जिंदगी में पहली बार होने जा रहा था कि मेरे लण्ड को दो दो जवान, प्यासी, हवस की भूखी चूतों से जंग लड़नी थी और मैं नहीं चाहता था कि मेरे लण्ड के नाम पर कोई आंच आये!
इसलिये मैंने शाम को पांच बजे ही वो मैनफोर्स 100 की गोली निगल ली ताकि मेरा लण्ड लोहे जैसा टनाटन खड़ा रहे और इन दोनों कामिनियों को चोद कर उनकी काम पिपासा शान्त कर रति युद्ध में विजय श्री हासिल करे!
अँधेरा होते ही आदत के मुताबिक मैंने बोतल खोल ली और एक लार्ज पैग बना के धीरे धीरे चुसकने लगा। आरती और वत्सला किचन में खाना बना रहीं थीं।
जल्दी ही हल्का हल्का सुरूर मेरे दिमाग पर छाने लगा और मैं वत्सला को चोदने के ताने बाने बुनने लगा।
जैसा कि मुझे पता था कि वत्सला एक हाई प्रोफाइल, सेक्स की भूखी लेस्बियन लड़की है जिसकी चूत में अभी तक कोई असली लण्ड नहीं घुसा है केवल ऊँगली, पेन्सिल वगैरह का ही अनुभव है उसकी कुंवारी चूत को!
अब ऐसी चूत को कुंवारी कह लो या अनचुदी मतलब वत्सला ‘टेक्निकली वर्जिन’ या सील पैक माल तो नहीं है लेकिन उसने अभी तक कोई असली लण्ड भी तो नहीं लिया है अपनी चूत में… यह मेरे लिए बहुत सुकून देने वाली बात थी।
सबसे बड़ी बात कि आज उसका जन्म दिन है, अभी दो घंटे बाद वो पूरे अट्ठारह साल की हो जायेगी. ऐसी ताजा ताजा जवान हुई हुस्न की परी को चोदने के खयाल से ही मेरे बदन में रोमांच की लहर दौड़ गई।
मैंने अपने पैग में से एक बड़ा सा घूँट गटका और सिगरेट सुलगा कर धुएं के छल्ले उड़ाने लगा।
तभी वत्सला कमरे में आई, हाथ में प्लेट लिए थी जिसमें ड्रिंक के सपोर्टिंग कुछ खाने चबाने का था।
‘लीजिये अंकल जी, ये भाभी ने भेजा है!’ वो बोली और प्लेट मेज पर रख दी।
‘थैंक्स डियर, बैठो न!’ मैं बोला।
‘नहीं अंकल, किचन में बहुत काम है अभी, अब बैठना क्या कुछ देर बाद लेटना ही है न!’ वो हंसकर बिंदास अंदाज में बोली और भाग गई।
उसका चुलबुलापन देख के उसे चोदने की बेकरारी और बढ़ने लगी।
करीब नौ बजे हम लोगों का डिनर हो गया, खाने के दौरान कोई खास बातें नहीं हुईं और न मैंने न उन दोनों ने बातों से यह जाहिर किया कि अभी कुछ देर बाद चुदाई होने वाली है।
मैंने नोट किया कि आरती और वत्सला दोनों नहा कर आईं थीं और एकदम तरोताज़ा दिख रहीं थी।
आरती ने तो साड़ी ब्लाउज पहन रखा था और खूब हंस हंस कर बातें कर रही थी जबकि वत्सला जींस टॉप में थी।
खाने के दौरान वत्सला लगभग चुप ही रही और नज़रें झुकाये डिनर करती रही।
वत्सला की चुप्पी, उसके मन की उथल पुथल मैं अच्छे से समझ रहा था। जिस लड़की को यह पता हो कि वो अभी थोड़ी देर बाद सामने बैठे आदमी से चुदवाने वाली है, किसी का लण्ड पहली पहली बार उसकी चूत में उतरने वाला है तो उसके मन में कैसा द्वन्द, कैसी कशमकश चल रही होगी ये समझना कठिन नहीं था।
यह सही था कि वो बहुत सेक्सी बहुत कामुक किस्म की लड़की थी और असली लण्ड से चुदवाने को तरस रही थी लेकिन उमर और मन के हिसाब से तो अभी कच्ची ही थी। उसके मन में वैसी ही घबराहट वैसा ही डर रहा होगा जैसा किसी छोटे बच्चे को होता है कि जब कोई डॉक्टर उसे पहली बार इंजेक्शन लगाता है, इंजेक्शन की लपलपाती हुई सुई देख कर और यह सोच कर कि अभी यह सुई उसे चुभेगी, उसके बदन के भीतर घुसेगी तो मन में चिंता और डर से जो झुरझुरी उठती है वैसी ही हालत वत्सला के मन की रही होगी।
और यह स्वाभाविक भी था।
डिनर खत्म होने के बाद वे दोनों बर्तन उठा कर किचन में चली गईं, मैं अपने कमरे में आ गया और इंतज़ार करने लगा।
लगभग एक घंटे बाद मेरे फोन बजा, देखा तो आरती काल कर रही थी।
‘हाँ मेरी गुड़िया, आ जाऊँ?’ मैंने पूछा।
‘आ जाओ बड़े पापा!’ वो फुसफुसा कर बोली।
‘मैं पांच मिनट में आया, तब तक तुम वत्सला को पूरी नंगी करो!’ मैंने शरारत से कहा।
‘अच्छा…?? रहने दो, यह काम तो आप ही को शोभा देगा, आप ही करना उसे पूरी नंगी, फिर जैसे चाहे चोदना उसे! लेकिन एक बात सुन लो, सबसे पहले मैं ही चुदूंगी उसके बाद ही वत्सला की चूत मारने दूंगी… कहे देती हूँ, हाँ’ आरती इतरा के बोली।
‘अच्छा ठीक है मेरी जान, मेरी प्यारी गुड़िया रानी पहले तुम्हारा ही नंबर लगेगा। तुम जल्दी से पूरी नंगी हो जाओ, मैं आ रहा हूँ।’ मैंने कहा।
‘आ जाओ बड़े पापा… मैं नंगी हो रही हूँ… और अपनी चूत के पट अपने हाथों से खोल के लेटती हूँ आपके स्वागत के लिए…हा हा हा!’ आरती हँसते हुए बोली और फोन कट गया।
मैं जल्दी से पूरा नंगा होकर वाशरूम में घुसा और पेशाब करके लण्ड को अच्छे से धोया।
गोली का असर तो कब का शुरू हो चुका था और मैं अपने बदन में गजब की उत्तेजना और सनसनी महसूस कर रहा था, मेरा लण्ड अब लम्बी पारी खेलने के लिए तैयार और बेकरार था। कमरे में आकर मैंने सिर्फ एक लुंगी अपनी कमर में लपेट और टी शर्ट पहन ली।
आरती के कमरे में पहुँचा तो देखा कि वत्सला बेड पर बैठी हुई किसी मैगजीन के पन्ने पलट रही थी और आरती ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी अपने बाल संवार रही थी और अभी तक नंगी नहीं हुई थी।
उसने मुझे मुस्कुरा कर देखा।
मैं उसके पास गया और उसे कमर से पकड़ कर खींच कर अपने से चिपका लिया और…
‘अभी तक कपड़े पहन रखे हैं तुमने? कह तो रहीं थीं कि पूरी नंगी मिलोगी अपनी चूत के पट खोले हुए?’ मैंने उसे चूमते हुए कहा।
‘हट… बिल्कुल बेशरम समझ लिया है क्या मुझे?’ वो बोली और मेरी बाहों से फिसल कर वत्सला के पास जा बैठी।
मैं भी वत्सला के पास जाकर बैठ गया।
वत्सला अब मेरे और आरती की बीच में बैठी थी, मैंने बड़े प्यार से वत्सला की पीठ पर हाथ रखा और पूछा- गाँव आकर कैसा लग रहा है वत्सला?
‘अच्छा लग रहा है अंकल जी!’ उसने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
‘हाँ, शहर की भीड़ भाड़ से दूर शांत वातावरण, प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुभव करना… यहाँ की यादें तुम्हें हमेशा याद रहेंगी।’ मैंने कहा और उसकी पीठ सहलाना जारी रखा।
‘जी, अंकल जी… अभी अनुभव हुआ नहीं है, वैसे यहाँ की सब बातें हमेशा याद रहेंगी।’ वो बोली।
‘हाँ वत्सला अभी यहाँ तुम्हें बहुत से नये नये अनुभव होंगे जो तुम्हें जीवन भर याद रहेंगे।’ मैंने उसका साइड वाला बूब उँगलियों से हल्के से छुआ और उसका गाल चूमता हुआ बोला।
उसने मुझे अर्थपूर्ण नज़रों से देखा, थोड़ी कसमसाई लेकिन बोली कुछ नहीं।
फिर मैंने उसके गले में हाथ डाल कर अपने से सटा लिया और उसके टॉप में हाथ घुसा दिया।
मेरा हाथ सीधा उसके उरोजों घाटी की बीच जा पहुँचा जहाँ से दोनों तरफ के नर्म गर्म मम्मों का स्पर्श मुझे होने लगा।
आरती मुझे देखे जा रही थी।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
‘यह क्या कर रहे हो अंकल जी… छोड़ो न’ वत्सला बोली।
लेकिन मैंने अपना काम जारी रखा और उसकी जींस के ऊपर से ही उसकी चूत मसलने लगा साथ में उसका निचला होंठ अपने होठों में भर के चूसने लगा, फिर अपनी जीभ उसके मुंह में घुसा दी वो भी मेरी जीभ चूसने लगी।
हमारा चुम्बन गहरा होता चला गया, उसने भी अपनी जीभ बाहर निकाल दी जिसे मैंने अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगा।
वो सिहर उठी!
किसी पुरुष का प्रथम स्पर्श था यह उसके लिए!
कहानी जारी है!
[email protected]
What did you think of this story??
Comments