चूत जवां जब होती है- 10
(Chut Jwan Jab hoti hai-10)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left चूत जवां जब होती है- 9
-
View all stories in series
रात को मेरी नींद पेशाब लगने से खुल गई, कमरे में घुप्प अँधेरा था, समय का कुछ पता ही नहीं चल रहा था। मैंने बेड साइड का लैंप जला दिया, कमरे में मद्धिम सी रोशनी फैल गई।
घड़ी देखी तो रात के तीन बजने वाले थे, मैं वत्सला की तरफ करवट लिए सोया था और वो भी मुझसे लिपट कर नंगी ही बेसुध सो रही थी, उसके दोनों स्तन भी मुझसे चिपटे हुए थे, उसका एक हाथ मेरी गर्दन में लिपटा था और एक पैर मेरी कमर में… उसकी सांसों के उतार चढ़ाव से लगता था कि वो बहुत गहरी नींद में है जैसे कोई बच्चा खेलते खेलते थक हार कर सो गया हो!
सम्भोग श्रम से थकी कामिनी को जैसी गहन निद्रा आती है ठीक वैसे ही वो सो रही थी अपने अधरों पर एक मधुर मुस्कान लिए, होंठों ही होठों में कुछ बुदबुदाती हुई सी!
दूसरी तरफ आरती भी नंगी ही मुझसे चिपक कर सो रही थी, उसके कठोर स्तन मेरी पीठ से सटे हुए थे, इन दोनों नग्न कामिनियों का उष्ण स्पर्श बहुत ही मादक लग रहा था।
मुझे पेशाब लगने की वजह से मेरी नींद खुली थी, मैं वत्सला और आरती के मध्य सैंडविच बना हुआ था, दोनों ने जकड़ रखा था मुझे और बेसुध सो रहीं थीं। मैंने कुछ देर इंतजार किया लेकिन जब प्रेशर ज्यादा हो गया तो मैं धीरे से उन दोनों के बीच से नीचे की तरफ खिसक खिसक के पलंग से उतर गया।
वाशरूम से वापिस आया तो देखा वो दोनों अभी भी सो रहीं थीं लेकिन उनकी मुद्रा बदल चुकी थी, आरती की टाँगें खुली हुई थीं जिससे उसकी चूत स्पष्ट दिख रही थी, उसकी चूत की दरार खूब चौड़ी खुली हुई थी जिससे उसकी भीतर की खाई स्पष्ट नज़र आ रही थी। वत्सला के पैर बिल्कुल सीधे थे जिससे उसकी चूत जांघों के बीच छुपी हुई थी सिर्फ चूत के ऊपर का कुछ हिस्सा ही नज़र आ रहा था। उसकी चूत की दरार एक रेखा की तरह दिख रही थी जो उसकी जाँघों के बीच जा कर गुम हो गई थी।
मैं आहिस्ता से उन दोनों के बीच घुसा और अपनी जगह बना के फिर से लेट गया और लाइट बुझा दी। वत्सला नींद में थोड़ी कुनमुनाई और फिर से मुझसे लिपट गई, इतनी देर सो लेने के बाद मुझे फिर ताजगी अनुभव होने लगी थी, सेक्स की उस गोली का असर अभी भी बरकरार था जिससे मुझे अपने लण्ड में अकड़न फिर से महसूस होने लगी थी लेकिन मैं अपने उत्थान को नज़रन्दाज करके फिर से सोने का प्रयास करने लगा क्योंकि मैं इन लोगों की नींद ख़राब नहीं करना चाहता था।
कुछ देर बाद किसी का हाथ मेरे लण्ड से खेलने लगा जिससे मेरा लण्ड तमतमा उठा!
कौन थी यह? आरती या वत्सला?
मैं अँधेरे में ही अंदाजा लगाने लगा; आरती मेरे दायीं ओर लेटी थी और वत्सला बायीं ओर थी। यह हाथ मेरे दायीं ओर से आ रहा था मतलब आरती मेरे लण्ड को सहलाने लगी थी लेकिन मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की और चुपचाप पड़ा रहा। लेकिन उसके हाथ की हरकत तेज होती चली गई और अब वो लण्ड को अच्छे से मुट्ठी में पकड़ कर मुठिया रही थी।
मुझसे रहा नहीं गया मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे चिकोटी काटी, वो मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चूत पर ले गई और वहाँ रख दिया।
‘क्या बात है आरती नींद नहीं आ रही क्या?’ मैंने पूछा।
‘नींद कैसे आएगी, जब यह मेरी मुनिया के पास खड़ा है?’ आरती मेरा लण्ड फिर से पकड़ कर बोली।
‘मम्मी पापा कल शाम को आ जायेंगे.. फिर ऐसा मौका नहीं मिलेगा. वत्सला भी नहीं मिलेगी आपको!’ वो मेरे कान में फुसफुसाई।
आरती की बात सुनकर मुझे झटका सा लगा, तो मेरे पास कल शाम तक का ही वक़्त था!
मैं जल्दी से पलट कर उसके ऊपर चढ़ गया और उसकी चूत में ऊँगली करने लगा, उसकी चूत बहुत लसलसी हो रही थी।
‘ऊँगली नहीं, अपना झंडा गाड़ दो जल्दी से…’ वो बोली।
मैंने झट से उसकी टाँगें खोलीं और एक बार में ही लण्ड उसकी चूत में घुसा दिया और ‘दे गचा गच’ चोदने लगा उसे… वो भी मेरा साथ निभाने लगी।
उसकी बुर से बहुत पानी निकल रहा था जिससे मेरी झांटें तक गीलीं हो रहीं थीं और फचर फचर की आवाजों से कमरा गूँज रहा था।
कमरे में घुप्प अँधेरा था कि अचानक रोशनी फैल गई।
मैंने देखा कि वत्सला ने उठ कर लाइट जला दी थी और वो पास ही खड़ी थी।
‘भाभी आप तो फिर से मज़े लेने लगीं?’ वत्सला बोली और हंसने लगी।
‘तुझे भी चुदना है तो आजा तू भी!’ आरती बोली।
‘हाँ, भाभी… Once is not enough… एक बार और चुदवा दो मुझे!’ वो चुदासी सी आवाज में बोली और फिर वो भी हमारे बगल में आ के लेट गई।
फिर आरती मुझसे बोली- आप एक मिनट के लिए हटो!
मैं एक तरफ हट गया तो आरती ने वत्सला को अपने ऊपर लिटा लिया और फिर अपनी टाँगें ऊपर मोड़ लीं उसके बाद वत्सला की टाँगें अपने हाथों में फंसा कर ऊपर समेट दीं।
अब दो दो चूतें मेरे सामने थीं, नीचे आरती की और उसके ठीक कुछ ही इंच ऊपर वत्सला की, मैंने आरती की चूत में फिर से लण्ड घुसा दिया और आठ दस बार उसमें डुबोने के बाद उसे अच्छे से गीला कर के वत्सला की चूत के मुहाने पर रगड़ने लगा, उसने भी अपनी बुर को स्वयं अपने हाथों से खोल कर चौड़ा कर लिया और मेरी आँखों में आँखें डाल के बिंदास मुझे देखने लगी।
मैंने उसकी खुली चूत की ओर देखा… वो नन्ही सी चूत जैसे मुझे काम युद्ध के लिए ललकार रही थी, मैंने भी अपना हथियार उसके छेद पर टेक दिया और जोर से धकेल दिया उसकी कमसिन बुर में!
‘सी…’ उसके मुँह से निकला लेकिन इस बार आराम से ले गई वो और कोई हाय तौबा नहीं मचाई उसने!
एक ही बार की चुदाई से उसकी चूत खिल उठी थी और उसके कस बल ढीले पड़ चुके थे। थोड़ी देर उसकी चूत में लण्ड पेलने के बाद मैंने पुनः आरती की में घुसा दिया और ऐसे ही बारी बारी से दोनों की चूत मारने लगा।
इस बार आरती का काम जल्दी ही तमाम हो गया और वो मुझसे हटने के लिए कहने लगी. मैं उसकी चूत से लण्ड को खींच कर अलग हट गया, उसने वत्सला को अपने ऊपर से उतारा और करवट लेकर लेट गई।
इधर वत्सला झट से चुदने की पोजीशन में अपने पैर ऊपर की तरफ करके लेट गई, मैं उसके ऊपर झुक गया और उसके मम्मे दबोच कर उसके होठों का रसपान करने लगा।
वो भी मेरे चुम्बन का जवाब देने लगी, साथ ही उसने मेरा लण्ड पकड़ कर अपनी चूत के मुहाने पर रख लिया और जल्दी से उचक कर ले गई एक बार में ही! फिर वासना का तूफ़ान अपने चरम पर जा पहुँचा और मैं उसे आंधी तूफ़ान की तरह चोदने लगा, उसकी कसी हुई चूत की ग्रिप… उसकी पकड़… मुझे अलौकिक सुख दे रही थी।
अब वो भी किसी अनुभवी कामिनी की तरह मेरा साथ निभाये जा रही थी- abuse me uncle and fuck me wildly now… aah… बहुत मज़ा आ रहा है!’ वो अपने नाखून मेरे नितम्बों में गड़ाती हुई बोली
‘ये ले हरामजादी खा मेरा लण्ड… तूने अपनी मम्मी की चूत भी देखी है?’ मैंने उससे पूछा।
‘हाँ अंकल, देखी है मम्मी की चूत और अपने पापा का लण्ड भी देखा है।’ वो मुझसे लिपटती हुई बोली।
‘मतलब तू अपने मम्मी पापा की चुदाई देखती है?’ मैंने पूछा।
‘हां अंकल छुप कर देखती हूँ… पापा जब गालियाँ दे दे के मम्मी को चोदते हैं तो मुझे बहुत मज़ा आता है और मै बहुत होर्नी हो जाती हूँ, मेरी चूत चिपचिपी हो जाती है।’
‘कितने दिनों से देख रही हो अपनी मम्मी की चुदाई?’ मैं उसका गाल काटते हुए बोला।
‘जब मैं नाइंथ में पढ़ती थी… तब से!’ वो हांफती सी बोली।
‘तो फिर क्या करती हो तुम अपनी मम्मी की चुदाई देख के?’ मैंने धक्के लगाते हुए पूछा।
‘अपनी चूत में ऊँगली करती हूं मम्मी की चुदाई देख देख के!’ वो अपनी चूत मेरी झांटों से रगड़ते हुए बोली।
‘फिर तो तेरा दिल भी करने लगता होगा अपने पापा से अपने चूत मरवाने का?’
‘हां… कभी कभी करता है. अब कुछ मत पूछो अंकल… जोर जोर से चोद डालो मुझे!’ वो बोली।
अब मैं पूरे दम से उसे भोगने लगा, वो भी मेरा भरपूर साथ निभा रही थी।
जल्दी ही हम दोनों पसीने से भीग गए और झड़ने की कगार पर जा पहुंचे, फिर उसने मुझे पूरी ताकत से भींच लिया और स्खलित होने लगी। मैं भी उसकी चूत में झड़ गया और हम अपनी साँसों पर काबू पाने लगे। जल्दी ही उसकी चूत ने मेरे लण्ड को बाहर धकेल दिया।
‘अंकल जी, आप बाद में भी मुझे ऐसे ही अपना प्यार दोगे न.. मुझसे मिलने ललितपुर आओगे न?’ वो मुझे चाहत से चूमते हुए बोली।
‘हाँ बेटी, क्यों नहीं जरूर आऊँगा।’ कह कर मैंने भी उसे चूम लिया।
उप संहार :
मित्रो, चुदाई के दौरान हर लड़की या औरत का व्यवहार अलग अलग होता है, किसी को किसी तरह मज़ा आता है तो किसी को अन्य तरह से!
जैसे वत्सला को गालियाँ खाते हुए चुदना ज्यादा उत्तेजित करता है।
कुछ कामिनियाँ ऐसी भी होती हैं जो चूत लण्ड जैसे शब्द कभी मुंह से नहीं ले सकतीं, कुछ अत्यंत शर्मीली लज्जालु होती हैं वे चुपचाप लेट कर चुदवाना पसन्द करतीं हैं, पूरी नंगी भी नहीं होतीं और अपना कोई सहयोग भी नही देतीं… सबकी प्रकृति, मनोदशा, सेक्स की fantasy अलग अलग होती है।
इस सत्य कथा में मैंने वत्सला के चरित्र को, उसके temperament को जैसा मैंने खुद अनुभव किया, शब्दों में अंकित करने का प्रयास किया है।
अब बताने को विशेष कुछ नहीं है। उस रात के बाद अगले दिन भी यही सब होता रहा।
मैं बुरी तरह से थक चुका था और चुदाई से मन भी उचाट हो गया था।
उसी दिन शाम को आरती के पापा मम्मी भी लौट कर आ गए और उन्होंने मुझे आरती का ख्याल रखने के लिए धन्यवाद कहा।
अगले दिन होली थी, त्यौहार मनाने के बाद मैं भी वापिस अपनी ड्यूटी पर चला गया।
लगभग आठ दस दिन बाद वत्सला का फोन आया कि वो मुझसे मिलकर बहुत खुश हुई थी और फिर से मिलना चाह रही थी.. कहती थी कि आरती की ससुराल आ जाओ छुट्टी लेकर…
ऐसे फोन उसने बार बार किये लेकिन मैं हर दफे किसी न किसी बहाने से उसे टालता रहा क्योंकि यह बड़ा रिस्की काम था अगर बात खुल जाती तो आरती और वत्सला दोनों के जीवन में जहर घुल जाता।
फिर करीब तीन महीने बाद अचानक सुबह सुबह उसका फोन फिर आया और वो बोली कि उसके पापा रिलीव हो गए हैं और उन्होंने ललितपुर के पास किसी गाँव में ज्वाइन कर लिया है।
उसने यह भी बताया कि जहाँ वो किराये से रहती है, वहाँ उसने कुछ पक्की सहेलियाँ बना लीं हैं और वो मुझे उनसे भी मिलवा देगी।
यह भी बोल रही थी कि उसके मकान मालिक की छोटी बिटिया और उनकी पुत्र वधू भी बहुत अच्छी हैं जिनसे भी वो मुझे मिलवाना चाहती है।
इसके साथ ही उसने मुझे अपनी जान की कसम भी दे डाली कि एक बार तो उसकी बात मान ही लूँ!
मित्रो, मैं एक बार उसके बुलावे पर ललितपुर गया, वहाँ जो कुछ हुआ वह सब मैं फिर कभी लिखूंगा और किसी नये शीर्षक के साथ प्रस्तुत करूँगा।
और हाँ, इस सत्य कथा को पढ़ कर मुझे तमाम सन्देश मिले, आप सबका आभार और धन्यवाद!
अब इस कथा को पूरी पढने के बाद मुझे अपने फीडबैक, अपने विचारों, सुझावों से अवगत कराएं और अपने अपने अनुभव के आधार पर मुझे सुझाव दें ताकि मैं अपनी आगामी कहानी आप सबकी रूचि की अनुसार और भी सरस लिख सकूँ!
[email protected]
What did you think of this story??
Comments