बढ़ती उम्र में नयी तरंग- 2
(Wife Oral Sex In Open)
वाइफ ओरल सेक्स इन ओपन स्पेस का मजा मुझे मेरी उस बीवी ने दिया जो अपने यौन जीवन को पूरी तरह से नीरस बना चुकी थी. यह सब कैसे हुआ? इस कहानी में पढ़ें.
मित्रो, आपने मेरी कहानी के प्रथम भाग
बढ़ती उम्र में नीरस यौन सम्बन्ध
में पढ़ा कि यौन जीवन में बढ़ते असंतोष से परेशान होकर मैंने अपने जैसे कुछ युगल इन्टरनेट पर खोजने की कोशिश की. मुझे कुछ जोड़े मिले जो मेरी उम्र के थे और सेक्स का मजा भरपूर ले रहे थे अलग तरीके से!
मैंने भी कुछ ऐसा ही करने की ठानी और अपनी बीवी को एक पर्यटन स्थल पर ले गया.
वहां हमें हमरे जैसा एक कपल मिल गया.
अब आगे वाइफ ओरल सेक्स इन ओपन स्पेस का मजा:
मैं बरबस ही शशि की तरफ बढ़ा और उसको बांहों में लेकर अपने होठों को शशि के कामुक होठों पर रख दिया।
शशि ने एक पल को नजरें ऊपर उठाकर मेरी तरफ देखा और फिर वो भी इस कामुक चुम्बन में मेरा साथ देने लगी।
अब तो शशि को ऐसा आनन्द आने लगा कि वो मेरे होंठ छोड़ने को तैयार ही नहीं थी।
इस बारिश के मौसम में भी शशि का पूरा बदन गर्म होने लगा।
वो शशि जिसने अपने कमरे में लाईट ऑन होने पर भी कभी मुझे हाथ तक नहीं लगाने दिया।
घर में आज तक जब भी हम कामावस्था में रहे, शशि हमेशा एक निष्क्रिय भागीदार ही रही।
पर आज शशि को यह क्या हुआ?
शायद इसी शशि को तो मैं 12 सालों से खोज रहा था।
मेरे अन्दर भी खून का दौरा तेज हो गया।
हम दोनों तो एक दूसरे से ऐसे लिपटे कि दुनिया जहान की खबर ही नहीं रही।
होंठ छूटते ही मैंने शशि पूरे चेहरे को चूमना शुरू कर दिया।
तभी शशि कि निगाह विवेक और काजल पर गई।
वो दोनों भी तो दुनिया को भुलाकर एक दूसरे से लिपटे हुए थे।
शशि ने मुझे नजरों से इशारा किया मैंने उन दोनों को देखा फिर शशि की तरफ देखकर मुस्कुराया।
शशि ने एकपल को मुझसे छूटकर चारों तरफ निगाह दौड़ाई।
दूर दूर तक हम चारों के अलावा कोई दिखाई नहीं दे रहा था।
शशि पुन: मुझसे लिपट गई।
इस बार शशि ने बांहें फैलाकर खुद मुझे जकड़ लिया और अपने दहकते होठों को मेरे होठों पर रख दिया।
अब मैं बारिश में भीगकर भी कामाग्नि में तपने लगा।
कुछ भी समझ नहीं आ रहा था; कुछ भी पता नहीं था।
बस बांहों में एक सुन्दरी थी इसके और मैं उस पर के आनन्द को जन्नत महसूस कर रहा था।
मुझे पता भी नहीं चला कब मेरे हाथ शशि की कामुक गोलाइयों पर थिरकने लगा।
शशि के कड़े हो चुके चूचुक का अहसास मुझे होने लगा।
मेरे पूरे बदन में चींटियां सी दौड़ रही थी; मेरे अन्दर खून की गर्मी बढ़ती गई।
बारिश के बावजूद मेरा पूरा बदन तप रहा था।
शशि के बदन की गर्मी भी मैं महसूस करने लगा।
मेरे हाथ शशि के बदन के हर कटाव को ऊपर से नीचे तक नापने लगे।
अचानक होश तब आया तब शशि का एक हाथ मेरी पैंट के अगले हिस्से के ऊपर आया।
मैंने भी सबसे पहले घूमकर विवेक और काजल की तरफ देखा.
वो दोनों भी मस्ती से लगे थे.
पर इस समय उनकी निगाहें हमारी तरफ ही थी।
नजरें मिलते ही विवेक मुस्कुराया पर काजल ने मेरी तरफ शरारती ढंग से आंख मारी।
मैंने खुद को नियंत्रित किया और शशि को भी इशारा किया।
हम दोनों थोड़ी दूरी पर ही प्रेमालाप कर रहे विवेक-काजल की तरफ बढ़ गये।
मैंने कहा- यार, बेहतरीन वाला मूड बन रहा है, जल्दी से होटल चलो।
“क्यों जी, यहां ये काम नहीं करेगा क्या?” कहते हुए अचानक काजल ने मेरी पैंट के ऊपर से ही पूरी तरह से टाइट हो चुके लिंग पर हाथ मारा.
और हम चारों हंस दिये।
“वाह बेटा! तुम्हें देखकर ही तो हमारा मूड बना और तुम ही अब मैदान छोड़कर भाग रहे हो?” विवेक बोला।
तभी काजल ने वो किया जिसकी शायद वहां किसी को भी उम्मीद नहीं थी।
काजल ने अचानक हाथ बढ़ाकर शशि की मिड्डी के ऊपर से ही उसकी योनि को पकड़ते हुए कहा- मैडम, यहां आग नहीं लगी क्या?
“बहुत लगी है … चींटियां दौड़ रही हैं।” बोलकर शशि ने नजरें झुका ली।
हालांकि मुझे शशि से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी पर आज उसके इस साहसी कामुक अवतार को देखकर मैं जितना खुश था उतना ही अचंभित भी।
“तो होटल जाने तक अब मुझसे इंतजार नहीं होगा।” बोलकर काजल ने विवेक पुन: विवेक को अपनी तरफ खींच लिया और वो दोनों फिर से एक दूसरे में मग्न हो गये।
हम तो बस उधर देख ही रहे थे कि काजल घुटनों के बल बैठकर विवेक के लिंग को पैंट के ऊपर से ही चाटने लगी।
मैंने जीवन में कभी इतनी कामुक औरत नहीं देखी थी।
तो मैंने पुन: शशि को दबोच लिया।
इस बार हम दोनों का ध्यान जितना एक दूसरे में था उतना ही पास में व्यस्त विवेक-काजल में भी।
काजल जो जैसे दीन-दुनिया से बेखबर हो गई; उसने विवेक की पैंट की चेन खोलकर अन्दर हाथ डाला और उसके पूरी तरह कड़क हो चुके लिंग को बाहर निकालकर अपने मुंह में भर लिया।
अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था; मेरा कामांग भी पैंट फाड़कर बाहर निकलने फड़फड़ा रहा था।
मैंने भी शशि की हाथ पकड़कर पैंट के ऊपर ही अपने लिंग पर रख दिया।
शशि तो अब खड़े होने की स्थिति में भी नहीं थी।
वो पास में पड़ी एक बैंच पर बैठ गई और मेरे ऊपर से ही मेरे लिंग को पकड़कर सहलाने लगी।
तभी उधर से हंसी की आवाज आई।
हमने घुमकर देखा तो विवेक और काजल हमारी हालत देखकर हंस रहे थे।
काजल विवेक का पूरी तरह से लौह हो चुका कामांग सहला रही थी।
मैंने पूछा- क्या हुआ, हंस क्यों रहे हो?
इतना ही बोलना था कि काजल वहां से उठकर हमारे पास आई और शशि के दोनों बहुत ही खूबसूरत उरोजों को अपने हाथों में समेटते हुए बहुत ही कामुक अंदाज में पूछा- मजा जा रहा है क्या? “हम्म्म्म्” गहरी सांस के साथ बस इतना ही निकला शशि के मुंह से!
“तो शरमाना कैसा?” कहते हुए काजल ने मेरी तरफ मुंह किया और मेरी पैंट की जिप खोल कर अपना हाथ अन्दर सरका दिया।
ईस्स्स् श्सह … मेरे मुंह से सीत्कार निकली।
वाइफ ओरल सेक्स इन ओपन … ये क्या कर दिया जालिम ने!
अभी मैं कुछ समझ पाता कि काजल ने मेरी बांसुरी पैंट से बाहर निकाल कर शशि के मुंह की तरफ सरका दी।
न जाने आज क्या क्या होने वाला था।
शशि तो जैसे इसी इंतजार में थी, उसने तुरन्त मुंह खोला और पूरा का पूरा लिंग अन्दर सरका लिया।
अब तो शशि भी बारिश में इस नये आनन्द का अनुभव करने को बेकरार लगने लगी।
विवेक भी चलकर मेरे बराबर में आ गया।
तुरन्त काजल ने किसी शिकारी नेवले की तरह विवेक के काले नाग को अपने मुंह में ले लिया और आनन्द लेने लगी।
काजल और शशि दोनों बैंच पर बैठकर हम दोनों की बांसुरी पूरे आनन्द से बजाने लगी।
उफ्फ … क्या आनन्द था।
ये सब किसी ख्याब के सच होने जैसा लग रहा था।
इतना आनन्द तो कभी जीवन में नहीं लिया जितना आज इस बाग में मिल रहा था.
हम दोनों पुरूष तो इन महिलाओं के सामने बिल्कुल बेबस हो गये।
पर आनन्द इतना जिसको बयान करना मुश्किल!
तभी विवेक ने काजल की कमीज के बटन खोल दिये।
हाय रेऽ … मैं कैसे बयान करूं।
काले रंग की अंगिया में छुपे हई गोरे रंग की वो बड़ी बड़ी पहाड़ियां और ऊपर से गिरता बारिश के पानी की बूंदें।
जो माहौल उस समय था उसको शब्दों में तो बयान नहीं किया जा सकता दोस्तों बस महसूस ही किया जा सकता है।
मेरे बाईं ओर खड़े विवेक ने काजल के दायें स्तन को ब्रा के ऊपर से ही सहलाना शुरू कर दिया।
देखकर मुझे भी सुरूर आने लगा।
तभी ये आवाज आई, “ईस्स्स्स् स्स्स्स …”
यह तो शशि की सीत्कार थी।
मैंने नीचे देखा तो पाया विवेक दूसरे ने अपना दांया हाथ शशि की मिड्डी के अन्दर सरकाकर उसका भी एक स्तन सहलाना शुरू कर दिया।
शशि तो आंखें बंद करके उस नशीले माहौल का पूरा मजा ले रही थी।
जब मेरे लिये खुद को रोक पाना मुश्किल होने लगा तो मैंने अपना लिंग शशि के मुंह से निकाला और वहीं नीचे बैठकर सामने बैठी शशि की मिड्डी ऊपर सरकानी शुरू कर दी।
शशि को जैसा एक पल को होश आया हो।
उसने आंखें खोलकर चारों तरफ का जायजा लिया और बिल्कुल सुनसान माहौल देखकर फिर से आंखें बन्द कर ली।
मैंने भी शशि की मिड्डी थोड़ी ऊपर सरकाकर उसकी गोरी गुदाज जांघों को ऊपर योनि तक चाटना शुरू कर दिया।
ऐसा करने में जैसे ही मैंने अपना एक हाथ शशि और काजल के बीच में बैंच पर रखा, काजल ने अपनी स्कर्ट ऊपर करके मेरा हाथ पकड़कर अपनी जांघ पर रख दिया।
वाह … दो चिकनी चिकनी जांघें एक साथ … एक का रस सीधे मुंह में जा रहा था और दूसरी का मजा मेरी उंगलियां ले रही थी।
शशि तो पूरी तरह से निढाल हो गई।
ऐसा लगा जैसा शशि को वो नैसर्गिक सुख मिल गया है जिसकी तलाश उस समय हम चारों को थी।
उसने कहा- जल्दी से होटल चलो, बस लो तो चलो।
बोलकर शशि ने मुझे और विवेक को पीछे सरकाया और अपने पूरी तरह से भीग चुके अपने कपड़ों को ठीक सा करते हुए बाहर की तरफ भागी।
अब तो हम तीनों को भी उसके पीछे भागना ही था तो हमने भी बिना किसी सवाल जवाब के अपने अपने कपड़े ठीक किया और बाहर टैक्सी की तरफ चल दिये।
घड़ी में 7.50 हो चुके थे।
बाकी सब जा चुके थे, बाहर टैक्सी ड्राइवर हमारा ही इंतजार कर रहा था।
टैक्सी वाले ने 30 मिनट में ही हमें होटल में पहुंचा दिया।
तब तक हम चारों का वो जुनून कुछ हद तक शांत को चुका था; बहुत थकान भी महसूस होने लगी।
अब हम सब ने फ्रैश होकर पहले कुछ खाना ही बेहतर समझा।
हम चारों अपने अपने कमरे में गये और अपने गीले कपड़े बदले, नहाकर साफ सुथरे लेकिन नाईट सूट ही पहनना बेहतर समझा।
चेंज करके विवेक और मैंने तो सिर्फ बरमूडा ही पहना।
पर ये दोनों कातिल हसीनायें हमें यहां भी मात दे गई।
गुलाबी रंग की पारदर्शी नाईटी में काजल और हल्के नीले रंग के साटिन के कामुक नाईट सूट में शशि जैसे उस रात को हम दोनों पुरूषों के सब्र का इम्तहान लेने पर आतुर थीं।
मैंने जल्दी से खाना आर्डर किया।
खा-पीकर विवेक ने अपने बैग से ताश निकाल ली और हम चारों रम्मी खेलने लगे।
हम लोग कुछ ही देर आराम से खेल पाये थे कि मुझे फिर से बेचैनी होने लगी।
मुझे पता था कि शशि तो एक बार संतुष्ट हो चुकी है पर मुझ पर तो अभी खुमारी बाकी थी।
वैसे भी आज पहली बार शशि मुझे किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी।
मैंने नजरों ही नजरों में शशि को अपने कमरे में चलने का इशारा किया।
चाल खत्म होते ही शशि ने पत्ते रखे और अपने कमरे में चलने के लिये खड़ी हो गई।
उसके उठते ही मैंने भी सबको शुभरात्रि बोला और अपने कमरे की ओर बढ़ गया।
“अरे एकदम अचानक, क्या हुआ?” काजल ने पूछा।
“बहुत थक गये हैं यार, अब नींद आ रही है।” शशि ने जवाब दिया।
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