चूत एक पहेली -39

(Chut Ek Paheli-39)

पिंकी सेन 2015-11-19 Comments

This story is part of a series:

अब तक आपने पढ़ा..

मुनिया ने कपड़े निकाले तो अर्जुन ने जल्दी से चूत को चाटना शुरू किया। जैसे बस वो उसका भूखा हो। कुछ देर में ही मुनिया झड़ गई.. क्योंकि वो बहुत ज़्यादा उत्तेजित थी।
अर्जुन- वाह.. मज़ा आ गया तेरा रस तो कमाल का है। अब इतना सब हो ही गया तो एक बार कर लेते हैं ना..
मुनिया- अरे नहीं नहीं.. माई जाग गई तो शक करेगी.. अच्छा तूने आगे नहीं बताया कि निधि का क्या हुआ.. उसको खून निकल आया.. तो वो घर कैसे गई.. सब बताओ ना जल्दी से..
अर्जुन- अच्छा.. अब तेरी माई को शक नहीं होगा.. ये सब में समय कितना लगेगा.. अभी लंबी कहानी है..
मुनिया- जल्दी-जल्दी बता दे ना.. मुझे पूरी बात जाननी है..

अब आगे..

अर्जुन- अच्छा ठीक है.. सुन थोड़ी देर बाद निधि ने बैठने की कोशिश की तो उसकी फुद्दी में बहुत दर्द हुआ.. वो रोने लगी।
मैंने सहारा दिया.. तब जाकर बैठ पाई और जैसे ही उसने खून देखा.. उसकी हालत पतली हो गई।
मैंने बहुत समझाया कि ये तो तेरी फुद्दी के खुलने का सगुन है.. तब कहीं जाकर वो मानी।

मुनिया- उसके बाद दोबारा किया या नहीं.. या ऐसे ही छोड़ दिया उसको?
अर्जुन- अरे किया ना.. पहले पास के कुंए से एक बाल्टी पानी लाया.. उसकी फुद्दी को अच्छे से साफ किया और अपने लौड़े को भी.. उसके बाद उसे दोबारा गर्म किया.. उसकी फुद्दी चाट कर… और बस दूसरी बार फिर से वही चीखने चिल्लाने का दौर शुरू हो गया।
मुनिया- इतने दर्द को झेलने के बाद भी.. वो दूसरी बार के लिए राज़ी कैसे हो गई?

अर्जुन- अरे मैं किस मर्ज की दवा हूँ.. ऐसा चक्कर चलाया कि बस मान गई और ऐसा चोदा कि बस मज़ा आ गया। तू मानेगी नहीं मैंने उस दिन 4 बार उसकी चुदाई की.. तब कहीं जाकर मेरे लौड़े को सुकून मिला।
शाम को उसे घर तक ले जाने में बड़ी मुश्किल पेश आई.. साली से चला नहीं जा रहा था.. गोद में उठा कर लेके गया..

मुनिया- किसी ने देखा नहीं तुमको जाते हुए?
अर्जुन- अरे नहीं शाम का समय था.. यहाँ से निकला.. तो कोई नहीं मिला.. उसके घर से कुछ पहले एक आध जन ने पूछा.. तो मैंने बता दिया कि मैं आ रहा था.. इसे रास्ते में रोता देखा… इसके पैर में मोच आई है.. तो उठा लाया..

मुनिया- बहुत चालाक है रे तू..
अर्जुन- वो तो हूँ.. इसमें क्या शक है.. चल अब तू जा.. ऐसे बैठी रहने से क्या फायदा.. चुदवाती तो है नहीं..
मुनिया- अच्छा पहले मैं जाती हूँ.. उसके बाद तू जाना.. ठीक है..
अर्जुन ने उसकी बात मान ली और उसके बाद वहाँ से निकल गया।

दोस्तो, आप सोच रहे होंगे.. मैं ये कहानी कहाँ से कहाँ ले गई.. मगर ये पार्ट बताना जरूरी था। अब क्यों.. इसका जवाब बाद में मिल जाएगा।

मगर ये सोचने की बात है कि निधि की भाभी ने अपनी हवस को पूरा करने के लिए कैसे उस बेचारी का इस्तेमाल किया। ये बहुत ग़लत है.. कभी भी अपने फायदे के लिए किसी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
सॉरी.. क्या लेके बैठ गई मैं.. अब वापस पायल के पास चलते हैं, जानते हैं कि वहाँ क्या हो रहा है।

आप तो जानते ही हो.. पायल अपने कमरे में आकर सो गई थी और वहाँ से आने के बाद उसको बड़ी मस्त नींद आई। वो घोड़े बेच कर सो गई..

करीब 9 बजे रॉनी के फ़ोन पर सन्नी का फ़ोन आया.. जिसकी रिंग से उसकी आँख खुली..
रॉनी- हैलो.. क्या यार.. सुबह-सुबह नींद खराब कर दी.. क्या हुआ?
सन्नी- अरे क्या हुआ.. 9 बज गए.. अब तो उठ जाओ… जल्दी फ्रेश होकर मुझे फ़ोन करना.. कोई जरूरी बात है..
रॉनी- क्या बात है.. बता ना यार?
सन्नी- नहीं पहले उठ.. नाश्ता कर.. जब फ्री हो जाए.. तो मुझे कॉल कर लेना..

सन्नी के फ़ोन काटने के बाद रॉनी बाथरूम चला गया। उधर पुनीत रात से बेसुध सोया पड़ा था.. उसकी भी आँख जब खुली.. तब वजह थी कि उसको ज़ोर से पेशाब लगी थी। वो जल्दी से उठा और बाथरूम चला गया। जब वो पेशाब कर रहा था.. तब उसकी नींद टूटी और उसके लौड़े ने रात में क्या कांड किया.. उसको समझ में आ गया।

वो टेन्शन में आ गया.. और अपने आपसे बोलने लगा- ओह्ह.. शिट.. यह क्या हो गया साला लौड़ा कैसे फेल हो गया.. गुड्डी भी साथ सोई थी.. कहीं उसने देख तो नहीं लिया.. वो कहाँ चली गई.. साला ये क्या कांड हो गया।

पुनीत इसी टेन्शन में फ्रेश होकर.. अपने कमरे से बाहर निकला.. तो अनुराधा उसे सामने मिली।
पुनीत- मॉम गुड्डी कहाँ है?
अनुराधा- अरे बेटा.. बहुत दिनों के बाद आई है ना.. तो सो रही है.. मैंने भी उसको नहीं उठाया।
पुनीत- ओके.. ठीक है.. आप ऊपर क्यों आई थीं.. कोई काम था क्या?

अनुराधा- अरे तुमको ही उठाने आई थी। मैं मंदिर जा रही हूँ.. वहाँ आज बाबाजी आए हुए हैं देर से आऊँगी… तुम नाश्ता कर लेना और अपनी बहन को कहीं बाहर ले जाना.. बेचारी हॉस्टल में कितना अकेलापन महसूस करती होगी.. तुम उसको कुछ शॉपिंग भी करवा देना.. ठीक है..
पुनीत ने ‘हाँ’ कहा और रॉनी के कमरे में चला गया.. वो अभी बाथरूम में ही था।

पुनीत अभी भी टेन्शन में था कि रात को क्या हुआ होगा.. गुड्डी कब गई.. रात को.. या सुबह.. उसकी बेचैनी उसको पायल के कमरे में ले गई.. जहाँ पायल आराम से सोई हुई थी।

पुनीत धीरे से उसके पास गया उसके सर पर हाथ फेरा.. तभी पायल की आँख खुल गई और वो पुनीत को देख कर हल्का सा मुस्कुरा दी।
पायल- गुड मॉर्निंग भाई.. क्या बात है.. सुबह-सुबह मेरे कमरे में.. सब ठीक तो है ना?
पुनीत- गुड मॉर्निंग.. मेरी गुड्डी.. सब ठीक ही है.. वैसे तुम यहाँ कब आई.. मुझे तो पता भी नहीं चला?
पायल बिस्तर पर बैठ गई और वो ऐसे बर्ताव कर रही थी.. जैसे उसको कुछ पता ही नहीं है।

पायल- आपके सोने के कोई 10 मिनट बाद ही मैं वापस यहाँ आ गई थी.. वहाँ नींद ही नहीं आ रही थी।
पुनीत- अरे अरे.. रात भर बिना एसी के सोई.. मेरी प्यारी बहना..
पायल- अरे नहीं भाई.. एसी चल तो रहा है.. बस ठंडक कम कर रहा था। मैं सो गई.. तो पता ही नहीं चला।

पुनीत- अच्छा ठीक है.. चल जल्दी से फ्रेश हो ज़ा.. साथ में नाश्ता करेंगे, आज काफ़ी वक्त बाद ऐसा मौका मिला है।
पायल- ओके ब्रो.. आप नीचे जाओ.. मैं बस 10 मिनट में रेडी होकर आती हूँ।

पुनीत जब कमरे से बाहर निकला तो रॉनी भी अपने कमरे से बाहर आ रहा था। पुनीत को देख कर वो मुस्कुराने लगा।

पुनीत- क्या बात है.. बड़ा खुश नज़र आ रहा है.. क्या कोई अच्छा सपना देख लिया रात को?
रॉनी- अरे नहीं भाई.. आपको देख कर मुस्कुरा रहा हूँ.. सुबह-सुबह गुड्डी के कमरे से जो आ रहे हो।
पुनीत- तो इसमे हँसने की क्या बात है.. मैं अपनी बहन को उठाने गया था।
रॉनी- हाँ जानता हूँ.. आप अपने गेम के लिए कुछ भी कर सकते हो और मुझे पक्का यकीन है.. आप गुड्डी को मना भी लेंगे और गेम को जीत भी जाएँगे।

पुनीत- थैंक्स मुझ पर भरोसा करने के लिए.. चल आ जा.. आज गुड्डी के साथ नाश्ता करेंगे..
रॉनी- हाँ चल यार मुझे भी बड़ी भूख लगी है।

वो दोनों नीचे बैठ कर पायल का वेट कर रहे थे.. तभी एक नॉर्मल सी मैक्सी पहन कर पायल नीचे आई।
पुनीत- अरे गुड्डी.. ये क्या पहना है.. क्या घूमने ऐसे बाहर जाओगी?

पायल- भाई.. ये आपको किसने कहा कि मैं ऐसे बाहर जाऊँगी.. ये तो आप नाश्ते के लिए मेरा वेट कर रहे थे.. इसलिए जल्दी में पहन कर आई हूँ.. वैसे बाहर जाने का मेरा अभी कोई मूड भी नहीं है।

रॉनी- अरे क्या गुड्डी.. सारा दिन घर में ही रहोगी क्या.. अब छुट्टियाँ मनाने आई हो.. तो घूमो-फ़िरो थोड़ा लाइफ को एन्जॉय करो।
पायल- ओके.. मगर मेरी एक शर्त है.. वो आपको माननी होगी।
पुनीत- कैसी शर्त गुड्डी.. बोलो?
पायल- भाई अब मैं छोटी बच्ची नहीं हूँ.. घर में तो चलता है.. मगर बाहर आप मुझे गुड्डी नहीं कहोगे और मैं जो कहूँ.. करोगे.. जहाँ चाहूँ.. घुमाओगे.. बोलो है मंजूर?

पुनीत- हा हा हा हा.. तू भी ना कमाल करती है.. अच्छा बाबा.. बाहर तुझे पायल ही बुलाएँगे और बाकी तू जो कहेगी वैसा करेंगे.. चल अब आजा.. नाश्ता कर ले, हमें तो बहुत जोरों की भूख लगी है।

तीनों ने नाश्ता किया और यूँ ही बातें करते रहे।

दोस्तो, उम्मीद है कि आपको कहानी पसंद आ रही होगी.. तो आप तो बस जल्दी से मुझे अपनी प्यारी-प्यारी ईमेल लिखो और मुझे बताओ कि आपको मेरी कहानी कैसी लग रही है।

कहानी जारी है।
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