चूत एक पहेली -29
(Chut Ek Paheli-29)
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अब तक आपने पढ़ा..
अर्जुन- अच्छा ठीक है.. मगर तू बस घाव ही देखना.. और कुछ नहीं वरना डर जाएगी.. हा हा हा हा..
मुनिया- चल चल.. बड़ा आया ऐसा क्या है तेरे पास.. जो मैं डर जाऊँगी?
अर्जुन- अब तुझे क्या बताऊँ.. चल तू पैन्ट निकाल.. जब तू बेईमानी करेगी तो तेरे मुँह से चीख निकलेगी.. तब पता चल जाएगा.. कि तू डरती है या नहीं..
मुनिया- चल ज़्यादा डींगें ना मार.. अब तू आँखें बन्द कर.. मुझे तेरी पट्टी करनी है।
अर्जुन ने अपनी आँखें बन्द कर लीं और मुनिया धीरे-धीरे उसकी पैन्ट उतारने लगी।
अब आगे..
मुनिया अपनी नजरें नीचे किए हुए थी और उसने घुटनों तक पैन्ट उतार दी.. मगर मुनिया अब कुँवारी लड़की नहीं बल्कि चुदी-चुदाई हुई थी.. तो लाजमी है कि उसकी जिज्ञासा अर्जुन के लंड को देखने की जरूर होगी और हुआ भी वैसा ही.. उसने डरते हुए निगाह ऊपर की तो लौड़े को देख कर उसके दिमाग़ में झनझनाहट पैदा हो गई.. क्योंकि अर्जुन का लौड़ा मुरझाया हुआ भी काफ़ी बड़ा और मोटा दिख रहा था और उसकी नजरें वहीं जम गईं।
अर्जुन- उफ्फ.. मुनिया.. जल्दी कर ना दुःखता है.. मैं आँखें खोल लूँ क्या?
मुनिया जैसे नींद से जागी हो.. उसने अर्जुन को मना किया और जल्दी से पास पड़े कपड़े को हाथ में लिया.. उसको दो टुकड़ों में किया.. एक टुकड़े से वो अर्जुन की जाँघ पर लगा खून साफ करने लगी।
अब अर्जुन कोई बच्चा तो था नहीं.. एक जवान लड़की के हाथ का स्पर्श उसको गर्म करने लगा.. उसके जिस्म में करंट पैदा हो गया.. जिसका सीधा असर उसके लौड़े पर पड़ा और वो धीरे-धीरे अकड़ने लगा।
अर्जुन- मुनिया जल्दी कर ना.. अब मुझसे रहा नहीं जा रहा.. ज़ोर की पेशाब लगी है.. जल्दी कर..
मुनिया- अरे बस हो गया.. खून को साफ करके ही पट्टी बांधूगी ना.. अब बस थोड़ी देर रूको..
मुनिया दूसरे टुकड़े को उसकी जाँघ पर बाँधने लगी और उसके नर्म हाथों का स्पर्श लौड़े को बेकाबू करने लगा। वो अकड़ कर अपने पूरे आकर में आ गया जो करीब 9″ लंबा और इतना मोटा था कि हाथ की हथेली में भी ना समा पाए।
जब मुनिया ने पट्टी बाँध दी तो उसकी नज़र दोबारा ऊपर गई.. तब तक लौड़ा किसी खंबे की तरह खड़ा हो गया था.. जिसे देख कर मुनिया के मुँह से निकला- हे राम ये क्या है?
अर्जुन ने झट से आँखें खोल लीं और अपने हाथों से लौड़े को छुपाने की कोशिश करने लगा। मुनिया ने चेहरा दूसरी तरफ़ किया हुआ था और वो हँस रही थी।
अर्जुन- मुनिया की बच्ची.. मैंने मना किया था ना.. ऊपर मत देखना तूने क्यों देखा?
मुनिया- हा हा हा.. अब नज़र पड़ गई तो मैं क्या करूँ और इतना भोला तू भी मत बन.. तेरे मन में जरूर कुछ गंदा होगा.. तभी ये ऐसे बांस के जैसा खड़ा हो गया।
अर्जुन- मुनिया कुछ दिन पहले तक तो तू बहुत भोली-भाली बनती थी.. अब तुझे इतना कैसे पता चल गया रे.. और मेरे मन में ऐसा कुछ नहीं था.. बस तेरे छूने से ये ऐसा हो गया।
मुनिया- अब वक़्त के साथ बहुत कुछ सीखना पड़ता है.. और मैंने तो बस पट्टी बांधी है.. अब इतने से ये खड़ा हो गया तो मैं क्या करूँ?
अर्जुन- अरे तेरे हाथों में बहुत गर्मी है.. ये बेचारा क्या करता.. तुझे सलाम देने लगा.. हा हा हा..
मुनिया- चल चल.. अब ज़्यादा बन मत.. इसे पैन्ट में बन्द कर.. नहीं तो कोई आ गया ना.. तो सारी हेकड़ी निकल जाएगी।
अर्जुन- अरे मुझसे जब पैन्ट निकली नहीं गई तो पहनूँगा कैसे.. अब तू ही पहना दे ना..
मुनिया- मैं पहनाऊँगी तो तेरा खंबा मुझे दिखेगा ना..
अर्जुन- अब तूने देख तो लिया.. अब एक बार देख या दो बार.. क्या फ़र्क पड़ता है..? चल इधर देख और पहना दे..
मुनिया पलट गई और अर्जुन की पैन्ट पहनाने लगी.. अर्जुन ने अभी भी लौड़े को हाथ से छुपाया हुआ था.. जिसे देख कर मुनिया मुस्कुरा रही थी।
पैन्ट तो मुनिया ने कमर तक पहना दी मगर उसका हुक कैसे बन्द करे। इतना बड़ा शैतान तो बाहर खड़ा उसको घूर रहा था।
मुनिया- अब हुक कैसे बन्द होगा.. इसको बैठाओ.. कैसा खड़ा है बदमाश कहीं का..
अर्जुन- अब इसको कैसे बैठाऊँ.. ये मेरे बस का नहीं.. तू पकड़ कर अन्दर कर दे ना इसको..
मुनिया- चल हट बदमाश.. मैं क्यों पकडूँ इसको.. तू उसको पकड़ाना.. जिसको पसन्द करता है और मुझे उसका नाम भी नहीं बताता।
अब कमरे का माहौल थोड़ा गर्म हो गया था और अर्जुन की नीयत मुनिया पर बिगड़ गई थी।
अर्जुन- मुनिया तू पागल है क्या.. मैं क्यों किसे को पसन्द करूँगा.. बचपन से लेकर आज तक बस मेरे दिल में तू ही बसी हुई है..
मुनिया- हा हा हा.. चल झूठा.. तुम सब लड़के ऐसे ही होते हो.. लड़की को अकेला देखा नहीं.. कि बस प्यार जताने लग जाते हो तुम सब..
अर्जुन- अच्छा बहुत लड़कों को जानती है रे तू मुनिया?
मुनिया- चल चल.. मैं क्यों किसी को जानूँ.. अब बन मत.. इसको अन्दर कर ले..
अर्जुन- अरे मुझसे नहीं होगा.. तू करती है तो कर.. नहीं तो जा.. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे.. समझी..
मुनिया- तू सच में मुझे पसन्द करता है क्या अर्जुन?
अर्जुन- हाँ मुनिया.. तेरी कसम.. मेरे दिल में बस तू ही है।
मुनिया- अच्छा अच्छा.. तू अपनी आँख बन्द कर.. मैं इसको अन्दर कर देती हूँ और आँख ना खोलना.. नहीं तो ठीक ना होगा.. देख लेना तू..
अर्जुन- ठीक है.. चल आ जा अब तू..
अर्जुन ने अपने हाथ लौड़े से हटा कर आँखों पर रख लिए और आने वाले पल के बारे में सोच कर वो उत्तेजित होने लगा।
उसकी यह उत्तेजना उसके लंड पर असर करने लगी.. वो झटके खाने लगा।
मुनिया लौड़े को देखे जा रही थी और उसको अपनी चुदाई का मंज़र याद आने लगा था।
अर्जुन- क्या हुआ.. कहा गई तू.. मेरी आँख बन्द है.. कुछ दिख भी नहीं रहा तू कर रही है या नहीं..
मुनिया- अरे तेरे पास ही बैठी हूँ.. रुक ना.. सोचने दे इस खंबे को कैसे अन्दर करूँ?
अर्जुन- अरे कैसे कैसे.. इसको पकड़ और ऊपर की तरफ़ करके हुक बन्द कर दे.. उसके बाद जिप बन्द कर देना।
मुनिया- अरे ऐसे कैसे अन्दर होगा.. अब तू चुप कर.. नहीं तो मैं चली जाऊँगी।
उसके बाद अर्जुन कुछ नहीं बोला और मुनिया ने लौड़े को जड़ से पकड़ कर अपना हाथ ऊपर की तरफ़ लिया.. जैसे उसको प्यार से सहला रही हो.. वैसे तो लौड़ा उसकी हथेली में नहीं समा पा रहा था.. मगर मुनिया ने कैसे भी करके उसको पकड़ ही लिया।
मुनिया के मुलायम हाथ के स्पर्श से लौड़ा ख़ुशी के मारे झूमने लगा और अर्जुन की सिसकी निकल गई।
अर्जुन- ओह्ह.. ससस्स आह्ह…. मुनिया.. क्या कर रही है.. गुदगुदी होती है जल्दी कर..
मुनिया- अरे क्या जल्दी करूँ.. यह इतना बड़ा और कड़क हो रहा है.. ऐसे अन्दर नहीं जाएगा.. तू इसको छोटा कर पहले.. इसके बाद यह अन्दर जाएगा..
अर्जुन- अरे पागल है क्या… मैं कैसे छोटा करूँ.. यह अपनी मर्ज़ी का मालिक है.. अब इसको ठंडा करके ही छोटा किया जा सकता है.. समझी…
मुनिया को अब इतना तो पता चल ही गया था कि ठंडा होना किसे कहते है। मगर वो अर्जुन के सामने भोली बन कर बोली- ये ठंडा कैसे होगा?
अर्जुन- तू इसको ऐसे ही प्यार से सहलाती रह.. इसमें से दूध निकलेगा और यह ठंडा हो जाएगा।
मुनिया- चल झूठा ऐसा भी होता है क्या.. इसमें कहाँ से दूध आएगा?
अर्जुन- तू बहुत भोली है मुनिया.. तुझे कुछ नहीं पता.. चल तू इसको सहलाती रह.. खुद देख लेना कि दूध आता है या नहीं..
मुनिया कुछ नहीं बोली और बस लौड़े को प्यार से हिलाने लगी.. उसका मन बहुत ललचा रहा था कि उसको मुँह में लेकर चूसे.. मगर वो अर्जुन के सामने खुलना नहीं चाहती थी।
मुनिया- क्या अर्जुन.. अभी तक तो आया ही नहीं..
अर्जुन- अरे इतनी आसानी से नहीं आएगा.. तू करती रह.. ऐसा कर इसको थोड़ा गीला कर अपने थूक से.. उसके बाद देख कैसे मज़ा आता है।
मुनिया से भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था.. वो ज़्यादा बहस नहीं करना चाहती थी, उसको जल्द से जल्द लौड़ा चूसना था।
मुनिया- कैसे करूँ.. मेरा तो थूक भी आ ही नहीं रहा।
अर्जुन- मुनिया बुरा ना माने.. तो एक बात कहूँ.. इसको मुँह में लेकर गन्ने की तरह चूस.. तुझे बहुत मज़ा आएगा और दूध भी जल्दी निकल जाएगा।
मुनिया- छी:.. यह कोई मुँह में लेने की चीज़ है क्या?
अर्जुन- अरे मुनिया शहर में लड़की मुँह में लेकर ही मज़ा देती हैं.. तू एक बार लेकर तो देख..
मुनिया- अच्छा तो तूने शहर में किसी के मुँह में दिया है क्या?
अर्जुन- अरे नहीं.. मैंने किसी को देखा था। अब तू ये सब बाद में पूछना पहले इसको चूस.. मेरी हालत खराब हो रही है।
मुनिया ने धीरे से तो सुपारे को मुँह में लिया और उस पर जीभ फिराई तो अर्जुन जन्नत की सैर पर निकल गया।
अर्जुन- इससस्स.. आह्ह.. मुनिया उफ्फ.. और ले अन्दर तक.. आह्ह.. मैंने सोचा भी नहीं था तेरे मुलायम होंठ मेरे लौड़े पर कभी होंगे आह्ह…
दोस्तो, आप बस जल्दी से मुझे अपनी प्यारी-प्यारी ईमेल लिखो और मुझे बताओ कि आपको मेरी कहानी कैसी लग रही है।
कहानी जारी है।
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