स्तन की आत्मकथा

(Stan Ki Aatm Katha)

शगन कुमार 2014-01-15 Comments

मैं अंजलि का बाया स्तन हूँ ! अंजलि एक 32 वर्षीय औसत महिला है जिसकी शादी को 8 वर्ष हो गए हैं और जिसके दो बच्चे हैं, 5 साल का एक लड़का और 2 साल की एक लड़की। अंजलि के पति, शेखर 36 वर्षीय सरकारी अफसर हैं। अंजलि का कद, वज़न और रूपरेखा एक आम भारतीय नारी की तरह है। वह एक स्वस्थ्य, हंसमुख और पढ़ी-लिखी गृहणी है।

अंजलि 36B साइज़ की ब्रा पहनती है जिससे तुम्हें मेरे आकार का अंदाजा हो गया होगा। अंजलि के लिए मैं और मेरा साथी, दोनों बहुत ही अनमोल अंग हैं। हम उसके अस्तित्व, मातृत्व और स्त्रीत्व के प्रतीक हैं और वह हमें लोगों को ना दिखाना और ना ही छुपाना चाहती है…. मतलब जहाँ हमारा उभार सबको दिखना चाहिए वहीं हम किसी को दिखने नहीं चाहिए। हम अंजलि की सुंदरता, शोभा, लावण्य, सौम्यता, शिष्टता और लज्जा के प्रतीक हैं।

हालाँकि अंजलि की योनि और गुदा उसके सबसे गुप्त अंग हैं पर हम उसके सबसे आकर्षक अंग हैं जिन पर हर पुरुष के नज़र सबसे पहले पड़ती है। सिर्फ पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी हमें निहारे या आंके बिना नहीं रह पातीं। चूँकि हम हमेशा ढके रहते हैं पर साथ ही हमारा उभार बहुत प्रत्यक्ष होता है तो सभी हमारे आकार और रूप की कल्पना करते रहते हैं कि हम अंदर से कैसे होंगे !!

वैसे तो प्रकृति ने हमें मूलतः शिशु के स्तनपान के लिए बनाया है पर वयस्क लोग भी हमें छूने, सहलाने और चूसने से बाज नहीं आते। कदाचित इसका कारण यह हो सकता है कि सम्पूर्ण प्राणी-जगत में जितने भी स्तनपायी जीव हैं उनमें से केवल मानव-स्त्री ही ऐसा जीव है जिसके स्तन हमेशा विकसित और फले-फूले रहते हैं।

बाकी स्तनधारी जीवों की मादाओं के स्तन केवल मातृत्व के समय और अपने बच्चों को स्तनपान कराने के लिए ही विकसित होते और फूलते हैं और बाकी समय उनकी केवल चूची ही नज़र आती है जो कि ना तो शोभनीय होती है और ना ही उत्तेजक। इस मामले में मानव जाति की स्त्री भिन्न है। उसके स्तन जब एक बार यौवन में विकसित हो जाते हैं तो जीवन-पर्यंत उभरे ही रहते हैं भले ही वह स्त्री माँ बने या ना बने या फिर उसकी रजोनिवृत्ति हो चुकी हो, वे उसकी छाती की शान बने रहते हैं।

मेरे विकास के अंकुर तभी फूट चुके थे जब अंजलि अपनी माँ की कोख में थी। अंजलि के पिता के शुक्राणु में Y गुणसूत्र (chromosome) ना होने के कारण अंजलि का स्त्रीलिंग होना तय हो चुका था। अगर उसके पिता के शुक्राणु में Y गुणसूत्र होता तो लड़के का जन्म होता। अतः जब अंजलि अपनी माँ की कोख में करीब 9 हफ्ते की, एक मटर के दाने के बराबर थी, तभी से प्रकृति ने उसके जननांग जैसे योनि, भगनासा और अंडाशय का बीज बो दिया था। उसके भ्रूण में मरदाना टेस्टोस्टेरोन (testoterone) की जगह जनाना एस्ट्रोजेन (estrogen) होर्मोन की उत्पत्ति के कारण उसमें स्त्री-लक्षण और स्त्री अंगों का सृजन होने लगा।

पर मेरा प्रत्यक्ष विकास अंजलि के जन्म के 9-10 साल बाद शुरू होना था। जब अंजलि पैदा हुई थी तो उसकी छाती किसी भी लड़के की छाती जैसी थी और यह अगले 9-10 साल तक वैसे ही रही। अर्थात, जीवन के पहले 9-10 साल तक अंजलि का लिंग सिर्फ उसके गुप्तांग देख कर ही जाना जा सकता था। अंजलि जब 8 वर्ष की हुई थी तब उसके पेट के पास अधिवृक्क ग्रंथि (adrenal gland) ने नर-होर्मोन की उत्पत्ति शुरू की जिससे अंजलि की बाहों और टांगों पर बाल उगने लगे। यह ग्रंथि लड़कों में भी यही काम करती है। पर लड़कियों में इस होर्मोन के उत्पत्ति से दिमाग में स्थित पीयूषिका ग्रंथि (pituitary gland) को अपना काम शुरू करने का आदेश मिलता है जो गोनाडोट्रोपिन (gonadotropin) नामक होर्मोन का संचार करते हैं जिससे बालिका के छोटे अंडाशय (ovaries) बड़े होने लगते हैं और विकसित होने पर वे एक और होर्मोन, एस्ट्रोजेन (estrogen) का संचार करते हैं जिनके असर से अंजलि के सभी स्त्रीत्व-अंगों और स्त्री-गुणों का विकास होने लगता है। उसके स्तन, गर्भाशय और योनि बड़े होने लगते हैं तथा उसका कद और वज़न भी बढ़ने लगता है।

अंजलि के शरीर में ये प्रत्यक्ष और कौतूहली परिवर्तन उसकी 10 से 13 साल की उम्र के बीच आने लगे थे। इसे यौवनारम्भ अवस्था (puberty) कहते हैं और यह करीब 4-5 साल तक चलती है जिस दौरान अंजलि एक बालिका से एक युवती बन जायेगी। एस्ट्रोजेन के कारण अंजलि में ना केवल स्त्री-अंगों का विकास हुआ, उसमें स्त्रीत्व के सभी लक्षण और विशेषताएं, जैसे मीठी आवाज़, कोमलता, संवेदना, भावुकता, लज्जा, पुरुष के प्रति आकर्षण और त्रिया-चरित्र के गुणों की भी उपज हुई।

यौवनारम्भ-चरण में मेरा विकास अंजलि के जननांगों के विकास के साथ जुड़ा हुआ था। हम उसकी योनि, गर्भाशय और प्रसव-सम्बंधित अंदरूनी अंगों के साथ साथ बढ़ रहे थे। इस विकास को 5 चरणों में बांटा गया है जिसे टैनर स्केल (Tanner Scale) कहते हैं।

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मेरी बनावट

मैं अंजलि की छाती पर ऊपर से नीचे की दिशा में दूसरी से छठी पसली पर टिका होता हूँ और दायें से बाएं लगभग पूरी छाती पर फैला होता हूँ। मेरे मांस-तंतु का उभार दायें से बाएं दोनों बाजुओं तक और ऊपर से नीचे हँसली की हड्डी से उरोस्थि (breast-bone) तक हो जाता। मेरे आकार और माप भिन्न भिन्न हो सकते हैं। आकृति के हिसाब से मुझे एक शंकु (cone) कहा जा सकता है जिसका आधार छाती की दीवार और जिसका सिरा स्तनाग्र (nipple) होता है।

मेरी बनावट में कई परतें होती हैं …. सबसे बाहरी परत त्वचा की और उसके अंदर क्रमशः चर्बीयुक्त और ग्रंथिल मांस-तंतुओं की परतें होती हैं। चर्बीयुक्त परतें मुझे आकार देने और लचीला तथा कोमल बनाने में मदद करती हैं और ग्रंथिल परतें मेरे मूलभूत उपयोग, यानि दूध के उत्पादन और निष्कासन, सम्बन्धी कार्य को सफल बनाती हैं। मेरे अंदर 14–18 दूध उत्पादक पालियां (lobes) होती हैं जो कि नलियों द्वारा स्तनाग्र या चूचक से जुड़ी होती हैं।

मेरे स्तनाग्र (nipple) स्तन के रंग से थोड़े गहरे रंग के होते हैं और इनमें कई छोटे-छोटे छेद होते हैं जिनमें बगल से से दूध निकलता है। स्तनाग्र के चारों तरफ एक गोलनुमा और ज्यादा गहरे रंग का परिवेश (aerola) होता है। स्तनाग्र और परिवेश गहरे रंग के इसलिए होते हैं जिससे शिशु को यह आसानी से दिख जाये। परिवेश में भी कई छोटे-छोटे छेद होते हैं जिनमें से, स्तनपान के दौरान, तरल पदार्थ निकल कर परिवेश को भिगो कर नमी देता है जो कि शिशु के मूंह और माता के स्तनाग्र, दोनों के लिए आरामदेह होता है। मेरे विभिन्न आकार, माप और वज़न तो हैं पर मूलतः स्तन गोलाकार होते हैं। गोलाकार होने के कारण शिशु को स्तनपान करते समय सांस लेने में रुकावट नहीं आती।

मेरा एक साथी और है, अंजलि का दांया स्तन, पर वह मुझसे थोड़ा छोटा है। यह एक आम बात है …. एक ही स्त्री के दोनों स्तन अक्सर एक ही आकार या प्रकार के नहीं होते … हम में थोड़ा बहुत फर्क होता है और ज़्यादातर बांया स्तन बड़ा होता है, शायद इसलिए कि हृदय बाईं तरफ होता है तो बाएं स्तन को अधिक पोषण मिलता है। हम में ना केवल साइज़ में फर्क होता है; हमारे रूप, निपिल के स्थान और दिशा में भी अंतर होता है। बहुत कम ऐसी स्त्री होंगी जिनके दोनों स्तन हर प्रकार से एक जैसे होंगे।

दोनों स्तनों में अंतर

जिस तरह मर्द अपने लिंग के आकार से चिंतित रहते हैं उसी प्रकार अंजलि अपने स्तन के आकार से बेचैन रहती है। मानव स्तन औसतन 34 इंच से 38 इंच के होते हैं। पर यह माप भूगौलिक क्षेत्र, प्रजाति, खुराक, सुख-सम्पन्नता और वंश पर निर्भर करता है। कुछ स्तन 30-32 इंच के तो कुछ 40-44 इंच तक भी होते हैं।

कई स्त्रियां अपने स्तन बढ़वाना तो कुछ उनको छोटा करवाना चाहती हैं। ऐसा करने का कोई प्राकृतिक तरीका नहीं है। हाँ, आधुनिक सौंदर्य-प्रसाधन सर्जरी द्वारा इनको छोटा-बड़ा किया जा सकता है या फिर झूलते-लटकते स्तन को उठाया जा सकता है। यह उपचार ना केवल अस्थायी होता है अपितु इसमें व्यर्थ खर्चा अथवा संक्रमण का खतरा भी रहता है।

जिस तरह मर्द को अपने लिंग से संतोष करना चाहिए उसी प्रकार स्त्री को भी अपने स्तन से संतोष करना चाहिए। इनसे असंतोष केवल मानसिक और आर्थिक नुकसान करवा सकता है … कोई उपचार नहीं करवा सकता। हमारा औसत वज़न करीब आधा किलो से लेकर एक किलो तक हो सकता है। छोटे स्तन करीब आधा किलो के तो बड़े स्तन एक किलो तक के हो सकते हैं। अंजलि के स्तन मध्यम आकार के हैं इसलिए मेरा वज़न करीब 750 ग्राम होगा। वैसे स्तनों का वज़न करना आसान नहीं होता।

स्तन को नापना

अंजलि को मेरा सही नाप जानना ज़रूरी है जिससे उचित नाप और कप-साइज़ की ब्रा (bra) पहनी जा सके। ढीली या तंग ब्रा मेरी सेहत के लिए ठीक नहीं।

ब्रा के लिए स्तन का नाप दो चरणों में लिया जाता है :

1. धड़ का नाप (D) – इंचीटेप से स्तन के नीचे पूरे धड़ का नाप इंच में लें। ध्यान रहे टेप समतल रहे और ना ढीला और ना ही तंग।

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धड़ का नाप

2. वक्ष का नाप (V) – इंचीटेप से स्तन के अधिकतम उभार के ऊपर से नाप इंच में लें। यहाँ भी ध्यान रहे टेप समतल रहे और ना ढीला और ना ही तंग।

वक्ष का नाप
वक्ष का नाप

3. बैण्ड का नाप (B) – धड़ के नाप में 4 इंच जोड़ दें। अगर धड़ का नाप विषम (odd) संख्या है तो 5 जोड़ दें (B=D+4/5)| विषम संख्या में 5 इसलिए जोड़े जाते हैं क्योंकि ब्रा केवल सम-सांख्यिक (even number) साइज़ में ही मिलती हैं।

4. कप साइज़ (C) – वक्ष के नाप से बैण्ड का नाप घटा दें (C=V-B)। वक्ष और बैण्ड के नाप के अंतर से कप साइज़ का पता चलता है। अब नीचे दी गयी श्रंखला से अपना कप-साइज़ बूझ लें।

Breast-size-chart

वक्ष का नाप

उदाहरणार्थ –

ऊपर के चित्र से पता चलता है कि एक ही ब्रा साइज़ (34 इंच), जो कि धड़ का साइज़ होता है, के लिए उपयुक्त कप साइज़ का होना कितना आवश्यक है।

स्तन पर ब्रा का असर या ब्रा पहननी चाहिए या नहीं

मुझ पर ब्रा का क्या असर होता है या फिर ब्रा पहननी भी चाहिए या नहीं इस पर दुनिया भर में बहस हो रही है। अक्सर लोगों का मानना है कि ब्रा पहनने से मुझे सहारा मिलता है और मेरा आकार बरकरार रहता है। मौलिक रूप से देखा जाये तो प्रकृति ने शरीर का कोई अंग ऐसा नहीं बनाया जिसे सहारे के ज़रूरत हो या फिर जिसके रख-रखाव के लिए मानव को यत्न करना पड़े। यह भी एक भ्रान्ति है कि अगर मुझे नीचे से सहारा देकर नहीं रखा गया तो मैं लटक कर बड़ा हो जाऊँगा। अगर ऐसा होता तो पुरुष का लिंग, जो अक्सर लटका ही रहता है, उम्र के साथ लंबा होता रहता और सब पुरुष खुश रहते !!

कुदरत ने मेरा आकार और वज़न इस प्रकार बनाया है जो अंजलि आसानी से अपनी छाती पर वहन कर सकती है। गुरुत्वाकर्षण का असर केवल मुझ पर नहीं पड़ता है कि मैं लटक कर लंबा होता जाऊँगा। हाँ, उम्र के साथ जैसे शरीर की मांसपेशियां कमज़ोर पड़ती हैं और स्तन-पान बंद होने तथा बाद तथा रजोनिवृत्ति के कारण जो मेरे अंदर मांस-तंतु और चर्बी कम हो जाती है तो मेरा उभार और गोलाई भी कम हो जाती है जिस कारण मैं लटकने लगता हूँ। यह प्राकृतिक अवनति है जो शरीर के हर अंग को भुगतनी पड़ती है और इस अवनति को ब्रा नहीं रोक पाती।

जब अंजलि जवान थी तब मेरा उभार और उन्नत आकार ब्रा के कारण नहीं था और जब वह वृद्ध हो जायेगी तब भी ब्रा मेरे आकार के क्षय को नहीं बचा पायेगी। कई लड़कियों को यह भ्रान्ति भी है कि स्तनपान कराने से मेरा आकार खराब हो जायेगा और मैं लटकने लगूंगा। इस भ्रान्ति के चलते कई आधुनिक, पढ़ी-लिखी एवं धन-संपन्न महिलाएं अपने शिशु को उपयुक्त स्तनपान नहीं करातीं। यह शिशु के लिए और उनकी खुद की सेहत के लिए नुकसानदेह है।

मुझे लगता है यह ब्रा-निर्माताओं की रण-नीति है जिसके तहत उन्होंने विज्ञापनों द्वारा बड़े स्तनों को ही स्त्री के सौंदर्य का केन्द्र बना दिया है तथा ब्रा द्वारा छोटे स्तनों को कृत्रिम उत्थान और वक्ष-दरार (cleavage) को आकर्षक बनाने का प्रावधान किया है। स्त्रियों को यह यकीन दिलाया गया है कि पुरुषों को फूले हुए और ब्रा से बाहर उभरते हुए स्तन ही आकर्षक लगते हैं। यह मिथ्या भी फैलाई गयी है कि ब्रा ना पहनने से सतन ढलक कर लटक जाते हैं। ये सब बातें पूरी तरह सत्य नहीं हैं।

हाँ, पुरुषों को स्तन पसंद आते हैं पर सब मर्दों को बड़े स्तन ही नहीं पसंद आते। कुछ को मध्यम तो कईयों को छोटे भी स्तन उन्मादित करते हैं। हाँ, ब्रा पहनने से वक्ष को सुन्दर बनाया जा सकता है … जिसमें कोई हर्ज नहीं है। हर युवती पुरुष को आकर्षक लगना चाहती है और किसी प्रसाधन से अगर ऐसा होता है तो उसका उपयोग कर लेना चाहिए। पर इसका अर्थ यह नहीं कि यह उपयोग आवश्यक है और ब्रा ना पहनने से नुकसान होता है।

ब्रा के कुछ फायदे इस प्रकार हैं :

1. छोटे स्तन को बड़ा दिखाया जा सकता है।

2. मुझे ऊपर ‘उठाया’ जा सकता है जिससे वक्ष-दरार भली-भांति प्रत्यक्ष और आकर्षक हो।

3. पारदर्शी कपड़े पहने जा सकते हैं।

4. मेरे प्रति उत्सुकता पैदा की जा सकती है (चोली के पीछे क्या है ?)

5. खेल-कूद या दौड़-भाग जैसी शारीरिक गतिविधि में मुझे समेट कर रखा जा सकता है जिससे मुझे दर्द ना हो।

इस सन्दर्भ में एथलीट और खिलाड़ियों के लिए ब्रा पहनना ज़रूरी माना जा सकता है जिसके ना पहनने से मुझमें दर्द हो सकता है। बाकी किसी भी सन्दर्भ में ब्रा ना पहनने से मुझे कोई नुकसान नहीं होता।

ब्रा पहनने के कुछ नुकसान भी हैं पर लगभग ये सभी गलत साइज़ की ब्रा पहनने से होते हैं। वैश्विक स्तर पर करीब 70-75 % महिलाएं अनजाने में गलत साइज़ की ब्रा पहनती हैं इसलिए ब्रा-संचारित पीड़ा या तकलीफ अत्यधिक प्रचलित और विश्वव्यापी है। ज्यादा ढीली या तंग ब्रा, गलत कप साइज़, कंधे का स्ट्रैप ढीला या तंग, अनुचित कपड़ा, इलास्टिक और हुक की रगड़ इत्यादि कई कारण हैं जो ब्रा के द्वारा मुझे तकलीफ देते हैं।

मेरा आकार भिन्न भिन्न समय पर अनेकों कारणों से बदलता रहता है पर लगभग सभी महिलाएं केवल एक ही साइज़ की ब्रा का उपयोग करती हैं जिस कारण कभी मुझे ढीली या कभी तंग ब्रा को झेलना पड़ता है। सभी महिलाओं को अपने सही साइज़ की ब्रा के अलावा एक साइज़ बड़ी और एक साइज़ छोटी ब्रा भी रखनी चाहिए और मेरी सहूलियत और आराम को ध्यान में रखकर पहननी चाहिए।

ब्रा और कर्क-रोग का सम्बन्ध

हमारी लसीका-प्रणाली में, जो कि शरीर के विषाक्त पदार्थ के विसर्जन और रक्त-द्रव की पुनरावृत्ति का काम करती है, हृदय जैसा कोई पम्प नहीं होता जो रक्त को पूरे शरीर में प्रसारित करता है। लसीका-प्रणाली हमारे अंगों की हरकत से चलती है। अगर कोई अंग काफी देर तक हरकत ना करे तो उस अंग को इस प्रणाली का लाभ नहीं मिलता और उस अंग को बीमारी होने का अंदेशा बढ़ जाता है। ब्रा पहनने से स्तन के हिलने-डुलने में रुकावट आती है। जो स्त्रियां ज्यादा देर तक ब्रा पहनती हैं उनमें लसीका-प्रणाली के विफल होने से स्तन-कर्क-रोग की संभावना बढ़ जाती है।

लसीका प्रणाली का प्रसारण : पूरे शरीर पर असर

एक नए अध्ययन (Singer and Grismaijer – Dressed to Kill) से पता चला है कि ब्रा पहनने की अवधि और स्तन-कर्क-रोग में एक रिश्ता है :

अर्थात, 24 घंटे ब्रा पहनने वाली स्त्रियों को ब्रा ना पहनने वाली स्त्रियों के मुक़ाबले स्तन-कर्क-रोग का खतरा 125 गुणा अधिक होता है। शायद इसीलिए यह रोग पाश्चात्य और समृद्ध महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है और आदिवासी एवं गरीब महिलाओं में कम। गनीमत है कि ब्रा पहनना एक विकल्प है और इसे जब चाहे उतारा या त्यागा जा सकता है। मेरे ख्याल से तो इसे कम से कम समय के लिए पहनना चाहिए। (साड़ी)-ब्लाऊज़, (सलवार)-कमीज़, टी-शर्ट जैसे वस्त्रों के नीचे, जहाँ स्तन वैसे ही ठीक से ढके रहते हैं, ब्रा पहनने की कोई वैज्ञानिक, तर्क-संगत या स्वास्थ्य-सम्बन्धी आवश्यकता नहीं है। हाँ, कुछ पाश्चात्य ड्रेस ऐसी होती हैं या फिर खेल-कूद के समय ब्रा की ज़रूरत होती है। पर घर मैं, एकांत में या रात को सोते समय मुझ पर ब्रा की बंदिश अच्छी बात नहीं है।

स्तन की बनावट में विभिन्न परतों का अनुपात भी भिन्न-भिन्न होता है जिस कारण स्त्रियों के स्तन अलग-अलग आकार, माप, वज़न और मांसलता के होते हैं। चर्बीयुक्त और ग्रंथिल परतों के अनुपात पर स्तन की ठोसता और घनत्व निर्भर करता है। स्त्री के जीवन में यौवनारम्भ, रजोधर्म (menstruation), गर्भावस्था, स्तनपान और रजोनिवृत्ति (menopause) जैसे इतने महत्वपूर्ण चरण आते हैं जिनमें विभिन्न ग्रंथियां अलग-अलग अनुपात में अलग-अलग होर्मोन संचारित करती हैं जिनका सीधा असर उसके जननांग और स्तनों पर पड़ता है। इस कारण हमारा आकार, उभार, माप, ठोसता और लचीलापन इत्यादि उम्र के साथ बदलता रहता है।

उम्र के साथ स्तन की अवनति

मासिक धर्म के समय स्तन अस्थायी रूप से बड़े हो जाते हैं। गर्भावस्था और स्तनपान के चरण में स्तन स्थायी रूप से बड़े हो जाते हैं। स्तनपान-समाप्ति पर ये फिर से पुराने आकार के हो जाते हैं। अंत में रजोनिवृत्ति के बाद ये सिकुड़ कर छोटे हो जाते हैं और साथ ही उम्र के साथ इनकी मांसपेशियां कमज़ोर होने तथा चर्बी-तंतु कम होने से ये लटकने लगते हैं।

स्तन की देखभाल

अंजलि एक नारी है इसलिए उसके सभी अंग सौम्य हैं पर मैं उसके संवेदनशील अंगों में से एक हूँ। अंजलि के बाकी मार्मिक अंग गुप्त रहते हैं पर मैं भले ही ढका हुआ रहूँ फिर भी अति प्रत्यक्ष रहता हूँ। प्रकृति ने मुझे बिना हड्डी या पुख्ता अंश के बहुत ही कोमल और मांसल बनाया है। कामोत्तेजक अंग होने के कारण मैं मर्दों द्वारा काफी सहलाया, दबाया, मसला और नोंचा जाता हूँ। कभी-कभी काम वासना में आतुर पुरुष मुझे काट भी लेते हैं। मैं काफी हद तक इस तरह का प्यार और अत्याचार सहन कर सकता हूँ पर काटने और नोंचने से मुझे और मेरी निपिल को काफी चोट लग सकती है। सभी मर्दों से मेरी प्रार्थना है कि मेरे साथ कोमलता से पेश आयें।

मेरी देखभाल करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि मेरे रोग आसानी से पता नहीं चलते। मैं कर्क-रोग का बहुत प्रिय अंग हूँ और मुझे लगा कर्क-रोग अंजलि के पूरे शरीर को प्रभावित कर सकता है। मेरी देखभाल के लिए ज्यादा श्रम नहीं चाहिए, बस कुछ नियमित क्रियाएं हैं :

1 नियमित स्नान और ठीक से सफाई।

2 मुझ में अनुचित बदलाव, गाँठ या रिसाव देखने के लिए नियमित निरीक्षण।

3 अगर मुझे कोई तकलीफ नहीं है तो भी 35 की उम्र के लगभग पहली औपचारिक जांच (sonography & mammography)

4 इसके बाद कोई तकलीफ ना होने पर भी 50 साल की उम्र तक हर दूसरे साल और 50 के बाद हर साल औपचारिक जांच।

5 मुझे तंग चोली या ब्रा में जकड़ा ना जाये।

6 सोते समय मुझे खुला छोड़ा जाये।

7 मेरी ब्रा के साइज़ को नियमित रूप से मेरे बढ़ते-घटते आकार के हिसाब से बदला जाये। मेरी राय में अंजलि को सिर्फ एक ही साइज़ की ब्रा (36B) नहीं रखनी चाहिए …. एक साइज़ ऊपर (36C) और एक साइज़ नीचे की ब्रा (36A) भी उचित मात्रा में रखनी चाहिए।

स्तन कर्क-रोग

मुझ में कई तरह की समस्याएँ और रोग हो सकते हैं पर सबसे संकटमय और डरावना कर्क-रोग होता है जो वैश्विक स्तर पर महिलाओं के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। शरीर के बाकी अंगों में भी कर्क-रोग भयावह होता है परन्तु मुझ में कर्क-रोग हो जाने से इसके पूरे शरीर में फैलने की शंका बहुत सुलभ और प्रबल होती है। यह इसलिए है क्योंकि मैं एक ग्रंथि हूँ जो कि अंजलि की लसीका-प्रणाली (lymphatic drainage) से जुड़ी हुई है। लसीका-प्रणाली शरीर में रक्तद्रव (blood plasma) की पुनावृत्ति (recycle) और रक्त के संक्रमण को दूर करने का काम करती है। रक्त-प्रणाली की ही तरह यह भी पूरे शरीर पर फैली होती है। दोनों स्तनों के पास लसीका प्रक्रिया के लिए अपना-अपना लसीका-पर्व (lymph node) होता है पर इस प्रणाली के तहत एक स्तन का करीब 75% लसीका (lymph) उसी स्तन के लसीका-पर्व को जाता है और बाकि 25% दूसरे स्तन के लसीका-पर्व को जाता है। इस तरह प्रकृति ने एक स्तन के लसीका-पर्व के विफल होने पर भी दोनों स्तनों को संक्रमण-मुक्त रखने का प्रावधान किया है।

परन्तु इसका दुष्प्रभाव कर्क-रोग के समय उजागर होता है जब एक स्तन में कर्क-रोग होने से इस प्रणाली द्वारा कैंसर-कोशाणु दूसरे स्तन को प्रभावित कर सकते हैं। सिर्फ दूसरे स्तन को ही नहीं, इस प्रणाली द्वारा शरीर के बाकी अंगों को भी कैंसर का खतरा हो जाता क्योंकि कर्क-कोशाणु आसानी से अपनी जगह से टूट कर (metastasis) लसीका-प्रणाली के बहाव के साथ दूसरे तक पहुँच सकते हैं। इसीलिए स्तन-कैंसर इतना खतरनाक रोग माना जाता है। बाकी अंगों का कर्क-रोग उस अंग के आस-पास ही फैलता है पर मेरा कर्क-रोग अंजलि के कलेजे, गुर्दे, पेट, गला, और अंडाशय तक को प्रभावित कर सकता है।

कर्क-रोग के प्रत्यक्ष संकेत

स्तन स्वयं-निरीक्षण

अंजलि 30 वर्ष की उम्र से हर महीने हमारा निरीक्षण करती आई है। ऐसा करने से कोई भी रोग या संक्रमण का पता समय रहते चल जाता है और उसका उपयुक्त उपचार किया जा सकता है। आजकल कर्क-रोग जैसी गंभीर बीमारी का भी अगर जल्दी से पता चल जाये तो उसका निदान हो सकता है। हर स्त्री को अपने स्तन का निरीक्षण हर महीने अपने मासिक-धर्म के पांचवें या छठे दिन ज़रूर करना चाहिए। निरीक्षण का तरीका निम्न चित्रों में दिया है।

1. स्तन की आँखों से जांच

2. स्तन में गाँठ ढूँढना

मासिक-धर्म के पांचवें या छठे दिन, स्तन सामान्य हो जाते हैं और उनमें कोई होर्मोन-प्रभावित संवेदन या फूलन नहीं होती। अतः रजो-धारी स्त्रियों के लिए यही दिन इस प्रक्रिया के लिए उपयुक्त है। रजो-निवृत्त महिलाएं महीने में किसी भी दिन, पर नियमित रूप से, इसे कर सकती हैं। इसे ठीक से करने में करीब 7 – 10 मिनिट तक लग जाते हैं। गीले स्तन पर उँगलियाँ आसानी से चलती हैं अतः इसे नहाते वक्त या नहाने के तुरंत बाद गीले स्तन पर करना उचित होगा।

हालांकि, यह प्रक्रिया स्तन कर्क-रोग के प्रति चौकस रहने और और पूर्व-चेतावनी के लिए की जाती है और इससे कर्क-रोग के जल्दी पता चलने में मदद मिलती है परन्तु इससे कर्क-रोग के पाए जाने की पूर्ण गारंटी नहीं है। कई बार इस क्रिया के बावजूद कर्क-रोग का पता नहीं चलता है क्योंकि हर महिला सही तकनीक से या पूरे स्तन और उसके आस-पास के इलाके का निरीक्षण नहीं करती। फिर, कुछ महीनों के बाद यह एक दस्तूर सा बन जाता है और स्त्रियां इसे गंभीरता से नहीं करतीं। जो भी हो, इसकी महत्ता को ध्यान में रखते हुए इसे ठीक ढंग से करना चाहिए। साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि इस गतिविधि के कारण मन में कर्क-रोग का आतंक नहीं बैठे। हर गाँठ या स्तन की समस्या कर्क-रोग नहीं होती।

स्तन कर्क-रोग का इलाज

जब स्तन कर्क-रोग की पुष्टि हो जाती है तो सामान्यतः रसायानोपचार (chemotherapy) से इलाज की शुरू होती है पर अधिकाँश मामलों में स्तन-उच्छेदन (mastectomy) यानि ग्रसित स्तन को सर्जेरी द्वारा निकाल देना ही संतोषजनक उपचार माना जाता है। यह इसलिए क्योंकि लसीका-प्रणाली के तहत इस कर्क-रोग के और अंगों तक फैलने का डर काफी संभावित होता है। हालांकि यह ज़रूरी नहीं है पर अगर स्त्री चाहे तो स्तन-उच्छेदन के बाद पुनर्निर्माण सर्जरी द्वारा कृत्रिम स्तन लगाया जा सकता है या फिर उस रिक्त स्थान को टैटू-कला द्वारा छुपाया या सुशोभित किया जा सकता है।

उच्छेदित स्तन

कर्क-रोग रहित स्तन समस्याएं

1. स्तन अतिवृद्धि (Breast Hypertrophy / Macromastia) – इसमें स्तन अत्यधिक बड़े हो जाते हैं जिनसे भौतिक और सामाजिक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं। यह अतिरिक्त एस्ट्रोजन उत्पादन के कारण होता है और अधिकतर यौवनारम्भ या गर्भावस्था में होता है। इसके चलते एक–एक स्तन 2 किलो तक का हो सकता है और इससे रीढ़ की हड्डी पर, चलने में और दिन-चर्या के काम करने में दुविधा होती है। इसके अलावा इस माप के ब्रा , ब्लाऊज़ और ऊपरी कपड़े आसानी से नहीं मिलते। इसका इलाज दवाइयों और स्टीरोइड से होर्मोन संतुलन बहाल करके या फिर सर्जरी से अतिरिक्त मांस-तंतु निकाल कर किया जाता है। यह रोग मर्दों को भी हो सकता है।

2. स्तन में दर्द – यह कई कारणों से हो सकता है पर ज़्यादातर या तो किसी संक्रमण के कारण या फिर अनुचित ब्रा साइज़ के कारण होता है। इसका एक और कारण स्त्री के मासिक ऋतुचक्र के कारण हो रहे होर्मोन बदलाव भी है जो लगभग सभी महिलाओं को प्रभावित करता है।

3. स्तन की सूजन (Mastitis) – यह व्यथा अक्सर स्तन-पान कराने वाली महिलाओं को होती है। यह एक स्तन को बिना किसी चेतावनी के हो सकती है। सूजन के अलावा, स्तन में दर्द, लाली, संवेदनशीलता, गर्माहट और हल्का बुखार हो सकता है। यह स्तन के अंदर दूध रहने से या तंग कपड़ों के कारण दूध-नालिकाओं पर दबाव पड़ने से हो जाता है। स्तन-पान कराने के पहले दो वर्षों में यह ज्यादा पाया जाता है। कर्क-रोग को ख़ारिज करने के लिए अल्ट्रासाउंड और मैमोग्राफी की ज़रूरत पड़ सकती है। स्तन-पान ना कराने वाली महिलाओं के लिए यह गंभीर बात हो सकती है क्योंकि इसके लक्षण कर्क-रोग के लक्षण जैसे होते हैं। इसका निदान अतिरिक्त दूध का निष्कासन और एंटीबायोटिक्स द्वारा होता है।

4. तंतुपुटीय स्तन परिवर्तन (Fibrocystic Breast Changes) – यह दशा करीब 50% प्रसव-कालीन स्त्रियों में पायी जाती है। इससे स्तन में कर्क-रोग रहित तकलीफ-देह गांठें बन जाती हैं जो कि मासिक ऋतू-चक्र के कारण हो रहे शरीर में होर्मोन बदलाव से सम्बंधित होती हैं। इसमें स्तन के ऊपरी भाग में या काख के पास रेशेदार गाँठ-सी बन जाती है जो कि स्तन में किसी एक जगह स्थिर नहीं रहती और हाथ से हिलायी जा सकती है। इसके कारण स्तन में सूजन, कोमलता और दर्द तथा चूचक में संवेदना या खुजली हो सकती है। इसके लक्षण मासिक-धर्म के साथ आते-जाते हैं।

स्तन की हर व्यथा में जिसमें गाँठ हो, सबसे पहले कर्क-रोग के अपवर्जन (exclusion) के लिए परीक्षण होते हैं जिसके लिए अल्ट्रासाउंड, मैमोग्राफी, जीवोति-जांच (biopsy) किये जा सकते हैं। कर्क-रोग के अपवर्जन के बाद इसके इलाज के लिए कोई स्थापित उपचार नहीं है। यह दशा रजोनिवृत्ति उपरान्त अपने आप ठीक हो जाती है। हाँ, इस दशा से युक्त स्तन में अगर बाद में कर्क-रोग ग्रसित गाँठ बनने लगे तो उसकी जांच मुश्किल हो जाती है।

स्तन-पान

मेरा मौलिक उपयोग शिशु का स्तन-पान है। नवजात शिशु को जन्म के तुरंत बाद, यहाँ तक कि उसे साफ़ करने और तोलने से भी पहले, उसकी माँ के वक्ष के पास रख देना चाहिए। इस समय शिशु चौकन्ना और स्तन-पान के लिए तत्पर होता है। वह अपने आप हिल-डुल कर स्तन की ओर बढ़ने की क़ाबलियत रखता है इसीलिए स्तन-परिवेश और स्तनाग्र गहरे रंग के होते हैं जिससे शिशु उनकी तरफ बढ़ सके। जन्मोपरांत तुरंत किये गए स्तन-पान से शिशु और माँ दोनों को अनेकों लाभ होते हैं –

1. माँ-शिशु का बंधन बनता है।

2. शिशु को स्तन-पान करने का और माँ को स्तन-पान कराने का क्रम आसानी से शुरू होता है।

3. स्तन-पान से होर्मोन उत्पत्ति होती है जिससे माँ के गर्भाशय से रक्तपात बंद होने तथा गर्भाशय के सिकुड़ने और पूर्व-वत आकार में आने में सहूलियत होती है।

4. जन्मोपरांत स्तन से जो द्रव्य निकलते हैं उनके पान से शिशु की रोग-क्षमता बढ़ती है और कई संक्रमणों और रोगों से उसका प्राकृतिक बचाव होता है।

5. शिशु को सबसे उचित आहार मिलता है जो उसके दीर्घकालीन शारीरिक और मानसिक विकास के लिए सर्वोत्तम होता है। भविष्य में भी अनेकों रोगों से जैसे हृदय-रोग, मोटापा, रक्तवसा (cholesterol), अलर्जी, मधुमेह (diabetes) इत्यादि से रक्षा करता है।

6. स्तन-पान कराने वाली माँ को अतिरक्त होर्मोन संचार से स्तन रोग नहीं होते।

7. गर्भावस्था में संचित अतिरिक्त वसा (fat) दूध उत्पादन में काम आती है और स्तन-पान कराने से इस वसा का सदुपयोग होता है और माँ का गर्भावस्था में बढ़ा वज़न घटाने मैं मदद मिलती है।

8. स्तन-पान कराने वाली माँ को प्राकृतिक गर्भ-निरोधन मिलता है। वह इस अवधि में गर्भ-धारण नहीं कर सकती।

9. स्तन-पान कराने वाली माँ को अनेकों रोगों से प्राकृतिक बचाव मिलता है।

10. माँ के दूध से शिशु को कोई संक्रमण या दुष्प्रभाव ना होने के कारण उसके इलाज, दवाई, डॉक्टर इत्यादि के खर्चों में भी बचत होती है।

11. स्तन-पान कराने से माँ को मातृत्व संतोष और शिशु को संरक्षण का अहसास मिलता है, जो दोनों के स्वास्थ्य और आपसी बंधन के लिए लाभदायक होता है।

विशेषज्ञों का मानना है के शिशु को पहले 6 महीने केवल स्तन-पान ही करना चाहिए और इसके अतिरिक्त उसे और कुछ नहीं देना चाहिए। 6 महीने बाद उसे अतिरिक्त आहार की ज़रूरत पड़ेगी जो इस आत्मकथा के दायरे के बाहर है। नवजात शिशु शुरू मैं करीब हर 1-3 घंटे स्तनपान करता है और इसकी अवधि 20-25 मिनिट होती है। कुछ बच्चे ज्यादा देर तक स्तन से लगे रहते हैं। शिशु स्तन-पान सिर्फ भूख मिटाने के लिए ही नहीं बल्कि अकेलापन दूर करने के लिए, भयभीत होने पर या किसी पीड़ा में होने पर भी करते हैं। आम तौर पर स्तन-पान 1.5 से 2 साल तक की उम्र तक चलता है पर भारत में यह अवधि 2 साल से ज्यादा चलती है।

जो बच्चे स्तन-पान से वंचित रह जाते हैं उनके शारीरिक व मानसिक विकास और स्वास्थ्य में अनेकों कमियां रह जाती हैं और वे अक्सर चिडचिडे या अंतर्मुखी (introvert) स्वभाव के, अधीर, गुसैले तथा आपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं। स्तन-पान सभी बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है और किसी भी माँ को उसके इस अधिकार से वंचित रखना एक अपराध से कम नहीं। कुछ गुमराह महिलाएं अपने व्यवसाय, जीविका की होड़ या अपने स्तन के आकार को बनाये रखने के लिए स्तन-पान से विरक्त रहती हैं। वे अनजाने में बहुत निंदनीय दुष्कर्म कर रही हैं जो उनके शिशु के लिए तो हानिकारक है ही पर उनके खुद के स्वास्थ्य के लिए भी अनुचित है।

स्तन और यौन क्रिया

मानव-जाति सभी जीव-जंतुओं की तुलना में सबसे ज्यादा यौन-चपल होती है। जहाँ बाकी जीव-जंतु केवल जीवन-सृजन के लिए सम्भोग करते हैं, मानव जाति के पुरुष और स्त्री जीवन-सृजन से कहीं ज्यादा बार भौतिक उन्माद के लिए यौन-क्रिया में लिप्त होते हैं। इस क्रिया में मेरा बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहता है। मैं एक कामोत्तेजक अंग हूँ और मेरा स्पर्श ना केवल अंजलि को आनंदमय लगता है पर मर्दों को भी मुझे छूना, सहलाना और मसलना बहुत मज़े देता है। मेरे जितना बड़ा हड्डी-रहित, कोमल, मांसल और लचीला अंग कोई और नहीं है अतः मेरे साथ खेलने में पुरुषों को बहुत आनंद मिलता है। साथ ही मेरे निपिल मर्दों को चूसने के लिए लाचार कर देते हैं।

किसी भी प्रेमी जोड़े की यौन क्रिया की शुरुआत अक्सर मेरे दर्शन और स्पर्श से ही होती है। मैं सम्भोग-पूर्व रति-क्रिया में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हूँ … अंजलि का पति मेरे साथ कुतर-पांच करके अंजलि को सम्भोग के लिए तैयार करता है और इस प्रक्रिया से वह खुद भी मैथुन के लिए उत्तेजित हो जाता है। कभी कभी वह हमारे (दोनों स्तनों के) बीच अपना लिंग डाल कर सम्भोग क्रिया का अनुकरण करता है जिससे उसके लिंग को लगभग सामान्य मैथुन जैसा घर्षण महसूस होता है। इस के लिए लिंग और स्तनों पर कोई चिकनाई लगाना बेहतर है।

स्तन-सम्भोग को मुख-मैथुन के साथ भी जोड़ा जा सकता है जिसमें लिंग को स्तनों के बीच से स्त्री के मूंह तक ले जाते हैं।

स्तन पर कोसमटिक सर्जरी (cosmetic surgery)

आजकल जो महिलाएं अपने स्तन की बनावट और आकार से संतुष्ट नहीं हैं वे उन्हें छोटा या बड़ा करवा सकती हैं, लटकते स्तन को उठवा सकती हैं या फिर उच्छेदित स्तन की जगह कृत्रिम स्तन लगवा सकती हैं। केवल स्तन ही नहीं निपिल की भी कोसमटिक सर्जरी द्वारा मरम्मत या सुधार किया जा सकता है। यह एक महँगा उपचार है और इसके सफल होने की 100% गारंटी नहीं है। इसमें छोटे स्तन को बड़ा करने के लिए स्तन के अंदर एक कोमल और लचीला कृत्रिम अंश डाल दिया जाता है जो कि या तो मांसपेशी के बीच या फिर ग्रंथिल भाग में स्थापित किया जा सकता है।

बड़े स्तन को छोटा करने के लिए स्तन में से अतिरिक्त चर्बी-युक्त ग्रंथियां और मांसपेशी निकाल दी जाती हैं।

कुछ आधुनिक लड़कियां अपने स्तन को और आकर्षक बनाने के लिए और यौन-क्रिया में और अधिक आनंद प्राप्त करने के लिए अपने निपिल को छिदवा कर उसे आभूषित करवा लेती हैं। हालांकि मैं इसका समर्थन नहीं करता पर यह ना तो इतनी पीड़ादायक होती है जितना दिखती है और ना ही इसके कारण स्तन-पान करवाने में कोई दिक्कत आती है। हाँ, स्तन-पान करवाते समय निपिल में डाला हुआ आभूषण निकालना होता है।

उपसंहार

अपने बारे में मैं और क्या बताऊँ …. मैं एक अत्यंत महत्वपूर्ण, पेचीदा, जटिल व आकर्षक अंग हूँ। मेरे और भी कई सूक्ष्म संकट और समस्याएं हैं जिनकी जानकारी देना यहाँ संभव नहीं है। हालांकि मुझे स्त्री-अंग माना जाता है पर मैं पुरुषों में भी पाया जाता हूँ पर वहां मेरा कोई उपयोग नहीं है। एक बात हिंदी भाषा की मुझे हैरान करती है …. मैं एक मादा अंग हूँ और स्त्रीत्व का चिह्न माना जाता हूँ फिर भी हिंदी भाषा में मुझे पुल्लिंग माना गया है !!!

यह लेख आपको कैसा लगा इसकी प्रतिक्रिया मुझे अवश्य भेजें। मैं कोई डॉक्टर नहीं हूँ परन्तु इस लेख में दी गयी सब जानकारी प्रमाणित तथ्यों और विश्वसनीय स्रोतों से ली गयी है। इसमें कहीं भी मेरी व्यक्तिगत राय नहीं है। यह लेख सभी स्त्री-पुरुषों की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए है।

भवदीय
शगन कुमार
[email protected]

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