अजीब दास्ताँ है ये-1
(Ajeeb Dastan Hai Ye- Part 1)
दोस्तो, आज मैं आपको अपनी खुद की एक बहुत ही अजब गज़ब कहानी सुनाने जा रहा हूँ। हर इंसान की जीवन में बहुत सी घटनाएँ घटती हैं, जो उसके जीवन में उसे कई तरह के सबक देकर जाती हैं। मैं भी आपको आज अपने साथ घटी एक ऐसी ही घटना के बारे में बताने जा रहा हूँ।
वैसे तो मेरे कई पाठकों ने मुझे ये भी कहा है कि जो भी कहानियाँ मैं लिखता हूँ, वो सभी किसी न किसी और का तजुरबा होता है, मैं अपनी खुद की कोई कहानी नहीं लिखता। ऐसी बात नहीं है, मैंने अपने खुद के तजुर्बे पर भी कहानियाँ लिखीं हैं।
बहुत से लोग मुझे लिखते हैं कि आपको तो बहुत सी लड़कियां और औरतें अपनी कहानी लिखने के लिए कहती हैं, आप उनसे दोस्ती बढ़ाओ, उन से सेक्स करो।
मगर मेरा कभी ऐसा कोई सबब नहीं बना कि मैं किसी अपनी पाठिका के साथ सेक्स करने जाऊँ। उसकी एक वजह यह भी रही के मेरी तकरीबन सभी पाठिकाएँ मुझ से काफी दूर हैं। मैंने उनकी कहानी लिखने के दौरान उनसे बहुत खुल कर बातें करी, उनके सेक्स के बारे में, उनके जिस्म के बारे में … और सभी पाठिकाओं ने मुझे बहुत खुल कर अपने तन और मन की बातें बताईं।
कुछ तो इतनी दिलेर मिली कि उन्होंने अपनी कई तरह की पिक्स भी मुझे भेजीं; कपड़ों में भी और बिना कपड़ों के भी। मगर मैंने कभी उनके पीछे जाना उचित नहीं समझा। वैसे भी 1000-1500 में तो अपने शहर में भी अच्छी ख़ासी लड़की मिल जाती है, चोदने के लिए तो सिर्फ एक सेक्स के लिए, और वो भी पता नहीं वहाँ जा कर मिले या न मिले, उसके लिए हजारों रुपये खर्च करके बाहर क्यों जाना।
तो ऐसे ही मेरी कहानी लिखने का सिलसिला चल रहा था, जब मुझे एक दिन एक लड़की का ईमेल आया उसने मेरी कहानी पढ़ी और पढ़ कर मुझे तारीफ का ईमेल किया। मैंने भी उसका शुक्रिया किया, ऐसे ही धीरे धीरे बात बढ़ने लगी, तो मुझे पता चला कि वो लड़की मेरे शहर से कोई 100 किलोमेटर दूर रहती है।
फिर एक दिन उस लड़की ने अपनी पिक्स भी मुझे भेजीं। एक बहुत ही सुंदर, दूध से भी गोरी, बड़ी प्यारी से 18 साल की लड़की। मेरे बच्चों जैसी!
अब मेरी कोई बेटी नहीं है तो मुझे उस पर बहुत प्यार आया। इतना प्यार आया कि मुझे ऐसे लगने लगा जैसे वो मेरी ही बेटी हो और बस मुझसे दूर कहीं हॉस्टल में या पीजी में रहती हो।
मगर सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि हमारी जान पहचान अन्तर्वासना डॉट कॉम पर मेरी कहानी पढ़ने की वजह से हुई थी, तो मुझे तो ये था कि कोई मेच्योर लड़की होगी, इसी लिए मैंने उस से शुरू से ही अपनी बातचीत ऐसी रखी जिसमें बहुत से असंसदीय शब्दों का प्रयोग किया। मगर उसने कहा कि उसे ये शब्द सभी पता हैं और वो सब कुछ जानती है. मगर वो इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, उसे अच्छा नहीं लगता बात करते हुये गांड, फुद्दी, लंड या मादरचोद बहनचोद जैसी शब्दावली का इस्तेमाल करना।
यह बात मुझे बाद में पता चली कि वो सिर्फ एक 18 साल की लड़की है। यह जानने के बाद मेरा उस लड़की के लिए नज़रिया काफी हद तक बदल गया। साफ बात है, पहले तो मैं उस पर अपनी ठर्क मिटाता था, मगर बाद में मुझे लगा कि नहीं … यह लड़की इसलिए मेरी दोस्त नहीं बनी है कि मैं उस पर अपनी गंदी निगाह डालूँ। मगर जब हम दोनों में किसी कहानी को लेकर बात होती, तो स्वाभाविक तौर पर मुझे उसके साथ बहुत खुल कर बात करनी पड़ती. और जब मैं लिखता ही सेक्सी कहानियाँ हूँ, तो हमारी बात चीत का असल मुद्दा सेक्स ही होता।
अब मैं उसे अपने बेटी की तरह चाहता भी था और उस से सेक्सी बातें भी करता था। उसके मन में क्या चल रहा था, मुझे नहीं पता; मगर मेरे मन में बहुत हलचल थी, बेचैनी थी। मैं खुद यह नहीं समझ पा रहा था कि मैं उस किस नज़र से देखूँ कि बाप की नज़र से या एक ठर्की मर्द की नज़र से। तो मैंने सोचा इस रिश्ते को कोई नाम देकर देखता हूँ।
मैंने उससे कहा कि वो मुझे पापा कह कर बुलाया करे।
उसके बाद वो हमेशा मुझे पापा ही कहती, मैं भी उसे बेटा ही कहता।
मगर इससे भी मेरी कश्मकश का कोई हल नहीं निकला। मैं उसे बेटी कह कर भी चोदने के सपने देखता। मन में सोचता कि अगर कहीं ऐसी बात बने कि वो मुझसे सेक्स करने को मान जाए तो मुझसे ज़्यादा दूर तो वो है नहीं; इसलिए मैं वहाँ उसके पास चला भी जाऊंगा.
पर फिर सोचता, वो तो मुझे पापा कहती है, क्या मैं उसको चोद पाऊँगा।
ईमेल के जरिये हमारी बातचीत होती रही। वो अक्सर मुझे अपनी सेलफ़ी खींच कर भेजती रहती थी, मैंने उसे समझाया भी कि ये इंटरनेट की दोस्ती का कभी ऐतबार नहीं करना चाहिए. तुम अभी छोटी हो इसलिए इंटरनेट पर कभी भी किसी को भी अपनी पिक्स नहीं भेजनी चाहिए।
हमारी बातचीत चलती रही, वो अक्सर अपने बारे में मुझे बताती रहती, बाप बेटी के रिश्ते बनने के बावजूद मैं कभी कभी उसके जिस्म के बारे में उस से पूछता, और वो भी बड़े आराम से बता देती, मेरी ब्रा का साइज़ ये है, पेंटी का साइज़ ये है। मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न होता, एक 18 साल की नौजवान लड़की एक 47 साल के आदमी को अपने अनछूये, कुँवारे जिस्म के बारे में बता रही है। उसके सीने के उभार उसकी गांड की गोलाई, जांघों का चिकनापन, महीना आने का दिन, झांट के बाल साफ करती है या नहीं, सब कुछ वो मुझे बता देती थी और ऐसे विश्वास से बताती जैसे उसका मुझसे कोई पर्दा ही नहीं था।
कभी कभी मैं सोचता कि यार एक कच्ची कली तेरे पास सेट हो गई है, अगर मौका मिलता है तो रगड़ दे। कच्ची कली को मसल कर फूल बना दे, खोल दे उसकी फुद्दी के रास्ते।
18 साल की नाज़ुक की लड़की को चोद कर तो तुझे ज़िंदगी का वो सुख मिलेगा, जिसके लिए दुनिया के बड़े बड़े तीस मार खान तरसते हैं।
मगर फिर ये भी ख्याल आता कि यार वो तो तुझे पापा कहती है। फिर मैं सोचता, पापा कहती है तो क्या, मेरी बेटी तो नहीं, मेरा खून नहीं। मेरे लिए तो वो बस एक अनचुदी फुद्दी है। क्या सच में अनचुदी है।
फिर मैंने उससे पूछा कि क्या उसका कोई बॉय फ्रेंड है, क्या कभी उसने सेक्स किया है। तो उसने बताया कि उसका एक बॉयफ्रेंड तो है, मगर उसके साथ उसने सिर्फ दो बार किस किया है, उससे ज़्यादा उसने कुछ नहीं किया। न उसके बॉय फ्रेंड ने उसके मम्मे दबाये, न उसको अभी तक अपना लंड निकाल कर दिखाया है। सेक्स का तो अभी सवाल ही पैदा नहीं होता।
सच में मेरे मन में उसकी अनदेखी गुलाबी फुद्दी की बहुत ही सुंदर तस्वीर बन गई। मैं मन ही मन सोचने लगा कि अगर उसके साथ सेक्स करने का मौका मिल जाए तो पहले मैं उसकी गुलाबी फुद्दी को तब तक चाटूँ, जबतक उसका पानी न गिर जाए, उसकी गुलाबी फुद्दी से निकलने वाले पानी को पी कर मैं धन्य हो जाऊँ, उसकी गांड के नन्हे से छेद भी चाट जाऊंगा। उसके सारे चूतड़ भी चाट लूँगा। नर्म, मुलायम, गुलाबी रंग का उसका जिस्म, जहां भी मुंह लगाऊँगा, बस रस ही रस चूसने को मिलेगा।
वो अक्सर मुझे अपनी सेलफ़ी भेजती रहती और मैं हर बार उसकी पिक्स देख कर उसके साथ बातें करके उसके प्यार की गहराई में और डूबता जाता। अब तो मुझे हर पल, सोते जागते, उठते बैठते सिर्फ उसी का खयाल आता। मैं अंदर ही अंदर बहुत बेचैन हो रहा था। कभी मैं उसको चोदने के खवाब बुनता, कभी उसको अपनी बेटी की तरह प्यार करने का सोचता। कभी मेरा मन मुझे अपनी बेटी के बारे में ऐसा गंदा सोचने पर, ऐसे गंदी गंदी बातें करने पर लानत देता, कभी उसको चोदने के लिए उसको मनाने के लिए नए नए आइडिया देता। मैं खुद नहीं समझ पा रहा था कि मैं क्या करूँ।
बहुत सी कहानियों में बहुत से लोगों ने मुझसे राय मांगी थी; मैंने उनको राय दी भी और उनको मेरी राय पसंद भी आई। मगर अपनी बारी मुझे कोई राय, कोई समझ काम नहीं आ रही थी। मुझे ऐसे लग रहा था, जैसे मैं बिलकुल ही बेवकूफ़ हो गया हूँ, मुझे कोई समझ ही नहीं। कभी वो मेरे ख्यालों में मेरे सामने पूरे कपड़ों में सजी धजी, मेरी बेटी बन कर आती तो कभी नंग धड़ंग। कभी वो मेरी गोद में मेरी बेटी की तरह बैठती, तो कभी मैं उसे अपनी गांड मेरे ताने हुये लंड पर सेट करने को कहता।
इस सब से निकालने का एक रास्ता मैंने सोचा कि मैं उससे ही पूछता हूँ कि अगर वो मेरे साथ सेक्स करने को तैयार है तो मैं उसके पास जाऊंगा और उसे चोद दूँगा। भैनचोद मेरी बेटी थोड़े ही है; मेरे लिए तो सिर्फ एक फुद्दी है, एक कुँवारा जिस्म।
फिर सोचा ‘नहीं यार … मैं उसको बर्बाद क्यों करूँ!’ चलो उसने मेरी लिखी कहानियाँ पढ़ ली, मुझसे बात भी कर ली, मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं उसके भोलेपन का फायदा उठाऊँ।
खैर मैंने एक दिन उस से पूछा- मान लो अगर एक दिन मैं तुमसे मिलने आता हूँ, तुम भी मुझसे मिलने मेरी बताई हुई जगह पर आती हो और मैं तुम्हारे सामने एक प्रस्ताव रखता हूँ कि मैं तुमसे सेक्स करना चाहता हूँ। यहाँ हम दोनों अकेले हैं, कोई हमे देख नहीं रहा। पूरी आज़ादी है हमें; तो तुम क्या करोगी?
कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग: अजीब दास्ताँ है ये-2
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