चूत जवां जब होती है- 1

(Chut Jwan Jab hoti hai-1)

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आत्मकथ्य:
‘जब चूत जवां होती है’ जैसा कि कहानी के शीर्षक से ही स्पष्ट है, यह कथा किसी भी नई नई ताजा जवान होती हुई, खिलती हुई कली की चूत में उठने वाली कसक, उमंगों तरंगों और उसकी लण्ड लील जाने की लालसा और उत्कंठा को लेकर है।

यूं तो प्रकृति के हिसाब से लड़की के पीरियड्स या मासिकधर्म ग्यारह-बारह साल की उमर में ही शुरू हो जाते हैं और पीरियड्स शुरू होने का अर्थ है कि वो सम्भोग हेतु, गर्भ धारण हेतु तैयार हो गई है।
प्रकृति ने उसकी चूत को कैसा भी मोटा लम्बा लण्ड लील जाने, आत्मसात कर लेने की और चुदाई का भरपूर आनन्द ले लेने के लायक बना दिया है, अधिकृत और स्वतंत्र कर दिया है।
परन्तु सामाजिक मान्यताएं और क़ानून ऐसी कच्ची कली को चोदने की इजाज़त नहीं देता हालांकि प्रकृति ने तो उसे तैयार कर ही दिया है इस काम के लिए!

इन मानव रचित रीति रिवाजों की बेड़ियों में जकड़ी यह जवां चूत या तो विवाह हो जाने तक सालों साल इंतजार करती है और जैसे तैसे, अपने तरीके से अपनी चूत को समझाती बहलाती रहती है, या किन्ही विषम परिस्थितियों में हम अंकल टाइप के लोगों से चुद ही जाती है जैसे ट्यूशन में, पड़ोस के अंकल जी से, पापा के घनिष्ठ मित्र से, शादी ब्याह में अचानक बिना किसी प्लानिंग के या कभी कभी किसी सगे सम्बन्धी के लण्ड से!

ज्यादातर मैंने देखा है कि लड़की जब अपने शहर से बाहर होती है जैसे किसी शादी में या छुट्टियों में मामा के यहाँ तो वहाँ पर वह खुल के खेल जाती है और चुदाई का पहला मौका मिलते ही बिछ जाती है चुदने के लिए!
बहरहाल हर चूत की अपनी अपनी नियति होती है।

अभी कुछ ही दिन पहले की सत्य घटना है जो कि टीवी समाचारों में दो तीन दिन तक छाई रही, आप लोगों ने भी देखा सुना होगा, कि हैदराबाद की एक अल्प-वयस्क लड़की ने स्कूल में एक बच्चे को जन्म दिया यह लड़की वहाँ कक्षा नौ की छात्रा थी. सोचिये यह लड़की उससे कम से कम एक साल पहले से सम्भोग रत रही होगी, उसने कभी किसी से शिकायत भी नहीं की, मतलब वो खुद अपनी मर्जी से यौन रत रही थी।
ऐसे किस्से रोज ही होते हैं सैकड़ों की संख्या में लेकिन सामने नहीं आ पाते!

पहले बाल विवाह हो जाया करते थे और जब लड़की रजस्वला हो जाती थी, रजस्वला होते ही उसका गौना हो जाता था और वो ससुराल चली जाती थी और चुदाई का आनन्द लेती थी, कई कई बच्चे पैदा करने के बाद भी जीवन भर स्वस्थ रहती थी बीमार भी शायद ही कभी होती थी। परन्तु समाज की अपनी मान्यताएँ, विवशताएँ भी हैं।
कानून किसी को भी यूं खुला खेल फर्रुखाबादी खेलने की इजाजत नहीं दे सकता।
हाँ, हमारे कानून ने वयस्क युवक युवतियों को एक साथ रहने की, live-in-relationship की अनुमति तो दे ही दी है।

बहरहाल जो भी हो, प्रकृति के अपने नियम सिद्धान्त हैं जो मनुष्य के कल्याण के लिए ही बने हैं क्योंकि यह शरीर प्रकृति की ही देन है और उसी के नियमों पर चलना हितकारी होता है।
*****

इस कहानी के विषय में:

यह कहानी मेरी पूर्व में प्रकाशित कहानी ‘लण्ड न माने रीत’ की अगली कड़ी है. पहले की कहानी में आप पढ़ चुके हैं कि कैसे परिस्थितियों से विवश होकर मुझे अपने मित्र की लाडली कमसिन बिटिया आरती की चूत मारनी पड़ी और वो किस प्रकार अपने प्रथम सम्भोग में मुझे अपना कौमार्य समर्पित कर, मेरे लण्ड से अपनी चूत की सील तुड़वा कर रक्त रंजित होकर चरम आनन्द को प्राप्त हुई थी।

फिर आरती ने अपने विवाहोपरांत कामासक्त होकर मुझे बुला भेजा क्योंकि वो मेरी चुदाई को कभी भूल ही नही पाई थी और मुझसे पुनः चुदना चाहती थी।
मैं भी आरती से मिलने को व्याकुल था और उसके बुलावे पर नौकरी से छुट्टी लेकर गाँव आकर, उसके घर जाकर उससे होली के त्यौहार पर मिला। सौभाग्य से आरती के माता पिता को बाहर जाना पड़ा और वे मुझे आरती का ख्याल रखने और उसी के साथ रात दिन रहने का निवेदन कर दो तीन दिन के लिए बाहर चले गए।

फिर हमने रात में जी भर के चुदाई का आनन्द लिया और सुबह सुबह सूर्योदय के साथ ही मैंने उसे पुनः चोदा।
तभी आरती मुझे स्मरण कराती है कि उसकी मुंह बोली साउथ इंडियन ननद जो कि उसके ससुराल में उसकी किरायेदार भी है वो ट्रेन से आने वाली है, जिसका नाम वत्सला है और उसे लेने मुझे शहर जाना है।

आरती मुझे वत्सला के कामुक स्वभाव के बारे में भी बताती है कि कैसे वो आरती और उसके पति को छुप छुप कर चुदाई करते देखती थी फिर वो दोनों लेस्बियन फ्रेंड्स बनी और एक दूसरे की चूत की खुजली को मिटाने लगी, एक दूसरी की चूत को तृप्त करने लगी। पिछली कहानी यहीं तक थी।

और अब मुझे वत्सला को रिसीव करने शहर के रेलवे स्टेशन जाना है, उसे अपने साथ बस में लेकर गाँव आना है।

अब आगे की कहानी :

तो उस रात आरती को जी भर के चोदने के बाद मैं नहा धो पूजा पाठ से निवृत्त हो, चाय नाश्ता कर, आरती का चुम्मा लेकर शहर की बस पकड़ने निकल पड़ा और साढ़े आठ की बस पकड़ ली।
रास्ते में सोच रहा था कि जैसा कि आरती ने बताया था कि वत्सला एक अत्यंत कामुक कन्या है जो कान्वेंट स्कूल में बारहवीं की छात्रा है मतलब वो अभी 18 के आस पास होगी। मुझे पूरी पूरी उम्मीद नज़र आ रही थी कि वत्सला की नई नई जवां हुई चूत, उसकी भरपूर जवानी को भोगने की मेरी लालसा की तृप्ति हो जायेगी लेकिन इसके लिए आरती को राजी करना पड़ेगा।
इसी चाहत को पूरी करने की योजना पर मैं सोच विचार करता जा रहा था।

किसी साउथ इंडियन लड़की को मैंने पहले कभी नहीं चोदा था। अगर किसी ऐसी दक्षिण भारतीय लड़की की कल्पना करूं तो मुझे नारियल के तेल में रचे बालों वाली, इडली, डोसा, वडा सांभर केले के पत्ते पर खाने वाली, जूड़े में सुगन्धित फूलों की वेणी लगाये, पारम्परिक दक्षिण भारतीय वेश में ‘अई यई ओ … ये क्या करता जी’ टाइप की सांवली सी कन्या का ही स्मरण हुआ।

कहने का मतलब यह कि कोई लण्ड उठाऊ फीलिंग नहीं आई; ऐसी फीलिंग जो किसी पटाखा टाइप की लड़की को चोदने के ख्याल से लण्ड खड़ा कर जाती है।

इन्ही सब खयालों में डूबते उतराते करीब बारह बजे मैं शहर पहुँच गया, वत्सला की ट्रेन आने में अभी टाइम था और मुझे कुछ खरीदारी भी करनी थी।
सबसे पहले मैंने मेडिकल स्टोर से यौन शक्ति बढाने वाली गोली की 100 एमजी वाली चार गोलियाँ ले लीं क्योंकि दो दो चूतों का बेड़ा पार लगाना पड़ सकता था।
यदि आरती और उसकी ननद दोनों को एक साथ चोदने के नौबत आती है वैसी स्थिति में मेरा छोटू दोनों चूतों को तृप्त कर सके, निहाल कर सके, इसका इंतजाम मैंने कर लिया था।

मुझे पूरी पूरी उम्मीद थी कि अगर वत्सला की चूत मारने का मौका मिला तो आरती के बिना तो संभव होगा नहीं और फिर वो भी बिना चुदे मानेगी नहीं क्योंकि लड़की का जन्मजात स्वभाव है कि जो मर्द उसे एक बार चोद लेता है लड़की उस पर अपना हक़ मानने लगती है, पुरुष पर अपनी धौंस जमाना चाहती है, अपना मालिकाना हक़ जताती है।
ऐसे में अगर आरती ने मुझे वत्सला को चोदने दिया तो वो अकेले में तो उसे चोदने नहीं देगी, खुद भी साथ चुदना चाहेगी।

तो उन यौन शक्ति बढ़ाने वाली गोलियों के साथ ही मैंने कुछ अच्छी सब्जियाँ, फल, ब्रेड, बटर, बिस्किट, मिठाई इत्यादि बहुत सा सामान ले लिया, आखिर वत्सला आरती की मेहमान थी।

यह सब खरीदारी करके मैं स्टेशन जा पहुँचा, वत्सला की ट्रेन आने में अभी देर थी तो मैंने यूँ ही उससे बात करने की सोची और उसका नंबर डायल कर दिया।
घंटी बजती रही फिर …
‘हेलो, कौन हैं जी आप?’ मेरे कानों में उसकी सुरीली लेकिन तीखी सी आवाज आई।
‘गुड़िया, मैं चाचा, अभी कहाँ हो तुम?’ मैंने जानबूझ कर ठेठ देहाती गंवई अंदाज़ में पूछा।
‘गुड़िया, चाचा?… What the hell are you talking about n who the fuck are you?’ वत्सला की झन्नाटेदार आवाज मेरी कानों में गूंजी। (क्या बकवास कर रहा है? और चोदे तू है कौन?)

‘गुड़िया मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ यहाँ… साथ ले जाने आया हूँ! मैं तुम्हें कैसे पहचानूँगा, किस रंग के कपड़े पहन रखे हैं तुमने?’ मैंने अपने ही देहाती अंदाज़ में पूछना जारी रखा।
‘Oh rubbish… What the hell is this… keep off man! I don’t talk to strangers!’ उसने चिढ़ कर लगभग डांटने वाले अंदाज़ में कहा और फोन काट दिया।
(ओह… क्या बकवास है यह… मुझसे बात मत कर बे… मैन अन्जान लोगों से बात नहीं करती!)

मैं मन ही मन मुस्कुराया, वत्सला नखरे वाली, तुनक मिजाज़, तीखी मिर्च सी लगी मुझे! अगर यह हाथ आ गई तो बहुत मज़ा देगी! मैंने सोचा।
फिर मैंने आरती को फोन लगाया और वत्सला के साथ हुई बातचीत के बारे में उसे बता दिया।

‘अरे, वो ऐसी ही है, अजनबी लोगों से फोन पर वो ऐसे ही रूखी बात करती है। आप रुको, मैं समझाती हूँ उसको!’ आरती बोली और फोन कट गया।

लगभग दस मिनट बाद मेरे फोन की घंटी बजी, देखा तो वत्सला का नंबर था।
‘हेल्लो…’ मैं बोला।
‘Am sorry uncle ji, मैंने आपको पहचाना नहीं, मेरी बात का फील न करना आप! अभी आरती भाभी ने बताया कि आप मुझे लेने स्टेशन आये हो। मैं बस पांच सात मिनट में पहुँचने वाली हूँ।’ अबकी बार वो शहद जैसी मीठी आवाज में बोली।

‘Thats okay Baby, don’t be sorry… It happens!’ मैंने जवाब दिया।
‘So kind of you uncle ji, मैं आपको पहचानूंगी कैसे?’ वत्सला बोली।
‘I am wearing jeans with white T-shirt. You can meet me near the exit gate.’ मैंने कहा और फोन काट दिया।

थोड़ी ही देर बाद ट्रेन आ गई, भीड़ का रेला निकलने लगा. मैं एग्जिट के पास ही खड़ा था, मेरी आँखें भी किसी साउथ इंडियन कन्या को ढूंढ रही थी।
भीड़ छंटने के बाद एक सुंदर सी मॉडर्न टाइप की लड़की मुझे आती दिखी, शायद यही थी वत्सला… उसकी नज़र भी मुझ पर पड़ी और उसने मुझे मेरे कपड़ों से पहचानने की कोशिश की, फिर वो अपना ट्राली बैग चलाते हुए मेरे पास चली आई।

‘आप ही अंकल जी हो न जिनसे मेरी अभी बात हुई थी?’ वो बोली।
‘हाँ, आप वत्सला जी हैं?’ मैंने पूछा।
‘हाँ…’ वो मुस्कुरा कर बोली।

अब मैंने उसे नज़र भर के गौर से देखा, ऐसी हुस्न की परी मैंने पहले कभी नहीं देखी थी, खिलती उमर, भोला सा मासूम चेहरा, कंधों पर बिखरे काले काले घने बाल, हाथ में छः इंची नारंगी रंग का स्मार्ट फोन लिए थी, हल्के जोगिया रंग का टॉप और ब्लू जींस पहने थी, जींस उसके घुटनों से थोड़ी ही नीची थी जिसमें से उसकी सुडौल चिकनी पिंडलियाँ गजब ढा रहीं थीं, ऊँची एड़ी के सैंडिल पहन रखे थे जिससे उसका सीना और तन कर और उभर गया था और उसकी चूचियाँ जैसे मुझे चुनौती देने के अंदाज़ खड़ीं थीं कि आओ, उठाओ अपने हाथ और मसल सकते हो तो मसल डालो इन्हें, जीत लो इन्हें और अमृत पान कर लो!

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वत्सला आँखों में हल्की सी लालिमा थी जैसी कि सेक्सी हॉर्नी लड़कियों की आँखों में होती है। उसने होठों पर क्रिमसन कलर की लिपस्टिक लगा रखी थी जो उसके चेहरे पर खूब अच्छी लग रही थी।
कुल मिलाकर वो एक शानदार अल्ट्रा मॉडर्न, हजार वाट के बल्ब की तरह जगमग करती परी सी लगी मुझे जिसे देखकर किसी का भी लण्ड अंगड़ाई ले ले।

उसका का रंग भी खूब साफ़ था, उसकी त्वचा में कोमलता के साथ एक ख़ास दमक थी जैसे कोई रसीला मीठा फल हो।
फिर मुझे ख्याल आया कि यही वो लड़की है जो आरती की चुदाई छुप छुप के देखा करती थी, लेस्बियन भी थी, चूत भी चाटती और चटवाती है। उसका भोला सा मासूम चेहरा देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वो इतनी कामुक कन्या होगी, बस यही लगता था कि उसकी चूत सू सू करने के अलावा अभी और कुछ जानती, समझती ही नहीं होगी।

‘हेल्लो, कहाँ खो गए अंकल जी?’ वत्सला ने मेरी आँखों के सामने अपना हाथ लहराते हुए पूछा।
मैं जैसे नींद से जागा- हाँ हाँ, कुछ नहीं. बस यूं ही कुछ सोचने लगा था! चलो बाहर चलते हैं।
मैं जैसे हड़बड़ाहट में बोला और उसका ट्राली बैग मैंने थाम लिया।

स्टेशन से निकलकर हम लोग ऑटोरिक्शा से बस स्टैंड आ गए। हमारी बस आने में अभी देरी थी तो हम लोग पास में ही एक कोल्ड ड्रिंक की शॉप में बेंच पर बैठ गए।
वत्सला ने अपने लिए मैंगो फ्लेवर वाली कोल्ड ड्रिंक लेली और मैंने कोक!

‘हाँ, वत्सला अपने बारे में कुछ बताओ?’ मैंने अपनी ड्रिंक का घूँट भरकर पूछा।
‘क्या बताऊँ अंकल जी?’
‘अरे क्या करती हो, कौन सी क्लास में हो? आपके पापा क्या करते हैं… हॉब्बीज़ क्या क्या हैं तुम्हारी?’
‘अंकल, अभी मैं बारहवीं में हूँ; सेंट मेरी कान्वेंट में पढ़ती हूँ, बैडमिंटन खेलना और फ़िल्में देखना अच्छा लगता है मुझे और मेरे पापा एक बैंक में मेनेजर हैं. अब उनका ट्रांसफर दूर कहीं ललितपुर के पास किसी गाँव में हो गया है, एक दो महीने बाद हम लोग ललितपुर शिफ्ट कर जायेंगे।’ वो चहकती हुई बोली।

‘यह ललितपुर कहाँ है, कभी नाम नहीं सुना इस जगह का?’ मैंने पूछा।
‘क्या पता अंकल जी, मैंने भी कभी नहीं सुना था यह नाम. नेट पर सर्च किया तो पता चला कि साउथ यू पी का लास्ट डिस्ट्रिक्ट है।’ वो बोली।
‘अच्छा, पढ़ाई में कैसी हो तुम? हाई स्कूल में कितने परसेंट मार्क्स आये थे तुम्हारे?’ मैंने बात को आगे बढ़ाया।
‘अंकल जी, 87% आये थे, वैसे मुझे उम्मीद थी कि 90 से ऊपर ही आयेंगे।’ वो बोली।

‘वेरी गुड, शाबाश, कीप इट अप!’ मैं बोला और शाबासी देने के अंदाज़ में उसकी पीठ पर थपकी देते हुए हाथ फिराने लगा।
उसके बदन से उठती हुई भीनी भीनी परफ्यूम की खुशबू मदहोश कर देने वाली थी।

उसकी चिकनी, मुलायम, उष्ण और गुदगुदी पीठ का स्पर्श बड़ा ही उत्तेजक लगा मुझे, मैं धीरे धीरे उसकी पीठ, कंधों पर हाथ फिराता हुआ उसकी कसी हुई ब्रेजियर की तनियों तक जा पहुँचा और ब्रा के स्ट्रेप्स सहलाता रहा, फिर हाथ को थोड़ा नीचे लाकर ब्रा का हुक महसूस करने लगा।
इतने से ही मेरा लण्ड ठुनकने लगा, दिल कर रहा था कि उसके टॉप के ऊपर से ही उसके बूब्स सहला लूँ, दबोच लूँ या मुख में भर कर चचोर लूँ!

ये लड़कियाँ मर्द के हाथों के प्रति बहुत सजग बहुत संवेदनशील होती हैं; और हम जैसे अंकल टाइप के लोगों के छूने सहलाने के ‘इंटेंशन’ इरादे को भली भांति पहचानती हैं, वत्सला भी शायद मेरे हाथों का इरादा भांप गई थी इसलिये थोड़ा आगे को झुक गई, मैंने भी ज्यादा लालच करना ठीक नहीं समझा और संभल कर बैठ गया।

‘अच्छा, बैडमिन्टन के अलावा ‘इनडोर’ गेम्स में क्या क्या पसन्द है तुम्हें? मैंने बात को द्विअर्थी अंदाज़ में पूछा।
‘इनडोर गेम्स… मतलब?’ उसने मेरी आँखों में झाँक कर पूछा।
शायद वो मेरा इरादा कुछ कुछ समझ चुकी थी कि मैं क्या जानना चाहता था।
‘अरे वही खेल जो घर के भीतर खेला जाता है?’ मैंने भी उसकी आँखों में आँखें डाल कर जवाब दिया।
‘अच्छा… वो.. हाँ… बहुत पसन्द है मुझे, वो वाला!’ वो बोली।
‘वो वाला? अरे कोई नाम भी तो होगा उस खेल का?’ मैंने पूछा।

‘क्या नाम है… हाँ, कैरम… कैरम खेलना बहुत अच्छा लगता है मुझे, जब सामने वाले का स्ट्राइकर मेरी तरफ वाली पॉकेट में सट्ट से घुस जाता है, तब मुझे बहुत मज़ा आता है।’ वो बिंदास ढंग से बोली और खिलखिला कर हंस दी।
उसके जवाब से मेरा दिल बाग़ बाग़ हो गया।

वत्सला तीखी मिर्च जैसी तेज थी तो शहद जैसी मीठी भी थी, हंसमुख थी और इंटेलीजेंट भी!
तभी मेरे फोन के घंटी बजी. देखा तो आरती का फोन था… मैंने फोन रिसीव किया तो आरती की आवाज आई- वत्सला की ट्रेन आ गई बड़े पापा? उसने पूछा।
‘हाँ, अभी आई है कुछ देर पहले, वत्सला मेरे साथ है, हम लोग बस का ही इंतजार कर रहे हैं।’
‘कैसी लगी मेरी ननद रानी?’ उसने पूछा।

मैं फोन कान से लगाए थोड़ा दूर चला गया और बतियाने लगा… ‘तेरी ननद रानी अच्छी है, बहुत ही सुंदर है और सुपर हॉट भी, तुम तो कह रहीं थी कि ये साउथ इंडियन है लेकिन लगती नहीं!’ मैंने वत्सला की तरफ देखते हुए जवाब दिया।
‘हाँ वो… वत्सला की माँ कनाडा की मतलब अमेरिकन है और उसके पापा तमिल हैं… यानी काजू किशमिश का जोड़ा; इन दोनों के लव मैरिज का नतीजा है ये वत्सला! बड़े पापा सच बताना, वत्सला को देखकर नीयत ख़राब तो नहीं हो रही आपकी?’ आरती हँसते हुए बोली।
‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. लेकिन है ये मस्त मस्त, किसी का भी ईमान डिगा दे!’ मैंने कहा।
‘हमम्म्म्म… मतलब आपका दिल भी डोल गया उसे देख कर… अच्छा, जरा वत्सला को फोन देना!’ आरती बोली।

मैंने फोन वत्सला को दे दिया और कहा कि उसकी भाभी का फोन है।
वत्सला ने फोन ले लिया- हल्लो, मेरी प्यारी भाभी कैसी हो?’ वत्सला बोली।
फिर पता नहीं उसे क्या सुनाई दिया कि वो मेरी ओर देख कर हंस दी और फिर दूर जाकर बात करने लगी। बीच बीच में वो मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखती भी जाती थी जिससे मुझे लगा कि वो दोनों मेरे बारे में ही बात कर रहीं थीं।

उनकी बातें ख़त्म हुईं और वत्सला मेरे पास आकर बैठ गई।
‘क्या बातें हो रहीं थीं आरती से?’ मैंने पूछा।
‘कुछ नहीं अंकल जी, बस ऐसे ही कुछ प्राइवेट बात थी।’ वो बोली और हंसने लगी।

तभी बस आ गई. बस में पहले से ही काफी भीड़ थी, वो तो कंडक्टर मेरी पहचान का निकल आया, उसने हम दोनों के लिए पीछे वाली सीट खाली करवा दी।
बस शहर से निकल कर गाँव की तरफ चल पड़ी, खस्ताहाल सड़क पर बस हिचकोले खाते हुए चली जा रही थी, वत्सला तो आसपास के नज़ारे देखने में मग्न थी और अपने मोबाइल से फोटो शूट करती जा रही थी।

और मैं उसकी नर्म गर्म जाँघों का सुखद स्पर्श महसूस करते हुए पुलकित हो रहा था, मेरी नज़र बार बार उसकी जाँघों के बीच चली जाती जहाँ से उसकी जीन्स फूली हुई दिख रही थी।
मैं सोचने लगा कि यहीं तो नीचे उसकी चूत होगी जाँघों के बीच छिपी हुई और मैं मन ही मन में उसकी चूत की कल्पना करने लगा कि ऐसी शानदार लड़की की चूत कितनी शानदार होगी।
बीच बीच में मेरी नज़र उसके मम्मों की गोलाइयों का नज़ारा करती उसके टॉप के भीतर झाँकने लगती जहाँ से एक दो बार उसकी क्लीवेज के दर्शन भी हो गए।
इसी तरह मैं उसका चक्षु-चोदन करता रहा।

सेक्सी कहानियों में पढ़ा करता था कि इस तरह के बस के सफ़र में बहुत कुछ हो जाता था, लड़की गर्म हो जाती थी, लण्ड खड़े हो जाते थे, चूत गीली होकर लड़की की पेंटी तक भिगो देती थी, मम्मे दबाना चूसना भी हो जाता था, लड़की लण्ड पकड़ लेती थी लड़का भी चूत में ऊँगली कर लेता था, लड़की लण्ड को चूस चाट लेती थी और लड़का चूत को सूंघ के चूत के दाने को चूम चुसक के लड़की को ‘टू द लिमिट’ गरम कर लेता था और रात का सफ़र हो तो चुदाई भी हो जाती थी और छोरी लौड़े के पानी को या तो खुद पी लेती थी या अपनी चूत को पिला देती थी और छोरा भी चूत से प्रवाहित होने वाले रस के झरने को लप लप कर चाट लेता था और एक बूँद भी व्यर्थ नहीं जाती थी।

अब कहानियाँ तो कहानियाँ ही होती हैं न!

बदकिस्मती से मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, मैं लार टपकाता रहा और वत्सला आस पास के नज़ारे देखने, उन्हें मोबाइल में कैद करने में लगी रही।
कहानी जारी है!
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